किससे बचाए गए? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
कलीसियाई इतिहास और संस्कृति के साथ सम्बन्ध
1 फ़रवरी 2022
परमेश्वर के प्रावधान में
8 फ़रवरी 2022
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किससे बचाए गए?

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दसवा अध्याय है: चिन्ता

मसीहियत का विश्व-प्रसिद्ध प्रतीक क्रूस है। क्रूस यीशु की सेवकाई के सार को निश्चित रूप देता है। यह उसके महान दुख-भोग के सबसे गहरे पहलू को प्रकट करता है। मसीहियत में क्रूस इतना केन्द्रीय है कि  पौलुस ने, कुछ अतिश्योक्ति में, कहा कि वह यीशु ख्रीष्ट वरन् क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीष्ट को छोड़ और किसी का प्रचार न करने के लिए दृढ़ था (1कुरिन्थियों 2:2)। तैलीय पेन्ट या छेनी और पत्थर के स्थान पर शब्दों का उपयोग करते हुए, पौलुस एक ऐसी तकनीक का प्रयोग करता है जिसे बाद में महान कलाकारों द्वारा “फलदायी क्षण” कहा गया। रेम्ब्रान्ट और माइकलएन्जेलो अपनी कला में किसी एक दृश्य को स्मरणीय बनाने के लिए चुनने से पहले अपने विषयों के जीवनों से अनेक दृश्यों का रेखाचित्र करना चाहते थे। उदाहरण के लिए, माइकलएन्जेलो ने दाऊद के सार को एक विशिष्ट मुद्रा में प्रकट करने का प्रयास किया।

पौलुस के लिए, यीशु के जीवन और सेवकाई में फलदायी क्षण क्रूस था। एक प्रकार से, पौलुस का समस्त लेखन इस अति महत्वरपूर्ण कार्य की केवल विस्तृत टिप्पणी थी, वह सेवकाई जिसमें यीशु अपनी घड़ी से मिला, वह सेवकाई जिसके लिए उसका जन्म हुआ, और वह जिसके लिए उसने बप्तिस्मा लिया। यह वह सेवकाई थी जिसे पूर्ण करने के लिए यीशु पहले से ठहराया गया था। वह अनवरत रूप से उस क्षण की ओर बढ़ रहा था जिसे ईश्वरविज्ञान ख्रीष्ट का महान दुख-भोग कहता है, जिससे पहले उसने रक्त की बूँदों का पसीना बहाया था। यीशु के जीवन में सब कुछ उसकी मृत्यु के शिखर बिन्दु पर मिल गया।

यदि हम प्रथम बार नया नियम पढ़ने में सक्षम थे, जैसे कि हम सन्देश सुनने वालों में पहली पीढ़ी हों, तो मैं सोचता हूँ कि यह अत्यन्त स्पष्ट होगा कि यह घटना —ख्रीष्ट का क्रूसीकरण, पुनरुत्थान और साथ ही साथ स्वर्गारोहण—नए नियम के समुदाय के उपदेश देने, शिक्षा देने, और शिक्षा देने के केन्द्र में थी। यदि यह सत्य है कि क्रूस का बाइबलीय मसीहियत में महत्व केन्द्रिय है न कि परिधीय, तो यह भी आवश्यक है कि मसीहियों को बाइबल के सन्दर्भ में इसके अर्थ की थोड़ी समझ हो। यह किसी भी पीढ़ी में सच होगा, परन्तु मैं सोचता हूँ कि इस पीढ़ी में यह विशेष रूप से आवश्यक है।

क्रूस का महत्व

मुझे सन्देह है कि मसीही इतिहास के दो हज़ार वर्षों में कभी ऐसा समय आया होगा जब क्रूस का महत्व, क्रूस की केन्द्रियता, और क्रूस की आवश्यकता का प्रश्न इतना विवादस्पद विषय रहा होगा जितना कि अभी है। मसीही इतिहास में प्रायश्चित की आवश्यकता को इतने व्यापक रूप से कभी चुनौती नहीं दी गयी होगी जितनी की आज दी गयी है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, कलीसियाई इतिहास में ऐसे अन्य समय हुए हैं जब ईश्वरविज्ञान ख्रीष्ट के क्रूस को एक अनावश्यक घटना मानने के सम्बन्ध में उभरे हैं। इन ईश्वरविज्ञानों ने यह घोषित किया कि, निश्चित रूप से, इसका मूल्य तो था, परन्तु यह ऐसा कुछ नहीं था जिसकी लोगों को किसी सर्वश्रेष्ठ या महत्वपूर्ण प्रकार से आवश्यकता थी।

मुझे यह बड़ा रुचिकर लगता है कि कैसे कई सारे लोग मुझे यह समझाते हैं कि उनके मसीही न होने का कारण यह नहीं है कि वह मसीहियत के सच्चाई के दृढ़ कथन पर सन्देह करते हैं, परन्तु यह कि उन्हें कभी ख्रीष्ट की आवश्यकता के लिए मनवाया नहीं गया। कितनी बार आपने उन लोगों से बात की है जिन्होनें कहा है कि, “यद्यपि यह सत्य हो सकता है या नहीं भी हो सकता, परन्तु व्यक्तिगत रूप से मैं यीशु की आवश्यकता का आभास नहीं करता” या “मुझे कलीसिया की आवश्यकता नहीं है” या मुझे मसीहियत की आवश्यकता नहीं है”? जब मैं इस प्रकार की टिप्पणियों को सुनता हूँ, मेरी आत्मा मेरे भीतर करहाने लगती है। यदि लोग इस प्रकार की प्रवृत्ति पर दृढ़ रहते हैं तो मैं उनके परिणामों को सोच कर काँपता हूँ। यदि हम लोगों को ख्रीष्ट की पहचान और उसके कार्यों की सत्यता के विषय में समझा सके, तो यह तत्काल ही प्रकट हो जाएगा कि संसार में प्रत्येक व्यक्ति को इसकी आवश्यकता है और इसके बिना परमेश्वर से कोई उद्धार नहीं होगा।

थोड़े समय पहले ही एक शॉपिंग मॉल में, मैं एक बड़ी पुस्तक की दुकान में घूम रहा था। वह एक सामान्य पुस्तकों की दुकान थी जिसमें बिक्री के लिए पुस्तकों से भरी अलमारियाँ ही अलमारियाँ थी। दुकान के विभिन्न विभाजन सुस्पष्टता से अंकित किए गए थे जैसे उपन्यास, कथेतर साहित्य, व्यापारिक, खेल, आत्मसुधार, यौन सम्बन्ध और विवाह इत्यादि। दुकान के पिछले भाग में, एक विभाग धर्म पर था। इस विभाग में लगभग चार अलमारियाँ थीं। यह दुकान में सबसे छोटा विभाग था। उन अलमारियोँ पर सामग्री कदाचित ही पारम्परिक, शास्त्रीय मसीहियत के अनुरूप थी। मैंने अपने आप से पूछा, “इस दुकान को क्या हुआ है कि सब कुछ जो यह बेच रहे हैं उपन्यास और आत्मसुधार पर है, और वे बाइबलीय सच्चाई की विषय-वस्तु को कोई मूल्य नहीं दे रहे हैं?” तब मुझे स्मरण हुआ कि दुकान के स्वामी यहाँ सेवकाई के रूप में नहीं है। वे वहाँ व्यापार के लिए हैं। वे वहाँ लाभ कमाने के लिए हैं। उनके पास बिक्री के लिए अधिक मसीही पुस्तकों के न होने का कारण यह है कि ऐसे बहुत सारे लोग नहीं है जो आते हों और पूछते हों, “मुझे ऐसी पुस्तक कहाँ मिल सकती है जो मुझे ख्रीष्ट के प्रायश्चित की गहराई और अधिकाईयों के विषय में सिखाए?”

तब मैंने सोचा, सम्भवतः यदि मैं मसीही पुस्तकों की दुकान पर जाऊँ, तो वहाँ ऐसा प्रभाव पा पाऊँगा। परन्तु नहीं,  मसीही पुस्तकों की दुकानें ख्रीष्ट के क्रूस पर बहुत कम साहित्य प्रदान करती हैं। इसके विषय में मैंने तब सोचा जब मैं मॉल में बैठा हुआ था और अपने सामने से लोगों को आगे-पीछे जाते हुए देख रहा था। मुझ पर एक प्रभाव पड़ा। यह भयानक प्रभाव था कि यह आगे-पीछे जाने वाले लोगों का जनसमूह पाप के प्रायश्चित के विषय में चिन्तित नहीं है क्योंकि वे मूलतः इस बात से दृढ़-निश्चयी थे कि उन्हें ऐसे किसी प्रायश्चित की आवश्यकता नहीं थी। ऐसे प्रायश्चित की आज लोगों को “आवश्यकता” नहीं है। लोग इन प्रश्नों से दबाव में नहीं आते कि, “मैं परमेश्वर से कैसे मेल-मिलाप कर सकता हूँ? मैं परमेश्वर के न्याय से कैसे बच सकता हूँ?”

एक बात जो हमारी संस्कृति से निर्विवाद रूप से लुप्त हो गयी है वह यह है कि मनुष्य निजी रूप से, व्यक्तिगत रूप से, अनवरत रूप से अपने जीवनों के लिए परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हैं। कल्पना कीजिए कि यदि अचानक ही प्रकाश आ जाए और संसार में हर कोई कहे: “किसी दिन मैं अपने सृष्टिकर्ता के समक्ष खड़ा होऊँगा, और मुझे हर एक शब्द का लेखा देना होगा जो मैंने कहा, हर एक कार्य का जो मैंने किया, हर एक विचार का जिसके विषय में मैंने सोचा, और हर उस कार्य का जिसे करने में मैं असफल रहा। मैं जवाबदेह हूँ।”

यदि हर कोई उस तथ्य के प्रति तुरन्त जाग जाए, तो कुछ बातें हो सकती हैं। लोग कह सकते हैं, “ हाँ, मैं जवाबदेह हूँ परन्तु क्या यह महान बात नहीं है कि जिसके प्रति और जिसके समक्ष मैं जवाबदेह हूँ वह वास्तव से इस बात से चिन्तित ही नहीं है कि मैं किस प्रकार का जीवन जी रहा हूँ, क्योंकि वह समझता है कि लड़के, लड़के होंगे हैं और लड़कियाँ, लड़कियाँ?” यदि हर कोई ऐसा कुछ कहने लग जाए, तो सम्भवतः कुछ नहीं परिवर्तित होगा। परन्तु यदि लोग दो बातें समझ जाएँ—यदि वे समझ जाएँ कि परमेश्वर पवित्र है और पाप उसकी पवित्रता के विरुद्ध एक अपराध है —तब वे यह गिड़गिड़ाते हुए हमारी कलीसियाओं के द्वार तोड़ डालेंगे कि, “मुझे बचने के लिए क्या करना चाहिए?”

हम ऐसा सोचना अच्छा लग सकता है कि हमें उद्धारकर्ता की आवश्यकता नहीं है, परन्तु प्रायश्चित और क्रूस और मसीहियत इस प्राथमिक धारणा पर चलित है कि हम उद्धार की अत्यावश्यकता में हैं। यह धारणा सम्भवतः हमारी आधुनिक संस्कृति द्वारा साझा नहीं की जाती हो, परन्तु वह आवश्यकता की वास्तविकता को कम नहीं कर देता है।    

मुझे भय है कि आज संयुक्त राज्य अमरीका में, धर्मी ठहराए जाने का प्रचलित सिद्धान्त केवल विश्वास द्वारा धर्मी ठहराया जाना नहीं है। वह भले कार्यों द्वारा या विश्वास और कार्यों के संमिश्रण द्वारा भी धर्मी ठहराया जाना नहीं है। हमारी आज की संस्कृति में धर्मी ठहराए जाने का प्रचलित विचार है मृत्यु द्वारा धर्मी ठहराया जाना। परमेश्वर की सनातन भुजाओं में ग्रहण होने के लिए व्यक्ति को केवल मरना है। मात्र यह ही है जो आवश्यक है। मृत्यु किसी प्रकार से हमारे पापों को मिटा देती है—प्रायश्चित आवश्यक नहीं है।

मेरा एक ईश्वरविज्ञानी मित्र प्रायः यह कहता है कि कलीसियाई इतिहास में मात्र तीन आधारभूत प्रकार के ईश्वरविज्ञान रहे हैं। सूक्ष्म अन्तरों के साथ बहुत संख्या में ईश्वरविज्ञानीय मत रहे हैं, परन्तु अन्तिम विश्लेषण में मात्र तीन प्रकार के ईश्वरविज्ञान हैं: जिसे हम पेलेगियनवाद (Pelagianism), अर्ध-पेलेगियनवाद (Semi-Pelagianism), और ऑगस्टीनवाद (Augustinianism) कहते हैं। वस्तुतः पश्चिमी कलीसियाई इतिहास और साथ ही पूर्वी कलीसियाई इतिहास में भी, प्रत्येक कलीसिया इनमें से एक श्रेणी में आती है। अर्ध-पेलेगियनवाद और ऑगस्टीनवाद मसीही परिवार के अन्तर्गत महत्वपूर्ण तर्क-वितर्क को प्रस्तुत करती है—मसीहियों के मध्य बाइबलीय व्याख्या और ईश्वरविज्ञान के विचार मे भिन्नता। परन्तु पेलेगियनवाद अपने विभिन्न रूपों में मसीहियों के मध्य मात्र आन्तरिक विषयों को सम्मिलित नहीं करता। पेलेगियनवाद अपने अच्छे रूप में मसीहियत से कम है, और अपने बुरे रूप में मसीही-विरोधी है। चौथी शताब्दी में पेलेगियनवाद, सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में सोसिनसवाद (Socinianism), और आज जिसे हम विशिष्ट ईश्वरविज्ञान उदारवाद कहते हैं, अनिवार्य रूप से गैर-मसीही हैं क्योंकि इन दृष्टिकोणों के केन्द्र में यीशु ख्रीष्ट के प्रायश्चित का नकारा जाना है—परमेश्वर के न्याय को सन्तुष्ट करने के कार्य के रूप में क्रूस का नकारा जाना। शताब्दियों से, परम्परागत मसीहियत ने प्रायश्चित को मसीही विश्वास की अनिवार्य शर्त के रूप में देखा है। क्रूस को प्रायश्चित के कार्य के रूप हटाएँ, और आपने मसीहियत को हटा दिया।

ऐसा नहीं है कि जैसे पेलेगियनवादी, सोसिनसवादी, और उदारवाद के पास ख्रीष्ट के क्रूस के महत्व के विषय में कोई दृष्टिकोण नहीं है। वे कहते हैं कि क्रूस यीशु को मानवजाति के लिए एक नैतिक उदाहरण के रूप में मरते हुए दिखाता है—एक अस्तित्वात्मक नायक के समान, एक ऐसा जो हम तक आत्म-त्याग और मानवीय चिन्ताओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और भक्तिमयता के द्वारा प्रेरणा लाता है। परन्तु नैतिकता के ये उदाहरण प्रायश्चित से कम पाए जाते हैं।

जब मैं सेमिनरी में था, मेरे एक सहपाठी ने उपदेश कला की कक्षा में ख्रीष्ट का क्रूस हमारे लिए वध किए गए मेमने के समान के विषय में प्रचार किया। जब उसने समाप्त कर दिया, प्रोफेसर क्रोधित हो गए। जब वह उपदेशमंच पर खड़ा ही था प्रोफेसर उस पर मौखिक आक्रमण करने लगा। उन्होंने क्रोध में कहा, “इस दिन और युग में प्रायश्चित के प्रतिस्थापनीय दृष्टिकोण पर उपदेश देने का तुमने साहस कैसे किया”” उन्होंने प्रायश्चित के प्रतिस्थापनीय दृष्टिकोण को एक पुरातन, पुराने विचार के रूप में देखा जिसमें एक व्यक्ति अन्य लोगों के पापों को उठाकर मर रहा है। उसने स्पष्ट रूप से क्रूस का वैश्विक लेन-देन के रूप में नकार दिया जिसके द्वारा हमारा परमेश्वर से मेल-मिलाप होता है।

परन्तु यदि हम नए नियम से ख्रीष्ट के मेल-मिलाप के कार्य को दूर कर दें, तो हमारे पास नीतिवाद के अतिरिक्त कुछ नहीं बचता है जो कि अनोखा है और कदाचित् ही लोगों को उसके लिए अपना जीवन देने के लिए मनाने के योग्य है। पेलेगियनवाद और उदारवाद में उद्धार नहीं है। पेलेगियनवाद और उदारवाद में उद्धारकर्ता नहीं है। क्योंकि पेलेगियनवाद और उदारवाद में कोई निश्चयता नहीं है कि उद्धार आवश्यक है। 

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।