सभोपदेशक के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
भजन संहिता के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए।
27 फ़रवरी 2024
श्रेष्ठगीत के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए
5 मार्च 2024
भजन संहिता के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए।
27 फ़रवरी 2024
श्रेष्ठगीत के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए
5 मार्च 2024

सभोपदेशक के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

1. सभोपदेशक हमें स्मरण दिलाता है कि जीवन अल्पकालिक है।

अनेक लोग सभोपदेशक के आरम्भ में ही लड़खड़ा जाते हैं क्योंंकि वे पुस्तक के प्रचारित विषय से भ्रमित हो जाते हैं। कुछ अनुवादों में विषय की घोषणा इस प्रकार की गई है, “व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है” (सभोपदेशक 1:1)। अन्य अनुवाद इसे इस प्रकार कहते हैं: “पूरी रीति से अनर्थ! सब कुछ अनर्थ है।” कुछ अनुवाद के अनुसार: “पूर्ण निरर्थकता। सब कुछ निरर्थक है।” यदि सब कुछ व्यर्थ, या अनर्थ, या निरर्थक है, तो आगे क्यों पढ़ें? यह कथन उन सभी बातों का खण्डन करता प्रतीत होता है जो बाइबल जीवन के विषय में सिखाती है।

सम्भवता समस्या अनुवादों और उनसे उत्पन्न होने वाली अपेक्षाओं को लेकर है। जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “व्यर्थ” (हेबेल) किया गया है, उसमें क्षणभंगुरता, नश्वरता और शीघ्रता से गुजर जाने का भाव है। याकूब इस विचार को तब पकड़ता है जब वह कहता है, “तुम तो भाप के समान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती और फिर अदृश्य हो जाती है” (याकूब 4:14)। पहली बात जो हमें सभोपदेशक के विषय में जाननी चाहिए वह यह है कि यह हमें सिखाता है कि यहाँ, सूर्य के नीचे, हमारे जीवन, बीत रहे हैं।

हमारे दिन थोड़े ही हैं और वे शीघ्र ही चले जाते हैं। जैसा कि सभोपदेशक वर्णित करता है, “एक पीढ़ी जाती है, और एक पीढ़ी आती है” (सभोपदेशक 1:4)। यह विचार सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में पाया जाता है (देखें भजन 90:10; 103:15; याकूब 4:14)। हम 2 कुरिन्थियों 4:18 में एक समान विचार पाते हैं: “जैसा कि हम देखी हुई वस्तुओं को नहीं, परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते हैं। क्योंकि जो वस्तुएँ देखी जाती हैं, वे क्षणभंगुर हैं, परन्तु जो वस्तुएँ अनदेखी हैं, वे अनन्त हैं।” चूँकि हमारा जीवन छोटा है, “तेरे हाथों को जो कुछ भी करने को मिले, सचमुच, उसे अपने शक्ति-भर कर” (सभोपदेशक 9:10)।

2. सभोपदेशक हमें स्मरण दिलाता है कि हम पतित संसार में जी रहे हैं।

सभोपदेशक के विषय में हमें दूसरी बात यह जाननी चाहिए कि यह हमें स्मरण दिलाता है कि हम पतित संसार में जी रहे हैं। जब मैं मसीही बन गया, तो जिस सेवकाई में मैंने कुछ समय बिताया, उसमें एक सुसमाचार-प्रचारीय लघु पुस्तिका थी जिसमें यूहन्ना 10:10 पर बल दिया गया था: “मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ।” इससे मेरे मन में आगे के मार्ग सरल होने की अपेक्षा उत्पन्न हुईं, यद्यपि इस खण्ड का अर्थ यह कदापि नहीं है। मुझे यह सीखना था कि यद्यपि मुझे एक नया जीवन दिया गया था, परन्तु संसार अभी तक पुनः नहीं बनाई गई थी।

पौलुस भी यही बात सिखाता है जब वह कहता है, “क्योंकि सृष्टि व्यर्थता के अधीन कर दी गई, परन्तु अपनी ही इच्छा से नहीं, वरन् उसके कारण जिसने उसे अधीन कर दिया, इस आशा में कि सृष्टि स्वयं भी विनाश के दासत्व से मुक्त होकर परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतन्त्रता प्राप्त करे” (रोमियों 8:20-21)। पौलुस जिस शब्द का उपयोग करता है जिसका अनुवाद “निरर्थकता” किया गया है, वही यूनानी शब्द है जिसका उपयोग सेप्टुआजेंट (पुराने नियम का ग्रीक अनुवाद) में सभोपदेशक में हेबेल  का अनुवाद करने के लिए किया गया है।

3. सभोपदेशक हमें स्मरण दिलाता है कि पतित संसार में आनन्द सम्भव है।

ऊपर उद्धृत हेबेल (hebel) के अनुवाद पूर्ण रीति त्रुटिपूर्ण नहीं हैं। क्योंकि हम पाप से भ्रष्ट संसार में रहने वाले क्षणभंगुर प्राणी हैं, हमारी गतिविधियाँ कभी-कभी निरर्थक लग सकती हैं। हमारी व्यस्तता निरर्थक लग सकती है। हमारा जीवन ही व्यर्थ लग सकता है। यदि सभोपदेशक को इतना ही कहना होता, तो यह वास्तव में ठोकर खाने योग्य एक पुस्तक होती। इस प्रकार, हमें सभोपदेशक द्वारा कही गई तीसरी बात सीखने की आवश्यकता है: पतित संसार में भी आनन्द सम्भव है।

सभोपदेशक यह स्पष्ट करता है कि आनन्द वहाँ नहीं मिलता जहाँ हम उसे पाने की अपेक्षा करते हैं। यह बड़े आयोजनों या स्मरणयोग्य क्षणों में नहीं मिलता। इसके स्थान पर, यह सामान्य, सरल और सांसारिक जीवन के दोहराव वाले आयामों में पाया जाता है: “किसी मनुष्य के लिए इस से भली और कोई बात नहीं कि वह खाए-पिए और अपने परिश्रम को देखकर सन्तुष्ट रहे। यह भी मैंने देखा है कि यह परमेश्वर की ओर से होता है” (सभोपदेशक 2:24)। बार-बार, सुलैमान हमें जीवन के इन सामान्य आयामों को खोजने और उनमें आनन्द लेने के लिए प्रोत्साहित करता है।

और दूसरा, वह हमसे यह पहचानने का आग्रह करता है कि ये परमेश्वर के अच्छे दान हैं: “प्रत्येक व्यक्ति को खाना-पीना चाहिए और अपने सभी परिश्रम में आनन्द लेना चाहिए—यह मनुष्य के लिए परमेश्वर का दान है” (सभोपदेशक 3:13; सभोपदेशक 5: 19-20; 8:15; 9:7 भी देखें)। जैसा कि याकूब कहता है: “प्रत्येक अच्छी वस्तु, हर एक उत्तम दान तो ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जो कभी बदलता नहीं और न छाया के समान परिवर्तनशील है। उसने अपनी ही इच्छा से सत्य के वचन के द्वारा हमें जन्म दिया जिस से हम उसके सृजे गए प्राणियों में मानो प्रथम फल हों” (याकूब 1:17-18)। और जो आनन्द वह हमें यहाँ देता है वह एक ऐसे संसार में आने वाले आनन्द का पूर्वाभास है जो अब भ्रष्ट नहीं होगा और जहाँ हम अब क्षणभंगुर नहीं हैं, वरन् अमर प्राणी हैं।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

बेन्जमिन शॉ
बेन्जमिन शॉ
डॉ. बेन्जामिन शॉ सैनफर्ड, फ्लॉरिडा में रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में पुराने नियम के प्राध्यापक हैं। वे एक्कलीज़िऐस्टीस: लाइफ इन अ फॉलन वर्ल्ड पुस्तक के लेखक हैं।