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उत्पत्ति के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

अधिकाँश आधुनिक पाठक उत्पत्ति की पुस्तक को सावधानीपूर्वक रचित साहित्य की कृति के रूप में नहीं देखते हैं। हम इसे टुकड़ों में पढ़ने के अभ्यस्त हो गए हैं। मसीहियों की सार्वजनिक और व्यक्तिगत रीति से पढ़ने की आदतें इस विचार को कम करती हैं कि उत्पत्ति को एक सुसम्बद्ध पुस्तक के रूप में समझा जाना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप, महत्वपूर्ण पहलू छूट जाते हैं। मैं उत्पत्ति की तीन महत्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख करना चाहता हूँ जिनका अवलोकन किया जाना चाहिए।

1. उत्पत्ति की रचना एक अद्वितीय पारिवारिक वंश के इतिहास का पता लगाने के लिए की गई थी।

सर्वप्रथम, उत्पत्ति की रचना एक अद्वितीय (विशिष्ट) परिवारिक वंशावली के इतिहास का पता लगाने के लिए की गई थी जो प्रत्येक पीढ़ी में एक पुरुष सदस्य (“पितृवंश” patriline) पर प्रकाश डालता है। यूनानी शब्द उत्पत्ति (जेनेसिस) का अर्थ है “वंशावली”। यह पितृवंश (patriline) आदम से आरम्भ होता है और उसके तीसरे पुत्र, शेत से होते हुए नूह तक चलता है (देखें उत्पत्ति 5:1-32)। नूह से, शेम से इब्राहीम तक पितृवंश का पता लगाया जाता है (उत्पत्ति 11:10-26)। इसके पश्चात्, कहानी की गति धीमी हो जाती है, परन्तु अद्वितीय परिवार की वंशावली में रुचि बनी रहती है। सारा की निःसन्तानता इसकी निरन्तरता में एक बड़ी बाधा है, परन्तु परमेश्वर सारा को एक पुत्र, इसहाक को जन्म देने में सक्षम बनाता है। इसहाक के बाद, पितृवंश का पता एसाव के छोटे जुड़वा भाई याकूब (बाद में इसका नाम परिवर्तित करके इस्राएल रखा गया) से लगाया जाता है। एसाव को पितृवंश में अग्रणी होना चाहिए था, परन्तु उसने एक कटोरे दाल के लिए अपने जन्मसिद्ध अधिकार का तिरस्कार किया और इसे अपने छोटे भाई याकूब को बेच दिया—जो पितृवंश का भाग बनने की इच्छा रखता है (उत्पत्ति 25:29-34)। याकूब के बाद, पितृवंश यूसुफ (देखें 1 इतिहास 5:1-2) और उसके छोटे पुत्र, एप्रैम से जुड़ा है, जिसे याकूब अपने बड़े भाई, मनश्शे (उत्पत्ति 48:13-20) से आगे रखता है। रुचिकर बात यह है कि उत्पत्ति प्रायः इस बात का संकेत देती है कि क्यों पहिलौठे बेटों को पितृवंश से हटा दिया जाता है (उदाहरण के लिए, रुबेन का बिल्हा के साथ अनुचित सम्बन्ध; उत्पत्ति 35:22 देखें)।

जबकि यूसुफ को अपने बड़े भाईयों पर प्रधानता प्राप्त है, उत्पत्ति पितृवंश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन प्रस्तुत करती है। उत्पत्ति 38 में, एक खण्ड जिसे प्रायः यूसुफ के जीवन की कहानी को बाधित करने के रूप में उपेक्षित किया जाता है, यहूदा की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है। पितृवंश को ध्यान में रखते हुए पढ़ते हुए, उत्पत्ति 38 यहूदा की वंशावली का पता लगाने के विषय में है, जो तब संकट में दिखाई देता है जब उसके जेष्ट पुत्रों को परमेश्वर द्वारा मार दिया जाता है। तामार का असामान्य हस्तक्षेप यहूदा के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाता है और परिणामस्वरूप जुड़वा बच्चों का जन्म होता है। इस जन्म में, एक बार फिर ज्येष्ठाधिकार (जेष्ठ पुत्र के विरासत/उत्तराधिकार का अधिकार) का सिद्धान्त उलट जाता है क्योंकि जन्म के समय वह बलपूर्वर पेरेस से पहले बाहर निकला। इसके पश्चात, याकूब यहूदा को आशीष देगा जिससे पता चलता है कि राजत्व उसके वंशजों के साथ जुड़ा होगा (उत्पत्ति 49:8-12)। यह आशीष शताब्दियों के पश्चात् शमूएल के समय में देखा जाता है (भजन 78:67-72 देखें)।

यह पितृवंश इतना महत्वपूर्ण क्यों है? उत्पत्ति 3:15 से प्रारम्भ होकर, इसे हव्वा की भावी वंश की ओर ले जाने वाले के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो परमेश्वर के मुख्य शत्रु, सर्प को उखाड़ फेंकेगा। जैसे-जैसे उत्पत्ति आगे बढ़ती है, हमें पता चलता है कि यह प्रतिज्ञा किया गया वंश एक राजा होगा जो पृथ्वी के राष्ट्रों के लिए परमेश्वर के आशीष की मध्यस्थता करेगा और, परमेश्वर के सिद्ध राजा के रूप में, परमेश्वर के राज्य की स्थापना करेगा। इन अपेक्षाओं के साथ, उत्पत्ति यीशु ख्रीष्ट के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा है।

2. परमेश्वर ने इब्राहीम को कई राष्ट्रों का पिता बनाकर उसके साथ एक शाश्वत वाचा स्थापित की।

दूसरा, उत्पत्ति की पितृवंश पर निर्माण करते हुए, परमेश्वर इब्राहीम के साथ एक अनन्त वाचा स्थापित करता, जिसमें कहा गया कि वह अनेक राष्ट्रों का पिता होगा (उत्पत्ति 17:4-5)। उत्पत्ति के अधिकाँश पाठक, और कई विद्वान, उत्पत्ति 15 की वाचा पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जो इब्राहीम के इस्राइल के एक राष्ट्र के पिता होने के विषय में है। यद्यपि, उत्पत्ति 17 की वाचा उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है और, पहले की वाचा को सम्मिलित करते हुए, इब्राहीम के पितृत्व (fatherhood) को राष्ट्रों तक विस्तारित करती है। यह पितृत्व प्रकृति में शारीरिक नहीं वरन् आत्मिक है। ख़तने की वाचा यह निश्चयता देती है कि इब्राहीम के वंशजों में से एक उन लोगों के लिए परमेश्वर की आशीष को लाएगा जो उसे अपने राजा के रूप में स्वीकार करते हैं। इस कारण से, भावी राजा की सेवा करने वाले राष्ट्रों की अपेक्षा इसहाक द्वारा याकूब (उत्पत्ति 27:29) और याकूब द्वारा यहूदा (उत्पत्ति 49:10) को दिए गए पितृसत्तात्मक आशीष में परिलक्षित होती है। जब हम नये नियम की ओर बढ़ते हैं, तो हम देखते हैं कि प्रेरित पतरस यीशु ख्रीष्ट को ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता है जो इब्राहीम को दी गई प्रतिज्ञाओं को पूरा करता है (प्रेरितों 3:25-26)। इसी प्रकार, प्रेरित पौलुस के अनुसार, ख़तना की वाचा से जुड़ी प्रतिज्ञाएँ अन्यजातियों को परमेश्वर के लोगों में भागीदार बनने का आधार है (गलातियों. 3:15-29)।

3. आशिष का विषय पितृवंश से जुड़ा है जो अन्ततः यीशु ख्रीष्ट की ओर ले जाएगा।

उत्पत्ति की तीसरी विशेषता जिसकी प्रायः सराहना नहीं की जाती है, वह रीति है जिसमें आशिष का विषय पितृवंश से जुड़ा हुआ है जो अन्ततः यीशु ख्रीष्ट की ओर ले जाएगा। अदन के वाटिका में, आदम और हव्वा के कार्यों के परिणामस्वरूप ईश्वरीय श्राप हैं जो मानव अस्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डालेंगे। इसके विपरीत, इब्राहीम को परमेश्वर की बुलाहट पृथ्वी के सभी परिवारों के लिए ईश्वरीय आशिष की सम्भावना प्रदान करता है (उत्पत्ति 12:1-3)। आशिष का यह विषय बाद में इब्राहीम की सन्तानों के साथ जुड़ा हुआ है (उत्पत्ति 22:18)। जबकि यह प्रायः माना जाता है कि यह आशिष पूरे इस्राएल राष्ट्र के माध्यम से आएगी, उत्पत्ति आशिष के स्रोत को पितृवंश के बाद के सदस्यों तक सीमित करती है। यह आशीष (बेराकाह-berakah) उस व्यक्ति से जुड़ा है जिसके पास जन्मसिद्ध अधिकार (बेकोराह – bekorah) है। हम इसे विशेष रूप से याकूब और एसाव की कहानी में देखते हैं, जहाँ याकूब वह है जिसके कारण दूसरों को आशिष मिलता है, जिस बात को उसके मामा लाबान ने स्वीकार किया गया है (उत्पत्ति 30:27-30)। इसी प्रकार से, यूसुफ दूसरों के लिए आशिष का स्रोत है, जिस बात को उत्पत्ति 39:5 में स्पष्ट रूप से पोतीपर के पास “घर और खेत में” जो कुछ भी था उसके सम्बन्ध में कहा गया है। इसके पश्चात्, बन्दी में होने के बाद भी, यूसुफ को “फिरौन के लिए पिता समान” बनने के लिए गौरवान्वित किया गया (उत्पत्ति 45:8) और एक गम्भीर अकाल के समय विभिन्न राष्ट्रों के लिए आशिष का स्रोत बना।

उत्पत्ति को समग्र रूप से पढ़ने से पता चलता है कि पुस्तक की रचना कुशलता से की गई है। एक साहित्यिक समुच्चित चित्र (collage) के रूप में, उत्पत्ति एक एकीकृत सन्देश देने के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री का उपयोग करता है जो महत्वपूर्ण रूप से यीशु ख्रीष्ट की ओर इंगित करता है, जो हम सभी के लिए ईश्वरीय आशिष का स्रोत है।

यह लेख एव्री बुक ऑफ द बाइबल: 3 थिंग्स टु नो (Every Book of the Bible: 3 Things to Know) संग्रह का भाग है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डॉ. टी. डेसमंड अलेक्जेंडर
डॉ. टी. डेसमंड अलेक्जेंडर
डॉ. टी. डेसमंड अलेक्जेंडर नॉर्दर्न आयरलैण्ड के बेलफास्ट में यूनियन थियोलॉजिकल कॉलेज में बाइबलीय अध्ययन के वरिष्ट प्राध्यापक और स्नातकोत्तर शिक्षण के निर्देशक हैं। वे द न्यू डिक्शनरी ऑफ बाइबल थियोलॉजी, और कई अनेक पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें फ्रम पैराडाइस टु द प्रॉमिस्ड लैण्ड और फ्रम ईडन टु द न्यू जेरूसलेम सम्मिलित हैं।