क्या प्रकाशन देने वाले वरदान समाप्त हो गए हैं? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़

क्या प्रकाशन देने वाले वरदान समाप्त हो गए हैं?

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क्या प्रकाशन देने वाले वरदान समाप्त हो गए हैं?

क्या आज भी पवित्र आत्मा के प्रकाशन (revelation) देने वाले वरदान (revelatory gifts) सक्रिय हैं? दूसरे शब्दों में, क्या परमेश्वर अभी भी नया प्रकाशन देने के लिए कुछ लोगों को नबूवत करने और अन्य भाषाओं में बोलने की अद्वितीय क्षमता देता है?

इस प्रश्न पर कि क्या प्रेरितीय युग के समापन के साथ ही प्रकाशन देने वाले चिन्ह वरदान (sign gifts) बन्द हो गए हैं, बाइबलीय, ईश्वरविज्ञानीय और ऐतिहासिक रूप से उत्तर ‘हाँ’ होना चाहिए।

बाइबलीय रूप से, इब्रानियों 1:1-2 यीशु ख्रीष्ट में प्रकाशन की अन्तिमता पर बल देता है, जो नबियों के कार्य के उपरान्त आया था और प्रेरितों द्वारा नए नियम में अभिलेखित किया जा चुका है। नबूवत का विषय और पवित्रशास्त्र से इसका सम्बन्ध मसीहियों के लिए मूलभूत है। पुराने और नए नियम में प्रकाशन और नबूवत का एक वाचापरक सन्दर्भ (covenantal context) था जो इस प्रश्न को देखने के हमारे दृष्टिकोण को आकार देना चाहिए। पूरे पवित्रशास्त्र में नबूवत एक सार्वजनिक सेवकाई से जुड़ी है और परमेश्वर के वचन के प्रति उत्तरदायी है।

ईश्वरविज्ञानीय रूप से यह तथ्य कि पुत्र “परमेश्वर की महिमा का प्रकाश और उसके तत्व का प्रतिरूप” है (इब्रानियों 1:3) इसमें कोई सन्देह नहीं छोड़ता है कि नबूवत का शीर्ष ख्रीष्ट के व्यक्ति और कार्य पर समाप्त होता है। जोड़ने के लिए इससे बड़ी कोई नबूवत नहीं है, कोई अतिरिक्त विशेष प्रकाशन नहीं है, जैसा कि प्रकाशितवाक्य 22:18-19 चेतावनी देता है। यीशु ख्रीष्ट अपनी सांसारिक सेवकाई के पूरा होने के निकट कहता है कि पवित्र आत्मा सहायक है “जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा,” जो “तुम्हें सब बातें सिखाएगा और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा” (यूहन्ना 14:26)। यहाँ हम देखते हैं कि परमेश्वर के लोगों के बीच पवित्र आत्मा का कार्य हमारी समझ और हमारे जीवन में हमारे हित के लिए ख्रीष्ट के पूर्ण कार्य के लाभों को लागू करने के माध्यम से होता है। परमेश्वर के लोगों के बीच पवित्र आत्मा के कार्य में ख्रीष्ट पर विश्वास के माध्यम से सुसमाचार के उत्तर में उन सबको नया जन्म देना और बुलाना सम्मिलित है, जो पिता द्वारा पुत्र को दिए गए हैं। व्यक्तिगत विश्वासियों में आत्मा के इस नए जीवन देने के कार्य के द्वारा आन्तरिक साक्षी से शान्ति और साहस उत्पन्न होता है कि परमेश्वर का वचन सत्य है, कि ख्रीष्ट का कार्य उनके कल्याण के लिए है, और प्रभु उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा या अपनी प्रतिज्ञाओं को नहीं तोड़ेगा।

अब इसका प्रकाशन देने वाले वरदानों या चिन्ह वरदानों से क्या लेना-देना है? ये तो हर प्रकार से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। निरन्तरतावाद (Continuationism) और समाप्तिवाद (Cessationism) के बारे में वाद-विवाद में लोग इस तथ्य को अनदेखा कर सकते हैं कि सभी मसीही मानते हैं कि पवित्र आत्मा अभी भी सक्रिय है और उन सभी में विश्वास उत्पन्न कर रहा है, जिन्हें प्रभु ने सुसमाचार की सेवकाई के माध्यम से अपने पास बुलाया है। विश्वासियों के बीच इस बात पर कोई वाद-विवाद नहीं है कि पवित्र आत्मा कार्य कर रहा है या नहीं; प्रश्न यह है कि कैसे। इस बात को भूलना नहीं चाहिए, भले ही मसीहियों और कलीसियाओं के बीच में भिन्नता है।

यह देखते हुए कि पेन्तिकुस्तवाद (Pentecostalism) बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दी में मसीही धर्म के सबसे बड़े आन्दोलनों में से एक है, और प्रोटेस्टेंटवाद और रोमन कैथोलिकवाद की सभी शाखाओं में पाया जाता है, और वैश्विक मिशनों में एक अपरिहार्य विषय है, उपरोक्त प्रश्न का मेरा नकारात्मक उत्तर एक आश्चर्य के रूप में आ सकता है । समकालीन मसीहियों के बीच निरन्तरतावाद से लेकर समाप्तिवाद तक सब कुछ मानने की एक विस्तृत श्रेणी (wide spectrum) है। निरन्तरतावाद अपने सबसे दृढ़ दृष्टिकोण में यह दावा है कि प्रकाशन देने वाले चिन्ह वरदान कलीसिया में और व्यक्तिगत विश्वासियों में पवित्र आत्मा की उपस्थिति के आवश्यक, मौलिक और निरन्तर साक्षी हैं। इस दृढ़ निरन्तरतावादी दृष्टिकोण में कलीसियाएँ और यहाँ तक ​​कि मसीही होने का दावा करने वाले लोग, जिनके पास इन चिन्ह वरदानों में से कोइ भी न हो, भलीभाँति झूठी कलीसियाएँ और झूठे मसीही हो सकते हैं। या इसे सकारात्मक रूप से कहने के लिए निरन्तरतावादी इस बात पर बल देते हैं कि कलीसिया की जीवन्तता पवित्र आत्मा के निरन्तर चल रहे कार्य से प्रमाणित होती है, जो उन व्यक्तियों में प्रकट होता है, जो अन्य भाषाओं में बोलने का और निरन्तर नबूवत जैसे प्रकाशन देने वाले वरदान रखते हैं।

जब निरन्तरतावादी विचारों की विस्तृत श्रेणी की बात आती है, तो आज मसीही लोक-समूहों में एक नरम निरन्तरतावाद (soft continuationism) की पुष्टि करना स्वीकृत बात नहीं तो सामान्य बात तो हो ही गई है, जो सैद्धान्तिक रूप से उपदेश-मंच (pulpit) में और उपदेश सुनने वाले लोगों के बीच निरन्तरतावाद की पूर्ण श्रेणी (full spectrum) को स्वीकृति देता है। यद्यपि सार्वजनिक आराधना में प्रकाशन देने वाले वरदानों के विषय में पेन्तिकुस्तवादी विचारों के पूर्ण अभ्यास पर नरम निरन्तरतावादी कलीसियाओं में अभी भी आपत्ति हो सकती है, परन्तु आपत्ति सिद्धान्त के रूप में नहीं होगी, वरन् केवल व्यावहारिक या विवेकपूर्ण आधार पर होगी कि सार्वजनिक आराधना के लिए सर्वश्रेष्ठ क्या है।

दूसरी ओर, समाप्तिवाद यह विचार है कि प्रकाशन देने वाले चिन्ह वरदान प्रेरितों के युग में उनके जीवनकाल के लिए थे और पवित्रशास्त्र के ग्रन्थ-संग्रह (Canon) के समापन के साथ समाप्त हो गए। इस प्रकार, समाप्तिवादियों के लिए प्राथमिक बल नए नियम के उत्पादन के समापन के साथ पवित्रशास्त्र के पूर्ण होने पर (प्रकाशन देने वाले वरदानों की) समाप्ति पर है। इसके अतिरिक्त, पवित्रशास्त्र में “यहोवा की ओर से वचन” की पुकार या “यहोवा के नाम पर एक नबूवत” बोलना त्रुटि के लिए स्थान नहीं छोड़ता। उदाहरण के लिए, व्यवस्थाविवरण 18:21-22 स्पष्ट रूप से कहता है:

“फिर यदि तू अपने मन में कहे कि जो वचन यहोवा ने नहीं कहा उसे हम कैसे पहचाने? तो पहचान यह है: जब कोई नबी यहोवा के नाम से बोले और वह पूरा ना हो या सच न निकले तो, यही वह बात है जो यहोवा ने नहीं कही, इस बात को नबी ने अभिमान में आकर कहा है। तू उसे भय न खाना।”

इस बिन्दु के महत्व पर कितना भी बल डाला जाए, वह अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रभु के सच्चे नबी और उनके माध्यम से आने वाले प्रभु के वचन त्रुटिपूर्ण होने की सम्भावना वाली (fallible) नबूवतों के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ते हैं। पूर्व उल्लेखित ख्रीष्ट में परमेश्वर के प्रकाशन की बाइबलीय और ईश्वरविज्ञानीय अन्तिमता के अतरिक्त, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पवित्रशास्त्र की त्रुटिहीनता (inerrancy) और अचूकता (त्रुटि होने में अक्षमता, infallibility) के एक दृढ़ सिद्धान्त के साथ, समाप्तिवादी दृष्टिकोण सच्ची नबूवत की सत्यता, सटीकता और अचूकता (infallibility) की समान रूप से उच्च माँग रखता है।

निरन्तरतावादी नए नियम में आत्मा के पूर्ण कार्य का दावा करते तो हैं, परन्तु पुराने नियम में जो हुआ उसकी तुलना में नबूवत के विषय में कम-पूर्ण या निम्नतर दृष्टिकोण रखते हैं। कुछ बहुत दृढ़ निरन्तरतावादी—परन्तु निश्चित रूप से सभी निरन्तरतावादी नहीं—अपने व्यक्तिगत प्रकाशनों को पवित्रशास्त्र के बराबर होने का तर्क दे सकते हैं, यहाँ तक ​​​​कि स्वयं को वर्तमान समय के प्रेरितों के रूप में भी सम्बोधित कर सकते हैं। निःसन्देह, इस प्रकार का दावा अधिकाँश निरन्तरतावादियों में घबराहट उत्पन्न करता है, भले ही वे इस दृष्टिकोण के संशोधित या नरम रूप को मानते हों, और यह उचित भी है। क्यों? एक कारण यह है कि अधिकाँश निरन्तरतावादी प्रेरितों को मिलने वाले वचन और प्रेरितों के पश्चात् मिलने वाली नबूवत के स्तर और गुणवत्ता के बीच एक महत्वपूर्ण अन्तर करना चाहते हैं। निरन्तरतावादी पवित्र आत्मा से पश्च-प्रेरितीय (post-apostolic) नबूवत और प्रकाशन के ऐसे वरदान को मान सकते हैं, जिसमे त्रुटि होने या चूकने की सम्भावना हो। समय लेकर इसे अपने अन्दर उतरने दें: करिश्माई/चमत्कारी आन्दोलन (Charismatic) समूह में पाए जाने वाले लोगों के बीच, पश्च-प्रेरितीय नबूवत का वरदान पाए व्यक्ति के द्वारा परमेश्वर की ओर से दिया गया प्रत्येक वचन वास्तव में सच नहीं हैं या पूरी रीति से सच होने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। अधिकतर समय यह सच प्रमाणित हो सकता है। यह सम्भावित हो सकता है। सम्भवतया यह पूर्णतः भी सच ना हो। यह केवल सत्य के रूप में अभिप्रेत (intended) भावातिरेक में अनुभूत एक विचार (ecstatic impression) को प्रतिबिंबित कर सकता है। परन्तु इसे प्रथमदृष्टया पूर्णतया सच नहीं माना जा सकता। निहितार्थ (implication) यह है कि एक त्रुटिपूर्ण होने में सक्षम (fallible) और सम्भाव्य (probabilistic) चिन्ह को कलीसिया में और परिणामस्वरूप विश्वासियों में पवित्र आत्मा की सच्ची उपस्थिति का एक निरन्तर साक्षी मान लिया गया है। क्या पवित्र आत्मा की सच्ची नबूवत कभी त्रुटिपूर्ण हो सकती है? असम्भव। यदि किसी कलीसिया के अभ्यास में त्रुटिपूर्ण होने में सक्षम “नबूवत” का चलन बढ़ता है, तो क्या व्यवहार और सिद्धान्त में पवित्रशास्त्र के निम्न दृष्टिकोण को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा?

नए नियम में चिन्ह वरदानों पर तर्कों के अतिरिक्त, मेरा मानना ​​है कि जिसे प्रायः प्रदीपन (illumination) कहा जाता है उस पर विचार करना अत्यधिक लाभदायक होगा। यह अवश्य कहा जाना चाहिए कि प्रदीपन और प्रकाशन दोनों एक ही बात नहीं है। प्रकाशन वस्तुनिष्ठ सत्य (objective truth) है जो परमेश्वर को दर्शाता है। सोलहवीं शताब्दी के उपरान्त के आदर्श धर्मसुधारक ईश्वरविज्ञानियों के बीच, अभिप्रेरणा (inspiration) को प्रायः नबी या प्रेरित की प्रेरणा और पवित्रशास्त्र की प्रेरणा के सम्बन्ध में परिभाषित किया जाता है। इस क्षेत्र में विशेष प्रकाशन के रूप में नबूवत पर विचार-विमर्श सबसे निष्ठावान और उचित बात है। अर्थ-प्रकाशन/अर्थ-प्रकटीकरण/प्रदीपन किसी के लिए पवित्र आत्मा द्वारा पवित्रशास्त्र की सत्यता की पुष्टि है। हाल ही में नया जीवन पाया विश्वासी ख्रीष्ट को हृदय में विश्वास से और बुद्धि में समझ के साथ पकड़ता है। एक स्थापित विश्वासी के लिए, पवित्र आत्मा का प्रदीपन का कार्य मसीही परिपक्वता और पवित्रता के लक्ष्य के साथ पवित्रशास्त्र में विश्वास और समझ का निर्माण करता है। रिफॉर्म्ड मसीहियों के बीच प्रदीपन का सिद्धान्त यह दृष्टिकोण है कि पवित्रशास्त्र को उद्धारक ढंग से समझने के लिए पवित्र आत्मा को कार्य करना होता है, जिससे कि चुने हुए लोगों को अनन्त जीवन के लिए बुलाया जा सके। ठीक से कहें तो, प्रदीपन प्रकाशन नहीं है। प्रदीपन का सिद्धान्त यह समझाने का प्रयास करता है कि पवित्र आत्मा एक विश्वासी के हृदय में कैसे कायलता (conviction of sin), पश्चाताप, विश्वास और नई आज्ञाकारिता के लिए इच्छा उत्पन्न करने के उद्देश्य से पवित्रशास्त्र को लागू करता है। पवित्र आत्मा की आन्तरिक साक्षी मसीही जीवन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलू है, जैसा कि हम परमेश्वर के वचन के प्रकाश में अनुभव करते हैं, उदाहरण के लिए, यह कि हमारे पास परमेश्वर के पवित्र आत्मा का पुष्टिकरण का कार्य है जो हमारे हृदयों को उस पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करता है—कि हमें परमेश्वर के परिवार में अपनाया लिया गया है और हमें निर्भीक एवं स्वतन्त्र रूप से प्रार्थना करने के लिए ख्रीष्ट के माध्यम से परमेश्वर तक पहुँच प्राप्त है। प्रदीपन के सिद्धान्त का अर्थ है कि हम प्रार्थना कर सकते हैं और हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि वही पवित्र आत्मा, जिसकी अभिप्रेरणा से पवित्रशास्त्र रचा गया है, हमारे हृदयों में चमके जिससे कि हम पवित्रशास्त्र को जान सकें और परमेश्वर को उस रूप में जान सकें, जैसे उसे जाना जाना चाहिए—हमारे विश्वासयोग्य परमेश्वर के रूप में, हमारे उद्धारकर्ता के रूप में, अब्बा पिता के रूप में, हमारे राजा और प्रभु के रूप में, हमारे सभी आनन्द के स्रोत और निवास-स्थान के रूप में। और जब हम स्वर्ग में परमेश्वर के सब लोगों के साथ महानतम और पूर्ण आराधना की लालसा और इच्छा करते हैं, यहाँ इस जीवन में हमें पर्याप्त (sufficient) और आधिकारिक (authoritative) पवित्रशास्त्र दिया गया है कि हमारे हृदय और मस्तिष्क परमेश्वर की ओर प्रशिक्षित, निर्देशित, और नियन्त्रित हों।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

टॉड एम. रेस्टर
टॉड एम. रेस्टर
डॉ. टॉड एम. रेस्टर वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनेरी में कलीसियाई इतिहास के सहायक प्राध्यापक हैं। वे पेट्रुस वैन मास्ट्रिक्ट द्वारा लिखित थियोरेटिकल-प्रैक्टिकल थियोलॉजी के अनुवादक हैं।