लैव्यव्यवस्था के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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लैव्यव्यवस्था के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

हर एक ख्रीष्टीय जन को परमेश्वर की सम्पूर्ण इच्छा अधीन बैठने की खोज करना चाहिए। इसका आँशिक अर्थ है, सम्पूर्ण बाइलीय वचन के विस्तार पर मनन करना। इस लक्ष्य की ओर, हम सभी स्वयं को स्वाभाविक रूप से कुछ बाइबलीय पुस्तकों के प्रति आकर्षित पाते हैं और, यदि हम सच कहें, तो अन्य पुस्तकों के प्रति आकर्षित नहीं होते हैं। लैव्यवस्था बाइबल की सामान्य रीति से टाली जाने वाली पुस्तक है। पंचग्रन्थ के ठीक मध्य में स्थित, लैव्यवस्था की पुस्तक इस प्रकार से लिखी गई है कि कई आधुनिक पाठकों को इसे समझना कठिन लगता है। फिर भी, प्राचीन इस्राएल की मिलापवाले तम्बू की आराधना में इसकी अस्पष्ट रुचि के होते हुए भी, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह पुस्तक हमें क्या प्रदान करती है।

यहाँ पर तीन बातें हैं जो बाइबल का प्रत्येक पाठक लैव्यवस्था की पुस्तक से सीख सकता है।

1. परमेश्वर अपने लोगों से मिलने के लिए हर सम्भव प्रयास करता है।

यहोवा का मिलापवाला तम्बू ठीक वही ही है जो पवित्रशास्त्र कहता है कि वह है: परमेश्वर का घर। यह उसका पवित्रस्थान है, यह उसका निवास स्थान है, और इस प्रकार, यह वह स्थान है जहाँ वह अपने अतिथियों का स्वागत करता है (निर्गमन 25:8-9)। परमेश्वर का घर उसके चरित्र, पवित्रता, महिमा, सिद्ध धार्मिकता और प्राथमिक रूप से सृष्टिकर्ता के रूप में भूमिका को दर्शाता है। इसलिए, जो लोग मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करते हैं, उन्हें राजा से सुनने वाले के रूप में तैयार होना चाहिए। ऐसी तैयारी के बिना, वे जीवित रहने की आशा नहीं कर सकते। फिर भी, लैव्यवस्था हमें स्मरण दिलाती है कि कोई भी पतन या सीमाबद्धता हमारे परमेश्वर को हमसे दूर नहीं रख सकती है। उसने हमें अपने साथ सहभागिता में रहने के लिए बनाया, और उसकी इच्छा उस सहभागिता की ओर झुकी हुई है। निःसन्देह, मेल-मिलाप और पुनर्स्थापन की यह इच्छा, पवित्रशास्त्र की छुटकारे की पूरी कहानी की पृष्ठभूमि है।

2. परमेश्वर इस बात में रुचि रखता है कि हम किस प्रकार से उससे मिलते हैंं।

लैव्यवस्था की पुस्तक पढ़ते समय एक और बात जो हमें प्रभावित करती है वह यह है कि मूसा याजकों और लेवियों के लिए अपने निर्देशों में बहुत सतर्क है। इस्राएलियों की आराधना पद्धति से पता चलता है कि परमेश्वर आराधना के रीति को उतना ही महत्व देता है जितना आराधना की वस्तु को। वह केवल रुचिकर विचारों, प्रशंसनीय प्रवृत्तियों, या परिवर्तित मूर्तिपूजक अभ्यासों की खोज नहीं कर रहा है। इस्राएलियों को केवल अपनी इच्छानुसार आराधना करने के लिए नहीं बुलाया गया है, वरन् उन्हें अपनी उपासना की रीति को परमेश्वर के चरित्र के अनुरूप बनाने के लिए बुलाया गया है। लेवीय निर्देश, बलिदान के नियम, दिन व समय, और पर्व सभी इस बात की ओर संकेत करते हैं कि इस्राएलियों को सृष्टिकर्ता की योजना के अनुसार अपने जीवन और अपनी उपासना को किस प्रकार से व्यवस्थित करने के लिए बुलाया गया है। हम परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं, इसलिए हमारी उपासना परमेश्वर के नीति के द्वारा निर्देशित होती है, न कि इसके विपरीत।

3. बलिदान स्वयं हम पर छुटकारे के लिए परमेश्वर की योजना के उद्देश्यों को प्रकट करते हैं।

जब मानवता का पतन वाटिका में हो गया, तो परमेश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध इस प्रकार से टूट गया जिसका प्रभाव पूरे मानव अस्तित्व पर पड़ा। परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करने के लिए, हमें अब शुद्ध, तथा वैधानिक रूप से परमेश्वर की उपस्थिति के लिए उपयुक्त बनाए जाने की आवश्यकता है। परमेश्वर की पवित्रता को मानवीय शुद्धता से मेल खाना है। इसलिए, लैव्यवस्था की पुस्तक निर्देश देती है कि मिलापवले तम्बू के सबसे पवित्र स्थान उन लोगों के लिए आरक्षित हैं जिन्हें विशेष रूप से उस कार्य के लिए तैयार किया गया है: याजक लोग, और अन्ततः, महायाजक (लैव्यव्यवस्था 16:1-5; 21)।

बलिदान व्यवस्था उन रीतियों को भी दर्शाती है जिसमें मानवता का परमेश्वर के साथ सम्बन्ध भयानक रूप से बदल गया है। प्रत्येक बलिदान एक अलग रीति को दर्शाता है जिसमें परमेश्वर छुटकारे के कार्य के माध्यम से अपने लोगों को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं। होमबलि (लैव्यव्यवस्था 1:2-17; 6:8-13), जिसमें पूरे जानवर को जलाना सम्मिलित है, परमेश्वर के सामने मनुष्य के पाप को ढकने, या प्रायश्चित करने का प्रावधान करता है। अन्नबलि (लैव्यव्यवस्था 2:1-16; 6:14-23) एक उपहार या श्रद्धांजलि से जुड़ी है, जैसे गठबन्धन सुनिश्चित करने के लिए राजा को दी जाती है। मेलबलि (लैव्यव्यवस्था 3:1-17; 7:11-21) में उपासक और याजकों के बीच भोजन को साझा करना सम्मिलित है, जो एक सुधरा हुआ सम्बन्ध को दर्शाता है। शुद्धिकरण या पापबलि (लैव्यव्यवस्था 4:1-5:13; 6:24-30) विश्वासी के लिए पाप के प्रदूषण या अपवित्रता और शुद्धिकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। दोषबलि (लैव्यव्यवस्था 5:14-6:7; 7:1-10) परमेश्वर को चुकाए जाने वाले ऋण की आवश्यकता को दिखाता है जिससे कि ईश्वरीय और मानवीय सम्बन्ध को सम्पूर्ण बनाया जा सके। 

इन पाँच बलिदानों में से प्रत्येक मानवता के छुटकारे के लिए परमेश्वर की योजना के एक भिन्न पहलू पर प्रकाश डालता है। हमारा ध्यान प्रायः प्रायश्चित्त की आवश्यकता के विषय में खण्डों की ओर आकर्षित होता है — होमबलि और प्रायश्चित के दिन दोनों में लैव्यव्यवस्था 16:1-34 में स्पष्ट रूप से निर्देश दिए गए हैं — परन्तु ख्रीष्टीय आराधना को कई रीति से समझ से गहरा किया जा सकता है जिन रीतियों से ख्रीष्ट हमें परमेश्वर के सामने पुनर्स्थापित करता है, हमारे लिए उसकी उपस्थिति में प्रवेश करने का मार्ग बनाता है (यूहन्ना 14:6)। हमारे पापों का प्रायश्चित हो गया है, राजा के साथ हमारा गठबन्धन पुनर्स्थापित हो गया है, हम मित्रों के बीच पहुनाई का भोजन साझा करते हैं, अशुद्धता शुद्ध कर दिया गया है, और हमारा ऋण हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता ख्रीष्ट यीशु के व्यक्ति और कार्य में चुकाया गया है। हम आनन्दित हो सकते हैं कि हमारा महायाजक उद्धार के इन सभी आशीषों को पूरा करने के लिए क्रियाशील है (इब्रानियों 10:1-18)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डॉ. स्कॉट रेड
डॉ. स्कॉट रेड
डॉ. स्कॉट रेड वाशिंग्टन डी.सी. में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनेरी में पुराने नियम के प्राध्यापक हैं। वह द होलसम इम्पेरेटिव पुस्तक के लेखक हैं।