3 बातें जो आपको यहेजकेल के विषय में पता होनी चाहिए। - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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3 बातें जो आपको यहेजकेल के विषय में पता होनी चाहिए।

3 Things You Should Know about Ezekiel

यहेजकेल के पृष्ठ हर प्रकार के तनाव से भरे हुए हैं: बेबीलोन में निर्वासन और यरूशलेम में घिरे हुए निवासियों में बँटे परमेश्वर के लोग, याजकीय वंश का एक घायल भविष्यवक्ता जो 390 दिनों तक अपनी बाईं ओर लेटा रहता है और जो अपनी पत्नी की मृत्यु पर शोक मनाने से मना कर देता है, और गूढ़ प्रतीकात्मकता के दर्शन के साथ-साथ व्याकुल कर देने वाले वचन (यहेजकेल 4: 4-8; 24: 15-24)। सम्भवतः यहेजकेल में सबसे बड़ा तनाव परमेश्वर के चरित्र के प्रकटीकरण में निहित है: परलौकिक परन्तु सन्निकट, पवित्र और पाप से आहत परन्तु क्षमाशील, और अपने न्याय में भयानक परन्तु अपनी दया में अद्भुत। यद्यपि इन तनावों में पाठक को असहज करने या भ्रमित करने की क्षमता है, यहेजकेल की पुस्तक परमेश्वर के नाम और महिमा को विशिष्ट और निर्देशात्मक प्रकार से जानने योग्य बनाता है।

ये तीन बातें आपको तनाव से मुक्त होने में और यहेजकेल की नबूवतों में आनन्द लेने में सहायता करेंगी। 

1. यहेजकेल के विचित्र दर्शन और नबूवतें एक महिमायुक्त परन्तु जानने योग्य परमेश्वर को प्रकट करती है।

विस्मय का अनुभव करने के लिए आपको यहेजकेल में बहुत दूर तक पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। उनकी प्रारम्भिक दर्शन और आह्वान में डरावनी विशेषताओं वाले चार जीवित प्राणी (जो बाद में करूब के रूप में पहचाने गए), “प्रभु की महिमा की समानता” का एक ईश्वरीय-दर्शन है जो नश्वर इंद्रियों को झकझोर देता है, और उसकी नियुक्ति के साथ आने वाली गतिविधियों की एक श्रृंखला —जिसमें उसे एक ग्रंथपत्र खाना पड़ता है और उसे मौन कर दिया जाता है (यहेजकेल 1:1-3:27; 10:20)। और यह तो अभी पुस्तक का आरम्भ ही है। प्रतीकात्मक कार्य, चित्रण, और घोषणाएँ, और महिमामय प्रभु और उनके स्वर्गदूतीय दल द्वारा दिए गए दर्शन, उसकी संपूर्णता में बार-बार आते हैं (देखें यहेजकेल 10:1-22; 40:1-4)।

परन्तु यह जान लेंः आपको आश्चर्य का अनुभव करना चाहिए। परलौकिक परमेश्वर की महिमा का सामना करने के लिए आश्चर्य और विनम्रता जैसे प्रतिउत्तर देने की आवश्यकता होती है। इसे प्राप्त करने पर, यहेजकेल मुँह के बल गिर पड़ता है (यहेजकेल 1:28)। उसकी आत्मा से भरी सेवकाई के इस अभिलेख का उद्देश्य हममें भी वही विस्मयकारी प्रतिउत्तर को प्रेरित करना है। मनुष्य जैसे यहेजकेल, जैसे बेबीलोन के निर्वासित लोग, और जैसे हम लोग  परमेश्वर को अपने नियमों के द्वारा नहीं जान सकतेः उसे स्वयं को ही हम पर प्रकट करना होगा। फिर भी, कोई गलती न करें, यहेजकेल यह प्रकट करता है कि हमारा सम्प्रभु परमेश्वर सन्निकट है और सम्पूर्ण संसार पर स्वयं को प्रकट करता है, जैसे यह कथन “तब तू जान लेगा कि मैं ही यहोवा हूँ” इस्त्राएल और राष्ट्रों दोनों के लिए पूरे वचनों में आता है। (यहेजकेल 7:4,9; 11:10; 13:9, आदि)।

दुःख की बात है कि मानवीय पाप और धर्मत्याग के कारण यह आवश्यक है कि पवित्र परमेश्वर न्याय में पहले स्वयं को प्रकट करें, जो हमें हमारे अगले बिंदु की ओर ले जाता है।

2. यहेजकेल की याजकीय वंशावली परमेश्वर की पवित्रता पर बल देने के रूप में उभरता है।

यहेजकेल पुस्तक के आरम्भ में स्वयं को एक याजक के रूप में पहचानता है, परन्तु सम्भवतः उसे यरूशलेम में इस क्षमता में सेवा करने का अवसर कभी नहीं मिला (यहेजकेल 1:3)। इसके बजाय, प्रभु उसे अपने नबी के रूप में सेवा करने के लिए बुलाता है, पहले अपने ही विद्रोही लोगों के विरूद्ध में नबूवत करने के लिए, फिर दुष्ट राष्ट्रों के विरूद्ध में (यहेजकेल1:1-24:27; 25:1-32:32)। कार्य में इस परिवर्तन के बाद भी, यहेजकेल अपने याजकीय ज्ञान पर बहुत अधिक ध्यान देता है, विशेष रूप से न्याय में परमेश्वर की पवित्रता के विषय में।

यहेजकेल, अपने आत्मा से भरे, अभियोक्ता कार्यालय में, परमेश्वर की वाचा सम्बन्धी विधियों के विरूद्ध पुरानी वाचा की कलीसिया के अपराधों और मूर्तिपूजा के माध्यम से उनकी अशुद्धता को उजागर करने में पीछे नहीं हटता है (यहेजकेल 5:6; 16:59)। इन कार्यों ने प्रभु के नाम को “अपवित्र” करने का जोखिम उठाया, जिससे परमेश्वर को यरूशलेम से उसकी महिमामय उपस्थिति (उनके स्वर्गीय, उठा ले जाने योग्य सिंहासन द्वारा प्रतीकित) को हटाकर और इसके लिए विनाश का दिन नियुक्त करके इसकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए प्रेरित किया। (यहेजकेल 20:9,14) यहेजकेल विभिन्न साहित्यिक प्रस्तुतियों के माध्यम से इस्त्राएल के विद्रोह की जघन्यता को प्रदर्शित करता है, सम्भवतः दो विश्वासघाती बहनों के रूपक से अधिक विचलित करने वाला कोई नहीं है (यहेजकेल 23:1-49)। और ऐसा न हो कि राष्ट्र यरूशलेम के पतन पर आनन्दित हों और स्वयं को अभेद्य समझें, यहेजकेल आसपास के सात राज्यों जो संसार के सभी राष्ट्रों का प्रतीक है को इसी समान नबूवतों के साथ लक्षित करता है। वे भी पवित्र परमेश्वर के विरूद्ध अपनी दुष्टता और विद्रोह के लिए उत्तर देंगे, और संसार उनके न्याय के माध्यम से उसकी महिमा को जान लेगी।

परन्तु कहीं ऐसा न हो कि इस्राएल आशा छोड़ दे, इसलिए यहेजकेल पुनर्स्थापना की आशा रखने के लिए एक और याजकीय अवधारणा का आह्वान करता हैः मन्दिर।

3. यीशु परमेश्वर के मंदिर के रूप में यहेजकेल की पुनर्स्थापना की नबूवतों को पूरा करता है।

न्याय के बीच में भी, इस्राएल के महिमान्वित, पवित्र परमेश्वर ने पुनर्स्थापना की नबूवत की। वह अपने वाचाई लोगों को निश्चित रूप से पुनर्जीवित करेगा जैसे यहेजकेल ने सूखी हड्डियों के पुनरुजीवन को देखा था (यहेजकेल 37:1-14)। तथापि, प्रभु उन्हें केवल न्याय से पहले उनकी स्थिति में पुनःस्थापित नहीं करेगा, परन्तु वह उन्हें शुद्ध करेगा और उन्हें एक नया ह्रदय देगा, उन्हें उनके पैतृक राज्य में फिर से स्थापित करेगा, उनके ऊपर एक धर्मी दाऊदीय राजकुमार को नियुक्त करेगा, और सदैव के लिए उनके मध्य में रहेगा (यहेजकेल 36:22–37:28)। यहेजकेल ने नए मंदिर के अपने दर्शन के माध्यम से वाचाई शान्ति की इस परिवर्तित स्थिति की कल्पना की, जो कि प्रभु की शाश्वत उपस्थिति का प्रतीक है, जैसा कि नगर का नाम, “प्रभु वहाँ है” से स्पष्ट होता है (अध्याय 40-48 देखें)।

यहेजकेल के नबूवत की पूर्ति दूसरे मंदिर के पुनर्निर्माण से भी कहीं आगे निकल जाती है, जो यीशु में अपनी परिणति पाती है। प्रेरित यूहन्ना के प्रेरित कार्य इसकी साक्षी देता हैं। परमेश्वर की महिमा की परिपूर्णता परमेश्वर के देहधारी पुत्र में प्रकट होती है, जो अपने लोगों के मध्य में निवास करता है और परमेश्वर को ज्ञात कराता है (यूहन्ना 1:14-18)। यीशु स्वयं की पहचान मंदिर के साथ कराते है, इसके विनाश की क्षति की तुलना अपने क्रूस पर चढ़ाए जाने से करते हैं और इसकी पुनःस्थापना की महिमा की तुलना अपने पुनरुत्थान से करते हैं (यूहन्ना 2:18-22)। इसके अतिरिक्त, जैसे की यहेजकेल ने मंदिर से बहने वाली एक नदी की कल्पना की, जो पूरी दुनिया को जीवन दे रही है, वैसे ही यीशु स्वयं को जीवन जल का स्रोत घोषित करते हैं (यूहन्ना 4:1-43; 7:37-39)। अपने अन्तिम दर्शन में, यूहन्ना इस नदी को परमेश्वर और मेमने के सिंहासन से बहते हुए देखता है, जो राष्ट्रों के मध्य तितर-बितर हुए अपने लोगों के लिए शुद्धता और चंगाई लेकर आई है (प्रकाशितवाक्य 22)।

यहेजकेल की पुस्तक का महान् तनाव सबसे महान् सम्भावनाओं में परिवर्तित हो जाती है: परमेश्वर और मेमने की चिरस्थायी उपस्थिति।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

जस्टिन ई. इस्ट्राडा
जस्टिन ई. इस्ट्राडा
रेव्ह. जस्टिन ई. इस्ट्राडा किंग्सविल, मैरीलैण्ड़ में रिडीमर प्रेस्बिटेरियन चर्च के वरिष्ठ पास्टर हैं।