सुसमाचार
31 दिसम्बर 2024
5 बातें जो आपको विवाह के विषय में पता होनी चाहिए।
28 जनवरी 20255 बातें जो आपको माता-पिता होने के विषय में पता होनी चाहिए।

मैं कुछ समय पहले ही पर-दादा बना हूँ, क्योंकि हमने अपने परिवार में दो पर-पोतियों और एक पर-पोते का स्वागत किया। बच्चों को बढ़ाने के विषय पर यहाँ कुछ बाइबलीय विचार हैं जिन्हें मैं अपने पोते-पोतियों और उनके जीवनसाथियों के साथ साझा कर रहा हूँ।
1. माता-पिता होना परमेश्वर द्वारा आपको दी गई एक महत्वपूर्ण बुलाहट है।
भजन 78 स्मरण आता है:
उसने याकूब में विधि ठहराई,
और इस्राएल में व्यवस्था निर्धारित की,
जिनके बारे में हमारे पूर्वजों को आज्ञा दी
कि वे अपने बाल-बच्चों को इनकी शिक्षा दें,
कि भावी पीढ़ी अर्थात्
वे बाल-बच्चे जो उत्पन्न होंगे इन्हें जानें,
और तत्परता से अपने बाल-बच्चों को बताएँ,
कि वे अपना भरोसा परमेश्वर पर रखें,
और परमेश्वर के कार्यों को भूल न जाएँ,
परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें। (भजन 78:5-7)
परमेश्वर के विषय में सत्य को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इससे अर्थपूर्ण क्या विरासत हो सकती है जो पीढ़ी से पीढ़ी परमेश्वर पर अपनी आशा रख रही है? आपके जीवन में बहुत चुनौतिपूर्ण अवसर आएँगे, परन्तु सम्भवतः ही कोई ऐसा अवसर हो जो बच्चों को “प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में” (इफिसियों 6:4) बढ़ाने से अधिक प्रभावशाली हो।
2. अधिकार के अधीन रहना सीखना आधारभूत शिक्षा है।
इफिसियों 6:1-3 में, परमेश्वर बच्चों को सम्बोधित करता है: “हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता की आज्ञा मानो, क्योंकि यह उचित है। अपने माता-पिता का आदर कर—यह पहली आज्ञा है जिसके साथ प्रतिज्ञा भी है—जिससे कि तेरा भला हो और तू पृथ्वी पर बहुत दिन जीवित रहे।” परमेश्वर ने एक वृत्त निर्धारित किया है जिसके भीतर बच्चों को रहना है। इस वृत्त की सीमा है माता-पिता का आदर करना और उनकी आज्ञा का पालन करना। जब बच्चा इस वृत्त के भीतर रहता है तो परमेश्वर उसके लिए अद्भुत आशिषों की प्रतिज्ञा करता है; उनका भला होगा, और वे दीर्घायु का आनन्द उठाएँगे।
ये ऐसी आशिषें हैं जिन्हें सब बच्चें और माता-पिता चाहते हैं।आदर करना और आज्ञा मानना केवल कही गई बातों को करने तक सीमित नहीं है। यह परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी आज्ञा मानने हेतु विश्वास का समर्पण है। अपने बच्चों को अधिकार के अधीन रहना सिखाने के द्वारा, आप इस आधारभूत सत्य को प्रकट करते हैं कि परमेश्वर के अधिकार के अधीन होना आशिष का मार्ग है।
3. हृदय जीवन का स्रोत है।
अपने हृदय की चौकसी पूरे यत्न के साथ कर,
क्योंकि जीवन के मूल-स्रोत वही है। (नीतिवचन 4:23)
जीवन हृदय से प्रवाहित होता है। हमारी समस्या केवल वे पाप नहीं हैं जिन्हें हम करते हैं, वरन् उस गहरे पाप में निहित है जो हमारे पापों को प्रेरित करता है। हमारी समस्या अहंकार है, प्रबल स्व-केन्द्रितता है, स्वयं का प्रेम है, ईर्ष्या है, और हृदय के वे विभिन्न पापी झुकाव हैं जो व्यवहार को प्रेरित करते हैं। माता-पिता के लिए सरल है कि वे व्यवहार पर ध्यान दें और हृदय से दूर रहें।
यीशु हमें स्मरण दिलाता है कि लोभ, दुष्टता, ईर्ष्या, अहंकार, और घमण्ड जैसे व्यवहार हृदय से बाहर निकलते हैं (मरकुस 7:2-23 देखें)। माता-पिता के उत्तरदायित्व के एक बड़ा भाग है बच्चों की सहायता करना कि वे हृदय के झुकाव को पहचानें जो उनके पाप के पीछे हैं। निश्चय ही आपके स्वयं के पापों के पीछे हृदय के झुकाव को समझना आपकी सहायता करेगा कि आप अपने बच्चों से गहन प्रश्न पूछें जिनके द्वारा वे अपने हृदय की स्थिति को समझ सकें।
4. सुसमाचार को केन्द्र में रखें।
हमारे विश्वास का केन्द्र यह नहीं है कि हम कितने भले बने जिससे कि हम अनन्त जीवन अर्जित करें। हमारे विश्वास का केन्द्र वह जन है जो पर्याप्त रूप से भला था। यीशु हमारा उद्धारकर्ता होने के लिए देहधारी हुआ। उसने वह जीवन जिया जो हम नहीं जी सकते थे; उसने पाप रहित जीवन जिया जिससे कि हमें धार्मिकता प्राप्त हो। उसने वह मृत्यु सही जिसे हम सह नहीं सकते थे; उसने पाप के दोष और दण्ड से हमें छुड़ाने के लिए क्रूस पर आपना प्राण दे दिया। वह फिर हमारे धर्मिकरण के लिए वह जिलाया गया। अभी भी वह पिता के दाहिने हाथ हमारे लिए प्रार्थना करता है।
हमारे बच्चों को (और हमें भी) सर्वदा अनुग्रह, क्षमा, उद्धार, और सामर्थ्य की इस आशा की आवश्यकता पड़ती है। जब आप शिक्षा देते हैं और अनुशासित करते हैं, तो सर्वदा अपने बच्चों के सामने सुसमाचार की आशा को रखें। हम सुसमाचार को नकारते हैं जब हम उन्हें बताते हैं कि वे अपने ही सामर्थ्य में भले हो सकते हैं। इब्रानियों (2:17) का प्रोत्साहन है कि यीशु, जिसने मनुष्य के रूप में परीक्षाओं का सामना किया, हमारी परीक्षाओं में हमारी सहायता कर सकता है।
5. आपका उदाहरण अत्यंत प्रभावशाली है।
व्यवस्थाविवरण (6:5) इस सत्य को व्यक्त करता है: “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, अपने सारे प्राण, तथा अपनी सारी शक्ति से प्रेम कर।” परमेश्वर के प्रति आपका प्रेम, परमेश्वर में आपका आनन्द, और उन सब बातों के लिए आपकी कृतज्ञता जो ख्रीष्ट में होकर परमेश्वर आपके लिए है, ये महत्वपूर्ण सत्य हैं जिनका आदर्श आपको अपने बच्चों के सामने रखना चाहिए। आगे के पद व्यक्त करते हैं कि यह आदर्श बनना कितना महत्वपूर्ण है: “आज मैं जिन वचनों की आज्ञा तुझे दे रहा हूँ वे तेरे मन में बनी रहें। और तू उनको यत्नपूर्वक अपने बाल-बच्चों को सिखाना” (व्यवस्थाविवरण 6:6-7)।
प्रत्येक दिन, जब आप अपने बच्चों के साथ जीवन व्यतीत करते हैं, आप उन्हें वास्तविकता का एक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहे होते हैं। आप उन्हें दिखा रहे हैं कि आप विश्वास करते हैं कि परमेश्वर भला है और कि वह उसकी खोज करने वालों को प्रतिफल देता है। परमेश्वर और अन्य लोगों से प्रेम करने के द्वारा, आप इस सत्य का उदाहरण बनते हैं कि परमेश्वर की व्यवस्था भली है। जब आप आराधना को प्राथमिकता देते हैं, तो आप उन्हें बताते हैं कि जीवन परमेश्वर में पाया जाता है। जब आप उन लोगों से दयालुता का व्यवहार करते हैं जो निर्दयी हैं, तो आप परमेश्वर की उदारता और दयालुता को दिखाते हैं। आपके सभी कार्य आपके बच्चों के लिए सत्य प्रस्तुत करता है।
सब बातों में परमेश्वर के प्रति आपकी अधीनता, अपने हृदय की भटकने की प्रवृत्ति के विषय में आपकी सत्यनिष्ठा, और सुसमाचार के अनुग्रह पर आपकी आशा, ये सभी आपके बच्चों के लिए शिक्षा प्रदान करते हैं। परमेश्वर के लिए बच्चों को पालना आपके द्वारा किया गया सबसे उत्तम कार्य में गिना जाएगा।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।