गोद लेने के लिए एक इच्छा - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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गोद लेने के लिए एक इच्छा

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का सातवां अध्याय है: ख्रीष्ट के साथ मिलन

पिता के द्वारा आत्मा में पुत्र के माध्यम से प्रेम किए जाने का अर्थ है एक सदा-प्रवाहित अनन्त प्रेम में जकड़ लिया जाना जो कि जिसे प्रेम किया जाता है, उसे प्रायः कष्टदाई परन्तु प्रगतिशील रूप से परिवर्तित करता है। उनके लिए जिन्हें अनुग्रह से ख्रीष्ट में विश्वास में लाया गया, इस प्रकार के प्रेम में जकड़े जाना सभी उपहारों में सबसे महान,और संसार को नया कर देने वाली बात है। हम जो कभी परमेश्वर से घृणा रखते थे, ”पहिले इस संसार की रीति और आकाश में शासन करने वाले अधिकारी अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में क्रियाशील है” (इफिसियों 2:2), अब सदैव के लिए परमेश्वर के लेपालकपन के परिवर्तनकारी कार्य के कारण उसके अनन्त के प्रिय पुत्र में हैं (1:3-6; देखें रोमियों 8:15)।

यह अद्भुत सुसमाचार की वास्तविकता —या, मुझे कहना चाहिए, विस्मयकारी लेपालकपन की यह वास्तविकता—कि हम कैसे परमेश्वर से, साथी लोगों से, और परमेश्वर के भले भण्डारी के रूप में स्वयं सृष्टि से कैसे सम्बन्ध रखते हैं इन सबके साथ, सब कुछ सदैव के लिए परिवर्तित कर देती है।

एक उपहार जिसे हमारे त्रिएक परमेश्वर के लेपालकपन के प्रेम के साथ हृदय को प्रज्जवलित कर देता है वह उन लोगों के लिए बढ़ती हुई ग्रहणशीलता है जो कि इस पाप-शापित, पाप द्वारा विकृत संसार में अनाथ हैं। हमारे प्रथम माता-पिता, आदम और हव्वा के विद्रोह के कारण, हम स्वयं को ऐसे संसार में पाते हैं जो शक्तिशाली और सामर्थी की उपासना करते हैं, परन्तु क्षीण और शक्तिहीन की उपेक्षा करते हैं।

लेपालकपन के माध्यम से जो परमेश्वर ने जो हमारे लिए किया है, हमारा पिता अन्ततः और अनिवार्य रूप से अनाथ बच्चों के लिए हमारे अन्दर एक इच्छा को जागृत करता है। हम में कुछ के लिए, इसका अर्थ है हम गोद लेंगे या अन्य परिवारों की गोद लेने में सहायता करेंगे, परन्तु सबके लिए इसका अर्थ है कि हम अनगिनत अन्य उपायों से विपत्ति के समय अनाथों की सुधि लेंगे (याकूब 1:26-27), साथ ही, आशा देने वाले शब्दों के साथ उनका समर्थन करेंगे (1:18; 26-27 , अन्तरराष्ट्रीय कलीसियाओं के साथ साझेदारी करेंगे जो कि परिवार-देखभाल रणनीतियों के माध्यम से विदेशों में अनाथों की देखभाल करती हैं। निश्चित रूप से, परमेश्वर प्रत्येक मसीही को गोद लेने के कार्य के लिए नहीं बुलाता है, परन्तु वह अनाथों की देखभाल के लिए कलीसिया को बुलाता है—गोद लेना एक छोटा उपाय है इस बुलाहट को पूरा करने में—और यह बुलाहट परमेश्वर के हमारे प्रति गोद लिए गए अनुग्रह के द्वारा उत्तेजित होती है।

इन सब बातों के साथ, निम्नलिखित अवलोकनों को करना आवश्यक है: जब मसीही उनमें पिता के आनन्द के प्रति अनिश्चित होते हैं, सच्चा मसीही हृदय आनन्द अनुपस्थित और उत्साहपूर्ण मसीही जीवन निर्बल होता है। ऐसे मसीही जो परमेश्वर के उनमें आनन्द के प्रति अनिश्चित हैं उनको तैयार करना लगभग असम्भव है कि वह लम्बी दौड़ के लिए स्थिर आत्मविश्वास और आनन्द के साथ अनाथों की देखभाल करें।

जब यीशु परमेश्वर के मिशन के साथ सार्वजनिक रूप से जाने को था, उसके पिता ने घोषणा की: “यह मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं अति प्रसन्न हूँ” (मत्ती 3:17)। जैसा कि पवित्रशास्त्र स्पष्ट करता है, यीशु को पिता के मिशन मानवता को छुड़ाने और सृष्टि को नया करने, को पूरा करने के लिए भेजा गया था —जिसमें वैसे, मानव शब्दावाली से अनाथ शब्द को हटाना भी आता है। परमेश्वर का पुत्र अपने पिता के आनन्द की सामर्थ और ज्ञान  में अपने पिता के मिशन के साथ आगे बढ़ा (मत्ती 3:17; मरकुस 1:11; लूका 3:22)।

सुसमाचार का शुभ सन्देश यह है कि परमेश्वर प्रत्येक मसीही से समान रूप से बात करता है, हर एक से जो ख्रीष्ट में है। यदि हम परमेश्वर के द्वारा गोद लिए गए हैं और ख्रीष्ट में हैं, हम “परमेश्वर के पुत्र और सन्तानें” हैं (रोमियों 8:15-16)। परमेश्वर के लेपालक सन्तान के रूप में, हमें न केवल उसके कार्य में सहभागी होने का सौभाग्य प्राप्त है, वरन् हम अपने पिता के प्रेम की सामर्थ और ज्ञान में ऐसा करते भी हैं।

अनाथों को ऐसी कलीसियाओं की आवश्यकता है जो कि ऐसे लोगों से भरा हो जो प्रतिदिन इस अद्भुत सत्य को सुनते और इसे दोहराते हैं —कि ख्रीष्ट में हम परमेश्वर की प्रिय सन्तानें हैं और हमें इस तथ्य के प्रकाश में जीना है।

जैसा कि मैंने पहले भी कहा था, जब परमेश्वर पिता ने अपने पुत्र के लिए अपने प्रेम की घोषणा की (मत्ती 3:17), वह उस दिन के हुआ था जब यीशु ने अपनी सार्वजनिक मसीहाई सेवकाई प्रारम्भ की। हमारे मसीहा के रूप में, यीशु एक विश्वासयोग्य पुत्र था जिसने सदैव अपने पिता की इच्छा को पूरा किया। एक बार भी कभी उसने अवज्ञा या उसे निराश नहीं किया। उसके जन्म से मृत्यु तक, उसका पूरा जीवन विचार में, बात में, कार्य में और उद्देश्य में सिद्ध था। उसका जीवन सिद्धाता से जिया गया था, और उसने उसे हमारे मसीहा के रूप में जिया था। हमारा जीवन सिद्ध आज्ञाकारिता में नहीं जिया गया है, परन्तु हमें भी, परमेश्वर की सन्तानों (यद्यपि गोद लिए हुए) के रूप में जीना है न कि उन दासों के रूप में जिनके पास कोई उत्तराधिकार नहीं है (रोमियों 8:15‌)।

कलीसिया के रूप में जीने में प्रत्येक दिन जीना सीखना सम्मिलित है यह जानते हुए कि परमेश्वर पिता अपनी लेपालक सन्तानों में आनन्दित होता है जैसे कि वह यीशु में आनन्दित होता है। वे लोग जो परमेश्वर के प्रेममय सुख के ज्ञान में जीना सीखते हैं वे पाएँगे कि परिस्थितियाँ अब उन्हें नियन्त्रित नहीं करती। वे पाएँगे कि वे एक दूसरे-केन्द्रित जीवन की कठिनाईयों से आत्मविश्वास और नम्रता से निपटने में सक्षम हैं। यदि हमें यह विश्वास है कि हम परमेश्वर द्वारा इस प्रकार प्रेम किए जाते हैं, तो न केवल हम दूसरे से वैसे ही प्रेम करने की इच्छा रखेंगे जैसा हमसे प्रेम किया गया है, हम ऐसा करने के लिए सशक्त और विवश भी किया जाएगा।

कल्पना कीजिए अनाथ संकटावस्था पर कलीसिया का क्या प्रभाव होगा यदि वह ऐसे लोगों से भरी हुई है जो अपने पिता के आनन्द की सामर्थ और ज्ञान में आगे बढ़े हैं। कल्पना कीजिए।

अनाथों को ऐसी कलीसियाओं की आवश्यकता है जो प्रतिदिन स्वर्ग में उनके पिता के प्रेम की ओर उन्हें इंगित करें।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
डैन क्रूवर
डैन क्रूवर
डैन क्रूवर ग्रीयर, साउथ कैरोलायना में हेरिटेज बाइबल चर्च में विद्यार्थियों और परिवारों की सेवाओं के निर्देशक हैं, टुगेदर फॉर अडॉप्शन के सह-संस्थापक, और गोद लेने की पुनःप्राप्ति: अब्बा पिता की पुनःखोज के द्वारा मिशनीय जीना (Reclaiming Adoption: Missional Living Through the Rediscovery of Abba Father) के सम्पादक हैं।