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सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का आठवां अध्याय है: ख्रीष्ट के साथ मिलन
वे हमारी त्वचा के समान हमारे समीप हैं, प्रेरित यूहन्ना द्वारा वर्णित अभिलाषाओं के तीन रूप: शरीर की अभिलाषा, आँखों की लालसा और जीवन का अहंकार (1 यूहन्ना 2:16)। पापी की ये अत्याधिक और वर्जित लालासाएँ पाप का सोता हैं, जैसा कि याकूब यह शिक्षा देते हुए इंगित करता है कि परमेश्वर हमें पाप के लिए प्रलोभित नहीं करता है: “परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा द्वारा खिंचकर व फंसकर परीक्षा में पड़ता है। जब अभिलाषा गर्भवती होती है तो पाप को जनती है, और जब पाप हो जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है” (याकूब1:14-15)।
एक स्वाभाविक मनुष्य अपनी अभिलाषाओं के बन्धन में है (रोमियों 3:10-18), परन्तु हमारा हृदय परिवर्तन होने पर, ख्रीष्ट के साथ मिलन के कारण, हम अभिलाषाओं के प्रभुत्व से छुटकारा पा लेते हैं: “इसलिए पाप को अपने मरणहार शरीर में प्रभुता न करने दो, कि तुम उसकी लालसाओं को पूरा करो, और न अपने शरीर के अंगों को अधर्म के हथियार बना कर पाप को सौंपों, परन्तु अपने आप को मृतकों में से जीवित जानकर अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिए परमेश्वर को सौंप दो। तब पाप तुम पर प्रभुता करने नहीं पाएगा, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं, परन्तु अनुग्रह के अधीन हो” (6:12-14)।
परन्तु, परमेश्वर ने अपनी गूढ़ बुद्धि में, अपने परिवर्तित पुत्रों और पुत्रियों में पाप का अवशेष छोड़ना निर्धारित किया; और वह अवशेष उनकी अभिलाषाओं में निवास करता है। इसलिए, वही प्रेरित जिसने यह घोषणा की थी कि हम पाप के प्रभुत्व के लिए मर चुके हैं उसने अपने संघर्षों को वर्णित किया है: “इसलिए मैं जानता हूँ कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कुछ भी भला वास नहीं करता। इच्छा तो मुझ में है, परन्तु मुझ से भला कार्य बन नहीं पड़ता। क्योंकि जिस भलाई की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो कर नहीं पाता; परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही करता रहता हूँ” (7:18-19)।
हम सभी अपनी अभिलाषाओं द्वारा घेरे गए पाप के संघर्षों से परिचित हैं। वे भौतिकवाद, सामर्थ, और घमण्ड समेत कई भिन्न-भिन्न रूपों में आते हैं। परन्तु यहाँ मैं यौन अभिलाषाओं की समस्या पर ध्यान केन्द्रित करूँगा। हम सभी जानते हैं कि यौन विफलता आज की कलीसिया में महामारी है। कदाचित् ही कोई सप्ताह बीतता होगा जब हमने किसी एक और कलीसिया के अगुवे के विषय में न सुना हो जो कि व्यभिचार, अनैतिक यौन सम्बन्ध, समलैंगिकता, या अश्लील साहित्य में उजागर हुआ हो।
यौन प्रलोभन हर स्थान पर हैं: हम पर वस्त्र (या उनके आभाव में), टीवी, विज्ञापन के चित्र, गीत, विचारोत्तेजक भाषा, और फेसबुक पर आने वाले अनुरोधों के द्वारा बम्बारी की जाती है। उदाहरण के लिए, अश्लील साहित्य को ले लीजिए। अब किसी भी व्यक्ति को दुकान जा कर अश्लील सामग्री मोल लेने की आवश्यकता नहीं है—यह आपकी कम्प्यूटर की स्क्रीन की गोपनीयता के समान ही है, और यह अत्याधिक व्यसनकारी भी है।
परन्तु क्या हमें झुकने की आवश्यकता है? जैसा की ऊपर उल्लेख किया गया है, उत्तर है नहीं। हम पाप के प्रभुत्व में नहीं है। परन्तु, हमें प्रतिदिन सावधानी बरतने की आवश्यकता है। मूल रूप से, हमारे परिवारों और कलीसियाओं को पवित्रता, जो कि विचार, कपड़ों, भाषा, और व्यवहार में यौन शुद्धता पर बल देने वाली एक ऐसी संस्कृति को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। ऐसी संस्कृति घर पर माता-पिता द्वारा और मण्डली में पदाधिकारियों (पास्टर और कलीसिया के सेवक और उनकी पत्नियाँ) से आरम्भ होती है।
हमें सावधानीपूर्वक अनुग्रह के साधन—सार्वजनिक आराधना, प्रचार, प्रार्थना, कलीसियाई विधियाँ, उपवास, और व्यक्तिगत और पारिवारिक आराधना, का उपयोग करना चाहिए। इन सबके ऊपर, हमें ख्रीष्ट को पकड़े रहना है।
हमें ऐसी आदतों का विकास करने की आवश्यकता है जो कि हृदय की सुरक्षा करने में सहायता करे। अशुद्ध अभिलाषा (Impure Lust) नामक पुस्तिका में, जॉन फ्लेवल ने अभिलाषाओं से निपटने के सात निर्देश दिए हैं:
1. परमेश्वर से एक शुद्ध हृदय के लिए विनती करें जो कि बचाने वाले अनुग्रह के द्वारा नया और पवित्र किया गया हो। हमें सदैव हृदय से आरम्भ करना चाहिए, क्योंकि यह ही अन्य सभी बातों का सोता है (मत्ती 15:19), और परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देने की प्रतिज्ञा करता है जब हम उसकी इच्छा के अनुसार प्रार्थना करते हैं (यूहन्ना 14:13-14)। हमें पवित्र आत्मा की पवित्र करने वाली सामर्थ की खोज करनी चाहिए।
2. दिन भर परमेश्वर के भय में चलें, और इस अर्थ में कि उसकी सर्वज्ञानी आँखें सदैव आप पर बनी हुई हैं। कितनी बार हमारा व्यवहार इस बात से निर्धारित होता है कि कौन देख रहा है। हम भूल जाते हैं कि वह सब कुछ देखता है।
3. अशिष्ट, और अशुद्ध लोगों की संगति से दूर रहें; वे अभिलाषा को बढ़ावा देने वालों में से हैं। बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है। स्मरण रखें कि यह निर्देश केवल हमारे व्यक्तिगत सम्पर्क को ही सम्मिलित नहीं करता परन्तु उन्हें भी करता है जिनका सामना हम चलचित्रों, संगीत, पुस्तकों, पत्रिकाओं, और कम्प्यूटर के द्वारा भी करते हैं।
4. कर्मठतापूर्वक अपनी बुलाहट पर अभ्यास करें; यह इस पाप को रोकने का एक उत्कृष्ट साधन होगा। आपने यह कहावत सुनी होगी, “खाली दिमाग शैतान का घर”।
5. अपनी भूख पर संयम रखें: अधिक मात्रा में भोजन न करे। इस निर्देश का अर्थ यह नहीं हुआ कि हम परमेश्वर के भोजन और पानी के अच्छे उपहारों का, और मित्रों के साथ भोज के सुख का आनन्द नहीं उठा सकते, परन्तु यह एक गम्भीर अनुस्मारक है कि यदि हम एक क्षेत्र में शारीरिक भूख को बढ़ावा देते हैं, तो हम अन्य क्षेत्रों में गिरने के लिए अधिक प्रवृत्त होते हैं।
6. एक जीवनसाथी का चुनाव करें और उस एक में आनन्दित रहें जिसे आपने चुना है। सुधार की एक स्वतन्त्र अन्तर्दृष्टि यह है कि विवाह में, यौन सम्बन्ध सुख के लिए हैं और अनैतिक अभिलाषाओं के लिए परमेश्वर द्वारा दी गयी सुरक्षा है।
7. पाप के मार्ग पर चलने पर ध्यान दें, विशेषकर अन्धविश्वास और मूर्तिपूजा; जिन प्रक्रणों में, और जिन बुराईयों के दण्ड के रूप में परमेश्वर प्रायः मनुष्यों को इन नीच आसक्ति के लिए छोड़ देता है (रोमियों 1:25-26)। पाप अनिवार्य रूप से पाप को जन्म देता है।
इन उपायों से, कलीसिया अपने लोगों की सुरक्षा कर सकती है। इन बातों का अभ्यास करें और इन्हें सिखाएँ।