मसीहियों के साथ मिलन - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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मसीहियों के साथ मिलन

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का छठवां अध्याय है: ख्रीष्ट के साथ मिलन

सुसमाचार में परमेश्वर के अनुग्रह की अधिकाईयों और इसके सभी निहितार्थों को समझने के लिए ख्रीष्ट के साथ मिलन का सिद्धान्त केन्द्रीय है। भले यह स्वयं यीशु के शब्दों से हो, विशेष रूप से यूहन्ना 15 जैसे खण्डों में, या फिर “उस में,”  “उसके माध्यम से” और “उसके द्वारा” जैसे वाक्यान्शों से भरी पत्रियों से हो, यह प्रकट है कि मसीही क्या हैं और हमारे पास क्या है दोनों को परिभाषित करने के लिए ख्रीष्ट के साथ मिलन आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, मसीही संगति के सन्दर्भ में इस मिलन के अद्भुत निहितार्थ हैं।

हम बाइबल की उस भाषा से परिचित हैं जो कि विश्वासियों की सामुदायिक देह की तुलना एक मानव देह से करती है (रोमियों 12:4-5; 1 कुरिन्थियों 12:12-27; इफिसियों 4:15-16)। इस प्रकर के रूपकों का आधार सत्य की एक देह जिसमें हम सब सहभागी हैं, अर्थात् सुसमाचार में प्रत्येक मसीही का विश्वास है। प्रेरित यूहन्ना ने इसे इस प्रकार व्यक्त किया है: “जिसे हमने देखा और सुना, उसी का सुसमाचार हम तुम्हें भी सुनाते हैं, कि तुम भी हमारे साथ सहभागिता रखो; वास्तव में हमारी यह सहभागिता पिता के और उसके पित्र यीशु ख्रीष्ट के साथ है” (1 यूहन्ना 1:3; 1 कुरिन्थियों 15:1-2 भी देखें)। या 1 कुरिन्थियों 1:2 में प्रेरित पौलुस के शब्दों पर विचार करें: “परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, अर्थात् उनके नाम जो ख्रीष्ट यीशु में पवित्र किए गए और उन सब के साथ जो, प्रत्येक स्थान पर हमारे प्रभु यीशु के नाम से प्रार्थना करते हैं, पवित्र लोग होने के लिए बुलाए गए हैं, वह हमारा और उनका भी प्रभु है।” उतने ही महत्वपूर्ण हमारे द्वितीयक सिद्धान्त हैं (वे जो हमारे मतसम्बन्धी जुड़ावों और स्थानीय कलीसिया के चुनावों को निर्धारित करता है), जो हमें मसीहियों के रूप में एक करता है वह हमारा उस में विश्वास है जिसे यहूदा “उद्धार जिसमें हम सब सहभागी हैं” और “वह विश्वास जो पवित्र लोगों को एक ही बार सदा के लिए सौंपा गया” कहता है (पद 3)।

एक न्यूनतमवादी या अपचयवादी (reductionist) के समान लगने के जोखिम में, ख्रीष्ट के साथ हमारा मिलन अन्य ऐसे लोग “जो हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट के नाम में बुलाए गए हैं” के साथ हमारे विवादों, तर्क-वितर्क, और संवादों में मित्रतापूर्वक और अनुग्रही होने का हमारा कारण होना चाहिए, जिनके साथ हमारा विभिन्न बिन्दुओं पर महत्वपूर्ण मतभेद हो सकता है। हमारा विवेक और सम्बन्धित अंगीकार सम्भवतः एक साथ आराधना करने की अनुमति न दे या यहाँ तक कि विभिन्न प्रयत्नों में सहयोग न करे, परन्तु हमारी मानसिकता यह होनी चाहिए कि वे लोग जो अपने उद्धार के लिए यीशु ख्रीष्ट के व्यक्ति और कार्यों की ओर विश्वास द्वारा देखते हैं, जहाँ तक हम बताने के योग्य हैं (क्योंकि कोई भी दूसरे का हृदय नहीं जानता), विश्वास में भाई और बहन हैं।

इफिसियों 1:15 और कुलुस्सियों 1:4 में, पौलुस अपने पाठकों की “सभी पवित्र लोगों के प्रति उनके प्रेम” की सराहना करता है। हमें इस प्रकार की आत्मा को प्रोत्साहन देना चाहिए। हमें अपने परिवारों में, अपनी कार्य स्थलों पर, और हमारे आस पड़ोस के मसीहियों से, जब उनके साथ हमारे छोटे से सैद्धान्तिक मतभेद हों, तो हमें ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए कि जैसे कि उन्हें संक्रामक रोग हो। वरन्, हमें उन्हें उन लोगों के जैसे देखना है जिनके लिए ख्रीष्ट मरा। हमें उन असहमति के बिन्दुओं पर आक्रमण करने के लिए तैयार नहीं रहना चाहिए परन्तु उन्हें उत्कृष्ट मार्ग दिखाने के लिए अनुग्रही उपायों की खोज करनी चाहिए। यदि नम्रता और दीनता की यह विशेषता बताने के लिए हैं कि कैसे हम अविश्वासियों के सामने विश्वास की रक्षा करें (1 पतरस 3:15), तो अन्य मसीहियों के साथ हमारे व्यवहार के लिए हमें कितना अधिक इस आत्मा के लिए प्रयास चाहिए?

हमें अन्य मसीहियों के साथ शिष्टता और प्रेम के साथ व्यवहार करने के लिए प्रेरित करने के साथ ही, ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन को यह भी शासित करना चाहिए कि कैसे हम संसार भर के मसीहियों को देखते हैं जिन्हें सम्भवतः हम इस जीवन में कभी आमने-सामने नहीं देखेंगे। मतसम्बन्धी मिशन सहयोग या स्थानीय कलीसिया में सहयोग प्राप्त करने के प्रयास में एक वास्तविक विदेशी मिशनरी द्वारा भेंट के अतिरिक्त, अधिकांश अमरीकी मसीही इस बात से अनजान हैं जो अन्य मसीही अपने विश्वास के कारण कष्ट सहते और दुख उठाते हैं। किसी भी प्रकार से यह मेरा अभ्यारोपण नहीं है। यह एक स्मरण कराने वाली बात है कि ख्रीष्ट के साथ मिलन और पवित्र लोगों की सहभागिता को ख्रीष्ट की देह के और जिन विविध परिस्थितियों और स्थितियाँ जिनका हमारे कई भाई और बहन सामना करते हैं हमारे उस दर्शन का विस्तार करना चाहिए। मैं निश्चित हूँ कि हम में अधिकतर मिशनरियों और मिशन के कार्यों के लिए आर्थिक सहयोग करते हैं। अमरीकी मसीहियों ने संसार के किसी भी क्षेत्र में आपदा आने पर राहत और सहायता प्रदान करने में अत्यन्त उदार प्रमाणित हुए हैं। परन्तु जब हम अपने मनों को ख्रीष्ट के साथ अपने मिलन और पवित्र लोगों की सहभागिता की अवधारणा के चारों ओर लपेटते हैं, मैं प्रार्थना करता हूँ कि हम अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक प्रार्थनाओं में विभिन्न स्थितियों में पड़े अपने भाईयों और बहनों के लिए स्थान बनाएँ।

कुछ वर्षों पूर्व, मैं एक प्रमुख मसीही कार्यक्रम में साक्षात्कारों को निर्देशित कर रहा था और एक भाई ने मुझ से सम्पर्क किया जिसने मुझे एक सज्जन का साक्षात्कार करने के लिए कहा कि वह उप-सहारा अफ्रीकी देश से सहयोग कर रहा था। जैसा कि पाया गया, वह सज्जन जिसका साक्षात्कार करने के लिए मुझे कहा गया था वह अफ्रीकी पास्टर था जिसने अपना जीवन उन मसीहियों की स्वतन्त्रता खरीदने में समर्पित कर दिया था जिन्हें मुसलमानों द्वारा युद्ध के कैदियों के रूप में ले लिया गया था और दासों के रूप में बेच दिया गया था। हमें विभिन्न देशों की गुप्त कलीसियाओं के, साथ रहने वालों और वह जो यहाँ या विदेश में उन साथ रहने वालों की सेवा करते हैं उनके विषय में सोचना चाहिए।  ख्रीष्ट के साथ मिलन और पवित्र लोगों की सहभागिता हमारा यह देखने का कारण होनी चाहिए कि इन मसीहियों के संघर्ष हमारे भी संघर्ष हैं।

आइए अपनी दाख की बारी में क्या हो रहा है उसे देखने में इतने लिप्त न हो जाएँ कि हम एक ही लहू से मोल लिए गए उन भाईयों और बहनों के जीवन और विषयों में ख्रीष्ट की महिमा को न देखें, जो कि एक ही विश्वास रखते हैं। “इसलिए मनुष्यों पर कोई घमण्ड न करे, क्योंकि सब कुछ तुम्हारा है, चाहे पौलुस हो या अपुल्लोस या कैफा, चाहे संसार हो या जीवन या मृत्यु, चाहे वर्तमान बातें हो या आने वाली बातें- यह सब कुछ तुम्हारा है, और तुम ख्रीष्ट के हो, और ख्रीष्ट परमेश्वर का है”(1 कुरिन्थियों 3:21-23)।         

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
केन जोन्ज़
केन जोन्ज़
रेव्ह. केन जोन्ज़, मयैमी में ग्लेन्डेल बैपटिस्ट चर्च के पास्टर हैं।