ख्रीष्ट के साथ मिलन के चिन्ह और मुहर - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
पौलुस की पत्रियों में ख्रीष्ट के साथ मिलन
12 अप्रैल 2022
मसीहियों के साथ मिलन
19 अप्रैल 2022
पौलुस की पत्रियों में ख्रीष्ट के साथ मिलन
12 अप्रैल 2022
मसीहियों के साथ मिलन
19 अप्रैल 2022

ख्रीष्ट के साथ मिलन के चिन्ह और मुहर

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पॉंचवां अध्याय है: ख्रीष्ट के साथ मिलन

जैसे कि उसने अपने वचन की सामर्थ के द्वारा संसार को अस्तित्व में बुलाया (भजन संहिता 33:6-9; इब्रानियों 11:3), वैसे ही परमेश्वर अपनी कलीसिया को सुसमाचार की बुलाहट की सामर्थ के द्वारा अस्तित्व में लाता है (2 थिस्सलुनीकियों 2:13-14; 1 पतरस 2:9-10)। यह बुलाहट हमें त्रिएक परमेश्वर के अधीन एक समुदाय के रूप में, विश्वास द्वारा ख्रीष्ट के साथ मिलन का आह्वान देती है (इफिसियों 4:4-6)। कलीसिया को ख्रीष्ट के साथ और एक दूसरे के साथ संगति की हमारी बुलाहट के द्वारा परिभाषित किया गया है, जैसा कि पौलुस कुरिन्थियों को स्मरण कराता है: “परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, उनके नाम जो यीशु ख्रीष्ट में पवित्र किए गए, पवित्र लोग होने के लिए बुलाए गए हैं . . . परमेश्वर विश्वासयोग्य है, जिसके द्वारा तुम उसके पुत्र हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट की संगति में बुलाए गए हो” (1 कुरिन्थियों 1:2a, 9)।

ख्रीष्ट में परमेश्वर के साथ सहभागिता अनुभवात्मक मसीहियत का केन्द्र है। कलीसिया के आनन्द की परिपूर्णता एक दूसरे के साथ एवं पिता और पुत्र के साथ संगति करना है (1 यूहन्ना 1:3-4)। ख्रीष्ट की देह, अर्थात् कलीसिया (इफिसियों 1:22-23)  के सदस्य के रूप में उसके साथ मिलन के कारण, ख्रीष्ट का आत्मा जो कि ख्रीष्ट जो कि सिर है, उसमें वास करता है तो वह अपने सभी सदस्यों में वास करता है (रोमियों 8:9)।

अन्तर्वास करने वाला आत्मा पिता और पुत्र के साथ हमारी सहभागिता का सार है (2 कुरिन्थियों 13:14; इफिसियों 2:18)। जॉन कैल्विन ने कहा है, “पवित्र आत्मा वह बन्धन है जिसके द्वारा ख्रीष्ट हमें प्रभावी रूप से अपने साथ जोड़ता है”(इन्स्टिट्यूट्स 3.1.1)। जैसे पति और पत्नी “एक देह” हैं, हम प्रभु यीशु के साथ “एक आत्मा” हैं (1 कुरिन्थियों 6:16-17)। कल्पना कीजिए कि आप किसी मित्र के कितने निकट होंगे यदि आपकी आत्मा उसमें वास कर सके। ऐसे ही ख्रीष्ट की अन्तर्वास करने वाले आत्मा के माध्यम से अपने प्रत्येक सदस्य के साथ अन्तरंगता है। वही आत्मा हमें ख्रीष्ट की एक देह में बपतिस्मा देता है, हमें विश्वास, जीवन, आराधना और सेवा में जोड़ता है (1 कुरिन्थियों 12:12-13; बेल्जिक अंगीकार, अनुच्छेद 27)।

इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कलीसिया की विधियाँ ख्रीष्ट के साथ और एक दूसरे के साथ हमारे मिलन की पुष्टि और उसे व्यक्त करती हैं। गलातियों 3:26-28 कहता है: 

क्योंकि तुम सब उस विश्वास के द्वारा जो ख्रीष्ट यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो। तुम में से जितनों ने ख्रीष्ट में बपतिस्मा लिया है उन्होंने ख्रीष्ट को पहिन लिया है। अब न कोई यहूदी है, और न यूनानी, न दास है और न स्वतन्त्र, न पुरुष है और न स्त्री, क्योंकि तुम सब ख्रीष्ट यीशु में एक हो।

गलातियों 3:26 स्पष्ट रूप से कहता है कि विश्वास द्वारा बचाए गए हैं, न कि हमारे किसी कार्यों के द्वारा, चाहे वे कोई भी नैतिक कार्य हों जैसे कि दस आज्ञाओं या रीतियों का पालन करना जैसे खतना, बपतिस्मा, या प्रभु भोज ( 2:16; 5:2 भी देखें)। फिर भी पद 27 कहता है कि वे जिन्होंने बपतिस्मा लिया है उन्होंने “ख्रीष्ट को पहिन लिया है” और, इसलिए, सब “ख्रीष्ट में एक” हैं। इसे कैसे समझा जाए? उन्हें अपने बपतिस्मे को एक कारण के रूप में नहीं परन्तु विश्वास के द्वारा ख्रीष्ट के साथ और, एक दूसरे के साथ उसमें, मिलन के चिन्ह के रूप में देखना चाहिए।  अपने 1545 प्रश्नोत्तरी में, कैल्विन ने इस परिभाषा को बताया:

कलीसियाई विधि क्या है? परमेश्वर के अनुग्रह का एक बाहरी प्रमाण, जो कि प्रत्यक्ष चिन्ह के द्वारा, आत्मिक बातों को हमारे हृदयों में परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को और अधिक दृढ़ता से अंकित करने का प्रतिनिधित्व करता, और हमें उसके लिए और अधिक सुनिश्चित करता। (प्रश्न 310)

यदि स्वयं बपतिस्मा की विधि ने हमें ख्रीष्ट के साथ जोड़ा और हमें बचाया, तो पौलुस के लिए यह लिखना समझ से बाहर होगा कि “ख्रीष्ट ने मुझे बपतिस्मा देने के लिए नहीं, परन्तु सुसमाचार प्रचार के लिए भेजा है“ (1 कुरिन्थियों 1:17)। सुसमाचार का प्रचार फिर क्यों करना यदि वांछित परिणाम केवल सभी लोगों को बपतिस्मा देने द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं? सुसमाचार, न कि बपतिस्मा, “उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ्य है” (रोमियों1:16)। कैल्विन कहते हैं:

हमें सांसारिक चिन्ह की ओर नहीं देखना चाहिए कि हम अपने उद्धार की खोज उसमें करे, न ही हमें यह कल्पना करना चाहिए कि इसके अन्दर कोई निराली सामर्थ्य है। इसके विपरीत, हमें सहायता के रूप में चिन्ह को प्रयोग में लाना चाहिए, हमें सीधे प्रभु यीशु के पास ले जाने के लिए, ताकि हम उसमें अपना उद्धार और. . . .कल्याण पाएँ (प्रश्नोत्तरी प्रश्न 318)।

इस प्रकार, पौलुस हमें 1 कुरिन्थियों 10:1-4 में चेतावनी देता है कि हम कलीसियाई विधियों को निभा सकते हैं परन्तु फिर भी अविश्वासी, अपरिवर्तित, और अन्ततः परमेश्वर द्वारा अस्वीकार किए जा सकते हैं:

हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनभिज्ञ रहो कि हमारे सभी पूर्वज बादल की अगुवाई में चले और सब के सब समुद्र के बीच से पार हुए। सब ने उस बादल और समुद्र में मूसा का बपतिस्मा लिया, सब ने एक ही आत्मिक भोजन किया, और सब ने एक ही आत्मिक जल पिया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे जो उनके साथ साथ चलती थी; और वह चट्टान ख्रीष्ट था। 

ध्यान दें कि कैसे वह बपतिस्मा, भोजन खाने, और जल पीने के विषय के बताते हुए नयी वाचा की धार्मिक विधियों की ओर संकेत करता है। धार्मिक विधियाँ न तो बचाती हैं और न बचा सकती हैं ।    

तो क्या इसका अर्थ यह है कि बपतिस्मा और प्रभु भोज केवल स्मरण की प्रथाएँ हैं? एक दम नहीं। प्रेरितों ने प्रायः विश्वासियों को अपने बपतिस्मा की ओर उसके साथ मिलन के रूप में देखने के लिए प्रोत्साहित किया साथ जो कि मरा और फिर से जी उठा (रोमियों 6:3-4; गलातियों 3:27; इफिसियों 5:25-26; कुलुस्सियों 2:12; 1 पतरस 3:21-22)। रोटी जो हम तोड़ते हैं और कटोरा जिसके लिए धन्यवाद देते हैं वह ख्रीष्ट की देह और लहू की सहभागिता है (1 कुरिन्थियों 10:16)। विश्वास में अभ्यस्त, वे ख्रीष्ट के निकट आने के उसके प्रायश्चित के कार्यों के लाभों तक पहुँचने के लिए, इसे अपने पर लागू करने के लिए और परमेश्वर के लिए जीने के लिए अनुग्रह पाने के साधन हैं (रोमियों 6:1-14)।  

कलीसियाई विधियाँ एक साधन है जिसके द्वारा ख्रीष्ट, अपने आत्मा के कार्यों के माध्यम से , स्वयं को हमें ग्रहण किए जाने के लिए प्रस्तुत करता है। इसीलिए पौलुस ने आत्मा द्वारा बपतिस्मा लेने के द्वारा और आत्मा के पिलाए जाने के लिए बनाए जाने के द्वारा (12:13), और साथ ही साथ आत्मा से परिपूर्ण होने के लिए (इफिसियों 5:18) ख्रीष्ट से “आत्मिक” भोजन और जल लेने की बात की (1 कुरिन्थियों 10:3-4)।

कैल्विन ने लिखा है, “यदि आत्मा की घटी हो, तो कलीसियाई विधियाँ कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकतीं” (नियम 4.14.9)। इसके अतिरिक्त:

वास्तव में आत्मा ही एकमात्र है जो कि हमारे हृदयों को छू और कायल कर सकता है, हमारे मनों को प्रकाशित कर सकता है, और हमारे विवेक को आश्वस्त कर सकता है; ताकि यह सब उसके स्वयं के कार्यों के रूप में जाने जाएँ, ताकि प्रशंसा का केवल वही उत्तरदायी हो। फिर भी, किसी भी प्रकार से अपने आत्मा की सामर्थ्य से विचलित हुए बिना, प्रभु स्वयं कलीसियाई विधियों का प्रयोग निम्नतर उपकरणों के रूप में करता है क्योंकि यह उन्हें अच्छा प्रतीत होता है। (प्रश्नोत्तरी प्रश्न 312)

जब कलीसिया ख्रीष्ट के नाम में एकत्रित होती है और उसके स्मरण में पवित्र भोज लेती है, तब ख्रीष्ट के साथ वास्तविक सहभागिता या आत्मिक संगति होती है। 1 कुरिन्थियों 10:16-20 में “सहभागी” शब्द (यूनानी कोइनोनिया  से: संगति, सहभागी होना, या एक ही बात में साझा करना) की विभिन्न रूपों में पुनरावृत्ति पर ध्यान दें:

धन्यवाद का वह कटोरा जिसके लिए हम धन्यवाद देते हैं, क्या वह ख्रीष्ट के लहू में सहभागिता नहीं? वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या वह ख्रीष्ट की देह में सहभागिता नहीं? जबकि रोटी एक ही है तो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं, क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में सहभागी होते है। जो शरीर के भाव से इस्राएली हैं उन पर ध्यान दो: क्या बलिदानों को खाने वाले वेदी के सहभागी [कोइनोनियो] नहीं? मेरे कहने का तात्पर्य क्या है? क्या मूर्तियों के आगे बलि की हुई वस्तु कुछ है? या मूर्ति कुछ है? नहीं, पर मैं यह कहता हूँ कि गैरयहूदी जिन वस्तुओं की बलि चढ़ाते हैं, उन्हें परमेश्वर के लिए नहीं वरन् दुष्टात्माओं के लिए चढ़ाते हैं। मैं नहीं चाहता कि तुम दुष्टात्माओं के सहभागी [कोइनोनिएस] बनों।

पौलुस का यह कहने का क्या अर्थ था कि रोटी और कटोरे में सहभागी होना ख्रीष्ट की देह और लहू में “सहभागिता” है? अंशतः, उसका अर्थ था कि हम इस प्रकार “एक देह” के रूप में जुड़ गए हैं पद 17)। हमारी एक दूसरे के साथ संगति है। परन्तु इससे अधिक भी है। कैल्विन ने कहा, “परन्तु मैं तुमसे [पूछता] हूँ, कि कहाँ से हमारे मध्य यह कोइनोनिया  (सहभागिता) आती है, परन्तु इससे, कि हम ख्रीष्ट के साथ जुड़ गए हैं?” (1 कुरिन्थियों 10:16 पर टिप्पणी)।     

पौलुस पुराने नियम के आराधकों के सम्बन्ध में भी वही कोइनोनिया  की भाषा का उपयोग करता है। बलिदानों को खाते हुए, वे वेदी के सहभागी हुए। उन्होंने लहू के बलिदान और ठहराए गए याजक के माध्यम से परमेश्वर के साथ भोजन साझा किया। कलीसिया प्रभु के साथ एक वाचा का भोजन साझा करती है, जो कि लहू द्वारा मोल लिए गए अनुग्रह पर उसकी उपस्थिति में भोज करती है।

पौलुस ने मूर्तिपूजकों के लिए भी इसी भाषा का उपयोग किया है: वे दुष्टात्माओं के साथ सहभागी होते हैं। वे अशुद्ध आत्माओं की उपस्थिति में आराधना करते हैं। पौलुस कह रहा है कि उनकी आराधना करने से आराधक वास्तव में पतितों के साथ जुड़ते हैं। यदि हम दुष्टात्माओं के साथ सहभागी होते हैं, तो यह एक प्रकार का आत्मिक व्यभिचार है जो कि परमेश्वर के क्रोध को भड़काता है (पद 22)। स्पष्ट रूप से यह “सहभागिता” महान महत्व की आत्मिक वास्तविकता है। पौलुस इस मूर्तिपूजा को प्रभु भोज के समक्ष विषमता में रखता है, स्पष्ट रूप से वह चाहता है कि हम इन्हें समानन्तर के रूप से देखें (पद 21)।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि “ख्रीष्ट के लहू में सहभागिता” और “ख्रीष्ट की देह में सहभागिता” से पौलुस का क्या अर्थ है। हम शैतानी शक्तियों को त्यागते हैं और स्वयं ख्रीष्ट के साथ आत्मिक संगति करते हैं, जो हमारे लिए क्रूस पर चढ़ाया गया, और अब हमारे स्वर्गीय सिर और महा याजक के रूप में जी उठा और ऊँचे पर है। हम उसकी प्रायश्चित की मृत्यु के लाभों का और उसके अन्तहीन जीवन की सामर्थ्य का भोज करते हैं। कैल्विन कहते हैं कि भोज “एक आत्मिक प्रीतिभोज है, जहाँ ख्रीष्ट स्वयं को जीवन देने वाली रोटी के रूप में प्रमाणित करता है, जिस पर हमारे प्राण सच्ची और धन्य अमरत्व का पोषण करते हैं [यूहन्ना 6:51]” (इन्स्टिट्यूट्स 4.17.1)।

आइए हम ख्रीष्ट में विश्वास द्वारा उपयोग किए जाने के लिए कलीसियाई विधियों को “परमेश्वर की बहुमूल्य रीतियों” के रूप में महत्व दें। यदि हम उन्हें “पाखण्डियों के रूप में उपयोग करेंगे, जिनमें मात्र घमण्ड का प्रतीक जागृत होता है,” तो हमारा आत्मविश्वास खो गया है, और भौतिक प्रतीक निर्रथक हैं। परन्तु यदि हम उन्हें उन लोगों के रूप में ग्रहण करते हैं जो ख्रीष्ट में सच्चे विश्वास द्वारा जुड़े हैं, तो हम उन “प्रतिज्ञाओं को देखते हैं जिनसे वे पवित्र आत्मा के अनुग्रह का प्रदर्शन करते हैं” (गलातियों 3:27 पर कैल्विन की टिप्पणी), और विश्वास के द्वारा, ख्रीष्ट हमारे हृदयों में अधिक अन्तर्वास करेगा” (इफिसियों 3:16-17)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया