पौलुस की पत्रियों में ख्रीष्ट के साथ मिलन - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पौलुस की पत्रियों में ख्रीष्ट के साथ मिलन

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौवथा अध्याय है: ख्रीष्ट के साथ मिलन

पवित्रशास्त्र के सबसे अद्भुत खण्डों में से एक प्रकट होता है इफिसियों के लिए पौलुस की पत्री के प्रारम्भ में, जहाँ प्रेरित यथाशब्द आरम्भ से ही आरम्भ करता है जब वह लिखता है, “उसने [परमेश्वर ने] हमें अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के अनुसार पहिले से ही अपने लिए यीशु ख्रीष्ट के द्वारा लेपालक पुत्र होने के लिए ठहराया” (1:4-5)। जैसे ही पौलुस उन सभी आशीषों को प्रस्तुत करता है जो विश्वासियों को प्राप्त होती है, वह इस वाक्यांश के दोहराव के साथ ख्रीष्ट में उद्धार की नींव को आधारित करता है: “उस में. . .” पौलुस लिखता है, “उसमें, उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात् हमारे अपराधों की क्षमा है . . . उसी में  एकत्रित करे . . . उसी में  हमने उत्तराधिकर प्राप्त किया है . . . उसी में तुम पर भी . . . . प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी” (पद 7-13)। पौलुस उसी बात को दोहराता है “उसमें”, जो कि हमें ख्रीष्ट के साथ मिलन के सिद्धान्त की ओर इंगित करती है। परन्तु वास्तव में ख्रीष्ट के साथ मिलन क्या है?

अपने विधिवत धर्मविज्ञान (Systematic Theology) में, लूइस बेर्खोफ ने ख्रीष्ट के साथ मिलन को, “ख्रीष्ट और उसके लोगों के मध्य वह अन्तरंग, महत्वपूर्ण, और आत्मिक मिलन के रूप में परिभाषित किया है, जिसके आधार पर वह उनके जीवन और सामर्थ का, उनकी धन्यता और उद्धार का स्रोत है।” सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में ऐसे कई खण्ड हैं जो यह प्रकट करते हैं कि विश्वासी ख्रीष्ट के साथ जुड़े हुए हैं: हम डालियाँ हैं और यीशु दाखलता है (यूहन्ना 15:5); यीशु सिर है और हम उसकी देह (1 कुरिन्थियों 6:15-19); ख्रीष्ट नींव है और हम नींव से जुड़े हुए जीवित पत्थर हैं (1 पतरस 2:4-5); और पति और पत्नी के मध्य विवाह अन्ततः ख्रीष्ट और विश्वासियों के मध्य मिलन की ओर इंगित करता है (इफिसियों 5:25-31)। इन बाइबलीय चित्रण से हटकर, यह विशिष्ट वाक्यांश “उस में” कुछ पच्चीस बार पौलुस की पत्रियों में आता है। हम कह सकते हैं कि ख्रीष्ट के साथ मिलन में हमारे छुटकारे के सभी लाभ हैं। उदाहरण के लिए, वेस्टमिन्स्टर वृहद प्रश्नोत्तरी का प्रश्न 69 पूछता है, “अनुग्रह में वह सहभागिता क्या है जो अदृश्य कलीसिया के सदस्यों की ख्रीष्ट के साथ है?” फिर यह प्रतिउत्तर देता है, “अनुग्रह में सहभागिता जो कि अदृश्य कलीसिया के सदस्यों की ख्रीष्ट के साथ है, वह इस जीवन में उसके मनन, उनके धर्मी ठहराए जाने, लेपालकपन, पवित्रीकरण, और इस जीवन में और जो कुछ भी है, उसके साथ उनके मिलन को प्रकट करती है।”

वृहद प्रश्नोत्तरी के उत्तर सरलता से पवित्रशास्त्र से सत्यापित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, जैसा कि हमने ऊपर देखा, हम जगत की उत्पत्ति से पहले ”उस में” चुने गए हैं (इफिसियों 1:4)। पौलुस रोम की कलीसिया को लिखता है कि “उन पर जो ख्रीष्ट यीशु में हैं, दण्ड की आज्ञा नहीं है” (रोमियों 8:1),  जो कि एक अन्य ढंग है यह कहने का कि जो ख्रीष्ट के साथ एक हुए हैं वे धर्मी ठहराए गए हैं। जो कोई भी “ख्रीष्ट यीशु में” है वह विश्वास के द्वारा परमेश्वर की सन्तान है (गलातियों 3:26)। इसके अतिरिक्त, यदि मसीही ख्रीष्ट में बने हुए हैं, वे बहुत फलेंगे; वे भले कार्य उत्पन्न करेंगे (यूहन्ना 15:5)। केवल ख्रीष्ट हमें उद्धार दे सकता है, चाहे उसे सम्पूर्ण माना जाए या विभिन्न व्यक्तिगत लाभों के रूप में, जैसे कि धर्मी ठहराया जाना और पवित्रीकरण।

इस तथ्य का क्या महत्व है कि विश्वासी ख्रीष्ट के साथ एक हुए हैं। धर्मसुधारक ईश्वरविज्ञानियों ने ऐतिहासिक रूप से तर्क दिया है कि ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन के कई विभिन्न पहलू हैं। उदाहरण के लिए, हमारे “उसमें” चुने जाने के सन्दर्भ में हम ख्रीष्ट के साथ एक हैं। उस स्थिति में हम पवित्र आत्मा में नहीं बने हुए थे और विश्वास द्वारा ख्रीष्ट के साथ एक नहीं हुए थे क्योंकि हम परमेश्वर के मन को छोड़ कर अस्तित्व में भी नहीं थे। फिर भी, हम ख्रीष्ट के साथ पिता के व्यक्तिगत पतित पापियों के चुनने के निर्णय और अपने पुत्र के द्वारा उन्हें छुड़ाने के सन्दर्भ में एक हैं। इसलिए, इस अर्थ में, हम ख्रीष्ट के साथ चुनाव की आज्ञप्ति में एक हैं।

ख्रीष्ट के साथ मिलन का एक दूसरा पहलू भी है, जिसे कुछ लोगों ने हमारा प्रतिनिधि या संघीय मिलन  कहा है। ख्रीष्ट की पृथ्वी पर की सेवकाई में, जो कुछ भी उसने किया, उसने अपनी दुल्हन, कलीसिया की ओर से किया। जब उसका यरदन नदी में बपतिस्मा में हुआ, जो कि पश्चाताप का बपतिस्मा था, वह व्यक्तिगत पापों का अंगीकार नहीं कर रहा था,  क्योंकि वह निष्कलंक मेमना था—वह पापरहित था (मरकुस 1:4; 1पतरस 1:19)। वरन्, अपने लोगों के प्रतिनिधि के रूप में, वह उनकी ओर से कार्य कर रहा था। परिणामस्वरूप, ने केवल उसके बपतिस्मा में, परन्तु व्यवस्था के हर एक बिन्दु और मात्रा की उसकी पूर्ति में, उसके सिद्ध दुख उठाने, पुनरुत्थान, और स्वर्गारोहण में —सब कुछ जो ख्रीष्ट ने किया उसने उसे अपनी दुल्हन की ओर से किया था। ख्रीष्ट का सिद्ध व्यवस्था पालन और दुख उठाना विश्वास द्वारा हमारा हो जाता है—वे हम पर, अभ्यारोपित, या अधिकृत हैं। ख्रीष्ट का पुनरुत्थान प्रतिनिधि है, इस बात में कि जैसे सिर उठाया जाता है, वैसे ही देह, कलीसिया, उठायी जाएगी। अब, जब ख्रीष्ट अपने स्वर्गीय पिता के दाहिने हाथ पर राजकीय सभा में बैठा है, हम भी ख्रीष्ट के साथ बैठे और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ शासन करते हैं (इफिसियों 1:20-21)।

ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन का तीसरा पहलू वह है जिसे कुछ लोग रहस्यमय  या व्यक्तिगत  मिलन कहते हैं। यह पवित्र आत्मा के व्यक्ति और कार्य के माध्यम से विश्वास के द्वारा विश्वासी में व्यक्तिगत निवास करना है। इफिसियों 2 समेत, ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन के इस पहलू के विषय में कई खण्ड बोलते हैं, जहाँ प्रेरित पौलुस यह बताता है कि हम परमेश्वर के कुटुम्ब के सदस्य हैं, जो कि ख्रीष्ट के कोने का पत्थर होने के रूप में ,प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर निर्मित हैं। इस भव्य और अन्तिम मन्दिर के विषय में, पौलुस लिखता है कि हम “एक पवित्र मन्दिर बनते जाते हैं”, और “उस में [हम] आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवासस्थान होने के लिए एक साथ बनाए जाते हैं”(पद 22)।

विवाह समारोह में, जब एक पुरुष और स्त्री सेवक के सामने खड़े होते हैं, वे दो अलग व्यक्ति होते हैं। परन्तु, समारोह के अन्त में,उन्हें “पति और पत्नी” घोषित किया जाता है। वे एकजुट हैं; और दोनों “एक तन” हो जाते हैं (उत्पत्ति 2:7; इफिसियों 5:25-31)। प्रत्येक व्यक्ति की सम्पत्ति दोनों की सम्पत्ति बन जाती है। परन्तु ख्रीष्ट के साथ हमारे वैवाहिक मिलन में, महिमावान आदान-प्रदान कहीं अधिक है।  हमारे पाप और दोष ख्रीष्ट पर अभ्यारोपित किए गए हैं, और उसकी सिद्ध व्यवस्था पालन और दुख उठाना हम पर अभ्यारोपित कर दिया गया है—जो हमारा है उसका हो गया है, और जो उसका है हमारा हो गया है। इस प्रतिनिधि मिलन के कारण जो हम ख्रीष्ट के साथ साझा करते हैं, पिता अब हमें पापी के रूप में नहीं देखता वरन् केवल ख्रीष्ट की धार्मिकता और पवित्रता को देखता है।

हाइडलबर्ग प्रश्नोत्तरी का प्रश्न 60 पूछता है, “आप परमेश्वर के सम्मुख कैसे धर्मी हैं?” प्रश्नोत्तरी तब एक बहुत आश्वस्त करने वाला उत्तर देता है:

केवल यीशु ख्रीष्ट में विश्वास के द्वारा; अर्थात्, यद्यपि मेरा विवेक मुझ पर आरोप लगाता है कि मैंने परमेश्वर की सभी आज्ञाओं के विरुद्ध घोर पाप किया है और एक का भी पालन नहीं किया है, और अभी भी मैं सभी बुराईयों के लिए तैयार हूँ, फिर भी परमेश्वर, बिना मेरी किसी योग्यता के, मात्र अनुग्रह से, मुझे ख्रीष्ट की  सिद्ध सन्तुष्टि, धार्मिकता, और पवित्रता प्रदान करता और अभ्यारोपित करता है, जैसे कि मैंने कभी कोई पाप नहीं किया हो, और मैंने उन सभी आज्ञाओं का पालन किया हो जो कि ख्रीष्ट ने मेरे लिए प्रतिपादित की हैं; और ऐसा तभी यदि मैं विश्वासी हृदय के साथ इन लाभों को स्वीकार करता हूँ।

व्यक्तिगत पवित्रता और भले कार्यों के विषय में फिर क्या? तो क्या अब वे आवश्यक नहीं हैं? क्या विश्वासी अपने धर्मी ठहराए जाने के कारण भले कार्य करने की आवश्यकता से मुक्त हैं? क्या वे पाप करने के लिए स्वतन्त्र हैं?

यह वे प्रश्न हैं जिनका रोमियों 3-5 में केवल ख्रीष्ट पर विश्वास के माध्यम से केवल अनुग्रह के द्वारा हमारे धर्मी ठहराए जाने की महिमा को सम्बोधित करने के पश्चात् पौलुस ने सामना किया। पौलुस इस प्रश्न कि क्या मसीही धर्मी ठहराए जाने के द्वारा पाप करने के लिए स्वतन्त्र हैं का प्रत्युत्तर अपने परिचित और सुस्पष्ट “ऐसा कदापि न हो!” के साथ देता है। एक कारण के रूप में वह जिस वास्तविकता की ओर हमें इंगित करता है कि हम क्यों अब पाप में नहीं जी सकते वह हमारा ख्रीष्ट के साथ मिलन है।

इसलिए हम बपतिस्मा द्वारा उसकी मृत्यु में सहभागी होकर उसके साथ गाड़े गए हैं, जिससे कि पिता की महिमा के द्वारा जैसे ख्रीष्ट जिलाया गया था, वैसे हम भी जीवन की नई चाल चलें। क्योंकि यदि हम उसके साथ उसकी मृत्यु की मनानता में एक हो गए हैं, तो निश्चय ही उसके जी उठने की समानता में भी एक हो जाएँगे (रोमियों 6:4-5)

अन्य शब्दों में, ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन में, हम न केवल धर्मी ठहराए जाने के लाभ को प्राप्त करते हैं, परन्तु हमें पवित्रीकरण का लाभ भी मिलता है। बहुत सारे लोग सोचते हैं कि उनका पवित्रीकरण, उनका आत्मिक परिवर्तन और ख्रीष्ट की पवित्र छवि की अनुरूपता, केवल अपनी नैतिक परिस्थिति में दृढ़ बने रहने का कठिन प्रयास करने के जैसा है—पवित्र बनने का निश्चय करने के समान। परन्तु, एक बात जो स्पष्ट हो जानी चाहिए कि यीशु स्पष्ट रूप से हमें बताता है कि हमारे फल उत्पन्न करने का एकमात्र उपाय है यदि हम उसमें बने रहें: “मैन दाखलता हूँ, तुम डालियाँ हो। जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते” (यूहन्ना 15:5)।

हमें यह समझना चाहिए कि हमें जीवन के लिए  नहीं परन्तु उसमें से  जीना है— हम ख्रीष्ट के साथ क्रूस पर चढ़ाए गए हैं और अब हम जीवित नहीं रहे परन्तु ख्रीष्ट हम में जीवित है (गलातियों 2:20)। मसीहियों के पास यह महान आश्वासन है कि जब हम विश्वास के द्वारा ख्रीष्ट के साथ एक होते हैं, हम सम्पूर्ण ख्रीष्ट और छुटकारे के सभी लाभों को प्राप्त करते हैं, न कि उनमें से कुछ को।         

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
जे. वी. फेस्को
जे. वी. फेस्को
डॉ. जे. वी. फेस्को, जैक्सन, मिस्सिसिप्पी में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में विधिवत और ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान के प्राध्यापक हैं, और आने वाली पुस्तक मसीही और प्रौद्योगिकी (The Christian and Technology) के लेखक हैं।