
दुख उठाना और परमेश्वर की महिमा
5 अप्रैल 2022
पौलुस की पत्रियों में ख्रीष्ट के साथ मिलन
12 अप्रैल 2022त्रिएक परमेश्वर के साथ मिलन

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: ख्रीष्ट के साथ मिलन
क्या आपने कभी कल्पना की है कि मृत्यु के अन्तिम कुछ घण्टों में होना कैसा होता होगा—एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में नहीं, परन्तु एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसे प्रत्येक अपराध के लिए निर्दोष होते हुए भी दण्डित किया गया हो? आप उनसे क्या कहना चाहेंगे जो आपको अत्याधिक जानते और आपसे प्रेम करते हैं? निश्चित ही, आप उन्हें बताएँगे कि आप उनसे कितना प्रेम करते हैं। आप आशा कर सकते हैं कि उस भयावह अनुभव का सामना करते हुए भी—आप उन्हें कुछ सान्त्वना और आश्वासन दे सकते हैं। आप अपना हृदय खोलना चाहेंगे और वह बातें कहेंगे जो आपके लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण थीं।
ऐसा शान्तचित्त निश्चय ही सराहनीय होगा। निःसन्देह, मानव स्वभाव का यह सर्वोत्तम रूप होगा—क्योंकि, जैसा प्रेरित यूहन्ना ऊपरी कक्ष के प्रवचन के विषय में बताता है, यीशु ने भी यही किया था (यूहन्ना 13-17)।
अपने क्रूसीकरण के पूर्व चौबीस घण्टों के भीतर, प्रभु यीशु ने अपना प्रेम उत्कृष्ट रीति में व्यक्त किया। वह भोजन पर से उठा, दास की तौलिया को अपनी कमर में बाँधा, और अपने चेलों के मैले पैरों को धोया (स्पष्टतया, यहूदा इस्करियोती सहित; यूहन्ना 13:3-5; 21-30)। यह एक दृश्य दृष्टान्त था, जैसा कि यूहन्ना बताता है: ”अपनो से जो संसार में थे जैसा प्रेम करता आया था उन से अन्त तक वैसा ही प्रेम किया” (पद 1)।
उसने उनसे गहरी सान्त्वना के शब्द भी कहे: “तुम्हारा मन व्याकुल न हो” (14:1)।
फिर भी यीशु ने इससे अधिक किया। उसने अपने चेलों को “परमेश्वर की गूढ़ बातों” (1 कुरिन्थियों 2:10) को दिखाना प्रारम्भ किया। जब उसने पतरस के पैर धोए, तो उसने उससे कहा कि वह उसके कार्यों को केवल “बाद में” (यूहन्ना 13:7) समझेगा। उसने जो कहा वह सच था, क्योंकि उसने अपने चेलों को परमेश्वर के आन्तरिक स्वभाव को प्रकट करना प्रारम्भ कर दिया था। वह पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा है—पवित्र त्रिएकता।
अनावृत भेद की महिमा
कई मसीही त्रिएकता को एक अव्यावहारिक, और विचारवान सिद्धान्त के रूप में मानते हैं। परन्तु प्रभु यीशु ऐसा नहीं मानता है। उसके लिए, यह न तो विचारवान है न ही अव्यावहरिक—परन्तु ठीक इसके विपरीत है। यह सुसमाचार का आधार है। बिना पिता के प्रेम के, पुत्र के आगमन के, और पवित्र आत्मा के पुनरुजीवत करने वाले सामर्थ्य के, कोई उद्धार नहीं हो सकता। (उदाहरण के लिए, अद्वेतवाद (unitarians), परमेश्वर द्वारा परमेश्वर के लिए कोई प्रायश्चित नहीं मान सकते हैं।)
अपने विदाई प्रवचन के समय, यीशु ने फिलिप्पुस को समझाया कि उसको देखना पिता को देखना है (यूहन्ना 13:8-11)। तौभी वह स्वयं पिता नहीं है; अन्यथा, वह पिता के पास पहुँचने का मार्ग नहीं हो सकता था (यूहन्ना 14:6)। वह पिता “में” भी है, और पिता “उसमें” है। जैसा की ईश्वरविज्ञानी कहते हैं, यह पारस्परिक अन्तर्वास “अवर्णनीय” है —हमारी समझने की क्षमता से परे। फिर भी यह विश्वास करने के लिए विश्वास की क्षमता से परे नहीं है।
इसके अतिरिक्त, पवित्र आत्मा पिता और पुत्र के मध्य के बन्धन के केन्द्र में वास करता है। परन्तु अब पिता ने अपने पुत्र को भेज दिया है (जो कि पिता “में” है)। विश्वासियों के लिए पिता और पुत्र का ऐसा प्रेम है कि वे विश्वासियों के साथ निवास करेंगे।
परन्तु कैसे? पिता और पुत्र पवित्र आत्मा के अन्तर्वास करने के द्वारा विश्वासी में अन्तर्वास करने के लिए आते हैं (14:23)। वह ख्रीष्ट की महिमा करता है (16:14)। वह जो ख्रीष्ट का है उसे लेता है, पिता के द्वारा उसे देता है, और हमें दिखाता है। बाद में, जब हमें अपने प्रभु की प्रार्थना सुनने का सौभाग्य मिलता है, यीशु उसी प्रकार से परमेश्वर के साथ संगति की आत्मीयता की बात करता है जिसने उसे इतने अद्भुत रूप से बनाए रखा है: “हे पिता, तू मुझ में है और मैं तुझ में हूँ” (17:21)।
वास्तव में यह एक गहरा ईश्वरविज्ञान है। फिर भी वस्तुतः सबसे प्रगाढ़ कथन जो हम परमेश्वर के विषय में कह सकते हैं वह है कि पिता पुत्र ”में” है और पुत्र पिता “में” है। यह इतना सरल प्रतीत होता है कि एक बच्चा भी इसे देख सकता है। क्योंकि “में” से अधिक सरल और क्या शब्द हो सकता है?
फिर भी यह इतना अधिक प्रगाढ़ है कि सर्वोत्तम मस्तिष्क भी इसे नहीं पूर्ण रूप से नहीं समझ सकते। क्योंकि जब कभी भी हम पिता के एक व्यक्ति पर विचार करना चाहते हैं, हम पाते हैं कि हम उसके पुत्र के विषय में सोचे बिना ऐसा नहीं कर सकते (क्योंकि पुत्र के बिना वह पिता नहीं हो सकता)। न ही हम पिता से पृथक इस पुत्र के विषय में विचार कर सकते हैं (क्योंकि वह बिना पिता का पुत्र नहीं हो सकता)। यह सब केवल इसलिए सम्भव है क्योंकि आत्मा यह प्रकाशित करता है कि वास्तव में पुत्र कौन है जिसके माध्यम से ही हम पिता के पास आ सकते हैं।
इस प्रकार, हमारे मस्तिष्क इस त्रित्व (threeness) में एकता पर आनन्द से भर जाते हैं और साथ ही साथ त्रित्व में एकता की धारणा के द्वारा उनकी क्षमताओं से अलग विस्तारित हो जाते हैं। लगभग उतना ही चौंका देने वाला तथ्य यह है कि यीशु यह सब प्रकट और सिखाता है कि यह जीवन-स्थिर करने वाला, शान्तचित्त देने वाला, हृदय को सान्त्वना देने वाला, और आनन्द देने वाला सुसमाचार सत्य होगा (15:11)।
त्रिएकता महत्ता में अत्यन्त विशाल है क्योंकि यह उन लोगों को सान्त्वना दे सकता है जो उस दुख के वातावरण में चले गए हैं जो उन लोगों को निगलने को है। त्रिएक परमेश्वर महिमा में महान है, भेद में गहरा है, और सृष्टि की अन्य वास्तविकताओं की तुलना में सामन्जस्य में अधिक सुन्दर है। कोई त्रासदी इतनी बड़ी नहीं जो उसे व्यथित कर दे; जो हमारी समझ से बाहर है वो उसके लिए नहीं है, जिसका अस्तित्व हमारी समझ से बाहर है। कोई भी अन्धकार इतना गहरा नहीं है जो परमेश्वर के भीतर की गहनता से अधिक हो।
फिर, सम्भवतः यह समझ सकने योग्य है, कि जॉनाथन एडवर्ड्स इसे अपनी व्यक्तिगत कथा में लिख सके:
त्रिएकता के कारण, परमेश्वर मुझे महिमावान दिखाई दिया। इसने मुझे परमेश्वर के विषय में उत्कृष्ट विचार दिए हैं, कि वह तीन व्यक्तियों में निर्वाह करता है; पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। सबसे मधुर आनन्द और प्रसन्नता जिसका मैंने अनुभव किया है, वह वे नहीं थी जो मेरे स्वयं की भली अवस्था की आशा से उत्पन्न हुई; परन्तु वह है जो सुसमाचार की महिमावान बातों के प्रत्यक्ष दृष्टिकोण में है। जब मैं इस मिठास का आनन्द लेता हूँ, तो ऐसा प्रतीत होता है कि यह मुझे अपनी ही अवस्था के विचारों से ऊपर ले जाता है; ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे समय में एक ही क्षति है जिसे मैं सहन नहीं कर सकता, कि अपनी आँखों को महिमावान, मनोहर वस्तु जिसे मैं अपने बिना देखता हूँ उस पर से हटाकर, अपनी आँखें स्वयं पर, और अपनी भली अवस्था पर लगाऊँ।
परन्तु त्रिएकता का प्रकाशन वास्तव में हमारी “स्वयं की भली अवस्था” से सम्बन्धित है।
मिलन के अचम्भे का प्रकट होना
यीशु की शिक्षा का उद्देश्य मात्र हमारे मस्तिष्क को स्तब्ध कर देना या हमारी कल्पनाओं में हलचल ले आना नहीं है। यह हमारा उसके साथ मिलन के वृहद सौभाग्य का बोध कराने के लिए है।
सेवकाई के इन कुछ घण्टों के आरम्भ से ही, यीशु ने अपने चेलों के साथ “साझा” होने की बात की थी (यूहन्ना 13:8)। उसने यह भी स्पष्ट किया कि आत्मा मसीहियों को प्रकट करता है कि वे “ख्रीष्ट में” हैं और वे उनमें है (14:20)। यह एक इतना वास्तविक और अद्भुत मिलन है कि इसकी वास्तविक समानता—साथ ही साथ इसका आधार—आत्मा के माध्यम से पिता और पुत्र का मिलन है। चेले पुत्र के साथ मिलन का आनन्द लेंगे और इस प्रकार आत्मा के माध्यम से पिता के साथ संगति करेंगे। यीशु ने कहा, “तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है और तुम में होगा” (पद 17)। यह गूढ़ शब्द आत्मा और पुरानी वाचा (“तुम्हारे साथ”) और नयी वाचा के विश्वासियों (“तुम में”) के मध्य के सम्बन्ध की विषमता को उद्धृत नहीं करते हैं। यह प्रायः इसी प्रकार समझा जाता है, परन्तु यीशु वास्तव में कह रहा है कि; ”तुम आत्मा को जानते हो, क्योंकि वह मेरे रूप में तुम्हारे साथ है, परन्तु वह (पिन्तेकुस्त के दिन) तुममें उसी के समान में आएगा जो मेरा निरन्तर साथी रहा है (और उस प्रकार से “तुम्हारे साथ”)। इसलिए कि, वह कोई और नहीं है किन्तु वह है जो पूरे अनन्त काल से पुत्र और पिता के मध्य संगति का बन्धन है।
इस प्रकार, ख्रीष्ट के साथ एक होना देहधारी पुत्र के आत्मा के वास द्वारा निर्मित मिलन में सहभागी होना है जो कि स्वयं पिता “में” है जैसे कि पिता उस “में” है। ख्रीष्ट के साथ मिलन का अर्थ त्रिएकता के तीनों व्यक्तियों के साथ संगति से कम नहीं है। ऐसा नहीं है कि विश्वासियों में ईश्वरीय स्वभाव का संचार होता है। ख्रीष्ट के साथ हमारा मिलन आत्मिक और व्यक्तिगत है—जो कि पिता के पुत्र के आत्मा के वास से प्रभावित है।
ध्यान दें, फिर, यीशु इस मिलन की सुन्दरता और अन्तरन्गता को व्यक्त करने के लिए उत्कृष्ट चित्र का चित्रण करता है: जिसमें पिता और पुत्र का विश्वासी के हृदय में अपना घर बनाना सम्मिलित है (पद 23)।
महत्वपूर्ण रूप से, यीशु विश्वासियों से दर्जन भर कार्य कराने की माँग नहीं रखता—परन्तु केवल विश्वास करने और प्रेम करने की रखता है। क्योंकि यह वास्तविकता की अनुभूति (उस दिन तुम जानोगे; पद 20) और ख्रीष्ट के साथ मिलन के माध्यम से त्रिएक परमेश्वर के साथ इस मिलन का परिमाण है जो कि विश्वासी के सोच, भावना, इच्छा, प्रेम, और, परिणामस्वरूप, कार्यों को परिवर्तित कर देती है। इस मिलन में, पिता अधिक फलने के लिए दाखलता की डाली को काट डालता है (15:2)। इसी मिलन में, पिता उन सब को रखता है जो पिता ने उसे दिया है (17:12)।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जॉन डन ने यह प्रार्थना की:
अपने लिए मेरे हृदय के द्वार को चोटिल करो, त्रिएक परमेश्वर; क्योंकि अभी तक तूने खटखटाया, मुझे श्वांस दी, प्रकाशमान किया और सुधार की खोज की है; ताकि मैं उठूँ और खड़ा हो जाऊँ, मुझे पराजित कर, और अपने बल का प्रयोग मुझे तोड़ने, प्रहार करने, मुझे जलाने, और मुझे नया बनाने के लिए कर। मैं, एक छीने हुए नगर के समान, जो कि किसी और का है, प्रयास करता हूँ तुम्हें भीतर लाने का, परन्तु हाय, ऐसा नहीं हो पाता; कारण है, मुझमें तुम्हारा प्रतिनिधि, मुझे बचना चाहिए, परन्तु वह दास हो गया है और दुर्बल और असत्य साबित हुआ है। फिर भी मैं तुझसे प्रेम करता है, और प्रेम पाने का इच्छुक हूँ, परन्तु मैं तेरे शत्रु के साथ बन्धा हुआ हूँ; मुझे अलग कर, पुनः उस गाँठ को खोल या तोड़ दे, मुझे अपने पास ले जा, मुझे अपनी कैद में ले ले, क्योंकि मैं तब तक मुक्त नहीं होऊंगा, जब तक तू मुझे मोहित नहीं करे, और न ही पवित्र हो पाऊँगा, यदि तू मुझे रोमांचित न करे। (पवित्र गाथा Holy Sonnets XIV)