धन्य हैं वे जिनकी निन्दा की जाती है - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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धन्य हैं वे जिनकी निन्दा की जाती है

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दसवां अध्याय है: धन्यवाणियाँ

प्रोफेसर का चेहरा गुस्से से विकृत हो गया था जब वह मुझ पर चिल्लाया और मुठ्ठी भर फटा कागज़ मेरे मुंह से सामने हिलाया। उसने मुझ पर विश्वविद्यालय के छात्रों को परेशान करने और उन पर आक्रमण करने का आरोप लगाया। मैंने कौन सा बुरा कार्य किया था? मैंने तो उचित रूप से एक स्वीकृति चिह्न को सूचना पट्ट पर लगाया था परिसर में लोगों के लिए एक कार्यक्रम को विज्ञापित करने के लिए जिसे मेरी विद्यार्थी सेवकाई प्रायोजित कर रही थी। मैं इस प्रकार के कठोर आरोपों का प्राप्तकर्ता कभी नहीं रहा था।

पहले तो मैं छिप जाना चाहता था। तब मुझे स्मरण आया कि इस व्यक्ति का प्रतिविरोध अन्तत: मेरे साथ नहीं था, परन्तु ख्रीष्ट के साथ था। जब मैं वहाँ से चला गया, मैंने एक सहज आनन्द अनुभव किया क्योंकि एक बहुत ही छोटे रीति से मैं उसके दु:ख में आनन्दित हो सका था जिसने मेरे लिए दु:ख उठाया था। यीशु की अन्तिम धन्य वाणी हमें बताती है कि यद्यपि निन्दित होना विश्वासयोग्य जीवन का कठिन हिस्सा है, यह महान आनन्द का कारण भी है।

इस अन्तिम धन्य वाणी में केन्द्र बिन्दु में सूक्ष्म परिवर्तन होता है। पहले के सभी धन्य वाणी कुछ विशेष लक्षणों वाले लोगों को सम्बोधित कर रही थीं: धन्य हैं वे जो मन के दीन हैं, नम्र, या मेल कराने वाले। परन्तु यह अन्तिम धन्य वाणी द्वितीय व्यक्ति में परिवर्तित हो जाती है: “धन्य हो तुम”। यीशु अब अपने अनुयायियों को बता रहा है कि हमारे साथ यही होने वाला है। हमारी निन्दा की जाएगी। हमें सताया जाएगा। हमारे विरुद्ध सब प्रकार की बुरी झूठी बातें की जाएंगी। हम पर मौखिक रूप से प्रहार किया जाएगा, हमें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाएगा, और ख्रीष्ट के कारण हमारा तिरस्कार किया जाएगा। और जब ऐसा होता है, तो हम धन्य हैं।

निन्दित किए जाना, सताया जाना, या झूठा आरोप लगना सम्भवतः आशिषों का कोई मार्ग न लगे, परन्तु जब हमें सताया जाता है तो आनन्दित होने के कम से कम तीन कारण हैं। पहला, हमें आनन्दित होना चाहिए क्योंकि हमें ख्रीष्ट के दु:खों में सहभागी होने का सौभाग्य मिला है। “यदि संसार तुमसे घृणा करता है तो तुम जानते हो कि उसने तुमसे पहले मुझ से घृणा की है। यदि तुम संसार के होते तो संसार अपनों से प्रेम करता, परन्तु इसलिए कि तुम संसार के नहीं हो क्योंकि मैंने तुम्हें संसार में से चुनकर निकाल लिया है−इसलिए संसार तुमसे घृणा करता है” (यूहन्ना 15:18-19)। यदि ख्रीष्ट के कारण हमारी निन्दा की जाती है, तो आनन्दित हों क्योंकि यह एक चिह्न है कि हम ख्रीष्ट में हैं।

दूसरा, आनन्दित हों क्योंकि विश्वासयोग्यता के साथ सताव को सहना हमें कारण देता है विश्वास के उन नायकों के साथ गिने जाने का जो हमसे पहले चले गए हैं। यीशु अपने चेलों को स्मरण दिलाता है कि वे सताव को सहने वाले पहले नहीं हैं: “उन्होंने तो उन नबियों को भी जो तुमसे पहले हुए इसी प्रकार सताया था” (मत्ती 5:12)। न केवल हम उन लोगों के समान सहभागी होते हैं जो ख्रीष्ट में हैं, परन्तु हम एक प्रकार से सन्तों की पूरी मण्डली के साथ गिने जाते हैं जिन्होंने ख्रीष्ट के लिए सताव को सहन किया है। जब परमेश्वर के सत्य की घोषणा करने के लिए हमारी निन्दा की जाती है, हमारी गिनती उस श्रेष्ठ समूह में होती है। हमारा दृष्टिकोण परिवर्तित हो जाता है जब हम उनके जीवनों को देखते हैं जिन्होंने विश्वासयोग्यता से सहन किया। हम “पल भर के हल्के क्लेश” को “चिरस्थायी महिमा जो अतुल्य है” के लिए त्याग सकते हैं (2 कुरिन्थियों 4:17)। हम आनन्दित हो सकते हैं क्योंकि मनुष्य की निन्दा ख्रीष्ट की प्रशंसा बन जाती है, अनादर महिमा बन जाता है, उलाहना आशीष बन जाता है।

तीसरा, हम आनन्दित हो सकते हैं क्योंकि निन्दा किए जाने में, हम से एक महान प्रतिफल की प्रतिज्ञा की जाती है। उस प्रतिफल के विवरण पूर्ण रूप से प्रकट नहीं है, परन्तु हम सुनिश्चित हो सकते हैं कि परमेश्वर अच्छे वरदान देना जानता है (मत्ती 7:11)। जबकि हम इस जीवन में परमेश्वर के अनुग्रह की कुछ आशिषों का अनुभव कर सकते हैं, हमें अन्तत: अपने प्रतिफल के लिए स्वर्ग की ओर देखने को कहा गया है। और हमें भरोसा करना है कि परमेश्वर के प्रतिफल हमारे यहाँ सहने वाले सताव से अधिक श्रेष्ठ होंगे।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
डॉनी फ्रेड्रिक्सन
डॉनी फ्रेड्रिक्सन
रेव. डॉनी फ्रेड्रिक्सन साउथलेक, टेक्सस में लेकसाइड प्रेस्बिटेरियन चर्च के वरिष्ठ पास्टर हैं।