मसीही चरित्र - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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मसीही चरित्र

परिचय
मसीही जीवन और सेवा के लिए मसीही चरित्र, विश्वासी जीवन में एक महत्वपूर्ण पहलू है। ख्रीष्ट ने अपने लोगों को छुड़ाया है जिससे कि वह उन्हें अपने स्वरूप में ढ़ाले। छुटकारे के कार्य का अन्तिम लक्ष्य परमेश्वर की महिमा है। अपने लोगों को ख्रीष्ट के स्वरूप में ढ़ालने के द्वारा परमेश्वर अपनी महिमा कलीसिया में दिखाता है। वचन के अनुसार, मसीही चरित्र में सत्य, भक्ति पूर्ण जीवन, धार्मिकता, प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, दयालुता, विश्वास में दृढ़, नम्रता, दीनता, संयम, … धन्यवाद, क्षमा, सन्तुष्टि, और एकता में बढ़ने की इच्छा निहित है। परमेश्वर विश्वासियों के जीवन में मसीही चरित्र का निर्माण ख्रीष्ट में विश्वास, पवित्र आत्मा की समार्थ्य, परमेश्वर के वचन और विधियों के द्वारा करता है। दुख उठाना भी मसीही चरित्र के निर्मण की ओर बढ़ने में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया का भाग है।
समझाना/ स्पष्टीकरण
परमेश्वर ने मनुष्यों को अपने ही स्वरूप, ज्ञान में, धार्मिकता में और पवित्रता में सृजा (उत्पत्ति 1:26; इफिसियों 4:24; कुलुस्सियों 3:10)। सृष्टि के समय, परमेश्वर ने मनुष्य को सृष्टि के ऊपर प्रभुता करने का कार्य दिया (भजन 8:5-8)। धर्मी जीवन जीने के द्वारा और परमेश्वर की महिमा के लिए सृष्टि पर प्रभुता करने में, मावन जाति को सम्पूर्ण संसार में परमेश्वर के स्वरूप को प्रतिबिम्बित करना था। जब आदम ने पाप किया तो परमेश्वर का स्वरूप पाप और विद्रोह के कारण धुधंला हो गया। आदम ने स्वयं के लिए और अपने शारीरिक रीति से जन्मे वंशजो के लिए मूल धार्मिकता को खो दिया। वह संसार में सारे पाप और कष्ट को लाया। प्रत्येक जिसने उत्पन्न होने के द्वारा आदम के वंशज है भ्रष्ट पतित स्वरूप को धारण किया है और मृत्यु तथा श्राप के अधीन है (उत्पत्ति 5:3; रोमियों 5:12-21; इफिसियों 2:1-4)।
प्रतिज्ञात छुटकारा देने वाले यीशु ख्रीष्ट के द्वारा पमरेश्वर मनुष्य में वह प्रतिस्थापित करता है जो आदम में खो गया था (उत्पत्ति 3:15)। क्योंकि यीशु परमेश्वर का स्वरूप है, परमेश्वर अपने लोगों में अपने स्वरूप के नवीनीकरण का प्रभाव ख्रीष्ट के बचाने वाले कार्य के द्वारा करता है (इफिसियों 4:24; कुल्लुसियों 3:10)। यह पुराने नियम और नए नियम दोनों ही विश्वासियों के लिए सत्य है। यीशु ही अन्तिम आदम है जिसने क्रूस पर अपने लोगों के पाप और विद्रोह को ले लिया जिससे कि वह दोषबोध और पाप की समार्थ्य को हर ले और अपने स्वरूप को उनके भीतर नवीकृत करे। ख्रीष्ट के साथ मिलन के द्वारा, विश्वासी अपने जीवन में उसके चरित्र को प्रकट करते हैं। यीशु फल-प्रदत्त दाखलता है जिसमें विश्वासी फल-प्रदत्त डालियाँ हैं (यूहन्ना 15:1-8)। अन्तिम आदम के रूप में यीशु फलदायक आत्मिक सन्तानों को जन्म देते हैं जो परमेश्वर की महिमा के लिए पृथ्वी को भर देंगे। अन्तत: यीशु अपने लोगों में पुनरुत्थान के अन्तिम दिन परमेश्वर के स्वरूप को सिद्ध रीति से नवीकृत कर देगा। छुटकारा पतन को पलट देता है।
मसीही चरित्र का मुख्य केन्द्र है ख्रीष्ट के स्वरूप में बदलना (रोमियों 8:29)। मसीही चरित्र में विश्वासी के सम्पूर्ण जीवन का नवीनीकरण होता है। मसीही चरित्र में विश्वासी के सम्पूर्ण जीवन का नवीनीकरण सम्मिलित होता है। ख्रीष्ट की समानता मसीही जीवन के शारीरिक, आत्मिक, मानसिक, भावनात्मक और स्वभाव सम्बन्धि क्षेत्रों पर प्रभाव डालता है। वचन मसीही चरित्र के विभिन्न पक्षों को प्रदर्शित करता है। पुराने नियम में नीतिवचन मसीही चरित्र के विभिन्न क्षेत्रों की अभिव्यक्ति पर प्रकाश डालता है। नये नियम में आत्मा के फल, धन्य वाणियाँ, और प्रभु की प्रार्थना से शिक्षा मसीही चरित्र के महत्वपूर्ण तत्वों को प्रकट करते हैं।
मसीही जीवन ख्रीष्ट का अनुकरण करते हुए जीया जात है। ख्रीष्ट के साथ मिलन (union with Christ) के द्वारा, विश्वासी स्वयं ख्रीष्ट के चरित्र के फल को प्राप्त करते हैं। यह यीशु द्वारा ऊपरी कक्ष के उपदेश से “पवित्र आत्मा के फल” (गलातियों 5:22) में प्रमाणित किया गया है। यीशु ने अपने शिष्यों को शिक्षा दी कि वह उसके प्रेम (यूहन्ना 15:9-10) उसके आनन्द (यूहन्ना 15:11; 17:13) और उसकी शान्ति (यूहन्ना 14:27) में सहभागी होंगे। पवित्र आत्मा के फल मसीही चरित्र के प्रमुख गुणों का वर्णन है। यीशु ने पवित्र आत्मा को सहायक के रूप में भेजने की प्रतिज्ञा की जिससे कि वह इस अनुग्रह को उसके लोगों में डाल सके। ख्रीष्ट की आत्मा के रूप में पवित्र आत्मा वह अभिकर्ता है जो ख्रीष्ट का प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, दयालुता, भाईचारे का प्रेम, विश्वस्तता, और संयम विश्वासियों के जीवनों में उत्पन्न करता है।
पहाड़ी उपदेश में यीशु की धन्य वाणियों पर शिक्षा आगे और भी मसीही चरित्र को प्रकट करती है। जो लोग भी ख्रीष्ट के द्वारा छुड़ाए गए हैं वह मन के दीन हैं, शोक करते हैं, नम्र हैं, धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, दयावन्त हैं, मन के शुद्ध हैं, मेल कराते हैं, और धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं। पहले की चार धन्य वाणियाँ परमेश्वर के साथ सम्बन्ध में मसीहियों के चरित्र के विषय में बात कर रही हैं। अन्तिम के चार विश्वासी का अन्य विश्वासियों से और विश्वासी का अविश्वासी संसार से सम्बन्ध के विषय में बात करता है। विश्वासी अपने पाप और मृत्यु पर दुखी होते हैं, दूसरों पर दया दिखाते हैं, उनके भीतर निष्ठापूर्ण जीवन जीने की इच्छा होती है, नम्रता को धारण करते हैं, दयालुता में होकर कार्य करते हैं, दूसरों के साथ अपने सम्बन्धों में शान्ति चाहते हैं, और ख्रीष्ट की ओर से दुख उठाने के लिए तैयार रहते हैं। यह चरित्र पृथ्वी पर ख्रीष्ट की सेवा के समय के लिए भी सत्य है।

जबकि विश्वासी ख्रीष्ट की करूणा के विषय वस्तु बन गए हैं इसलिए उनको अन्य स्वरूप धारकों के प्रति करुणा दिखाने वाला चिह्नित होना चाहिए। करुणा यीशु को क्रूस तक ले गई जहाँ उसने अपने लोगों के पापों के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया। क्योंकि परमेश्वर ने ख्रीष्ट में अपने लोगों के पापों को क्षमा कर दिया, मसीहियों को ऐसे लोगो होने के लिए बुलाया गया है जो दूसरों के पापों को क्षमा करते हैं। यीशु की करुणा के परिणामस्वरूप उसने उन लोगों की सेवा की जो स्वभाव से ही परमेश्वर के शत्रु थे। जैसा की प्रेरित पौलुस ने समझाया था, “क्योंकि ख्रीष्ट ने भी अपने आपको प्रसन्न नहीं किया, परन्तु जैसा की लिखा है, “तेरे निन्दकों की निन्दा मुझ को सहनी पड़ी” (रोमियों 15:3)। इसलिए, मसीहियों को अपने सताने वालों को आशिष देना है और बुराई के बदले में बुराई नहीं करना है (रोमियों 12:14. 17)।
जबकि सारे विश्वासियों को परमेश्वर ने मसीही चरित्र में बढ़ने के लिए बुलाया है, यह कलीसिया की अगुवों के लिए ख्रीष्ट की एक महत्वपूर्ण माँग है। प्रेरित पौलुस कई सारे मसीही चरित्रों को बताता है जो उन पुरूषों के लिए है जो कि स्थानीय कलीसिया में इस पद को धारण करने के योग्य हैं। जबकि अध्यक्ष और सेवक (डीकन) पद पर कार्य करने वालों के लिए यह योग्यता विशेष उपहार है, परन्तु इन योग्यताओं का उत्तम भाग यह है कि यह माँगें व्यक्तिगत पवित्रता को दिखाते हैं।

उद्धरण
जब बाइबल धैर्य के विषय में बात करती है, विशेष रीति से आत्मा के फलों में से और प्रेम के गुण के रूप में, तो वह इसे ऐसे सद्गुण के विषय में बताती है जो भविष्य में कुछ लाभ की प्रतीक्षा करने की क्षमता से कहीं अधिक है। इसमें आत्मा के विश्राम या शान्ति से कहीं अधिक बातें सम्मिलित हैं जो परमेश्वर के सिद्ध समय पर भरोसा करता है। जिस धीरज की बात यहाँ हो रही है वह आपसी व्यक्तिगत सम्बन्धों पर अधिक ध्यान देता है। यह लम्बे समय से दुख उठाने के मध्य धीरज और व्यक्तिगत अहित के मध्य में धीरज रखना है। यह सारे धीरजों में से सबसे कठिन है।
आर.सी.स्प्रोल

विश्वासियों को कभी भी एक होने के लिए की आज्ञा नहीं दी गई है; हम पहले से ही एक हैं और हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम वैसे व्यवहार करें। इफिसियों 4:16 इस प्रकार कहता है, ‘जिससे सम्पूर्ण देह, प्रत्येक जोड़ में एक साथ बन्धकर और सुगठित होकर, प्रत्येक अंग के ठीक ठीक कार्य करने के द्वारा बढ़ती जाती है, और इस प्रकार प्रेम में स्वयं उसकी उन्नति होती है’।…इसलिए यदि हम ख्रीष्ट के विषय में, जो कि देह का सिर, थोड़ी सी भी चिन्ता करते हैं और अन्य मसीहियों की भी – अर्थात् शेष देह की – तो हम अपनी आरामदेह स्थिति को छोड़कर दयालुतापूर्वक आवश्यकताओं को पूरा करेंगे।
जोनी एरेकसन टाडा

बाइबल आधारित धीरज की समझ मसीही सत्य की जड़ में पूर्णतः एक मसीही गुण के रूप में निहित है। धीरज इस बात के दृढ़ कथन से आरम्भ होता है कि परमेश्वर सम्प्रभु है और मानव इतिहास को नियन्त्रित करता है, मानव जीवनों में कार्य कर रहा है। अनन्तकाल के दृष्टिकोण से, समय एक सम्पूर्ण नया महत्व को धारण करता है। मसीही इस बात को समझते हैं कि पूर्ण सन्तुष्टि इस जीवन में प्राप्त नहीं होगी, परन्तु आने वाले युग में वह सभी वस्तुओं की अन्तिम परिपूर्णता की ओर देखता है। साथ ही साथ, हम जानते हैं कि हमारे पवित्रिकरण की प्रक्रिया इस जीवन में पूर्ण नहीं होगी, इसलिए मसीही एक दूसरे को अनुग्रह के द्वारा बचाए गए पापियों के रूप में देखेंगे, जिनमें पवित्र आत्मा कार्य कर रहा है मसीही के समान बनने के लिए बुलाहट दे रहा है।

अल्बर्ट मोहलर

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

लिग्निएर संपादकीय
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हम डॉ. आर. सी. स्प्रोल का शिक्षण संघ हैं। हम इसलिए अस्तित्व में हैं ताकि हम जितने अधिक लोगों तक सम्भव हो परमेश्वर की पवित्रता को उसकी सम्पूर्णता में घोषित करें, सिखाएं और रक्षा करें। हमारा कार्य, उत्साह, और उद्देश्य है कि हम लोगों को परमेश्वर के ज्ञान और उसकी पवित्रता में बढ़ने में सहायता करें।