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मसीहियों को भी सुसमाचार की आवश्यकता है

लगभग बीस वर्ष पहले, मैंने जेरी ब्रिजेस (Jerry Bridges) के साथ आयोवा (Iowa) में एक सभा में उपदेश दिया था। एक छोटे समूह सत्र (ब्रेकआउट सत्र) में मैं पीछे बैठा और उन्हें यह समझाते हुए सुना कि मसीहियों को भी सुसमाचार की आवश्यकता क्यों है। उन्होंने माना कि वह हाल ही में इसे समझे थे। अपनी पुस्तक “अनुग्रह के अनुशासन” (Disciplines of Grace) के बाद के संस्करणों में उन्होंने इस अन्तर्दृष्टि को जोड़ा। मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैंने तब से इसके विषय में बार-बार सोचा है।

एक स्तर पर यह कथन स्पष्ट लगता है। निःसन्देह मसीहियों को हर दिन सुसमाचार की आवश्यकता है। और कैसे न हो? जब पौलुस रोम की कलीसिया को लिखता है, तो वह यह कहकर आरम्भ करता है, “इसलिए मैं तुम्हें भी जो रोम में हो, सुसमाचार-प्रचार करने को उत्सुक हूँ” (रोमियों 1:15)। यह पत्र रोम में मसीही विश्वासियों को सम्बोधित है, जिन्हें पौलुस के अनुसार फिर से सुसमाचार सुनने की आवश्यकता है। उसने पत्र को इन शब्दों के साथ समाप्त किया: “जो तुमको मेरे सुसमाचार एवं यीशु ख्रीष्ट के सन्देशानुसार स्थिर कर सकता है” (16:25)। सुसमाचार मसीहियों को बल देता है। इसी रीति से वह कुरिन्थुस की अव्यवस्थित कलीसिया को लिखता है: “अब मैं तुम्हें वही सुसमाचार सुनाता हूँ जिसका मैंने तुम्हारे मध्य प्रचार किया” (1 कुरिन्थियों 15:1)। कुरिन्थुस के मसीहियों को सुसमाचार का स्मरण दिलाए जाने की आवश्यकता थी। इसी रीति से पौलुस दृढ़तापूर्वक कहता है कि गलातिया के लोग “एक अलग सुसमाचार की ओर मुड़ने” (जो कि सुसमाचार नहीं था) के संकट में थे और ऐसा करके वे सुसमाचार को बिगाड़ रहे थे (गलातियों 1:6-7)। स्पष्ट है कि गलातिया के लोगों को सच्चे सुसमाचार की विषय वस्तु का स्मरण दिलाना मात्र पर्याप्त नहीं था। उन्होंने सक्रिय रूप से सुसमाचार को किसी और वस्तु में बदलना आरम्भ कर दिया था।

मसीहियों को सुसमाचार की आवश्यकता होने के पीछे कई कारण है। हम यहाँ उनमें से चार को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करेंगे।

सबसे पहले, मसीहियों को दोष लगाने वाले विवेक को ठीक करने के लिए सुसमाचार की आवश्यकता है। कभी-कभी बुरा विवेक अत्यधिक संवेदनशील स्वाभाव का परिणाम हो सकता है। छोटे से छोटा पाप भी कुछ लोगों को अन्धकार और निराशा में धकेल सकता है। प्रेरित यूहन्ना ने अपने पहले पत्र में इस विषय को सम्बोधित किया है: “इसी से हम जानेंगे कि हम सत्य के हैं और हम उसके सम्मुख उन बातों में अपने हृदय को आश्वस्त कर सकेंगे, जिन बातों में हमारा हृदय हमें दोषी ठहराता है; क्योंकि परमेश्वर हमारे हृदय की अपेक्षा कहीं महान है और वह सब कुछ जानता है” (1 यूहन्ना 3:19–20)। हमारे विवेक के लिए हमें आश्वस्त होने से रोकना बहुत सम्भव है; जब सुसमाचार हमें क्षमा कर देता है तो हमारा हृदय हमें दोषी ठहराता है। यूहन्ना इसका उपचार प्रदान करता है: सुसमाचार की औषधि का उपयोग करें, जो हमारे हृदयों से भी बड़ा है। दोष देने वाले विवेक को (हमारे आत्मिक नए जन्म से पहले या बाद में) ख्रीष्ट की ओर देखना चाहिए और उससे क्षमा प्राप्त करनी चाहिए। जोसफ हार्ट (Joseph Hart) के शब्दों में, “विवेक तुम्हें रोकने न पाए” (“आओ तुम पापियो, निर्धन और अभावग्रस्त” (“Come Ye Sinners, Poor and Needy”) नामक भजन से)।

दूसरा, व्यवस्थावाद के सदा रहने वाले संकट को रोकने के लिए मसीहियों को सुसमाचार की आवश्यकता है। संक्षेप में, व्यवस्थावाद तीन रीतियों से उत्पन्न होता है: जब हम विवेक के निमित्त उन नियमों/ विधियों का पालन करते हैं जो पवित्रशास्त्र में स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं हैं, जब हम विवेक के निमित्त उन नियमों/ विधियों का पालन करते हैं जो पुरानी वाचा में हैं परन्तु नई में नहीं हैं और जब परमेश्वर की व्यवस्था का पालन धर्मीकरण के साधन के रूप में देखा जाता है। उदाहरण के लिए, जब अयहूदी गलातिया के मसीहियों को इस दावे के साथ छला जा रहा था कि ख़तना आवश्यक है, तो पौलुस ने तुरन्त कहा:

अरे निर्बुद्धि गलातियों, किसने तुम्हें मोह लिया ? तुम्हारी आंखों के सामने यीशु मसीह तो क्रूस पर चढ़ाया हुआ प्रदर्शित किया गया था। मैं तुम से केवल इतना ही जानना चाहता हूं कि तुम ने आत्मा को क्या व्यवस्था के कामों से पाया अथवा सुसमाचार को विश्वास सहित सुनने से ? क्या तुम इतने निर्बुद्धि हो कि आत्मा से आरंभ करके अब देह की विधि द्वारा पूर्णता तक पहुंचोगे? क्या तुमने इतने कष्ट व्यर्थ ही उठाए ? क्या वे सचमुच व्यर्थ थे?” (गलातियों 3:1-4)

पवित्रता के मार्ग के रूप में परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करना आवश्यक है। परन्तु यदि वह आज्ञाकारिता हमारे उद्धार के लिए कृतज्ञता के अतिरिक्त किसी और बात से प्रेरित है, तो यह व्यवस्थावाद की भावना है। ऐसी भावना कहती है कि हमारा उद्धार यीशु ख्रीष्ट के साथ-साथ हमारी पवित्रता के प्रमाण के द्वारा होता है।

तीसरा, मसीहियों को घमण्ड की समस्या को नष्ट करने के लिए भी सुसमाचार की आवश्यकता है। ऑगस्टीन ने बताया कि घमण्ड ही पाप का मूलतत्त्व है। जे.आई. पैकर ने लिखा:

नम्रता निरन्तर पश्चाताप का परिणाम है, क्योंकि कोई व्यक्ति घमण्ड के विरुद्ध निर्णय लेता है, इससे मुँह मोड़ता है और चौकसी रखने और प्रार्थना करने के द्वारा इसके सभी रूपों से दूर रहने का प्रयास करता है। और क्योंकि ह्रदय में घमण्ड के विरुद्ध युद्ध आजीवन चलता है, इसलिए नम्रता को परमेश्वर और दूसरों की सेवा में जीने का एक निरन्तर और अधिक गहराई से स्थापित होने वाला दृष्टिकोण बनना चाहिए—एक ऐसा दृष्टिकोण, जिसे अनुभवी मसीहियों को अधिकाधिक प्रदर्शित करना चाहिए। वास्तविक आत्मिक वृद्धि एक प्रकार से हमेशा नीचे की ओर अधिक गहरी नम्रता में वृद्धि होती है, जो स्वस्थ आत्मिक लोगों में उम्र बढ़ने के साथ और अधिक दिखने लगेगी।

सुसमाचार इस बात की स्मरण दिलाता है कि हमें उद्धार की आवश्यकता क्यों है—हमारे भूत, वर्तमान और भविष्य के पाप। मसीहियों को यह स्मरण दिलाना कि वे, जैसा कि मार्टिन लूथर ने कहा था, सिमुल जस्टस एट पेकेट्टर (धर्मी ठहरे हुए और अभी भी पापी) हैं, प्रतिदिन सुसमाचार को और अधिक मधुर बना देगा।

चौथा, मसीहियों को आनन्द-भरा जीवन जीने के लिए सुसमाचार की आवश्यकता है। पौलुस ने फिलिप्पियों को आज्ञा दी कि “प्रभु में सदा आनन्दित रहो, मैं फिर कहता हूँ, आनन्दित रहो” (फिलिप्पियों 4:4)। आनन्द आत्मा का फल है (गलातियों 5:22) और फिलिप्पियों में यह एक केन्द्रीय विचार प्रतीत होता है। कारागृह से लिखते हुए प्रेरित पौलुस ने परिस्थितियों को अपनी आत्मा की दिशा निर्धारित करने की अनुमति देने से मना कर दिया। स्वर्गदूत ने चरवाहों को यीशु के देहधारण का अर्थ बताया: “डरो मत, क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ जो सब लोगों के लिये होगा” (लूका 2:10)। सुसमाचार दैनिक जीवन में आनन्द देता है जैसा कोई और वस्तु नहीं दे सकती।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डेरेक डब्ल्यू.एच. टॉमस
डेरेक डब्ल्यू.एच. टॉमस
डॉ. डेरेक डब्ल्यूएच थॉमस लिगोनियर मिनिस्ट्रीज के टीचिंग फेलो और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में सिस्टेमेटिक एंड पास्टोरल थियोलॉजी के चांसलर प्रोफेसर हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें स्ट्रेंथ फॉर द वेरी और लेट अस वर्शिप गॉड शामिल हैं ।