सत्य को परखना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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सत्य को परखना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पहला अध्याय है: सत्य

इन दिनों में सत्य को पाना कठिन है। यदि स्थिति नहीं बदलती हैं, तो हमारे पोते-पोतियों के लिए यह और भी कठिन होगा। अब भी, बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि सत्य को कहाँ खोजा जाए, और आगे बढ़ते हुए, वे यह भी नहीं जानते कि इसे कैसे खोजा जाए, यह विश्वास करते हुए कि यह उनके प्रिय प्रसिद्ध लोगों के ट्वीट्स में, गूगल में खोज करने से या विकिपीडिया के पृष्ठ पर पाया जा सकता है। तथापि, इस पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों के लिए वास्तविक समस्या यह नहीं है कि वे सत्य को कहाँ और कैसे खोजते हैं परन्तु यह है कि वे सत्य को पहचानने में विफल हैं। इस कारण से, हमें अगली पीढ़ी को सत्य को परखने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए न केवल त्रुटि से परन्तु अर्धसत्य से, विकृत सत्य से और आंशिक रूप से मिटाए गए सत्य से भी।

सम्पूर्ण इतिहास में, कुछ लोगों ने पवित्रशास्त्र के सत्य को कलंकित करने का प्रयास करने के द्वारा सत्य को नकारने का प्रयत्न किया है। कुछ लोग अधिक चालाक रहे हैं और इस प्रकार लोगों को परमेश्वर के वचन से दूर ले जाने में अधिक सफल रहे हैं, लोगों को बाइबलीय मसीहियत के कथित रूप से अज्ञात विचारों की व्याख्या करने के नए उपायों से प्रभावित करने के लिए विद्वानों के जैसे शब्दावली का उपयोग करते हुए। कई लोगों ने इसे धर्मनिरपेक्ष संस्कृति की मानसिकता और नैतिकता के साथ सामंजस्य बनाकर मसीहियत को  “बचाने”  के प्रयास के भाग के रूप में किया है।

दुख की बात है, जो कार्य मुख्य रूप से विश्वास से बाहर के लोगों का हुआ करता था, अब वह शीघ्रता से कई कलीसिया में सामान्य बन रहा है। प्राचीन समय से विश्वास के शत्रुओं के समान, जो लोग कलीसिया के भीतर से इस प्रकार के प्रयासों में लगे हैं, वे मसीहियत के अपने संस्करण को संस्कृति के लिए अधिक रुचिकर बनाने के लिए बाइबल के सत्य की पुनर्व्याख्या करने का प्रयास करते हैं। वे कदाचित ही इतने मूर्ख होते हैं कि मसीहियत से कुछ सांस्कृतिक रूप से अवांछित ईश्वरविज्ञानीय वास्तविकताओं को हटा देते हैं। इसके विपरीत, वे इस प्रकार की बातों का उल्लेख करने से बचते हैं ताकि संस्कृति को ठेस न पहुँचे, इस आशा के साथ कि लोग उन्हें सुनें। यह एक मूर्खतापूर्ण कार्य है। मसीहियत को संस्कृति के साथ जोड़ने का कोई भी प्रयास एक प्रभावहीन मसीहियत को उत्पन्न करेगा जिसमें सत्य की घोषणा करने के लिए कोई संस्कृति-विरोधी वाणी नहीं होगी।

सच्ची कलीसिया को थोड़ा सा भी समझौता नहीं करना चाहिए। हमें अपनी संस्कृति के प्रभुओं को परमेश्वर के सत्य को रद्द करने की अनुमति देने से अस्वीकार करना चाहिए, जो वे वास्तव में नहीं कर सकते हैं, और हमें कलीसिया में कुछ लोगों को सत्य को मिटाने का प्रयास करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, यहाँ तक कि आंशिक रूप से भी। केवल वे जो सत्य से घृणा करते हैं वे सत्य से बचना चाहते हैं, सत्य की पुन: व्याख्या करते हैं, या संस्कृति को समायोजित करने के लिए सत्य बोलने में असफल होते हैं। इसके अतिरिक्त, जॉर्ज ऑरवेल से एक विषय का उपयोग करते हुए, जब हम सत्य को मिटा देते हैं, तो आने वाली पीढ़ियां न केवल सत्य को भूल जाती हैं, किन्तु वे सत्य के विलोपन को भी भूल जाती हैं, और झूठ स्पष्ट सत्य बन जाता है। यह केवल तभी होता है जब हम इस सत्य को जानते हैं कि हम स्वतंत्र किए गए हैं— सत्य से और उससे जो सत्य है प्रेम करने के लिए स्वतंत्र, और प्रेम में सत्य बोलने के लिए स्वतंत्र।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
बर्क पार्सन्स
बर्क पार्सन्स
डॉ. बर्क पार्सन्स टेबलटॉक पत्रिका के सम्पादक हैं और सैनफोर्ड फ्ला. में सेंट ऐंड्रूज़ चैपल के वरिष्ठ पास्टर के रूप में सेवा करते हैं। वे अश्योर्ड बाई गॉड : लिविंग इन द फुलनेस ऑफ गॉड्स ग्रेस के सम्पादक हैं। वे ट्विटर पर हैं @BurkParsons.