शिष्य पवित्रता का पीछा करते हैं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्य पवित्रता का पीछा करते हैं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौदहवां अध्याय है: शिष्यता

केवल विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने के सिद्धांत के सामान्य मिथ्याबोधों में से एक यह है कि यह एक कल्पना है जिसका किसी के जीवन में कोई व्यावहारिक परिणाम नहीं है। यह एक विवादात्मक तर्क रहा है जो रोमन कैथोलिक धर्ममण्डकों द्वारा प्रोटेस्टेन्ट सोला फीडे  के दृष्टिकोण के विरुद्ध उपयोग किया जाता है—उस बाइबलीय सत्य के विरुद्ध कि हम केवल अनुग्रह के द्वारा केवल ख्रीष्ट में केवल विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाते हैं। इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के व्यवस्थामुक्तिवादी (ऐंटीनोमियन) लोगों ने तर्क किया है कि क्योंकि विश्वासी अनुग्रह के अधीन हैं और व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, उन्हें अनुमति है कि एक नैतिक रूप से “शिथिल” जीवन जीए।

जहाँ से भी ये ख्रीष्टिय जीवन के व्यंग्य चित्र आते हों, पौलुस इनमें से किसी का स्रोत नहीं है। वास्तव में, वह पूर्ण रूप से उनके विरोध में है। रोमियों की पत्री में, प्रेरित केवल विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने के सुसमाचार की गहराइयों को रेखांकित करता है, जिस पर ख्रीष्ट में नया जीवन निहित और प्रकट होता है। धर्मी ठहराया जाना पवित्रीकरण का आधार है। पहला वाला बाद वाले की नींव है, और बाद वाला पहले वाले का आत्मिक परिणाम है। जैसे चार्ल्स हॉड्ज ने अपने 1886 में रोमियों की टीका में लिखा है: “किसी के लिए भी अपनी मृत्यु के लाभों को साझा करना असम्भव है (अर्थात, यीशु ख्रीष्ट) बिना उसके जीवन के अनुरूप हुए।”

यहाँ वह स्थान है जहाँ पवित्रता आती है। पवित्रता यीशु ख्रीष्ट के शिष्यों का अनिवार्य चिह्न है। एक अपवित्र ख्रीष्टिय जीवन समान्यतः एक विरोधालंकार, शब्दों में एक विरोधाभास, केवल विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने की वास्तविकता क खण्डन है। रोमियों 6:12-16 में, पौलुस एक पवित्र जीवन के महत्व को एक मौलिक परिवर्तन के हो जाने के सन्दर्भ में समझाता है—व्यवस्था के अधीन होने से, अर्थात् व्यक्ति का पाप में मृतक होना और अधार्मिकता की सेवा करना, अनुग्रह के अधीन होना, अर्थात् व्यक्ति परमेश्वर के प्रति जीवित हुआ जाना और धार्मिकता के लिए सेवा करना।

पवित्रता आत्मिक और व्यवहारिक प्रमाण है कि वह परिवर्तन हुआ है और ठीक रीति से सही मायने में कार्य कर रहा है। फिर से, हॉड्ज का उद्धरण करने योग्य है : “अनुग्रह, पाप में लिप्त होने की ओर ले जाने के स्थान पर, पवित्रता का अभ्यास करने के लिए आवश्यक है।” अनुग्रह के अन्तर्गत, पवित्रता चिह्न है धर्मी ठहराए जाने के कार्य के होने का । ख्रीष्टिय जीवन में पवित्रता की दृष्यता के बिना, काल्पनिक धर्मी ठहराए जाने और व्यवस्थामुक्तिवाद के सभी व्यंग्य चित्र दुर्भाग्यवश सम्भव हैं। एक अपवित्र जीवन ख्रीष्टिय विश्वास का उपहास करने वालों के लिए एक बहाना है जिससे वे सुसमाचार के विरुद्ध अपनी गलत धारणाओं में बने रहें। एक पवित्र जीवन एक चिह्न है परमेश्वर के वचन की सच्चाई का और उसके अनुग्रह के सामर्थ्य का जो वहाँ जीवन लाता है जहाँ पाप और मृत्यु पहले शासन करते थे। यीशु के शिष्य होने के नाते हम शिष्यों पर पवित्र होने की कितनी महान ज़िम्मेदारी है, क्योंकि परमेश्वर पवित्र है (1 पतरस 1:16)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
लियोनार्डो डी चिरीको
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