शिष्य अन्य शिष्यों से प्रेम करते हैं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्य अन्य शिष्यों से प्रेम करते हैं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तेरहवां अध्याय है: शिष्यता

ख्रीष्टिय कलीसिया में हम प्रेम के बारे में बहुत बात करते हैं। यह ठीक भी है, क्योंकि प्रेम हमारे सन्देश के केन्द्र में है, सुसमाचार के (यूहन्ना 3:16)। परन्तु दूसरे ख्रीष्टियों से प्रेम करने का क्या अर्थ है? क्या यह वास्तव में इतना महत्वपूर्ण है? क्या हम केवल अपने आप ख्रीष्टिय जीवन नहीं जी सकते?

वेस्टमिंस्टर विश्वास का अंगीकार हमें बताता है कि हम विश्वासी एक दूसरे के ऋणी हैं, “पवित्र संगति और परमेश्वर की आराधना में सहभागिता और इस तरह की अन्य आत्मिक सेवाएं परस्पारिक आत्मिक उन्नति के लिए हैं; इसी प्रकार बाहरी बातों में अपनी कई योग्यताओं और क्षमताओं के अनुसार एक दूसरे का सहयोग करते हैं” (वेस्टमिंस्टर विश्वास का अंगीकार 26:2)। नियमित रूप से सामूहिक आराधना में उपस्थित होना इस कार्य को पूरा करने का प्रमुख भाग है। हम अपने सहविश्वासियों से जुड़ते हैं वचन सुनने में, विधियों में भाग लेने में, एक साथ प्रार्थना करने में, स्तुति के गीतों में अपने स्वर मिलाने में, और हमारे साझा विश्वास को स्वीकार करने में ।

हम बुलाए गए हैं अपने सहविश्वासियों की बाहरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी अपनी योग्यता के अनुसार। यह कलीसिया के डीकन कोष में देने, सेवा के काम के लिए देने, या सीधे राहत कार्यो में भाग लेने—नई माताओं के लिए भोजन बनाने, बीमारों को और जो घर से बाहर निकलने में असमर्थ हैं उनसे मिलने जाना या आपदाओं के बाद सहायता करना हो सकता है।

हमारा ख्रीष्ट में एक देह होना अन्य विश्वासियों के साथ हमारे सम्बन्धों के लिए महत्वपूर्ण लागूकरण हैं। यूहन्ना हमें बताता है कि हम एक दूसरे से प्रेम करें “क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है, प्रत्येक जो प्रेम करता है वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, और परमेश्वर को जानता है” (1 यूहन्ना 4:7)। यूहन्ना ख्रीष्ट के वचनों को भी उसी पंक्ति के साथ रखता है “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो, यदि तुम आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो” (यूहन्ना 13:34-35)। हमारा एक दूसरे से प्रेम करने का आधार वह प्रेम है जिसमें होकर परमेश्वर ने हमसे प्रेम किया है।

हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम हमारे जीवनों में अनेक प्रकार से कार्यान्वित होता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम प्रेम में परमेश्वर को प्रतिउत्तर दें, और यह हमें अपने विश्वास में भाइयों और बहनों से प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है (1 यूहन्ना 4:11-12, 5:1-3)। यह इसलिए है क्योंकि हम सब एक देह में हैं, ख्रीष्ट की देह। कोई भी अपनी देह से घृणा नहीं करता है, वरन् उसके लिए जो अच्छा है उसकी लालसा करता है (इफिसियों 5:29); ठीक उसी तरह से, जो लोग ख्रीष्ट की देह में एक हो जाते हैं, वे उस देह की देखभाल करने के लिए अपनी भूमिका निभाते हैं। हम एक साथ आराधना करते हैं, परमेश्वर के द्वारा दिए गए अपने वरदानों को देह के लाभ के लिए उपयोग करते हैं, हम एक साथ दुख उठाते हैं, एक साथ आनन्द मनाते हैं, और एक दूसरे का बोझ उठाते हैं (1 कुरिन्थियों 12:12-31, गलातियों 6:2)। 

यूहन्ना चेतावनी देता है कि यदि हम इस तरह से प्रेरित नहीं हैं, तो ऐसा हो सकता है कि हम देह का भाग नहीं हैं (1 यूहन्ना 4:20)। कोई भी जो अपने आप को इस देह से अलग करता है उसके पास सुरक्षा का कोई आधार नहीं है। बाइबल में अकेले ख्रीष्टीय का कोई अर्थ नहीं है: हम परमेश्वर के एक नए मन्दिर के जैसे ख्रीष्ट में एक किए गए हैं (इफिसियों 2:19-22)। ख्रीष्ट ऐसे किसी व्यक्ति में वास नहीं करता है जो उस देह से जुड़ा हुआ नहीं है।

इसलिए, मित्रों, आइए हम ख्रीष्ट की देह की पवित्र संगति का त्याग न करें, परन्तु आइए हम एक-दूसरे से प्रेम करें, एक-दूसरे को प्रोत्साहित करें, और एक-दूसरे की देखभाल करें (1 यूहन्ना 4:21; इब्रानियों 10:23-25)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
केविन डी. गार्डनर
केविन डी. गार्डनर
गार्डनर टैबलेटटॉक पत्रिका के एसोसिएट एडिटर, फ्लोरिडा के सैनफोर्ड में रिफॉर्मेशन बाइबिल कॉलेज में रेजिडेंट एडजंक्ट प्रोफेसर और अमेरिका में प्रेस्बिटेरियन चर्च में एक शिक्षण देने वाले प्राचीन हैं।