
शिष्य अपने हृदयों में परमेश्वर के वचन को संचित रखते हैं
20 अप्रैल 2021
शिष्य अन्य शिष्यों से प्रेम करते हैं
23 अप्रैल 2021शिष्य सुधार स्वीकारते हैं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का बारवां अध्याय है: शिष्यता

यह एक संयोग की बात नहीं है कि अंग्रेज़ी में डिसायपल (शिष्य) और डिसिप्लिन (अनुशासन) शब्द एक समान दिखते हैं। एक शिष्य वह है जो अनुशासित है। यह आत्म-अनुशासन की ओर संकेत कर सकता है, जैसे कि जब पौलुस कहता है कि वह अपनी देह को “वश में” रखने के लिए यन्त्रणा देता है (1 कुरिन्थियों 9:27)। या, इसका अर्थ हो सकता है दूसरों से अनुशासन या सुधार प्राप्त करना जब हम मार्ग से भटक जाते हैं, चाहे वह माता-पिता से हो (इफिसियों 6:4), दूसरे विश्वासियों से (गलातियों 6:1), या परमेश्वर से (इब्रानियों 12:5, 7-8, 11)। अनुशासन, विशेष रूप से सुधार के अर्थ में, एक शिष्य होने के लिए महत्वपूर्ण है।
यीशु विश्वासियों को कलीसियाई अनुशासन की बड़ी प्रक्रिया के भाग में एक दूसरे का सामना करने के लिए बुलाता है (मत्ती 18:15-20)। जब कोई भाई या बहन पाप करता है, तो उनका सुधार करना बाइबल की मांग है। लेकिन उसी प्रकार से दूसरों के सुधार को स्वीकार करना और अपने पाप का पश्चात्ताप करना है। वास्तव में, जो सुधार को स्वीकार करने में विफल रहता है उससे ऐसे व्यवहार किया जाना—और समझा जाना चाहिए—जैसे कि वह एक अविश्वासी है (पद 17)।
समस्या यह है: हमें दूसरों का सुधार करने से घृणा है और स्वयं का सुधार किए जाने से भी घृणा है। हमारा घमण्ड दोनों पर प्रभाव डालता है। हम अपने भाई या बहनों का आमना-सामना नहीं करते क्योंकि हमें सच्चा और असुरक्षित होना पड़ेगा, या हम क्रोधित प्रतिउत्तर से भयभीत हैं, या हमें चोट पहुँची है, इसलिए हम अपमान करने वाले को अनदेखा करते हैं। जब हम एक दूसरे का सामना करते हैं, तो हम प्रायः पाखण्डपूर्वक (मत्ती 7:3-5) या आत्मिक नम्रता के बिना क्रोध में करते हैं (गलातियों 6:1)। सामना करना और सुधारना भड़ास निकालना नहीं है।
हम सुधार स्वीकार करने से घृणा करते हैं अपने घमण्ड के कारण। जब दूसरे लोग हमें हमारे पाप दिखाते हैं तो हमें अच्छा नहीं लगता है। अच्छा समाचार यह है कि परमेश्वर, अपने वचन और आत्मा के द्वारा, हमारे घमण्ड पर विजय पाने में हमारी सहायता करता है। आरम्भ करने के लिए, ख्रीष्ट ने हमें अपनी ओर खींचने के द्वारा हमारे घमण्ड को पराजित कर दिया है। हमारे भीतर अभी भी पाप बना है, किन्तु विश्वासी के लिए घमण्ड के पाप की सामर्थ्य तोड़ दी गई है। हमें स्वयं को दीन करने की आज्ञा दी गई है। लेकिन परमेश्वर हमें अनुग्रह भी देता है स्वयं को दीन करने के लिए।
इसके अतिरिक्त, पवित्रशास्त्र हमें सन्तों के अद्भुत उदाहरणों को देता है जिनके पाप दिखाए गए और उन्होंने विनम्रता और सच्चे पश्चात्ताप के साथ प्रतिउत्तर भी दिया। जब नातान नबी ने दाऊद के व्यभिचार और हत्या के दोहरे पाप को लेकर उससे सामना किया, तब उसने न केवल पश्चात्ताप किया लेकिन उसने बाइबल के एक महानतम खण्ड को भी लिखा: भजन संहिता 51, पश्चात्ताप की एक सुन्दर प्रार्थना। हमारे पास यह सुन्दर भजन नहीं होता यदि नातान ने दाऊद का सामना नहीं किया होता और यदि दाऊद ने विनम्रता से पश्चात्ताप नहीं किया होता।
परन्तु दाऊद ने इतनी तत्परता से पश्चात्ताप क्यों किया? हम इसे नातान के प्रति उसके प्रतिउत्तर में पाते हैं: “मैंने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है” (2 शमूएल 12:13)। इसे हम फिर से भजन 51 में पाते हैं, जहाँ दाऊद लिखता है, “मैंने केवल तेरे ही विरुद्ध पाप किया है, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है वही किया है” (पद 4)। यहाँ सुधार स्वीकार करने की कुंजी है: यह जानना है कि हमारे सभी पाप उस पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध एक जघन्य अपराध है जो हम से प्रेम करता है और हमें अपनी सन्तान बनाया है। जब यह हमारा दृष्टिकोण है, तो जो लोग हमारा सामाना करते हैं वे दोषारोपण के दूत नहीं, लेकिन दया के स्वर्गदूत बनते हैं।
