शिष्य ख्रीष्ट की आज्ञाओं का पालन करते हैं
4 अप्रैल 2021शिष्य ठोकर खाते हैं
6 अप्रैल 2021शिष्य परमेश्वर की आराधना करते हैं
सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: शिष्यता
यदि मैं एक वाक्यांश को ले सकता (और थोड़ा नया करके बोल सकता) जो मैंने एक बार सुना था, तो मैं कहता कि शिष्यता का अस्तित्व है क्योंकि आराधना का नहीं है। इसी कारण से यीशु ने अपनी कलीसिया को जातियों/राष्ट्रों की शिष्यता करने का आदेश दिया क्योंकि वह हर जाति, भाषा और राष्ट्र के लोगों से इच्छा करता है, कि वे त्रिएक परमेश्वर की स्तुति के अखण्ड सामंजस्य के स्वर में एक साथ सम्मिलित हों। इसका अर्थ है कि जब हम विश्वासयोग्यता से शिष्यता के आदेश को पूरा करते हैं, तो हमें लोगों को आराधना के मार्ग में आकर्षित करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
फिलिप्पी की कलीसिया को लिखते हुए प्रेरित पौलुस शिष्यता और आराधना के बीच एक सम्बन्ध बताता है: “सच्चा ख़तना वाले तो हम ही हैं जो परमेश्वर के आत्मा में उपासना करते हैं, ख्रीष्ट यीशु पर गर्व करते हैं और शरीर पर भरोसा नहीं रखते” (फिलिप्पियों 3:3)। पौलुस ख़तना के विषय में वहाँ के सन्दर्भ के कारण बात करता है, जिसमें वह लिख रहा है। जैसा कि यह परमेश्वर के द्वारा दिया गया था, ख़तना देह में एक चिह्न होने के उद्देश्य से था जो शारीरिक रूप से परमेश्वर के लोगों को चिह्नित करता था—यह परमेश्वर की वाचा का संकेत था। जिन लोगों का इब्राहीम के प्रतिज्ञा के अनुसार ख़तना किया गया, वे यहोवा के अनुयायी थे। या, इसे दूसरे शब्दों में कहें तो, ख़तना शिष्यता का एक चिह्न था पुराने नियम में।
फिलिप्पी में, परन्तु, कुछ शिक्षिकों ने अपनी स्वयं कि धार्मिकता को स्थापित करने के प्रयास में आए थे। उन्होंने इस बात पर बल दिया जिसको पौलुस “काट के बिगाड़ना” कहा। ऐसा करके, वे ख़तना के अर्थ से दूर जा रहे थे, अपने शरीर में विश्वास को डालकर न कि यीशु में। यह पूर्णतः विपरीत है परमेश्वर की मुक्त अनुग्रह के सुसमाचार के। जब हम सुसमाचार में गलती करें, दुर्भाग्य से, हम अनिवार्य रूप से आराधना भी गलत करेंगे। अर्थात्, क्योंकि हम यीशु के स्थान पर किसी और वस्तु या जन को रखेंगे, सभी प्रशंसा, सम्मान और महिमा उसके पास नहीं जा सकेगी। यह उन झूठे शिक्षकों के लिए घातक गलत कदम था। ख़तना का उद्देश्य दैहिक चिह्न से आगे चिह्नित करना था, किन्तु वे आत्मिक सत्य को देखने के लिए बहुत अदूरदर्शी थे और ख्रीष्ट के स्थान पर किसी और बात पर गर्व कर रहे थे। पौलुस ने स्पष्ट रीति से इस बुराई और शरीर में व्यर्थ के विश्वास का खण्डन किया।
सच्च ख़तना वाले—देह में खतना करने वाले नहीं हैं—वे लोग हैं जो परमेश्वर के आत्मा के द्वारा आराधना करते हैं और यीशु ख्रीष्ट में गर्व करते हैं। पौलुस इस बात पर इसलिए बल देता है क्योंकि सच्ची आराधना केवल उथली नहीं। आराधना एक प्रतिक्रिया है जो तब आता है जब आत्मा हमारे हृदयों को एक अनुभव देता है सुसमाचार में दिया गया यीशु की धार्मिकता का जब हम उसकी महिमामय अनुग्रह की स्तुति करते हैं। यह, प्रेरित के अनुसार, एक शिष्यता के जीवन को चिह्नित करता है। यीशु का शिष्य होने का अर्थ है यीशु को छोड़ अन्य सब भरोसा को त्यागना और उसके व्यक्तित्व और कार्य में गर्व करना हृदय और जीभ की गीत के द्वारा।