शिष्य ख्रीष्ट की आज्ञाओं का पालन करते हैं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
शिष्यता के सामान्य साधन
1 अप्रैल 2021
शिष्य परमेश्वर की आराधना करते हैं
5 अप्रैल 2021
शिष्यता के सामान्य साधन
1 अप्रैल 2021
शिष्य परमेश्वर की आराधना करते हैं
5 अप्रैल 2021

शिष्य ख्रीष्ट की आज्ञाओं का पालन करते हैं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौथा अध्याय है: शिष्यता

जब यीशु ने सबसे पहले शमौन पतरस और उसके भाई अन्द्रियास को अपनी सेवा में बुलाया, तब उनके लिए उसकी आज्ञा थी कि, “मेरे पीछे आओ।” उस समय से, यीशु के पीछे चलने वालों को या उसका अनुसरण करने वालों को “शिष्य,” “विद्यार्थी,” या “अनुयायी” कहा गया। अपने पूरे सेवा काल के समय, यीशु ने अपने श्रोताओं के लिए इस बात को स्पष्ट कर दिया कि उसका शिष्य होने का अर्थ केवल शिक्षा प्राप्त करना या नैतिक सिद्धान्तों या शर्तों का पालन करना ही नहीं था।  यीशु का शिष्य होने का अर्थ इस बात को पहचानना था कि वह वास्तव में कौन है—परमेश्वर का देहधारी पुत्र, लम्बे समय से प्रतीक्षा किया हुआ मसीहा—और इसलिए अपने जीवन को उसके स्वर्गीय राज्य के स्तर के अनुसार व्यवस्थित करना।

यूहन्ना 14:15 में, यीशु ने इस सत्य को अपने चेलों के लिए इस प्रकार से स्पष्ट किया: “यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो, तो तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।” यह बहुत ही सामान्य या साधारण कथन के समान लग सकता है, पर यदि हम इसे ध्यान से देखें, तो हम समझते कि यह हमें बहुत कुछ सिखाता है कि यीशु के सच्चे शिष्य होने का अर्थ क्या है। ध्यान देने वाली पहली बात यह है कि ख्रीष्टिय आज्ञाकारिता के लिए प्रेरणा स्रोत प्रेम है और उसे होना भी चाहिए, न कि भय। ख्रीष्टीय होने के नाते, हम यीशु की आज्ञाओं को मानना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि हम इस बात से डरते हैं कि यदि हम नहीं करेंगे तो हम पर न्याय आएगा, वरन् इसलिए क्योंकि हम पहचानते हैं कि यीशु कौन है और उसने हमारे लिए क्या किया है, और इस बात से हमारे हृदयों में एक गहरी इच्छा उत्पन्न होती है कि हम अपने जीवनों के द्वारा उसको आदर दें। जैसे कि यूहन्ना अपनी पहली पत्री में कहता है, “हम इसलिए प्रेम करते हैं, क्योंकि उसने पहिले हमसे प्रेम किया”(1 यूहन्ना 4­­­­­­­­­­­­:19), और यह प्रेम का वह सोता है जो आज्ञापालन करने की इच्छा के रूप में उमड़ता है।

द्वितीय, ध्यान दीजिए कि यूहन्ना 14:21 में, यीशु इस सच्चाई को विपरीत दिशा में रखता है: “जिसके पास मेरी आज्ञाएं हैं और वह उनका पालन करता है, वही मुझ से प्रेम करता है।” दूसरे शब्दों में, यीशु के लिए हमारी आज्ञाकारिता एक ऐसी विशेषता है जो हमें उन लोगों के रूप में चिह्नित करती है जो वास्तव में उससे प्रेम करते हैं। जैसे यीशु एक अन्य स्थान पर कहता है, “पेड़ अपने फल से पहिचाना जाता है” (मत्ती 12:33)।

तृतीय, ध्यान दीजिए कि यीशु के प्रति हमारी यह आज्ञाकारिता हमारी स्वयं की सामर्थ्य से पूरी नहीं होती है। अगले ही पद में, यीशु कहता है कि वह पिता से विनती करेगा कि हमें एक अन्य सहायक भेज दे, अर्थात् पवित्र आत्मा (यूहन्ना 14:16), और बाद में पौलुस हमें बताता है कि यही है जो हमें शरीर के कार्यों को मारने के लिए सामर्थ्य देता है और जो यह पुकारते हुए कि हम परमेश्वर के बच्चे हैं संघर्षों में हमारे साथ खड़ा रहता है (रोमियों 8:13-17)।

यह सब स्पष्ट करता है कि कोई भी आरोप कि ख्रीष्टीयता व्यवस्था-विरोधी है गलत और निराधार है। पौलुस ने स्वयं पूछा: “ तो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें कि अनुग्रह अधिक होता जाए?” और उसने पूर्णतः सत्य उत्तर दिया, “कदापि नहीं” (6:1-2)। हमारा उद्धार, सम्पूर्ण और पूरी रीति से ख्रीष्ट की धार्मिकता पर ही आधारित है, अर्थात् उसका जीवन और उसकी मृत्यु दोनों के द्वारा जो हमारे खाते में डाल दी गई हैं। केवल वही धार्मिकता या धर्मी ठहराए जाने का आधार है। लेकिन धर्मी ठहराए  गए लोगों में आत्मिक फल का प्रमाण स्पष्ट दिखाई देता है—ऐसे लोग यीशु को राजा के रूप में  स्वीकार करते हैं। और उनमें एक आभार-पूर्ण प्रेम होता है जो यीशु का अनुसरण करने और उसकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए आत्मा से भरी हुई ईच्छा उत्पन्न करता है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
ग्रेग गिल्बर्ट
ग्रेग गिल्बर्ट
डॉ. ग्रेग डी गिल्बर्ट लूइविल, केन्टकी में थर्ड ऐवेन्यू बैपटिस्ट चर्च के वरिष्ठ पास्टर हैं। वह व्हाट् इज़ द् गॉस्पल? और आगामी पुस्तक हू् इज जीज़स? के लेखक हैं।