शिष्यता के सामान्य साधन - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्यता के सामान्य साधन

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: शिष्यता

प्रेरितों के काम 2:42 में, लूका उन साधनों का एक सारांश प्रदान करता है जिनके द्वारा आरम्भिक कलीसिया के शिष्यों के रूप में बढ़े। वह लिखता है कि, “और वे प्रेरितों से लगातार शिक्षा पाने, संगति रखने, रोटी तोड़ने, और प्रार्थना करने में लवलीन रहे।” लूका के अनुसार, इन ख्रीष्टियों ने चार आधारभूत साधनों के प्रति स्वयं को समर्पित किया जिनके द्वारा उनकी शिष्यता हुई। आइए  हम विचार करें इन साधनों पर तथा किस रीति से जी उठा ख्रीष्ट आज भी लोगों के जीवनों को बदलने के लिए उन्हें उपयोग करता है।

पहला, लूका हमें बताता है कि आरम्भिक  सभी शिष्य  “प्रेरितों की शिक्षा” के प्रति लवलीन थे। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि लूका उनकी क्रिया को लवलीन  शब्द से चिह्नित करता है। दूसरे शब्दों में, उन्होंने यीशु में प्रकट सत्य को सुनने तथा उसके अध्ययन को एक प्राथमिकता बनाया—अपने जीवन की एक नियमित तथा अपरिवर्तनीय भाग। आज भी, अधिकतर अगुवे आपको यही बताएंगे कि अधिकतर लोग जो ऐसा करते हैं वे हैं, जो उत्साहपूर्ण तथा फलदायी ख्रीष्टिय जीवन जीते हैं।  जो लोग विश्वासयोग्यता से वचन की सार्वजनिक शिक्षा में सच्ची भूख के साथ भाग लेते हैं, वे ऐसे शिष्य हैं जो शिष्य बनाते हैं। जब वचन विश्वासयोग्यता, साहस एवं आकर्षक रीति से आत्मा की सामर्थ्य से प्रचार किया जाता है, ये शिष्य तैयार होते हैं अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, ख्रीष्ट के लिए विश्वासयोग्य, साहसी तथा आकर्ष्क, प्रभावशाली व्यक्ति बनने के लिए।

लूका “संगति” के प्रति आरम्भिक शिष्यों के समर्पण के बारे में भी बात करता है। हमारा त्रिएक परमेश्वर, अनन्तकाल की संगति का परमेश्वर है, और हम, उसके स्वरूप में बनाए गए लोग होने के नाते, उसके साथ तथा एक दूसरे के साथ संगति करने लिए बनाए गए थे। हमारे जीवन अधूरा हैं दूसरों के साथ संगति के बिना, विशेषकर उन लोगों के साथ जो हमारे जैसे ख्रीष्ट से प्रेम करते हैं। जब हम सक्रिय रीति से एक दूसरे को उत्साहित करते हैं, तो ख्रीष्ट की देह आत्मिक रीति से वृद्धि करती है और, कई बार संख्यात्मक रीति से। जब हमारी पहचान एक दूसरे से प्रेम करने के द्वारा चिह्नित होती है, तो जिन्होंने अभी इस बात को चखकर नहीं देखा कि प्रभु भला है, प्राय: उत्सुक हो जाते हैं और उस यीशु के बारे में और अधिक सुनने के लिए तैयार होते हैं, जो कि हमारी सम्पूर्ण संगति का केन्द्र है, और, परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा, उस संगति के सच्चे सहभागी भी बन जाते हैं।

तीसरा, लूका हमें बताता है कि आरम्भिक कलीसिया “रोटी तोड़ने” के लिए समर्पित थी। सम्भवत: यह उनके द्वारा प्रभु-भोज में भाग लेने की बात कर रहा है जिसमें वे बपतिस्में के साथ-साथ सहभागी होते थे (प्रेरितों के काम 2:41), ख्रीष्ट के निर्देशानुसार। प्रत्यक्ष रीति से बपतिस्मा तथा प्रभु-भोज की रीति-विधियां, पिता के लेपालकपन के प्रेम, पुत्र के त्यागपूर्ण अनुग्रह, और आत्मा की जीवनदायक संगति को इस रीति से संचारित करते हैं कि वे शिष्यों को बदलते और तैयार करते हैं।

रीति-विधियाँ, “सन्तों की संगति” के समान, इस बात को स्मरण दिलाती है कि हम एक साथ मिलना चाहिए ताकि हम व्यक्तिगत रीति से बढ़ सकें। यद्यपि हम वर्तमान समय में इन्टरनेट पर उपलब्ध बहुत सी ख्रीष्टिय पुस्तकों तथा सन्देशों  से आशीषित हैं, इसके बाद भी रीतिविधियाँ हमें बार-बार एकत्रित कलीसिया में खींचकर ले आती हैं, जिसके लिए कोई अन्य विकल्प नहीं है। परमेश्वर प्रसन्न होता है एक विशेष  रीति से अपने एकत्रित लोगों से मिलने के लिए हमारे रीति-विधियों में सहभागी होने के द्वारा। ख्रीष्ट किस रीति से हमसे भेंट करता है जब हम विश्वास के द्वारा प्रभु-भोज में सम्मिलित होते हैं, इसके सम्बन्ध में  ज्ञानी विद्वान जॉन कैल्विन को यह स्वीकार करना पड़ा,“मैं इसे अनुभव करता हूँ न कि समझता हूँ।” अलौकिक रूप से, अबोध्य रीति से, त्रिएक परमेश्वर हमसे बात करता है, हमें पोषित करता है, हमें प्रसन्नता प्रदान करता है, और हमें रीति-विधियों के माध्यम से शिष्य बनने के लिए तैयार करता है। शिष्य के जीवन में उनके लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

अन्तिम, किन्तु कम महत्वपूर्ण नहीं, लूका हमें बताता है कि आरम्भिक शिष्यों ने स्वयं को “प्रार्थना” के लिए समर्पित किया। सामूहिक प्रार्थना को, ख्रीष्ट की अन्तिम आज्ञा और कलीसिया का पहला उत्तरदायित्व के रूप में वर्णित किया गया  है (प्रेरितों 1:14 देखें)। प्रारम्भिक कलीसिया अनुभवात्मक रूप से जानते थे प्रार्थना की सामर्थ्य को और उसका लाभ उठाते थे जब वे प्रार्थने करते थे आत्मा से भरने, ज्ञान, मार्गदर्शन और साहस के लिए। जैसा कि सी. एच. स्पर्जन ने कहा: “प्रार्थना सभाएँ प्रारम्भिक कलीसिया की रक्तवाहिनी थीं, उनके माध्यम से जीवन-निर्वाह की शक्ति प्राप्त हुई।”

प्रेरितों के काम 2:42 में “प्रार्थना” आरम्भिक कलीसिया की सम्पूर्ण आराधना का प्रतिनिधित्व करती है। आज भी, जब कलीसिया पवित्र आत्मा की सहायता से देहधारी पुत्र की मध्यस्थता के द्वारा पिता के मुख को खोजती है, त्रिएक परमेश्वर अपने नाम के गौरव, अपने शत्रुओं के विनाश तथा अपनी कलीसिया की उन्नति के लिए अपने लोगों की स्तुति पर विराजमान होता है (देखिए 2 इतिहास 20:22 ; भजन 8:2 ; कुलुसियों 3:16)।

ये अनुग्रह के साधन संसार की दृष्टि में निर्बल दिखाई दे सकते हैं, परन्तु प्रभु और समझदार विश्वासी की दृष्टि में, ये वे माध्यम हैं जिनके द्वारा पापियों का जी उठे ख्रीष्ट के साथ सम्बन्ध जुड़ जाता है और शिष्य सशक्त किए जाते हैं अपने उद्धारकर्ता की मनोहर गवाही के प्रति समर्पित जीवन जीने के लिए। नई पद्धतियों पर भरोसा न करते हुए, आइए हम आरम्भिक कलीसिया के पदचिह्नो पर चलें और अनुग्रह के इन सामान्य साधनों का लाभ उठाएं। जब हम ऐसा करते हैं तो, ख्रीष्ट अपने शिष्यों को शिष्य बनाने के योग्य बनाता है, और उसकी स्तुति पृथ्वी के छोर तक फैलती रहेगी।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
मैन्टल ए. नेन्स
मैन्टल ए. नेन्स
डॉ. मैन्टल ए. नेन्स शार्लट्ट, नॉर्थ कैरोलायना में बैलनटाय्न प्रेस्बिटेरियन चर्च के पास्टर हैं।