एक शिष्य क्या है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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एक शिष्य क्या है?

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: शिष्यता

बाइबल हमें स्मरण दिलाती है कि यीशु ख्रीष्ट के आरम्भिक शिष्यों को सबसे पहले ख्रीष्टीय तब कहा गया जब विश्वास की साक्षी और गवाही अन्ताकिया शहर में आयी (प्रेरितों के काम 11:25)। यद्यपि यह आरम्भ में उपहास का शब्द था, ख्रीष्ट के अनुयायियों ने शीघ्र ही ख्रीष्टीय   नाम को स्वीकार कर लिया क्योंकि यह खुले रीति से और बिना संकोच के उनकी पहचान ख्रीष्ट के साथ जोड़ता था। किन्तु इससे पहले कि ख्रीष्टीय शीर्षक को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया, ख्रीष्ट के आरम्भिक अनुयायियों को क्या कहा जाता था? उनको केवल “शिष्य” कहा जाता था। शिष्य चुना हुआ नाम था विश्वासियों के लिए। किन्तु एक शिष्य क्या है?

 संक्षेप में, एक शिष्य एक छात्र है। एक शिष्य वह है जो दूसरे की शिक्षाओं और कार्यों में स्वयं को अनुशासित करता है। अंग्रेज़ी में डिसायपल  (शिष्य ) शब्द,  डिसिप्लिन  (अनुशासन) शब्द के समान, लतीनी शब्द डिसायपुलुस  से आता है, जिसका अर्थ है “शिष्य” या “सीखने वाला”। परिणामस्वरूप, सीखने का अर्थ स्वयं को अनुशासित करना है। उदाहरण के लिए, यदि किसी को कला या विज्ञान या खेल में प्रगति करना है, उसे स्वयं को अनुशासित करना होगा और अध्ययन के उस क्षेत्र में उत्तम शिक्षकों के सिद्धांतों और आधारभूत बातों को सीखना और उनका पालना करना होगा। यही बात ख्रीष्ट के शिष्यों के साथ थी और है। एक शिष्य यीशु का अनुसरण करता है।

जब यीशु ने अपने पहले शिष्यों को बुलाया, तो उसने सामान्य शब्द कहे, “मेरे पीछे आओ” (मरकुस 1:17; 2:14; यूहन्ना 1:43)। एक शिष्य एक अनुसरणकर्ता है, जो भरोसा और विश्वास करता है एक शिक्षक पर तथा शिक्षक की बातों और उसके उदाहरण का अनुसरण करता है। इसलिए, एक शिष्य होना एक सम्बन्ध में होना है। यह शिक्षक के साथ एक घनिष्ठ, शिक्षाप्रद और अनुकरणीय सम्बन्ध रखता है। परिणामस्वरूप, यीशु ख्रीष्ट का शिष्य होने का अर्थ है यीशु के साथ सम्बन्ध में होना—यीशु के जैसे बनने का प्रयास करना। दूसरे शब्दों में, हम ख्रीष्ट का अनुसरण करते हैं ख्रीष्ट के जैसे बनने के लिए (1 कुरिन्थियों 11:1) क्योंकि उसके शिष्य होने के नाते, हम ख्रीष्ट के हैं। यीशु के शिष्य के पास कुछ निश्चित चरित्र की विशेषताएँ हैं जो यीशु के साथ सम्बन्ध होने से मेल खाती हैं। ख्रीष्ट के एक शिष्य की क्या योग्यताएंं  हैं? उन लोगों के लक्षण क्या हैं जो ख्रीष्ट का अनुसरण करते हैं और ख्रीष्ट के शिष्य कहलाते हैं?

एक शिष्य यीशु की सुनता है

कोई नहीं कह सकता कि वह एक शिक्षक का शिष्य है, जब तक वह उस शिक्षक को सुनने के लिए तैयार नहीं होता। संसार में अनेक शिक्षक हैं जो सुनने वालों और अनुयायियों को एकत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। यीशु की सुनना एक ख्रीष्ट शिष्य का काम है। जब यीशु बोलता है, तो शिष्य सुनता है। शिष्य स्वामी के प्रत्येक शब्द को ऐसे थामता है, जैसे वह भूखों के लिए रोटी और प्यासों के लिए पानी है। जब यीशु अपने शिष्यों के साथ रूपान्तरण पर्वत पर एकत्रित हुए, तो परमेश्वर पिता ने स्वर्ग से स्पष्ट आज्ञा देकर कहा: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, . . .  उसकी सुनो” (मत्ती 17:5)। आप बिना यीशु की सुने ख्रीष्टीय नहीं हो सकते हैं।

एक शिष्य यीशु से सीखता है

यीशु की सुनना पर्याप्त नहीं है। एक शिष्य केवल सुनकर फिर चला नहीं जाता है, जैसे कि शिक्षक की बातों का कोई प्रभाव न हो। जब यीशु अपने शिष्यों को बुलाता है, वह उन्हें सुनने के साथ-साथ सीखने के लिए भी बुलाता है। जब वे आते हैं, वह कहता है, “मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो और मुझ से सीखो, क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ” (मत्ती 11:29)। शिष्य एक विद्यार्थी है, और उसके लिए ख्रीष्ट के शब्द मायने रखते हैं। जब यीशु ने  उन लोगों को जाने दिया जो लाभ के लिए उसे साथ आ रहे थे यूहन्ना 6 में, उसने बारहों की ओर मुड़कर पूछा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” पतरस ने, दूसरों की ओर से बोलते हुए उत्तर दिया: “प्रभु, हम किसके पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे पास हैं” (यूहन्ना 6:68-69)। ख्रीष्ट से सीखना शिष्य की सबसे बड़ी इच्छा है। यह उन सब बातों का आधार है जिसे वह विश्वास करता है। वह आनन्द के साथ अपने स्वामी के वचनों को ग्रहण करता है। वे उसकी दैनिक रोटी हैं। वह उन पर दिन-रात मनन करता है (भजन 1:2)।

एक शिष्य यीशु की आज्ञा मानता  है

कोई भी वास्तव में स्वयं को यीशु का शिष्य नहीं कह सकता जो उसकी आज्ञा मानने को तैयार नहीं है। शिष्य, जो वास्तव में सुनता है और सीखता है, उन बातों को अपने जीवन में लागू करेगा जो उसने सीखा है। शिष्य के लिए, आज्ञाकारिता वैकल्पिक नहीं है। यीशु ने प्रमाणित कर दिया है कि वह सारी आज्ञाकारिता के योग्य है। जो लोग उसे अच्छी रीति से जानते हैं, वे इस बात को सबसे अधिक जानते हैं। जब काना नगर के विवाह में दाखरस समाप्त हुआ, तब मरियम (यीशु की माता) ने घर के नौकरों से कहा यीशु के पास जाओ और “जो कुछ वह तुमसे कहे, वही करना” (यूहन्ना 2:5)। वह बहुत अच्छा परामर्श था। स्वामी की शिक्षाओं को व्यवहार में लाना सच्ची शिष्यता का फल है। यीशु ने स्वयं घोषित किया कि जो लोग उससे प्रेम करते हैं, वे उसकी आज्ञाओं का पालन करने के द्वारा उसके प्रति प्रेम का प्रमाण देते हैं (यूहन्ना 14:21, 23, 15:10)।

कुछ लोग शिष्य होने और ख्रीष्टीय होने के बीच अन्तर करने का प्रयास करते हैं। फिर भी, बाइबल कभी भी ऐसा अन्तर नहीं करती है। इससे पहले कि वे ख्रीष्टीय कहलाए गए, उन्हें शिष्य कहा जाता था। ख्रीष्ट का एक शिष्य होने का अर्थ है एक ख्रीष्टीय होना। एक ख्रीष्टीय होने का अर्थ है ख्रीष्ट पर भरोसा करना। एक ख्रीष्टीय होने का अर्थ है ख्रीष्ट की सुनना। एक ख्रीष्टीय होने का अर्थ है ख्रीष्ट से सीखना। एक ख्रीष्टीय होने का अर्थ है ख्रीष्ट की आज्ञापालन करना। परिणामस्वरूप, ख्रीष्टीय होने का अर्थ है एक शिष्य होना। आरम्भ में ऐसा ही था। आज भी ऐसा ही है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
ऐन्थनी कार्टर
ऐन्थनी कार्टर
रेव्ह. ऐन्थनी कार्टर ईस्ट पॉइन्ट जॉर्जिया में ईस्ट पॉइन्ट चर्च, के पास्टर हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें रनिंग फ्रम मर्सी (दया से भागना) सम्मिलित है।