शिष्यता का आदेश - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्यता का आदेश

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पहला अध्याय है: शिष्यता

कुछ वर्ष पहले, जिस देश में मैं एक सहायक पास्टर के रूप में कार्य कर रहा था, वहाँ कई इवैन्जलिकल कलीसियाओं ने निर्णय लिया कुछ सुसमाचारीय सभाओं की एक श्रृंखला को प्रायोजित करने में सहयोग करने का। मैंने सभा के लिए आयोजन समिति की अगुवाई करने में सहायता की, और हमने जल्द ही  निर्णय लिया एक प्रसिद्ध रेडियो प्रचारक को सुसमाचार प्रचारक होने के लिए आमन्त्रित करने का। अन्ततः जब पहली सभा की रात आई तो कई हज़ार लोग आए। मैं प्रचारक के उस निमंत्रण को कभी नहीं भुलूँगा जो उसने अपने सन्देश के अन्त में दिया। पहले, उसने उन सभी लोगों को आगे आने के लिए आमन्त्रित किया, जिन्होंने ख्रीष्ट को उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार किया था। लगभग तीस से चालीस लोग आगे गए। फिर उसने कुछ ऐसा कहा जिसने मुझे चकित कर दिया। उसने उन सभी लोगों को आगे आने के लिए आमन्त्रित किया जो ख्रीष्टीय थे किन्तु वे कभी भी ख्रीष्ट यीशु के शिष्य नहीं बने थे। मैं विस्मित हुआ, कि कई विश्वासी, जिनमें से कुछ को मैं अच्छी तरह से जानता था, आगे गए, यह सोचकर कि इस महत्वपूर्ण समय में वे पहली बार यीशु ख्रीष्ट के शिष्य बन रहे थे।

इस दूसरे निमंत्रण ने मुझे परेशान कर दिया। प्रचारक मूलतः यह सिखा रहा था कि दो प्रकार के ख्रीष्टीय होते हैं: हृदय परिवर्तित और शिष्य। उसकी शिक्षा के अनुसार, हृदय परिवर्तित लोग वे हैं जो ख्रीष्ट पर उद्धारकर्ता के रूप में भरोसा करते हैं, शिष्य वे हैं जो बाद में कदम उठाते हैं ख्रीष्ट को अपना प्रभु मानकर अनुसरण करने के लिए। तकनीकी रूप से कोई व्यक्ति परिवर्तित होकर एक ख्रीष्टीय हो सकता है, किन्तु एक शिष्य नहीं।

हालाँकि, यीशु इस तरह के किसी भी भेद की अनुमति नहीं देता है सुसमाचारों में। एक ख्रीष्टीय होना एक शिष्य होना है और शिष्य होना एक ख्रीष्टीय होना है।

ठीक इसी बात का यीशु अपने शिष्यों को स्मरण दिलाता है महान आदेश में मत्ती के सुसमाचार के अन्त में। ध्यान दीजिए कि यीशु क्या कहता है: “इसलिए जाओ और सब जातियों के लोगों को चेले बनाओ (मत्ती 28:19)। यीशु की आज्ञा परिवर्तित लोग बनाना के लिए नहीं, वरन् चेले बनाने के लिए है। दूसरे शब्दों में, ख्रीष्ट का अनुसरण करना और आज्ञापालन करना एक ख्रीष्टीय के लिए वैकल्पिक नहीं है। यूहन्ना इसे और स्पष्टता से बताता है। उसने कहा, “जो कहता है, “मैं उसे जान गया हूँ” और उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं करता, वह झूठा है और उसमें सत्य नहीं” (1 यूहन्ना 2:4)। 

यह सत्य है कि, बचाने वाला विश्वास वह विश्वास है जो हमें बाध्य करता है एक शिष्य के रूप में ख्रीष्ट का अनुसरण करने और आज्ञा पालन करने के लिए। क्रीष्टीय के रूप में बच्चों के समान हमारे पहले कदम, यद्यपि छोटे और ठोकर खाते हुए, उद्धारकर्ता के कदमों का पीछा करते हैं। 

मुझे डर है कि जितना हम जिसे इवैन्जलिकल ख्रीष्टीयता कहते हैं, उसमें से बहुत भाग ने इस महत्वपूर्ण सत्य को खो दिया है। बहुतों को इस विचार के द्वारा धोखा दिया गया है कि, क्योंकि उन्होंने एक प्रार्थना की है या किसी कार्ड में हस्ताक्षर किया है या आगे चलकर आएं है तो उनका स्वर्ग जाना निश्चित है। लेकिन यीशु इससे बढ़कर मांग करता है। यीशु मांग करता है कि हम उस पर भरोसा करें, अपने सम्पूर्ण जीवन से। यीशु मांग करता है कि सीधे उसके  पीछे चलें (लूका 9:23)। संक्षेप में, यीशु मांग करता है कि हम उसके शिष्य बनें।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
ग्रान्ट आर कासल्बेरी
ग्रान्ट आर कासल्बेरी
रेव. ग्रान्ट आर कासल्बेरी वरिष्ट पास्टर हैं राली, नॉर्थ कैरोलाइना में कैपिटल कम्यूनिटी चर्च के, और एक पी.एच.डी के विद्यार्थी हैं कलीसियाई इतिहास और सुव्यवस्थित ईश्वरविज्ञान में लूईविल्ल, केन्टकी के सदर्न बैप्टिस्ट थियोलॉजिकल सेमिनेरी में।