पाप को कैसे नष्ट करें - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पाप को कैसे नष्ट करें

एक वार्तालाप का परिणाम बाद में उसके महत्व के विषय में हमारी सोच को बदल सकता है।

मेरा मित्र—एक युवा सेवक—अपनी कलीसिया में हुई एक सभा के बाद मेरे साथ बैठ गया और उसने कहा: “आज रात सभा समाप्ति से पहले, मुझे उन चरणों को समझाइए जो पाप को नष्ट करने में किसी की सहायता के लिए आवश्यक होंगे।” हम थोड़ी देर तक बात करते रहे और फिर बिस्तर पर चले गए, आशा है कि वह मेरे समान हमारे वार्तालाप से आशीषित अनुभव कर रहा था। मैं अभी भी सोचता हूँ कि क्या वह एक पास्टर के रूप में प्रश्न पूछ रहा था या केवल अपने लिए—या फिर दोनों के लिए।

आप उसके प्रश्न का सबसे उत्तम उत्तर कैसे देते? पहली बात यह है: पवित्रशास्त्र में जाएं।  हाँ, जॉन ओवेन की ओर भी मुड़िए (कभी बुरा विचार नहीं है!), या किसी अन्य जीवित या मृतक परामर्शदाता की ओर। परन्तु स्मरण रखें कि हमें इस क्षेत्र में केवल अच्छे मानव संसाधनों  के साथ नहीं छोड़ा गया है। हमें “परमेश्वर के मुख” से सिखाए जाने की आवश्यकता है ताकि हम जिन सिद्धांतों को लागू करने के लिए सीख रहे हैं, उनमें परमेश्वर के अधिकार  और प्रतिज्ञा  दोनों हों जिससे वे कार्य कर सकें।

अध्ययन के लिए कई खण्ड मन में आते हैं: रोमियों 8:13, रोमियों 13:8-14 (ऑगस्तीन का खण्ड), 2 कुरिन्थियों 6:14-7:1, इफिसियों 4:17-5:21, कुलुस्सियों 3:1-17, 1 पतरस 4:1-11, 1 यूहन्ना 2:28-3:11। महत्वपूर्ण बात है, कि केवल दो खण्डों में “नष्ट करना” (“पाप को मारना”) क्रिया है। उतने ही महत्वपूर्ण बात है, कि इनमें से प्रत्येक खण्ड का सन्दर्भ पाप को मारने के एकल उपदेश से व्यापक है। जैसा कि हम देखेंगे, यह एक अवलोकन है जो अति आवश्यक है।

इन खण्डों में से, कुलुस्सियों 3:1-17 सम्भवतः आरम्भ करने के लिए हमारे लिए सबसे अच्छा स्थान है।

यहाँ अपेक्षाकृत नए मसीही थे। उन्हें मूर्तिपूजा से मसीह में परिवर्तन का अद्भुत अनुभव हुआ है। वे अनुग्रह के एक महिमामय नई और स्वतंत्र संसार में प्रवेश कर चुके थे। सम्भवतः—यदि हम रेखाओं के बीच पढ़ें—उन्हें थोड़े समय के लिए अनुभव हुआ था जैसे कि वे स्वतंत्र कर दिए गए हैं, न केवल पाप के दण्ड से, परन्तु लगभग इसके प्रभाव से भी—उनकी नई स्वतंत्रता इतनी अद्भुत थी। परन्तु फिर, निस्सन्देह, पाप ने पुनः अपने भद्दे सिर को ऊपर उठाया। अनुग्रह के “पहले से ही” (“already’’) अनुभव करने के बाद वे अब चल रहे पवित्रीकरण के कष्टदायक “अभी नहीं” (“not yet”) को देख रहे थे। यह बात हमारे लिए परिचित लगती है!

परन्तु जैसे हमारे इवैन्जेलिकल उपसंस्कृति में दीर्घकालिक समस्याओं के तत्कालिक समाधान दिए जाते हैं, जब तक कि कुलुस्सियों को सुसमाचार के सिद्धांतों की दृढ़ समझ नहीं प्राप्त होती, वे भी इसी खतरे में थे। क्योंकि ऐसे समय में नए मसीही उच्च आत्मिक जीवन की नई प्रतिज्ञाएं करने वाले झूठे शिक्षकों का सरलता से शिकार हो सकते हैं। पौलुस को इसी बात का डर था (कुलुस्सियों 2:8,16)। पवित्रता-उत्पादक साधन अब प्रचलन में थे (कुलुस्सियों 2:21-22)—और वे अत्यन्त आत्मिक दिखाई पड़ रहे थे, जो उत्सुक नये विश्वासियों के लिए आकर्षक थे। परन्तु, वास्तव में, “इनसे शारीरिक वासनाओं को रोकने में कोई लाभ नहीं होता है” (कुलुस्सियों 2:23)। नए साधन नहीं, परन्तु केवल यह समझना कि सुसमाचार कैसे कार्य करता है, पाप से व्यवहार करने के लिए एक पर्याप्त आधार और रूपरेखा प्रदान कर सकता है। यह कुलुस्सियों 3:1-17 का विषय है।

पौलुस हमें वह रूपरेखा और लय देता है जिसकी हमें आवश्यकता है। ओलम्पिक में लम्बी छलाँग वालों के समान, हम तब तक सफल नहीं होंगे जब तक हम कार्य के उस बिन्दु  से पीछे एक ऐसे बिन्दु पर न जाएं जहाँ से हम पाप से व्यवहार करने के कठोर प्रयास के लिए ऊर्जा प्राप्त  कर सकते हैं। तो फिर, पौलुस हमें ऐसा करने के लिए कैसे सिखाता है?

सबसे पहले, पौलुस बल देता है कि मसीह में हमारी नई पहचान से परिचित होना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है (3:1-4)। कितनी बार जब हम आत्मिक रूप से विफल होते हैं हम विलाप करते हैं कि हम भूल गए कि हम वास्तव में कौन हैं—मसीह के। हमारी एक नई पहचान है। अब हम “आदम में” नहीं, परन्तु “मसीह में” पाए जाते है; शरीर में नहीं परन्तु आत्मा में, पुरानी सृष्टि के द्वारा शासित नहीं किए जाते हैं परन्तु नई सृष्टि में जी रहे हैं (रोमियों 5:12-21;8:9; 2 कुरिन्थियों 5:17)। पौलुस इसकी व्याख्या  करने में समय लेता है। हम मसीह के साथ मर चुके हैं (कुलुस्सियों 3:3; यहाँ तक कि हम मसीह के साथ गाड़े भी गए हैं, 2:12); हम उसके साथ जीवित किए गए हैं (3:1), और हमारा जीवन उसमें छिपा हुआ है (3:3)। वास्तव में, हम मसीह के साथ एक किए गए हैं कि मसीह हमारे बिना महिमा में प्रकट नहीं होगा (3:4)।

पाप की उपस्थिति से व्यवहार करने में विफलता के पीछे प्रायः आत्मिक भूलने की बीमारी को पता लगाया जा सकता है, जिसमें हम अपनी नई, सच्ची, वास्तविक पहचान को भूल जाते हैं। एक विश्वासी के रूप में मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जिसे पाप के प्रभुत्व से मुक्ति मिली है और इसलिए वह अपने हृदय में पाप की सेना के अवशेषों के विरुद्ध लड़ने के लिए स्वतंत्र और प्रेरित है।

तो फिर, सिद्धांत संख्या एक है: अपनी नई पहचान को जानें, उसमें विश्राम करें, विचार करें और उसके अनुसार कार्य करें —आप मसीह में हैं। 

दूसरा, पौलुस हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हो रहे पाप को प्रकट करता है (कुलुस्सियों 5-11)। यदि हमें बाइबलीय रीति से पाप से व्यवहार करना है, तो हमें यह सोचने की त्रुटि नहीं करना चाहिए कि हम अपने जीवन में आक्रमण को विफलता के केवल एक क्षेत्र तक सीमित कर सकते हैं। सभी पापों से व्यवहार किया जाना चाहिए। इस प्रकार पौलुस पाप के प्रकटीकरण को दिखाता है व्यक्तिगत जीवन में (पद 5) प्रतिदिन के सार्वजनिक जीवन में (पद 8), और कलीसियाई जीवन में (पद 9-11; “एक दूसरे के साथ”, “यहां”, अर्थात, कलीसियाई संगति में)। (पाप को) नष्ट करने में चुनौती अल्पाहार (स्वयं में नष्ट करने का एक तरीका) में चुनौती के समान है: एक बार जब हम आरम्भ करते हैं तो हमें पता चलता है कि वजन अधिक होने के कई प्रकार के कारण हैं। हम वास्तव में स्वयं से व्यवहार कर रहे हैं, न कि केवल कैलोरी नियन्त्रण से। मैं समस्या हूँ, न कि आलू के चिप्स। पाप को नष्ट करना एक सम्पूर्ण जीवन का परिवर्तन है।

तीसरा, पौलुस की व्याख्या हमें पाप को नष्ट करने के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि मानों पौलुस निर्देश देता है (“मृतक समझना…,” 3:5) बिना “व्यावहारिक” सहायता दिए हमारे “कैसे” प्रश्नों के उत्तर में। प्रायः आज, मसीही पौलुस के पास यह सुनने के लिए जाते हैं कि उन्हें क्या करना है और स्थानीय मसीही पुस्तक की दुकान पर यह पता लगाने के लिए जाते हैं कि उसे कैसे करें! यह द्विभाजन क्यों? सम्भवतः इसलिए क्योंकि हम पौलुस की बातों पर अधिक देर नहीं ठहरते हैं। हम अपनी सोच को गहराई से पवित्रशास्त्र में नहीं डुबोते हैं। क्योंकि, अपनी विशेषता के अनुसार, जब भी पौलुस एक निर्देश देता है, तो वह उसे संकेतों के साथ घेरता है कि हम इसे व्यवहार में कैसे ला सकते हैं।

यह निश्चित रूप से यहाँ सत्य है। ध्यान दें कि कैसे यह खण्ड हमारे “कैसे” प्रश्नों का उत्तर देने में सहायता करता है।

1. पाप के वास्तविक रूप को स्वीकार करना सीखें। एक कुदाल को एक कुदाल ही बोलें—यौन अनैतिकता को “व्यभिचार” कहें, न कि “मैं थोड़ा सा प्रलोभन में पड़ता हूँ”, अशुद्ध विचारों को “अशुद्धता” कहें, न कि “मैं अपने विचार जीवन से संघर्ष कर रहा हूँ”, लालच को “लोभ जो कि मूर्तिपूजा है” कहें, न कि “मुझे लगता है कि मुझे अपनी प्राथमिकताओं को थोड़ा सुधारने की आवश्यकता है।” यह रूपरेखा इस पूरे खण्ड में चलती है। यह कितने शक्तिशाली रीति से स्वयं को धोखा देने को उजागर करती है—और हमारी सहायता करता है पाप को उजागर करने में जो हमारे हृदयों के छिपे हुए कोने में दुबकर बैठा है!

2. देखें कि आपका पाप वास्तव में परमेश्वर की उपस्थिति में क्या है। “इन्हीं के कारण परमेश्वर का प्रकोप आ रहा है” (3:6)। आत्मिक जीवन के विशेषज्ञ हमारी वासनाओं को क्रूस तथा कोप को सहने वाले मसीह की ओर घसीटने (यद्यपि वे लात मारते और चिल्लाते हुए होते हैं) की बात करते थे। मेरा पाप सदा के आनन्द की ओर नहीं—परन्तु पवित्र परमेश्वरीय अप्रसन्नता की ओर ले जाता है। इसके दण्ड के प्रकाश में अपने पाप के वास्तविक स्वरूप को देखें। बहुत सरलता से हम सोचते हैं कि अविश्वासियों की तुलना में मसीहियों में पाप कम गम्भीर है: “यह क्षमा किया गया है, है न?” यदि हम इसमें बने रहते हैं, तो नहीं (1 यूहन्ना 3:9)! पाप को स्वर्ग के दृष्टिकोण से देखें और उन बातों की लज्जा को अनुभव करें, जिनमें आप चला करते थे (कुलुस्सियों 3:7, रोमियों 6:21 को भी देखें)।

3. अपने पाप की असंगति को पहचानें। आपने “पुराने मनुष्यत्व” को उतार दिया है, और “नये मनुष्यत्व” को पहन लिया है। अब आप “पुराने मनुष्य” नहीं है। आपकी पहचान जो “आदम में” थी अब वह चली गई है। पुराना मनुष्यत्व “उसके [मसीह] साथ क्रूस पर चढ़ाया गया, कि हमारा पाप का शरीर [सम्भवत: “पाप के द्वारा नियंत्रित देह में जीवन”] निष्क्रिय हो जाए कि आगे को पाप के दास न रहें” (रोमियों 6:6)। नए मनुष्य नए जीवन जीते हैं। इससे कम कुछ भी “मसीह में” मेरी पहचान के विरोध में है। 

4. पाप को मार डालो (कुलुस्सियों 3:5)। यह अत्यधिक “सरल” है। इसे मना करें, इसे भूखा मरने दे ,और इसे अस्वीकार कर दें। आप मारने की पीड़ा के बिना पाप को “नष्ट” नहीं कर सकते। कोई दूसरा मार्ग नहीं है!

परन्तु ध्यान दें कि पौलुस इसे एक बहुत ही महत्वपूर्ण, व्यापक सन्दर्भ में स्थापित करता है। पाप को मारने का नकारात्मक  कार्य नहीं किया जा सकता है सुसमाचार की सकारात्मक  बुलाहट से अलग कि प्रभु यीशु मसीह को “धारण करना” है (रोमियों 13:14)। पौलुस कुलुस्सियों 3:12-17 में इसकी व्याख्या करता है। घर को झाड़ू लगाकर साफ करना हमें पाप के आगे आने वाले आक्रमण के लिए खुला छोड़ देता है। परन्तु जब हम अनुग्रह के सुसमाचार के “महिमामय अदला-बदली” के सिद्धांत को समझते हैं, तब हम पवित्रता में कुछ वास्तविक उन्नति करना आरम्भ करेंगे। जैसे-जैसे पापपूर्ण इच्छाओं और व्यवहारों को न केवल अस्वीकार  किया जाता है, किन्तु मसीह के समान अनुग्रह (3:12) और कार्यों (3:13) के लिए आदान-प्रदान  किया जाता है; जैसे-जैसे हम मसीह के स्वभाव को धारण किए हुए हैं और प्रेम के द्वारा उसके अनुग्रह में एक साथ रखे जाते हैं (पद) 14, न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन में परन्तु कलीसियाई संगति में भी (पद 12-16), मसीह का नाम और महिमा, हम में और हमारे मध्य प्रकट होता है और ऊँचा होता है (3:17)।

यह कुछ बातें हैं जो मैंने और मेरे मित्र ने उस स्मरणार्थ संध्या में की। हमें बाद में एक-दूसरे से पूछने का अवसर नहीं मिला कि, “आप कैसे प्रगति कर रहे हैं?” क्योंकि वह हमारी अंतिम वार्तालाप थी। कुछ महीने बाद उसकी मृत्यु हो गई। मैंने कई बार सोचा है कि बीच के महीनों में उसका जीवन कैसा था। परन्तु उसके प्रश्न की सत्यनिष्ठा व्यक्तिगत एवं पास्टरीय चिन्ता अभी भी मेरे मन में गूँजती है। उनका एक समान प्रभाव है जो चार्ल्स सिमियन ने कहा कि उसने अनुभव किया महान हेनरी मार्टिन के चित्र की आँखों से: “खिलवाड़ मत करो!”

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

सिनक्लेयर बी. फर्गसन
सिनक्लेयर बी. फर्गसन
डॉ. सिनक्लेयर बी. फर्गसन लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी विधिवत ईश्वरविज्ञान के चान्सलर्स प्रोफेसर हैं। वह मेच्योरिटी नामक पुस्तक के साथ-साथ कई अन्य पुस्तकों के लेखक हैं।