शिष्य ठोकर खाते हैं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्य ठोकर खाते हैं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का छठवां अध्याय है: शिष्यता

कोई अस्पष्टता नहीं है 1 यूहन्ना 1:8 में प्रेरित यूहन्ना की बात में: “यदि हम कहें कि हम में पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं, और हम में सत्य नहीं है।” इसलिए, ख्रीष्टिय सिद्धतावाद के लिए पथभ्रष्ट विचारों को—चाहे उद्देश्य कितने अच्छे हों, अलग रखा जा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस पत्र में यूहन्ना के सभी प्रोत्साहन तीन मौलिक सत्यों पर आधारित हैं: हमें पाप नहीं करना चाहिए (2:1), हम पाप करेंगे (1:8, 10), और हमारे पास पापों के लिए क्षमा तथा प्रायश्चित्त है (1:9; 2:1-2)।

यहाँ मेरा ध्यान इस तथ्य पर है कि ख्रीष्टीय लोग वास्तव में पाप करते हैं। यह सत्य केवल ख्रीष्ट में विश्वास के द्वारा केवल अनुग्रह से ही धर्मी ठहराए जाने के सिद्धांत का तार्किक और बाइबल पर आधारित परिणाम है, क्योंकि ख्रीष्ट की धार्मिकता हमारे ऊपर डाल दी गई है और इसी प्रकार हमारा दोष भी उसके ऊपर डाला गया है। हमारा धर्मी ठहराया जाना या परमेश्वर के सामने हमारी धर्मी स्थिति इसलिए नहीं है कि हम नए जन्म के कारण मूलभूत रूप से धर्मी हो गए हैं या हमारे भीतर धार्मिकता का संचार हुआ है। हम परमेश्वर के समक्ष धर्मी इसलिए खड़े होते हैं, क्योंकि वह उस वस्तु को हमारे खाते में डालता और उससे हमें ढांपता है, जिसे पहले के प्रोटेस्टेन्ट ईश्वरविज्ञानियों ने “पराई” या “परदेशी” धार्मिकता कहा, जो निश्चित रूप से ख्रीष्ट की धार्मिकता है। ख्रीष्ट की धार्मिकता पूर्ण है, अर्थात् यह परमेश्वर की पवित्र व्यवस्था की सभी मांगो को पूरा करती है।

इससे आगे, ख्रीष्ट की धार्मिकता का मूल्य अनन्त है, अर्थात् यह कभी समाप्त नहीं होती है। यह पूर्ण, कभी असफल न होने वाली, वस्तु-निष्ठ धार्मिकता है, जिसे हमारा विश्वास ख्रीष्ट के व्यक्तित्व और कार्य में थामता है। वास्तविक विश्वास विश्वासियों को ख्रीष्ट के साथ एकता में लाता है और इसीलिए वस्तु-निष्ठ रीति से उन्हें उसकी सिद्ध आज्ञाकारिता और पवित्र करने वाले लहू से ढांपता है। व्यक्ति-निष्ठ रीति से, हम कम से कम तीन वास्तविकताओं के प्रति जागृत होते हैं: (1) हमारे पतन की गहराई (रोमियों 7:13–19); (2) परमेश्वर को प्रसन्न करने की सच्ची इच्छा (फिलिप्पियों 2:13; हमारे पतित स्वभाव की चेतना और परमेश्वर की ओर से उसको प्रसन्न करने की इच्छा एक साथ उस तनाव को उत्पन्न करते हैं जिसके बारे में पौलुस रोमियों 7:12–25 में बात करता है); और (3) ख्रीष्ट में परमेश्वर के अनुग्रह की उदारता का ज्ञान जो पापियों को बचाता है (1 तीमुथियुस 1:15)।

इन सच्चाइयों पर आधारित होने और उन्हें गहराई से समझने को, हमें इस योग्य बनाना चाहिए कि न केवल हम 1 यूहन्ना 1:8 में यूहन्ना के दावे की सत्यता को समझें, परन्तु यह इस रीति से करें जो इस बात में हमें लापरवाह न बनाए कि हम ख्रीष्टीय होने के बाद भी, पापी बने रहते हैं। इसके विपरीत, विचार, शब्द और कार्य में हमारी असफलताओं की एक सच्ची समझ पापियों को बचाने वाले परमेश्वर के अनुग्रह को बढ़ाता है। और जब परमेश्वर के अनुग्रह की बड़ाई होगी, इससे कृतज्ञता उत्पन्न होती है जो परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले कार्य में स्वयं को प्रकट करती है। हाँ, शिष्य ठोकर खाते हैं, परन्तु परमेश्वर उनकी ठोकर का उपयोग करता है उन्हें अधिक से अधिक उस अनुग्रह दिखाने के लिए जो उनके सभी पापों से बढ़कर है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
केन जोन्ज़
केन जोन्ज़
रेव्ह. केन जोन्ज़, मयैमी में ग्लेन्डेल बैपटिस्ट चर्च के पास्टर हैं।