अप्रिय होने का भय - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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अप्रिय होने का भय

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पाचवां अध्याय है: भय

हमें पसंद किया जाना अच्छा लगता है। पसंद किए जाने का अर्थ है अभिलषित होना। और अभिलषित होने की लालसा मानव हृदय की सबसे शक्तिशाली प्रेरणाओं में से एक है। मैंने अभिलषित होने की इस भूख को साधारण लोगों को इतने अन्धाधुन्ध, और यहाँ तक मूर्खतापूर्ण व्यवहार करते हुए देखा है, कि मैंने सोचा कि क्या उनके सिर को बदल दिया गया था। मैं स्वयं ऐसा अन्धाधुन्ध मूर्ख रहा हूं—और आप भी रहे हैं।

अनाकर्षक, अरुचिकर, या ध्यान के अयोग्य होना, हमारी जैसी संस्कृति में सम्भवतः सबसे बुरी निन्दा में एक है। एक से अधिक बार, मैंने एक उत्तम स्त्री को एक संदिग्ध पुरुष के साथ जुड़ते हुए देखा केवल इसलिए क्योंकि बहुत समय बाद वह पहला व्यक्ति था जिसने  उसके लिए इच्छा व्यक्त की थी। और इसके विपरीत भी होता है। पसंद किया जाना हमारे सामाजिक सम्बन्धों की मुद्रा है, जो सब कुछ में दिखता है जैसे किसी समारोह में दूसरे से अधिक एक व्यक्ति के प्रति अव्यक्त खिंचाव या सोश्यल मीडिया पर वे ध्यान देने के डिजिटल चिह्नों में।

हम इस अनुभव को बाइबल के अनुसार कैसे समझ सकते हैं? आइए इसको समझने के लिए सहायता के लिए हम पवित्रशास्त्र से कुछ विषय को लें।

1. परमेश्वर ने हमें पसंद किए जाने के लिए बनाया। 

पतन से पहले अदन की वाटिका में लोगों के बीच में व्यक्तिगत अरुचि उपस्थित नहीं था। यह सत्य है, हमें यह देखने को नहीं मिलता है कि उन सुन्दर पेड़ों के नीचे लोगों का पूरा समाज कैसे रहा होगा। परन्तु यदि आदम और हव्वा के बीच का सम्बन्ध हमें विवाह से बढ़कर सम्बन्धों के विषय में कुछ सिखाता है, वह यह है कि परमेश्वर ने लोगों को एक दूसरे से जुड़ने के लिए बनाया, लज्जा और अस्वीकृति के भय से स्वतंत्र होकर। वे नंगे थे परन्तु लजाते न थे (उत्पत्ति 2:25)। परन्तु पाप के श्राप ने उन्हें अलग कर दिया, तथा भय और लज्जा को प्रवेश कराया, लोगों को इस बात से अवगत कराते हुए कि उनमें और अन्य लोगों के साथ कुछ गड़बड़ था (उत्पत्ति 3:7)। वे एक दूसरे से तथा अपने सृष्टिकर्ता से भी अलग हो गए। हम पसंद किए जाने के लिए बनाए गए थे क्योंकि हम एक दूसरे से सम्बन्ध बनाने के लिए बनाए गए थे।

2. पसंद किए जाने का अर्थ है अभिलषित होना। अभिलषित होना स्वीकृति का भाग है।

लोग उन वस्तुओं के प्रति आकर्षित होते हैं जिन्हें वे मूल्यवान समझते हैं। श्रेष्ठगीत की पुस्तक वर्णन करती है कि पति और पत्नी के बीच पुनर्स्थापन घनिष्टता कैसी दिखाई देती है, और यह हमें सभी मानवीय सम्बन्धों के विषय में एक सिद्धान्त सिखाती है: इच्छा और स्वीकृति के बीच की कड़ी। यह विषय अध्याय 7:10 में अच्छी रीति से सारांशित किया गया है: “मैं अपने प्रियतम की हूँ, वह मेरी लालसा करता रहता है।” दूसरे शब्दों में, एक पत्नी अपने पति के सम्बन्ध में पूरी तरह से सुरक्षित है क्योंकि वह स्पष्ट रीति से अपने पत्नी के लिए लालसा को व्यक्त करता है। यह सिद्धान्त मानवीय सम्बन्धों में लागू होता है: पसंद किया जाना एक दूसरे के साथ सम्बन्ध का एक प्रमुख तत्व है जिसके लिए हम बनाए गए थे। 

3. नापसंद किया जाने का अर्थ है अभिलषित न होना।

नापसंद होने के विषय में सबसे बुरी बात यह है कि यह हमें हमारे अनभिलषित विशेषताओं का स्मरण दिलाता है, हमारे विषय में वे विशेषताएं जो कम पाए जाते हैं। यह अस्वीकृत किए जाने का एक रूप है। हम अस्वीकार किए जाने से डरते हैं क्योंकि समुदाय में जोड़े जाने के लिए बनाए गए थे। 

इसलिए, यदि हम इस बात को उल्टा करते हैं, तो हम देखते हैं कि नापसंद होने का भय अन्ततः स्वीकार न किए जाने का भय है। यह तथ्य कि हम अस्वीकार किए जाने से डरते हैं, आश्चर्य की बात नहीं है, यह देखते हुए कि प्रभु ने हमें एक दूसरे से जुड़ने के लिए बनाया। परन्तु परमेश्वर ने हमें एक अधिक आवश्यक घनिष्टता के लिए बनाया है। हम परमेश्वर का होने के लिए बनाए गए थे। और यही हमें लोगों द्वारा नापसंद होने के भय से एक ठोस समाधान की ओर ले जाना आरम्भ करता है। 

4. हम सबसे पहले प्रभु का होने के लिए बनाए गए थे। 

प्रभु ने सर्वप्रथम हमें अपना होने के लिए और एक दूसरे का होने के लिए द्वितीय स्तर पर बनाया। लोगों द्वारा पसंद किए जाने का भय उस क्रम को संकट में डाल सकता है। इस प्रकार से: लोगों की दृष्टि में अभिलषित होने की इच्छा रखते हुए, हम प्रायः अपने प्रति परमेश्वर के श्रेष्ठ स्नेह के मूल्य को कम करते हैं। हम भूल जाते हैं कि हमारी मुख्य समस्या लोगों के द्वारा अस्वीकार किया जाना नहीं रहा है परन्तु परमेश्वर के द्वारा अस्वीकार किया जाना रहा है। लोगों के द्वारा पसंद किए जाने का भय हमें संकेत दे सकता है कि हम परमेश्वर के द्वारा इतनी गहराई के साथ ग्रहण किए जाने के अद्भुत सौभाग्य को भूल गए हैं कि यीशु कहता है कि पिता अपने लोगों को उसी प्रेम के साथ प्रेम करता है जो वह स्वयं यीशु से करता है (यूहन्ना 17:26)। ब्रह्माण्ड में इससे गहरा स्नेह कहीं नहीं है।

5. प्रभु आपको बहमूल्य जानता है—हम कह सकते हैं वह आपको पसन्द करता है और आप से प्रेम भी करता है।

यहां पर, मैं केवल उपचारात्मक सुसमाचार का प्रस्ताव नहीं कर रहा हूँ। उसका प्रेम केवल आपको यह आश्वासन दिलाने का उसका प्रयास नहीं है कि आप जितना स्वयं को श्रेय देते हैं, उससे अधिक चाहने योग्य हो। उसका प्रेम इस से कहीं बढ़कर है। इसका अर्थ है कि वह आपको किसी भी उपस्थित या अनुपस्थित व्यक्तिगत गुणों से कहीं अधिक गहरे कारणों से आपको बहमूल्य जानता है। वह आपको बहमूल्य जानता है क्योंकि उसने आपको अपने स्वयं के अस्तित्व के एक अनोखी अभिव्यक्ति के रूप में बनाया है। भले ही आपका पाप उस अभिव्यक्ति को विरूपित करता है, परमेश्वर का उद्देश्य बना रहता है आपको अन्तत: स्वयं के लिए अलग रखने के लिए। वह आप में ख्रीष्ट के स्वरूप को देखता है (रोमियों 8:29; 1 कुरिन्थियों 15:49)।

इस सब का अर्थ है कि परमेश्वर केवल आपसे प्रेम ही नहीं करता है। वह आपको पसंद करता है। अर्थात, अपनी पत्नी के प्रति सुलैमान का या हव्वा के प्रति आदम का स्नेह अपने लोगों के लिए परमेश्वर की इच्छा के धुंधली परछाइयाँ थीं। वह उन्हें महत्व देता है क्योंकि ख्रीष्ट में उन पर अपना प्रेम उन्हें देने के द्वारा उन्हें मूल्यवान बना दिया।

परमेश्वर के द्वारा पसंद किया जाना उसके प्रेम का परिणाम है। जब आप उस सिद्ध प्रेम पर भरोसा रखते हैं, लोगों के द्वारा नापसंद होने का भय की पकड़ छूट जाएगी।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
जेरेमी पियर
जेरेमी पियर
डॉ जेरेमी पियर और लुइविल कन्टिकी के सदर्न बैपटिस्ट थियोलॉजिकल सेमिनरी में छात्रों के अध्यक्ष तथा बाइबल काउंसलिंग के सहायक प्रोफेसर है, तथा क्लिफ्टन बैपटिस्ट चर्च में पास्टर और द पास्टर एंड काउंसलिंग नामक पुस्तक के सह-लेखक हैं।