पर्याप्त न होने का भय - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पर्याप्त न होने का भय

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का छठवां अध्याय है: भय

क्या आप कभी इस तथ्य के विषय में सोचने के लिए रुके हैं कि हम एक समय में रहते हैं जब, यदि आप चाहें, तो आपके पास दिन के होने वाली लगभग सभी घटनाओं की निरीक्षण करने, अभिलेख रखने और मूल्यांकन करने के लिए तकनीक अस्तित्व में है। कुछ स्तर तक, यह तकनीक और जानकारी का अन्तर्वाह हमें नियंत्रण की भावना देता है। और नियंत्रण कुछ ऐसी बात है जिसकी खोज हम में कई लोग करते हैं, विशेषकर जब हम भयभीत होते हैं। भय और नियंत्रण का पारस्परिक सम्बन्ध है। जितना हम भय मानते हैं, उतना ही हम नियंत्रण में होना चाहते हैं। हम जितना नियंत्रण करने का प्रयत्न करते हैं, उतना ही हम भय मानते हैं। और यह क्रम चलता रहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि हम ऐसे समय में रहते हैं जब जीवन के लगभग हर क्षेत्र में भय अधिक है: आत्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक। न केवल हम अपरिचित से डरते हैं, परन्तु हम डरते हैं कि हम स्वयं विफल हो सकते हैं जब हम इन क्षेत्रों में विश्वासयोग्यता से जीना चाहते हैं। भय के वास्तविक परिणाम होते हैं, जो हमें, नियंत्रण में लाने के प्रयास में, स्वयं को और दूसरों की अस्वास्थ्यकर और सम्भावित विनाशकारी अपेक्षाओं को स्थापित करने के लिए अगुवाई कर सकते हैं।

क्या आप प्रत्येक सुबह इस अपेक्षा के साथ उठते हैं कि आप जो कहेंगे, करेंगे, और सोचेंगे वह सब सिद्ध होगा? यदि आप करते हैं, और आप अपने आप के साथ खरे हैं, तो आप शीघ्रता से समझेंगे कि यह प्राप्त करने से परे और अवास्तविक है (रोमियों 3:10)। फिर भी, जिस सिद्धता की खोज कई लोग अभी भी करते हैं कुछ सीमा तक विफलता के डर के कारण है। विफलता का डर बहुत सामान्य है। पति लोग प्रदान करने के सम्बन्ध में अपने परिवारों के लिए विफल नहीं होना चाहते हैं। विशेष रूप से, माताएं, अपने बच्चों के पोषण में असफल नहीं होना चाहती हैं। छात्र अपने शैक्षणिक प्रदर्शन में अपने प्राध्यापकों या माता-पिता को निराश नहीं करना चाहते हैं। एक अर्थ में, ये भय अच्छे और स्वस्थ्य हैं। वे हमें प्रभावित करते हैं और उन लोगों के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करते हैं जिन से हम प्रेम करते हैं और जिनका सम्मान करते हैं। दूसरी ओर, जब असफलता का भय स्वयं से अवास्तविक अपेक्षाओं, अस्वास्थ्यकर कार्य या अध्ययन के स्वभाव, या दूसरों की दृष्टि में कभी भी पर्याप्त न होने की चिन्ता की ओर ले जाता  है, हम सरलता से निराशा, चिन्ता और पाप में गिर सकते हैं।

शैतान को हमारी आँखों को यीशु से हटाना अच्छा लगता है। वह चाहता है कि हम अपनी दृष्टि को नीचे की ओर और अन्दर की ओर झुकाएँ–स्वयं की ओर–हमें यह सोचने के लिए लुभाते हुए कि हमारे पास सभी बातों को नियंत्रित करने के लिए परमेश्वर के सदृश सामर्थ्य है, यहां तक कि स्वयं के विषय में दूसरों की धारणाओं को भी। दुष्ट के आक्रमण के मध्य, हमें यह स्मरण रखने की आवश्यकता है कि “वह जो तुम में है, उस से जो संसार में है, कहीं बढ़कर है” (1 यूहन्ना 4:4)। परमेश्वर नियंत्रण में है; इसलिए, हमें भयभीत नहीं होना चाहिए (यशायाह 43:1)। केवल वह ही सिद्ध है और सब कुछ को अच्छी रीति से करता है। इसलिए, हम उस पर भरोसा कर सकते हैं और उसमें विश्राम कर सकते हैं, यह मानते हुए कि हम सिद्ध नहीं हैं और हमारे कोई भी कार्य धर्मी नहीं है परन्तु वह सिद्ध है और उसके कार्य धर्मी हैं। उसके शिष्यों के रूप में हमारा दैनिक लक्ष्य लोगों को उसकी सिद्धता, उसकी धार्मिकता और उसकी महिमा की ओर इंगित करना होना चाहिए, न कि हमारे कार्यों की ओर।

संसार और शरीर और शैतान के विरुद्ध नियमित चलने वाले युद्ध के लिए ख्रीष्टियों को प्रतिदिन उन अपेक्षाओं का मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है जो वे स्वयं से और दूसरों से रखते हैं यह देखने के लिए कि क्या वे परमेश्वर को आदर देने वाली हैं। हमारा आरम्भिक बिन्दु सदैव परमेश्वर का सत्य होना चाहिए, जिस में हम सीखते हैं कि मनुष्य पतित है और असिद्ध है। मैं जानता हूँ कि यह एक सरल और सुस्पष्ट बिन्दु है, परन्तु यह कहा जाना चाहिए: आप सिद्ध नहीं हैं। मैं सिद्ध नहीं हूँ। आपका जीवनसाथी सिद्ध नहीं है। आपके पास्टर सिद्ध नहीं हैं। परन्तु परमेश्वर सिद्ध है (भजन 18:30)। इससे आपको चैन की अनुभूति होनी चाहिए। आपके भय और आपकी असफलताओं के मध्य, आप उसकी सिद्धता, भलाई, सच्चाई और प्रेम में विश्राम कर सकते हैं (व्यवस्थाविवरण 32:4)। वह कभी आपको निराश नहीं करेगा।

बहुधा, परमेश्वर हमें हमारी असफलताओं और निराशाओं के माध्यम से महत्वपूर्ण पाठ सिखाता है ताकि हम उस पर निर्भर रहें। भजन 118:8 हमें स्मरण दिलाता है, “यहोवा की शरण लेना मनुष्य पर भरोसा रखने से उत्तम है।” एक और पाठ जो वह हमें सिखाता है यह है कि हमारी (या दूसरों की) असफलताओं और त्रुटियों के माध्यम से भी परमेश्वर सम्प्रभुता पूर्वक अपने वांछित अन्त को लाने के लिए कार्य कर रहा है। परमेश्वर न केवल अन्त को निर्धारित करता है, परन्तु वह उन अन्त के साधनों को भी निर्धारित करता है। यहां तक कि हमारे भय और असफलताओं में वह रहस्यमय रीति से भलाई के लिए कार्य करता है (रोमियों 8:28)। वह हमें यह भी सिखाता है कि हमारी असफलताओं के पश्चात भी, हमें हार नहीं माननी चाहिए परन्तु जहाँ भी परमेश्वर ने हमें सेवा करने के लिए बुलाया है वहाँ हमें आगे बढ़ना है और उत्कृष्टता का पीछा करना चाहिए (गलातियों 6:9; फिलिप्पियों 3:13–14)।

हम यह नहीं जानते कि सफलताओं या असफलताओं के विषय में कल क्या होगा। उस नियंत्रण के पश्चात जो हम सोच सकते हैं हम रखते हैं हमारी दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या और उसके परिणाम के सम्बन्ध में, हमें स्मरण रखना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि हम पूरी रीति से परमेश्वर की दया और अनुग्रह पर निर्भर हैं। आइए हम असफलता से न डरें और न ही स्वयं में या दूसरों में विश्राम को खोजें, परन्तु हमें केवल परमेश्वर पर निर्भर रहना चाहिए, जो सब वस्तुओं का सृष्टिकर्ता और पालनहारा है। वह, जैसा कि लोकप्रिय स्तुति गीत कहता है, “हमारे परमेश्वर, अतीत में हमारी सहायक, आने वाले वर्षों के लिए हमारी आशा, आन्धी में हमारा शरणस्थान, और हमारा शाश्वत घर है।”

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
केविन स्ट्रूय्क
केविन स्ट्रूय्क
रेव्ह. केविन स्ट्रूय्क सैनफोर्ड, फ्लॉरिडा में सेंट एंड्रयू चैपल में एक सहयोगी पास्टर हैं, और ऑरलैंडो, फ्लॉरिडा में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी के स्नातक हैं।