परमेश्वर का राज्य और पवित्रशास्त्र - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
परमेश्वर का राज्य क्या है?
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परमेश्वर के राज्य को प्राप्त करना
19 अक्टूबर 2023
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परमेश्वर का राज्य और पवित्रशास्त्र

ख्रीष्ट और उसके प्रेरितों और नबियों ने शिक्षा दी कि पवित्रशास्त्र का प्रत्येक भाग हर दूसरे भाग से मेल खाता है या सहमत है। सम्पूर्ण बाइबल एक सच्चे विश्वास को प्रकट करती है—अर्थात् एक सुसंगत विश्वास की प्रणाली को, एक कथा को, और परमेश्वर के विश्वासयोग्य दासों के लिए जीवन के एक मार्ग को। परन्तु यह समझना सरल नहीं है कि बाइबल की प्रत्येक बात कैसे व्यवस्थित है।

समस्या यह है कि पवित्रशास्त्र एक-एक विषय के रूप में विश्वास की प्रणाली को नहीं समझाता है। हम एक-एक अध्याय में पवित्रशास्त्र की एक कथा को नहीं देखते हैं। उसका नैतिक मार्गदर्शन सरलता से व्यवस्थित नियमों की सूची में नहीं पाया जाता है। इसके विपरीत, बाइबल छियासठ पुस्तकों का संग्रह है, जो लगभग चालीस लेखकों द्वारा 1500 वर्षों के समयकाल में कई साहित्यिक शैलियों में लेखी गईं हैं। ये लेखक पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित थे कि वे अनेक रीतियों से कई विषयों को सम्बोधित करें जिससे कि परमेश्वर के लोग विभिन्न परिस्थितियों में मार्गदर्शन पाएँ।

तो, ये सब विभिन्न बातें एक साथ कैसे मेल खाती हैं?

बाइबल में पाई जाने वाली सुसंगत विश्वास की प्रणाली, कथा, और विश्वासयोग्य जीवन जीने के लिए इसका एकीकृत मार्ग कुछ कायलताओं को प्रतिबिम्बित करता है जिसे परमेश्वर के आत्मा ने प्रत्येक बाइबल के लेखक के हृदय और मस्तिष्क में डाला—अर्थात् परमेश्वर के राज्य के विषय में कायलताएँ। इस बात में कोई सन्देह न करें: परमेश्वर का राज्य बाइबल के कई विषयों में से एक ही नहीं है। यह प्रत्येक बाइबलीय खण्ड के सतह के नीचे पाया जाता है। यह बाइबल में लिखी गई प्रत्येक बात को सहारा देता है और जोड़ता है।

परमेश्वर के राज्य के विषय में बाइबल की अवधारणा जटिल है, परन्तु मैं पवित्रशास्त्र में पाए जाने वाले परमेश्वर के राज्य से सम्बन्धित तीन पहलूओं को संक्षेप में समझाऊँगा: (1) परमेश्वर ही परमेश्वर के राज्य का राजा है; (2) सृष्टि परमेश्वर के राज्य का स्थान है; और (3) मनुष्य परमेश्वर के राज्य के दास हैं।

परमेश्वर के राज्य का राजा

निस्सन्देह, परमेश्वर का वचन परमेश्वर के विषय में कई विभिन्न बातों को प्रकट करता है, परन्तु सर्वप्रथम यह परमेश्वर को सम्पूर्ण सृष्टि के राजा के रूप में प्रस्तुत करता है। बाइबल के सब लेखकों ने सर्वसम्मति से पुष्टि की कि परमेश्वर सर्वदा से सब वस्तुओं पर राज्य करता आया है और करेगा। जैसा कि भजनकार ने घोषणा की, “तेरा राजसिंहासन अनादिकाल से स्थिर है; तू सर्वदा से है” (भजन 93:2)।

बाइबल से परिचित सब लोग जानते हैं कि नया और पुराना नियम दोनों परमेश्वर को “राजा” कहते हैं। वे सैकड़ों बार उसके “सिंहासन,” “प्रभुता,” “शासन,” या उसके “राज्य” की बात करते हैं।

परन्तु पवित्रशास्त्र राजा के रूप में परमेश्वर का जयजयकार कई अन्य रीतियों से भी करता है। बाइबलीय भाषा में, मानव राजाओं को प्रायः महान् वास्तुकार और निर्माता, सामर्थी सेनाओं के अगुवों, शत्रुओं का विनाश करने वाले योद्धाओं, उनके लोगों के उद्धारकर्ताओं, अति बुद्धिमान पुरुषों, दयालु न्यायाधीशों, वाचा को लागू करने वालों, अच्छे चरवाहों, और अपने लोगों से प्रेम करने वाले पिताओं के रूप में सराहा जाता है। मानव राजाओं को अपने राज्यों में ज्योति के स्रोत और जीवन की आशा के रूप में सराहा जाता था। क्या मानव राजाओं के ये प्राचीन चित्रण आपको जाने-पहचाने सुनाई पड़ते हैं? पवित्रशास्त्र बारम्बार परमेश्वर को सब के ऊपर राजा के रूप में ऊँचा उठाने के लिए इन रीतियों से परमेश्वर के विषय में बात करता है।

यदि हम यह जानने की आशा रखते हैं कि बाइबल कैसे सुसंगत है, हमें सर्वदा उस दृढ़ कायलता पर वापस जाना चाहिए जो बाइबलीय लेखकों द्वारा लिखी गई प्रत्येक बात से जुड़ी हुई है: अर्थात् कि परमेश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का सम्प्रभु राजा है और “क्योंकि उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए सब कुछ है। उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन” (रोमियों 11:36)।

परमेश्वर के राज्य का स्थान

परमेश्वर के राज्य का दूसरा पहलू यह है कि सृष्टि परमेश्वर के राज्य का स्थान है। यीशु ने इस सर्वव्यापी बाइबलीय शिक्षा को तब सारांशित किया जब उसने हमें प्रार्थना करना सिखाया, “तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे ही पृथ्वी पर भी पूरी हो” (मत्ती 6:10)। ध्यान दें कि यीशु परमेश्वर की इच्छा को कहाँ पूरी होते हुए देखना चाहता था—जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे ही पृथ्वी पर।

स्वर्ग में परमेश्वर के सिंहासन के कक्ष में प्रत्येक प्राणी उसकी आज्ञाओं को मानता है (2 इतिहास 18:18; अय्यूब 1:6; यशायाह 6:1–3; प्रकाशितवाक्य 4:2–11)। यदि आप स्वर्ग में परमेश्वर के महिमामय सिंहासन के सामने होते तो आप भी ऐसा ही करते। किसी न किसी रीति से पवित्रशास्त्र का प्रत्येक खण्ड प्रकट करता है कि परमेश्वर इतिहास के लिए अपनी अचूक, राजसी योजना को कैसे पूरी कर रहा है, और कि कैसे जब उसकी आज्ञाओं के प्रति आज्ञाकारिता पृथ्वी भर में फैलती है तो वह महिमा पाएगा।

उत्पत्ति के आरम्भिक अध्यायों में, परमेश्वर ने इस लक्ष्य के साथ एक गुप्त वाटिका लगाया कि एक दिन आज्ञाकारी दासों के साथ उसका राज्य सम्पूर्ण पृथ्वी को भरेगा। पाप के कारण मानव जाति को अदन से निकाला गया और भौतिक संसार में भ्रष्टता आयी। फिर भी, मूसा के दिनों में, परमेश्वर इस्राएल को पुनः उस स्थान में ले गया जो सम्भवतः मूल अदन का स्थान था। परमेश्वर का राज्य प्रतिज्ञा के देश में और उसकी सीमाओं के बाहर बढ़ा, विशेषकर दाऊद और सुलैमान के दिनों में। परन्तु समय के साथ-साथ लोगों ने परमेश्वर के प्रति विद्रोह किया, और उसने उन्हें बन्धुवाई में भेज दिया। शताब्दियों के लिए पृथ्वी पर परमेश्वर का राज्य दुर्बल होता गया। फिर भी, यद्यपि वे इतिहास के इस बुरे समय की प्रत्याशाा कर रहे थे, परमेश्वर के नबियों ने साहस के साथ घोषणा की कि एक दिन “पृथ्वी के छोर छोर के लोग हमारे परमेश्वर के उद्धार को देख सकें” (यशायाह 52:10)।

नया नियम समझाता है कि नबियों की इस आशा को ख्रीष्ट कैसे पूरा करता है। उसने प्रतिज्ञा के देश में सेवा करते हुए आरम्भ किया और अपने शिष्यों को पृथ्वी के प्रत्येक देश में परमेश्वर के राज्य को फैलाने के लिए भेजा। यीशु अभी भी सुसमाचार की उद्घोषणा के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में राज्य को बढ़ा रहा है, और जब वह महिमा में लौटेगा परमेश्वर का राज्य पृथ्वी के छोरों तक पहुँचेगा। उस दिन, ख्रीष्ट का प्रत्येक अनुयायी देखेगा कि “संसार का राज्य हमारे प्रभु और उसके ख्रीष्ट का राज्य बन गया है और वह युगानुयुग राज्य करेगा” (प्रकाशितवाक्य 11:15)।

बाइबल का लगभग प्रत्येक पृष्ठ हमारे ग्रह की घटनाओं के इतिहास के विषय में बात करता है। यदि हम समझना चाहें कि ये अनगिनत घटनाएँ एक साथ कैसे सटीक बैठती हैं, तो हमें सर्वदा स्मरण रखना चाहिए कि भूतकाल, वर्तमान, और भविष्य की सभी घटनाएँ हमारे ईश्वरीय राजा की एक महान् योजना के अनुसार होती हैं। ये प्रकट करती हैं कि कैसे परमेश्वर महिमान्वित होता है जब उसका राज्य आता और उसकी इच्छा पृथ्वी पर वैसे ही पूरी होती है जैसे कि स्वर्ग में पूरी होती है।

परमेश्वर के राज्य के सेवक

यह हमें बाइबल के प्रत्येक लेखक के विश्वास के तीसरे पहलू की ओर ले आता है: मनुष्य परमेश्वर के राज्य के सेवक हैं। बाइबल में सब प्रकार के लोग सब प्रकार के कार्य करते हुए दिखते हैं। परन्तु इन सब से ऊपर, पवित्रशास्त्र सिखाता है कि पृथ्वी भर में परमेश्वर के राज्य को फैलाने के लिए मनुष्य किसी न किसी रीति से उपयोग किए जाएँगे।

इस लक्ष्य को स्वयं परमेश्वर एक क्षण में पूरा सकता था, परन्तु उसने इतिहास में लोगों को उपयोग करने का निर्णय लिया। निस्सन्देह, पाप ने मनुष्यों को इतना दूषित किया है कि हम सब को पापों की क्षमा और परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर होने की आवश्यकता है। और जबकि स्वर्गदूतों की भी भूमिकाएँ है, पवित्रशास्त्र का प्रत्येक भाग प्रकट करता है कि परमेश्वर के राज्य के आने का प्राथमिक साधन छुड़ाए गए, विश्वासयोग्य मनुष्य हैं।

प्रभु ने मानव जाति को सबसे पहले “[अपना] स्वरूप और [अपनी] समानता” कहा (उत्पत्ति 1:26)। बाइबल के समय में, इस्राएल के पास का प्रत्येक देश अपने राजाओं को अपने देश के ईश्वरों का स्वरूप कहते थे। ये राजा यह जानकर कि उनके ईश्वर क्या चाहते थे और फिर उन ईश्वरों की इच्छा को पूरी करके अपने ईश्वरों के हित की ओर से कार्य करते थे। परन्तु सच्चे बाइबलीय दृष्टिकोण से, सभी मनुष्यों को सच्चे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करना है और पृथ्वी पर उसकी इच्छा को पूरी करना है।

आदि में, परमेश्वर ने सम्पूर्ण मानव जाति के अभिभावकों को बुलाहट दी कि वे फलवन्त हों और परमेश्वर की सेवा करते हुए सम्पूर्ण जगत पर प्रभुता करें (उत्पत्ति 1:28)। जिस प्रकार से अन्य राष्टों ने झूठे शैतानी ईश्वरों के उद्देश्यों को पूरा किया, सम्पूर्ण विश्व के सच्चे राजा ने इस्राएल देश को, और अब मसीही कलीसिया को, “याजकों का राज्य और पवित्र जाति” (निर्गमन 19:6; 1 पतरस 2:9) के रूप में अपनी सेवा करने के लिए बुलाया। इस्राएल के जैसे ही आपको और मुझे “उसके महान् गुणों को प्रकट करना है जिसने [हमें] अन्धकार से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है” (1 पतरस 2:9)। परमेश्वर के सभी छुड़ाए गए स्वरूप-धारकों को संसार भर में परमेश्वर के राज्य की ज्योति को फैलाने के लिए बुलाया गया है।

परन्तु यह ईश्वरीय योजना सफल कैसे होगी? निश्चय ही पापी मनुष्य सर्वदा कम पाए जाएँगे। सम्पूर्ण पुराने नियम में परमेश्वर के विश्वासयोग्य लोग एक ऐसे जन के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे जो आकर परमेश्वर के उद्देश्यों को पूरा करेगा। नए नियम के विश्वासी होने के नाते हम इस जन का नाम जानते हैं—नासरत का यीशु। पिता का शाश्वत पुत्र देहधारी होकर हमारे जैसा बन गया। दाऊद के सिद्ध धर्मी पुत्र के रूप में, उसने क्रूस पर न केवल अपने राज्य के सेवकों के पापों के लिए प्रायश्चित किया, परन्तु वह मृतकों में से जी भी उठा और वह अब अपने पिता दाऊद के स्वर्गीय सिंहासन पर बैठा है। वहाँ से वह सब राष्ट्रों पर राज्य करता है, अपने लोगों पर अपना आत्मा उण्डेलता है, और हमारे द्वारा की जा रही सुसमाचार की उद्घोषणा के द्वारा अपने राज्य में और अधिक लोगों को एकत्रित करता है। जब वह महिमा में लौटेगा, यीशु कार्य को पूरा करेगा। वह परमेश्वर के राज्य को पृथ्वी के प्रत्येक छोर तक फैलाएगा।

यदि हम यह समझना चाहें कि बाइबल की सब बातों कैसे मेल खाती हैं, तो हमें संसार द्वारा मानव जाति के विषय में कही जाने वाली बातों को ठुकराना होगा। पाप इतना विनाशकारी क्यों है? ख्रीष्ट में उद्धार इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं? पवित्रशास्त्र इस बात पर इतना ध्यान क्यों देता है कि लोगों को अपना दैनिक जीवन कैसे जीना चाहिए? यह इसलिए है क्योंकि हम परमेश्वर के स्वरूप में हैं, और हमें उसके राज्य की सेवा करने के लिए बुलाया गया है। क्या यह अद्भुत नहीं है? राजा ने निर्धारित किया कि वह अपने राज्य को पृथ्वी के छोर-छोर तक फैलाने के लिए आपके और मेरे जैसे लोगों के द्वारा कार्य करेगा। जिस प्रकार से स्वर्ग के चौबीस प्राचीनों ने यीशु की स्तुति की, “तू ने वध होकर अपने लहू से प्रत्येक कुल, भाषा, लोग और जाति में से परमेश्वर के लिए लोगों को मोल लिया है . . . और वे पृथ्वी पर राज्य करेंगे” (प्रकाशितवाक्य 5:9-10)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रिचर्ड एल. प्रैट जूनियर
रिचर्ड एल. प्रैट जूनियर
डॉ. रिचर्ड एल. प्रैट जूनियर थर्ड मिल्लेनियम मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें ही गेव अस स्टोरीज़ सम्मिलित है।