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भेदसूचक साहित्य को कैसे पढ़ें?

How-to-Read-Apocalyptic-Literature

ऐन्ड्रियास जे. कोस्टेनबर्गर

भेदसूचक साहित्य संसार के अन्त समय से सम्बन्धित छवियों और शिक्षाओं को प्रस्तुत करता है, जो बहुधा अत्यधिक प्रतीकात्मक रूप में होती हैं। सोसाइटी ऑफ बिब्लिकल लिटरेचर की शैली परियोजना द्वारा विकसित एक मानक परिभाषा कहती है कि भेदसूचक साहित्य “यह एक प्रकार का ‘प्रकाशनात्मक साहित्य’ है, जिसमें वर्णनात्मक ढाँचे के भीतर एक अलौकिक प्राणी के द्वारा किसी मानव प्राप्तकर्ता को एक ऐसे रहस्य का प्रकाशन दिया जाता है जो पारलौकिक वास्तविकता का खुलासा करता है।” निम्नलिखित सिद्धान्त हमें इस अनूठी बाइबल शैली की साहित्यिक विशेषताओं के अनुसार भेदसूचक साहित्य की व्याख्या करने में सहायता कर सकते हैं।    

1. ध्यान रखें कि भेदसूचक साहित्य बाइबलीय नबूवत का एक उपसमूह है।

प्रकाशितवाक्य में कई बार, पुस्तक की शैली को “नबूवत” के रूप में पहचाना गया है (प्रकाशितवाक्य 22:7, 10, 18, 19)। पुराने नियम की नबूवत शैली में परमेश्वर के लोगों की वर्तमान परिस्थितियों को सम्बोधित करना और भविष्य की नबूवत करना दोनों सम्मिलित हैं। इसी प्रकार, प्रकाशितवाक्य में, यीशु ने अपने समय में स्थित कलीसिया को कहने के लिए बहुत शब्द प्रयोग किए हैं (प्रकाशितवाक्य 2-3) और यह पुस्तक संसार के अन्त में यीशु की महिमामय पुनरागमन के साथ-साथ उसके पहले और बाद की घटनाओं का वर्णन भी करती है, जो कि शाश्वत अवस्था (अर्थात्, नया स्वर्ग और पृथ्वी) में समाप्त होती है। इस कारण से, हमें इन पुस्तकों की प्रतीकात्मक सामग्री के होते हुए भी, भेदसूचक साहित्य की व्याख्या करते समय ऐतिहासिक आयाम को कम नहीं करना चाहिए।  

2. प्रतीकों और उनके वास्तविक जीवन के सन्दर्भों के बीच अन्तर करें।

भेदसूचक साहित्य प्रायः अन्त समय की घटनाओं के रेखा-चित्रीय, यहाँ तक ​​कि नाट्कीय, दृश्यों को दर्शाता है। परन्तु जबकि दर्शन वास्तविक होते हैं और प्रायः किसी ऐतिहासिक व्यक्ति या घटना को चित्रित करते हैं, इन्हें प्रतीकात्मक रूप में चित्रित किया जाता है। इसके लिए वास्तविक प्रतीक और सन्दर्भ–अर्थात्, सम्बन्धित प्रतीक द्वारा दर्शाये गए व्यक्ति या घटना– के बीच सावधानीपूर्वक अन्तर करने की आवश्यकता है।  

एक सरल उदाहरण प्रकाशितवाक्य 12-13 होगा, जिसमें दो प्रतीकात्मक पात्र, एक अजगर और एक स्त्री सम्मिलित हैं। अजगर (शैतान) को एक क्रूर शक्ति के रूप में चित्रित करता है, जबकि नारी कलीसिया— या अधिक व्यापक रूप से कहे तो, परमेश्वर के लोगों—का प्रतीक है, जो एक पुत्र, मसीहा, को जन्म देते हैं। अजगर के विषय में, व्याख्या इस स्थल में ही दी गई है: “तब वह बड़ा अजगर नीचे गिरा दिया गया, अर्थात् वही पुराना साँप जो इबलीस और शैतान कहलाता है और जो सम्पूर्ण संसार को भरमाता है” (प्रकाशितवाक्य 12:9)। अन्य विषयों में, व्याख्या नहीं दी गई है, और व्याख्याकार को किसी दिए गए प्रतीक का सबसे सम्भावित सन्दर्भ निर्धारित करना चाहिए।    

3. विस्तृत युगान्तविज्ञानीय योजनाओं और अन्त समय के परिदृश्यों में न बहें, वरन् मुख्य उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित करें।

अपनी जिज्ञासा को हम पर हावी होने देना सरल है, परन्तु जैसा कि प्रभु यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा था, “उन समयों अथवा कालों का जानना जिन्हें पिता ने निर्धारित किया है, तुम्हारा काम नहीं” (प्रेरितों 1:7)। प्रकाशितवाक्य का मुख्य उद्देश्य ईशन्यायवाद (थियोडिसी) है—अर्थात् परमेश्वर के न्याय और धार्मिकता का प्रदर्शन। परमेश्वर निश्चित रूप से ख्रीष्ट में विश्वासियों को निर्दोष ठहराएगा और अविश्वासियों का न्याय करेगा। भेदसूचक साहित्य विश्वासियों को आश्वस्त करने के लिए परिकल्पित किया गया है कि भले ही उन्हें वर्तमान पीड़ा और उत्पीड़न का सामना करना पड़े, परमेश्वर इतिहास को उसके अन्तिम निष्कर्ष पर लाएगा। प्रभु यीशु अपनी पूरी महिमा के साथ लौटेगा, दुष्टों का न्याय करेगा और विश्वासियों को परमेश्वर की उपस्थिति में लाएगा जहाँ वे अनन्तकाल तक रहेंगे। साथ ही, प्रकाशितवाक्य दर्शाता है कि परमेश्वर ने अविश्वासियों को ख्रीष्ट पर विश्वास करने का हर अवसर दिया है। यह केवल उनके हठी अविश्वास के कारण है कि उनका अंततः न्याय किया जाएगा।     

4. भेदसूचक साहित्य की व्याख्या प्रामाणिक रूप से और छुटकारे के इतिहास के अनुसार करें।

भेदसूचक साहित्य का समग्र पवित्रशास्त्र के प्रामाणिक संग्रह में एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह पवित्रशास्त्र को उसकी अन्तिम छोर प्रदान करता है, जो एक बगीचे में आरम्भ हुआ लेकिन एक नगर में समाप्त होता है। बाइबल की कहानी का आरम्भ एक पुरुष और एक स्त्री के साथ होती है और परमेश्वर के सिंहासन के चारों ओर एकत्रित हुई असंख्य भीड़ के साथ समाप्त होती है। इन दो छोरों के बीच, हम मानवता को सृष्टिकर्ता के विरुद्ध विद्रोह करते हुए देखते हैं, जो एक महान् उद्धार के कार्य को गति देता है, जिसका समापन यीशु के परमेश्वर के “मेमने” के रूप में प्रथम आगमन में होता है जो संसार के पापों को दूर ले जाता है (यूहन्ना 1:29, 36)। राष्ट्रों के लिए एक सुसमाचार-प्रसार की एक अवधि के बाद, भेदसूचक साहित्य यीशु के गौरवशाली, विजयी दूसरे आगमन को “यहूदा के गोत्र के सिंह” के रूप में चित्रित करता है (प्रकाशितवाक्य 5:5)।      

इसलिए, प्रकाशितवाक्य का उद्देश्य पृथ्वी के प्रलयकारी अन्त की रंगीन भेदसूचक छवियों को एक प्रकार के परमाणु विनाश के रूप में प्रस्तुत करने का नहीं है वरन् अपने लोगों के साथ परमेश्वर के वाचा के कार्य की परिपूर्णता को दिखाना है। इस प्रकार, पुस्तक के अन्त की घोषणा एक उपयुक्त निष्कर्ष के रूप में कार्य करती है: “देखो, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है, वह उनके मध्य निवास करेगा। वे उसके लोग होंगे, तथा परमेश्वर स्वंय उनके मध्य रहेगा” (प्रकाशितवाक्य 21:3)। 

यह लेख व्याख्याशास्त्र संग्रह का भाग है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ऐन्ड्रियास जे. कोस्टेनबर्गर
ऐन्ड्रियास जे. कोस्टेनबर्गर
डॉ. ऐन्ड्रियास जे. कोस्टेनबर्गर कैन्ज़स सिटी, मिज़ोरी में मिडवेस्टर्न बैप्टिस्ट थियोलॉजिकल सेमिनेरी में नए नियम और बाइबलीय ईश्वरविज्ञान के अनुसंधान प्राध्यापक तथा बाइबल अध्ययन केन्द्र के निर्देशक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें सुसमाचारों का यीशु (द जीजस ऑफ द गॉस्पेल्स) और इब्रानियों से प्रकाशितवाक्य पर हस्तपिस्तिका (हैंडबुक ऑन हेब्रूस थ्रू रेवेलेशन) सम्मिलित हैं।