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सुसमाचारों को कैसे पढ़ा जाना चाहिए?

-बेंजामिन ग्लैड

सुसमाचार कि पुस्तकें चार वृत्तान्त हैं जो “सुसमाचार”–ख्रीष्ट के जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान–का वर्णन करते हैं। फिर भी उन्हें प्रायः त्रुटिपूर्ण ढ़ंग से समझा जाता है या कम आँका जाता है। सुसमाचारों को पढ़ने के लिए यहाँ चार सामान्य परन्तु ठोस विशेषताएँ दी गई हैं।

1. प्रत्येक पद और प्रत्येक खण्ड को ख्रीष्ट की पहचान और सन्देश के प्रकाश में पढ़ें।

प्रायः हम द्वितीयक पात्रों (उदाहरण के लिए, शिष्यों, अन्धे बरतिमाई, मरियम मगदलीनी इत्यादि) पर ध्यान केन्द्रित करने की भूल करते हैं, न कि स्वयं प्रभु यीशु पर। सम्भवतः तीन वर्षों की अपनी सेवकाई में प्रभु यीशु ने हज़ारों नहीं तो सैकड़ों लोगों को शिक्षा दी, चंगा किया और उनके साथ बातचीत की। यूहन्ना 21:25 यहाँ तक कहता है कि “और भी बहुत काम हैं जो यीशु ने किए। यदि उन्हें एक-एक करके लिखा जाता, तो मैं सोचता हूँ कि जो पुस्तकें लिखी जातीं वे संसार में भी न समाती।” इसका आशय यह है कि प्रत्येक सुसमाचार का विवरण हमें केवल प्रभु यीशु की सेवकाई का एक अंश दिखाता है। यह निस्सन्देह एक प्रतिनिधि टुकड़ा है, अर्थात् ख्रीष्ट द्वारा किये गए कार्यों का केवल एक अंश। उदाहरण के लिए, लूका ने इक्कीस चमत्कारों को शामिल किया है और यूहन्ना ने आठ चमत्कारों को अभिलिखित किया है। चारों सुसमाचार दक्षतापूर्वक प्रभु यीशु के जीवन का वर्णन करते हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण वृत्तान्त ही निहित हैं। हमें यह अवश्य पढ़ना चाहिए कि कैसे चारों सुसमाचार-प्रचारक मिलकर वृत्तान्त, उसके पात्रों, कथानक, भूगोल और पुराने नियम से सम्बन्ध के माध्यम से प्रभु यीशु की कहानी को बताते हैं।    

2. सुसमाचारों को ख्रीष्ट के अनुसार ही नहीं, वरन् पुराने नियम के साथ सम्बन्ध में पढ़ें।

एक भी पद ऐसा नहीं है जिसे परमेश्वर के उद्धार कि कथा के बाहर पढ़ा जाए। मत्ती ने उत्पत्ति 2:4 के सन्दर्भ के साथ मत्ती 1:1 में अपनी वंशावली का आरम्भ करता है। यूहन्ना 1:1-5 यीशु को उत्पत्ति 1-2 के सृष्टि वृत्तान्त के भीतर रखकर आरम्भ करता है। इसके अतिरिक्त, चारों सुसमाचार स्पष्ट उद्धरणों, संकेतों और वैचारिक समानताओं के माध्यम से हजारों बार पुराने नियम का उल्लेख करते हैं। सुसमाचार कुछ अविश्वसनीय बात बताते हैं: वे ख्रीष्ट की सेवकाई के माध्यम से विश्व के इतिहास और इज़राइल की कहानी को अभिलिखित कर रहे हैं। इसे सरल शब्दों में कहें, तो पुराने नियम के सन्दर्भ पर ध्यान देते हुए सुसमाचार कि पुस्तकों को पढ़ें। पुराने नियम के साथ ख्रीष्ट के सम्बन्ध को दर्शाए बिना सुसमाचार सिखाना मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना को निष्प्रभावी कर देता है।  

3. चारों सुसमाचारों को एक साथ पढ़ें—ये चार हैं, एक कारण से।

सुसमाचार कि प्रत्येक पुस्तक ख्रीष्ट के जीवन के चित्र हैं, और प्रत्येक चित्र एक-दूसरे से थोड़ा अलग हैं। इनकी अनूठी विशेषताओं को समझने के लिए सुसमाचारों का एक सार-संग्रह का उपयोग करें।1 एक सार-संग्रह मत्ती, मरकुस और लूका में सम्मिलित अधिकाँश परस्परव्याप्त घटनाओं को एक साथ प्रस्तुत करता है। इसलिए, समदर्शी सुसमाचारों (मत्ती, मरकुस और लूका) में एक खण्ड की जाँच करते समय, प्रत्येक कथा की समानता और अन्तर को रेखांकित करें। प्रत्येक सुसमाचार एक ही सामग्री को कैसे प्रस्तुत करता है, इसकी सूची बनाकर, हम अधिक सरलता से देख सकते हैं कि प्रत्येक प्रचारक कैसे एक ही कहानी को थोड़े अलग ढ़ंग से दोहराता है। ये अद्वितीय प्रभाव फिर प्रत्येक प्रचारक के उद्देश्यों और ईश्वरविज्ञान को सूचित करते हैं। अधिकाँश ख्रीष्टयों ने कभी भी इस तरह से सुसमाचार को एक साथ पढ़ने का प्रयास नहीं किया है, परन्तु यदि उन्होंने ऐसा किया, तो उन्हें अत्यन्त समृद्ध पुरस्कार मिलेगा।   

4. आपने जो सीखा है उसे लागू करें।

लूका थियुफिलुस नामक एक ख्रीष्टीय को बताता है कि उसने अपना सुसमाचार इसलिए लिखा है जिससे कि “तू उन बातों की वास्तविकता को जान ले जिनकी तुझे शिक्षा दी गई है” (लूका 1:4; यूहन्ना 20:31 भी देखें)। “बातें जिनकी तुझे शिक्षा दी गई है” सम्भवतः यीशु के जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान के मुख्य तत्वों को इंगित करती हैं। फिर लूका ने थियुफिलुस और कलीसिया के विश्वास को बढ़ाने के लिए अपने वृत्तान्त को लिखा। दूसरे शब्दों में, लूका का सुसमाचार विश्वासियों के विश्वास को बढ़ाता है। वृत्तान्त की रूपरेखा को जानने से ख्रीष्ट में विश्वास गहरा होता है और परमेश्वर के प्रति हमारी भक्ति बढ़ती है। इसके अलावा, हम, 21वीं सदी के विश्वासी, भी एक ही वाचा समुदाय का भाग हैं जो अदन से लेकर नए यरूशलेम तक फैला है। हमें इन सुसमाचारों को अपना मानकर पढ़ना चाहिए। यद्यपि हम मूल पाठकों से 2000 वर्ष अलग हैं, फिर भी परमेश्वर आज भी इन्हीं चार अमूल्य दस्तावेजों के माध्यम से हमसे बात करता है, जबकि दो-हजार साल हमें मूल श्रोताओं से अलग करते हैं, परमेश्वर अभी भी इन चार बहुमूल्य आलेखों के माध्यम से हमसे बात करते हैं।        

संक्षेप में, हमें सभी सुसमाचारों को ख्रीष्ट  के प्रकाश में, पुराने नियम से जुड़े हुए रूप में, चार एकीकृत दृष्टिकोणों के रूप में, और जीवन में लागू करने के उद्देश्य से पढ़ना चाहिए। ऐसा करने पर, हम ख्रीष्ट को और अधिक गहराई से जानेंगे और उसके लिए और भी अधिक जिएँगे।  

यह लेख व्याख्याशास्त्र संग्रह का भाग है।     

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।