ख्रीष्ट का आनन्द - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ख्रीष्ट का आनन्द

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: आनन्द

हमारे हृदय ख्रीष्ट-जन्मोत्सव के लिए तैयार करते हैं इस गीत के साथ, “पृथ्वी पर आओ हमारे दुख का स्वाद चखने के लिए, वह, जिसकी महिमा का कोई अंत नहीं था।” हम दुखभोग का सप्ताह में गम्भीरता के साथ यह गाते हुए प्रवेश करते हैं, “दुखी पुरुष! क्या ही नाम है, परमेश्वर के पुत्र के लिए जो आया था।” यशायाह पीड़ित सेवक के बारे में गीत लिखता है (42:1–4; 49:1–6; 50:4–9; 52:13–53:12) वह दुखी पुरुष था, जो दुखों का स्वाद जानता था—हमारे दुखों का। जब वह लाज़र की कब्र पर रोता है (यूहन्ना 11:33–43), हम देखते हैं कि वह हमारी दुर्बलताओं की भावना से प्रभावित है (इब्रानियों 4:15)।

क्या यह पूर्ण चित्र है? क्या हमारे पीड़ा में प्रवेश करने के लिए ख्रीष्ट की इच्छा के नीचे एक गहरी, स्पंदनशील धारा नहीं है—एक ऐसी शक्ति जो किसी उत्कृष्ट और अनन्त बात से उत्पन्न हुई है? जबकि यीशु ने पृथ्वी पर आने पर अपनी महिमा पर परदा डाला (फिलिप्पियों 2:5–11), फिर भी वह अपने अनन्त आनन्द को लेकर आया।

आनन्द  एक ऐसा शब्द है जो मसीहियों द्वारा नियमित रूप से उपयोग किया जाता है, फिर भी इसे सरलता से परिभाषित नहीं किया जाता है। आनन्द तब बना रहता है जब खुशी हमसे दूर हो जाती है। आनन्द खुशी को एक क्षणिक अनुभूति से अधिक बनाता है। आनन्द बहुमूल्य  शब्द के सदृश है। इसका अर्थ वही है जो सुनने में लगता है। उसी शब्द का उपयोग किए बिना इसे परिभाषित करना कठिन है। पुराने और नये नियम में, शब्द “प्रसन्न आनन्द” के विचार को व्यक्त करता है—एक “नृत्य करता हुआ हृदय,” जैसा कि एक विद्वान ने कहा है।

क्या यीशु का हृदय आनन्द से नृत्य करता? यदि सुसमाचार अच्छा सन्देश है, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है कि सुसमाचार हमारे प्रभु को आनन्द से यूआंगेलियान (अच्छा सन्देश) की घोषणा करते हुए दिखाते हैं। उसकी सेवकाई आनन्द में सराबोर थी। भयंकर लाभ उठाने वालों ने उस पर स्वयं का बहुत अधिक आनन्द लेने का दोष लगाया (लूका 7:34)। कई लोगों के लिए, कुछ ही बातें विवाह के दिन की स्मृतियों से अधिक आनन्द देने वाली होती हैं। यीशु ने अपनी तुलना एक दूल्हे से की जो अपने अतिथियों के लिए एक विवाह के भोज की घोषणा कर रहा था (मरकुस 2:18–20)।

यीशु का आनन्द उसके पिता की इच्छा पूरी करने से जुड़ा हुआ था। वह आत्मा में आनन्दित हुआ, अपने पिता को सम्प्रभु चुनाव की योजना के अनुसार सुसमाचार को आगे बढ़ाने के लिए धन्यवाद देते हुए (लूका 10:21–22)। हमारे उद्धारकर्ता के सुसमाचार का आनन्द लूका 15 के दृष्टान्तों में सुन्दरता से बुना गया है। एक चरवाहे का बचाया गया मेमना उसके कंधों पर (पद 5–7), एक स्त्री का खोया हुआ सिक्का जो मिल गया (पद 8–10)—अप्रतिबाधित आनन्द के चित्रण। हमारे प्रभु के हृदय में आनन्दपूर्ण परित्याग को और कुछ भी चित्रित नहीं करता है, जितना कि एक पिता दौड़ते हुए और प्रेम से अपने खोए हुए बेटे को गले लगाता है (पद 11-32)। जब सुसमाचार खोल दिया जाता है, तो उत्सव और नाचना अवश्य होना चाहिए।

यीशु चाहता है कि उसका आनन्द हमारा हो (यूहन्ना 15:11; 16:24; 17:13)। वह चाहता है कि उसका आनन्द सृष्टि को ढँक दे, जब सब कुछ नया बना दिया जाता है (रोमियों 8:18–23; प्रकाशितवाक्य 21:5)। एब्रहैम कयपर द्वारा प्रायः उद्धृत कथन को जिसमें यीशु पुकारते हुए सृष्टि पर दावा करता है, “मेरा!” सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति उचित दावा और पुनर्स्थापनात्मक समर्पण के रूप में समझा जाना चाहिए। ऑगस्टाइन ने अपने अंगीकारों (Confessions) में प्रभु को “सच्चा, सम्प्रभु आनन्द . . . सभी सुखों से अधिक मधुर” कहा। मसीहियत को भावहीन छिपे हुए स्थानों से बचाते हुए, सी.एस. लूईस ने “समुद्र तट में छुट्टी” की बात की—एक “असीम आनन्द” जो हमारी मूर्तियों से अधिक श्रेष्ठतर है। धार्मिक भावनाएं (Religious Affections) में, जॉनथन एडवर्ड्स ने इस मधुर आनन्द का वर्णन “हमारे सभी सुखों की मलाई” के रूप में करता है।

हमें आनन्द के लिए एक स्वाद विकसित करने की आवश्यकता है—उसके आनन्द के लिए। यह त्रिएकतावादी आनन्द है हमारे पिता को जानने में, ख्रीष्ट में बने रहने का संतोषप्रद आनन्द, जो आत्मा के अन्तर्वास में पाया जाता है। हमारा आनन्द ख्रीष्ट के व्यक्ति और कार्य पर मनन करने से प्रवाहित होता है। ख्रीष्ट जन्मोत्सव के समय हम यह भी गाते हैं, “आनन्द मनाओ, यीशु आया है! “और”अपने आनन्द और विजय को ऊँचा उठाओ !” पुनरुत्थान दिवस के उस आश्वासन के कारण कि हम उसे फिर से देखेंगे और हमारा आनन्द कभी नहीं छीना जाएगा (यूहन्ना 16:22)। अनदेखे ख्रीष्ट के लिए प्रेम हमें अकथनीय और महिमामय आनन्द से भर देता है (1 पतरस 1:8)। आत्मा-सशक्त आज्ञाकारिता आनन्द के लिए महत्वपूर्ण है। फिर, यह आनन्द निरन्तर आज्ञाकारिता हेतु उर्जा प्रदान करता है। डॉनल्ड मैकलोउड कहते हैं कि यीशु ने “एक गहरा और आदतन आनन्द का अनुभव किया . . . उसकी आज्ञाकारिता के मनोविज्ञान में एक अनिवार्य तत्व . . दास के रूप में नहीं, किन्तु पुत्र के रूप में [सेवा करते हुए]।” यह हमारे लिए सत्य है, क्योंकि हमारा पुत्रत्व हमें आनन्द से पुकारने हेतु सक्षम बनाता है, “अब्बा! पिता” (रोमियों 8:15)।

यह सब हमारे प्रभु के क्रूस पर आधारित है, जो अपने सामने रखे गए आनन्द के लिए सहा गया (इब्रानियों 12:1-2)। बी.बी. वारफील्ड के “हमारे प्रभु का भावनात्मक जीवन” (“The Emotional Life of Our Lord”) में, यीशु आता है “एक विजेता के रूप में जिसके हृदय में निकट आने वाले विजय का आनन्द है।” इब्रानियों 12:1-2 में “आनन्द” के लिए शब्द “दृढ़ है, जो अत्यधिक हर्ष के विचार को वर्णित करता है—एक ऐसा आनन्द जो हृदय को भर देता है।”

परन्तु, आने वाले क्रूस की अपमानजनक भयावहता को देखते हुए आनन्द की बात क्या हो सकती थी? यदि केवल वह पृष्ठ जिसे आप पढ़ रहे हैं, दर्पण में बदल सकता है और आपका प्रतिबिम्ब प्रकट होता है, तो आप उसके सामने रखे गए आनन्द देख पाते। क्योंकि आप और मैं उसके कंधों पर रखा गया बचाए हुए वह मेमना हैं, वह पाया गया खोया हुआ सिक्का, वह उड़ाऊ पुत्र जिसको गले लगा लिया गया। तब आपने उसके हृदय को आनन्दित किया। आप अब उसके हृदय को आनन्दित करते हैं। अनन्त काल के लिए आप उसके हृदय को आनन्दित करोगे, और वह आपके हृदय को आनन्दित करेगा।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
डेविड ओवेन फिल्सन
डेविड ओवेन फिल्सन
रेवरेन्ड. डेविड ओवेन फिल्सन नैशविल, टेन्नसी में क्राइस्ट प्रेस्बिटेरियन चर्च में शिक्षा के पास्टर हैं, और शार्लोट, नॉर्थ कैरोलायना में रिफॉर्मेड थियोलॉजिकल सेमिनरी में ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान के अतिथि व्याख्याता हैं।