कोई तेरी युवावस्था को तुच्छ न समझे - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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कोई तेरी युवावस्था को तुच्छ न समझे

युवा होना एक बात है। युवा होने के लिए तुच्छ जाने जाना दूसरी बात है। इफिसुस में तीमुथियुस को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा था: मण्डली के वरिष्ठ लोग अपने स्वयं के घमण्ड के कारण तीमुथियुस की युवावस्था की सेवा को तुच्छ समझ सकते थे, और तीमुथियुस स्वयं भी युवा होने के कारण बुद्धि के अभाव के कारण ख्रीष्ट के कार्य में बाधा बन सकता था। अपने प्रेरित के द्वारा हमारे प्रभु ने तीमुथियुस को उत्साहित किया कि “कोई तेरी युवावस्था को तुच्छ न समझे” (1 तीमुथियुस 4:12)। सेवा से पीछे हटने या अपने आयु के कारण बाधित होने के स्थान पर, तीमुथियुस को सकारात्मक रीति से ख्रीष्ट में उत्तम जीवन का पीछा करने के लिए बुलाया गया।

बुद्धिमानी का वचन और भलाई का पीछ करना इफिसुस के विश्वासियों के लिए आशिष लायेगा। तीमुथियुस को सावधान रहना था कि उसके शब्दो को, भले ही उपदेश मंच से या सामान्य वार्तालाप में, वचन के द्वारा बनाया जाना था। इस प्रकार से उसके वचन उसके प्रभु और उद्धारकर्ता के वचन जैसे प्रतीत होंगे। जब यीशु ने नासरथ में आराधनालय में सिखाया, “सब लोगों ने उसकी प्रशंसा की और उसके होठों से अनुग्रह के जो वचन निकल रहे थे उन पर अचम्भा किया” (लूका 4:22)। मत्ती लिखता है कि, “भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई क्योंकि वह उन्हे उनके शास्त्रियों के समान नहीं वरन् अधिकार सहित उपदेश दे रहा था” (मत्ती 7:28-29)। हम महासभा के सामने प्ररितों के वचन के विषय में ऐसी ही बातों को पढ़ते है, विशेषकर अधिकार के सम्बन्ध में जो उनके वचन प्रचार स्पष्ट था, “जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना के साहस को देखा और यह जाना कि ने अशिक्षित और साधारण मनुष्य हैं तो वे अचम्भित हुए और जान गए कि ये यीशु के साथ रहे हैं” (प्रेरितो के काम 4:13)।

परमेश्वर के साथ सहभागिता में एक जन होने की वास्तविकता तीमुथियुस को समग्र आकार दिया जाना था। उसको केवल बातों में आदर्श नहीं बनना था परन्तु उसको अपने चरित्र को भी निर्दोष बनाए रखना था। बिना सही चाल चले बातें करना पाखण्ड है। तीमुथियुस द्वारा दूसरो से व्यवहार तकना, हाव-भाव, बर्ताव भी उस जीवन को प्रदर्शित करेगा जो ख्रीष्ट से है।

जब प्रेरित ने इस पद में युवा तीमुथियुस को सम्मत्ति दी उसने हृदय के तीन विशेषताओ को दिया जिससे तीमुथियुस के वचन और चरित्र को संचालित और ओतप्रोत होना चाहिए था। उसको विश्वासियों के लिए “प्रेम में, विश्वास में और पवित्रता में” उदाहरण होना था (1 तीमुथियुस 4:12)। तीमुथियुस को प्रेम में चलना था जैसे ख्रीष्ट ने प्रेम किया था और उससे प्रेम किया था। उसको ऐसा जन होना था जो परमेश्वर के वचन को गम्भीरता ले, आशा में जीए और प्रभु पर भरोसा रखे। उसे शुद्धता का पुरुष होना था, जो अपने हृदय और मस्तिष्क की चौकसी करे, शीघ्र पापों से पश्चाताप करे, संयम का अभ्यास करे और पवित्रता में बढ़े। यद्यपि कलीसिया में अन्य लोगों की तुलना में तीमुथियुस युवा था, जब उसने प्रेरित के द्वारा अपने उद्धारकर्ता की बुलाहट को थामता, उसमें अच्छे फल होंगे। तीमुथियुस का जीवन ख्रीष्ट के कार्य की सुन्दर और विश्वसनीय साक्षी होगी। वही हमारे लिए भी सत्य है, भले ही हमारी आयु कितना हो: ख्रीष्ट में जीवन की खोज, उसके अनुग्रह के द्वारा, हमें और हमारे साथ के लोगों के परिवर्तित करेगा।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

विलियम वैनडूडेवार्ड
विलियम वैनडूडेवार्ड
डॉ. विलियम वैनडूडेवार्ड दक्षिण कैरोलिना में ग्रीनविले प्रेस्बिटेरियन थियोलॉजिकल सेमिनरी में चर्च के इतिहास के प्रोफेसर हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक या संपादक हैं, जिनमें द क्वेस्ट फॉर द हिस्टोरिकल एडम और चार्ल्स हॉज के एक्सजेटिकल लेक्चर्स एंड सरमन्स ऑन इब्रानियों शामिल हैं।