हमारा दयालू महायाजक - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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हमारा दयालू महायाजक

यूहन्ना 17 में यीशु की महायाजकीय प्रार्थना को पढ़ना हमें उस पर्दे के पीछे स्वागत करता है जो परमेश्वर पिता और पुत्र यीशु ख्रीष्ट के सम्बन्ध को ढकता हैं। क्रूस के लिए अपनी यात्रा प्रारम्भ करने से पहले यीशु रुककर हमें अनुमति देता है कि हम उसकी मध्यस्तता की प्रार्थना को सुनें। इस बात को जानते हुए कि मृत्यु उसके उपर बनी है यीशु संसार की बुरी व्यवस्था के विषय में नहीं सोचता है। इसके स्थान पर, यूहन्ना 17:20 में वह अपने पुरे ध्यान को उन लोगों की ओर लगाता है जो उसके सुसमाचार पर विश्वास करेंगे। तब प्रेम-भरे देखभाल से हमारा दयालु महायाजक अपने लोगों के लिए दो विशेष बातों के लिए प्रार्थना करता है: एकता और सहभागिता।

यीशु प्रार्थना करता है, “कि वे सब एक हों, जैसे हे पिता तू मुझ में है और मैं तुझ में हूँ” (यूहन्ना 17:21)। जैसे कि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की अनन्त एकता है, देखने वाले संसार के समक्ष उसी प्रकार एकता कलीसिया में होनी चाहिए। जबकि सांसारिक जन परमेश्वर की बातों को नहीं समझता है, कलीसिया में पाई जाने वाली अलौकिक एकता की साक्षी के द्वारा सुसमाचार प्रदर्शित किया जाता है। यदि हमारी सहभागिता फूट गई है और हमारे हृदयों में विभाजन की आत्मा पाई जाती है, तो सुसमाचर उस संसार के सामने अस्पष्ट हो जाता है जिसे हम जीतना चाहते हैं। यीशु हमें ऐसी एकता को उपजाने और बड़ाने के लिए हमारे मानवीय योजनाओं या फिर हमारे रचनात्मक दक्षता पर नहीं छोड़ता है। वह स्वर्ग की ओर आँखें उठाकर प्रार्थना करता है, “और वह महिमा जो तूने मझे दी है मैनें उन्हें दी है, कि ने वैसै ही एक हों जैसे हम एक हैं” (17:22)। यह एकता सम्भव है क्योंकि ख्रीष्ट नें हमारे भीतर नया जीवन दिया है जो हमारे भीतर रहने वाले पवित्र आत्मा के द्वारा संचालित होता है। अब प्रत्येक विश्वासी ख्रीष्ट के साथ मिलन में है, पवित्र आत्मा उन में वास करता है, और वे एक समानता साझा करते हैं जिससे अब उनके पास परस्पर प्रेम की, आनन्द की, शान्ती की, और एकता की क्षमता है। जबकि सुसमाचारीय एकता ईश्वरभक्ति की पहचान है, छोटे विभाजन संसारिकता को दिखाते हैं और परमेश्वर की सन्तानो कि कभी भी ये विशेषता नहीं होनी चाहिए। यीशु ने अपनी कलीसिया को एकीकृत किया है जिससे संसार उसको परमेश्वर के एकलौते पुत्र के रूप में विश्वास करे, अपनाए और अंगीकार करे (यूहन्ना 17:23)।

यीशु यह भी निवेदन करता है कि पिता हमें उसके साथ महिमा में अनन्त सहभागिता में आनन्द मनाने के लिए लाए “हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तूने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ वे भी मेरे साथ रहें, कि वे मेरे उस महिमा को देख सकें जिसे तू ने मुझे दी है क्योंकि तू ने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझ से प्रेम किया” (यूहन्ना 17:24)। यीशु प्रार्थना करता है कि पिता अन्ततः हमें उसकी महिमान्वित उपस्थिति में अनन्त सहभागिता में सम्मिलित होने के लिए ले जाएगा जिसका वह निरन्तर अपने पिता के साथ आनन्द उठाता है। हमारे महायाजक के रूप में यीशु ने हमारे पापों के लिए उचित प्रायश्चित्त न केवल इसलिए किया कि हम इस जीवन के एकता का आनन्द उठाए परन्तु इसलिए भी कि हमारे आने वाले जीवन में इससे बड़ी सहभागिता हो। वह अपने द्वारा बचाए गए पापी प्राणियों के साथ अनन्तकाल क्यों बिताने की इच्छा रखता है? “जिससे वे मेरी महिमा को देख सकें।” विश्वासी न केवल अनन्तकाल के लिए ख्रीष्ट के साथ रहते हुए बिताएँगे, परन्तु हम उसके ज्योतिर्मय महिमा के महापवित्र स्थान में प्रवेश करने के लिए बुलाए गए हैं। वह अपने प्रेम रखने वालो से कुछ भी न रख छोड़ेगा। यह हमारे छुटकारे की पूर्ति की पराकाष्ठा है—कि हम उसकी महिमा निहारने के लिए ख्रीष्ट तथा एक दूसरे के साथ एक हो जाएँ।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डस्टिन डब्ल्यू. बेन्ज
डस्टिन डब्ल्यू. बेन्ज
डॉ. डस्टिन डब्ल्यू. बेन्ज लुईविल, केन्टकी के द सदर्न बैप्टिस्ट थियोलॉजिकल सेमिनरी में बाइबलीय आत्मिकता और ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द अमेरिकन प्युरिटन्स, स्वीट्ली सेट ऑन गॉड, और द लवलिएस्ट प्लेस सम्मिलित हैं।