सोला स्क्रिप्टुरा
21 अक्टूबर 2021पूर्व निर्धारण और मानवीय कार्य
2 नवम्बर 2021सीमित प्रायश्चित
सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: त्रुटिपूर्वक समझे गए सिद्धान्तद
जे.सी. राइल ने एक बार टिप्पणी की कि “सटीक परिभाषाओं का अभाव ही धार्मिक मतभेद का वास्तविक जीवन है।” यह विशेष रूप से तब होता है जब सीमित प्रायश्चित के सिद्धान्त की बात आती है। विशेषण सीमित नाम से ही समस्या उत्पन्न करता है। छुटकारे के इतिहास में, ख्रीष्ट का प्रायश्चित परमेश्वर के लम्बे समय से प्रतीक्षित उद्धार का चरम उत्कर्ष है, तो कोई भी इसे सीमित क्यों करना चाहेगा?
निःसन्देह, एक स्तर पर, सभी ख्रीष्ट के प्रायश्चित को सीमित करते हैं: कुछ इसके व्यापकता को सीमित करते हैं (यह केवल परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए है); अन्य इसके प्रभाव को सीमित करते हैं (यह उन सभी लोगों का उद्धार नहीं करता है जिनके लिए आशय था)। इस प्रकार, प्रश्न यह नहीं है कि क्या व्यक्ति ख्रीष्ट के प्रायश्चित को सीमित करेगा; प्रश्न है कैसे। इस कारण से, मैं एक अधिक सकारात्मक और कम अस्पष्ट शब्द का प्रस्ताव करता हूँ: निश्चित प्रायश्चित।
निश्चित प्रायश्चित का सिद्धान्त वर्णन करता है कि यीशु ख्रीष्ट की मृत्यु में, त्रिएक परमेश्वर की इच्छा अनन्त काल में पिता द्वारा पुत्र को दिए गए प्रत्येक व्यक्ति के छुटकारे को प्राप्त करना तथा पवित्र आत्मा के द्वारा उसके बलिदान के कार्यों को उन में से प्रत्येक पर लागू करना था। संक्षेप में: ख्रीष्ट की मृत्यु का उद्धेश्य केवल परमेश्वर के लोगों के लिए उद्धार प्राप्त करना था, और न केवल ऐसा करने का आशय था, परन्तु यह वास्तव में इसे प्राप्त भी करेगा। इस सम्बन्ध में, निश्चित विशेषण दो कार्य करता है: यह ख्रीष्ट की मृत्यु के आशय को दर्शाता है (केवल उसके चुने हुए लोगों के लिए) और यह ख्रीष्ट की मृत्यु के प्रभाव को दर्शाता है (वह वास्तव में अपने चुने हुए लोगों को बचाएगा, सुसमाचार में उनके विश्वास को निश्चयता देते हुए)। यीशु अपने नाम के प्रति सच्चा होगा: “वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा (मत्ती 1:21)।
डार्ट के धर्मसभा (1618-19) में सिद्धान्त की परिपक्व अभिव्यक्ति के पश्चात, निश्चित प्रायश्चित के सिद्धान्त को बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा है। अठ्ठारहवीं शताब्दी में, जॉन वेस्ली ने प्रचार किया कि यह सिद्धान्त “नये नियम के सम्पूर्ण अभिप्राय” के विपरीत था। उन्नसवीं शताब्दी में, चर्च ऑफ स्कॉटलैंड के एक सेवक, जॉन मकलौड केम्पबेल ने तर्क दिया कि यह सिद्धान्त ने विश्वासी के व्यक्तिगत आश्वासन को लूट लिया है कि ख्रीष्ट ने “मुझ से प्रेम किया और मेरे लिए अपने आप को दे दिया” (गलातियों 2:20)। बीसवीं शताब्दी में, कार्ल बार्थ ने असंतोष प्रकट किया कि यह “विकट सिद्धान्त” जॉन कैल्विन के दोहरे पूर्व निर्धारण के पथभ्रष्ट दृष्टि से एक तार्किक परिणाम था। अन्य लोगों ने चिन्ता व्यक्त की है कि निश्चित प्रायश्चित धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान का एक निर्बल विचार है, एक ऐसी निर्बलता जो सुसमाचारवादी और सुसमाचारीय मिशन को नष्ट कर देती है।
फिर भी, इन तीन आलोचनाओं के बाद, मैं यह प्रस्ताव रखना चाहता हूँ कि हमें कम से कम तीन कारणों से निश्चित प्रायश्चित के सिद्धान्त की (पुनः) पुष्टि करनी चाहिए।
इसका बाइबलीय आधार
नया नियम के कई खण्ड परमेश्वर के प्रेम, या ख्रीष्ट की मृत्यु के विषय में बात करता है, “बहुतों” के लिए (रोमियों 5:15,19), “सब” के लिए (11:32; 2 कुरिन्थियों 5:14-15; कुलुस्सियों 1:20; 1 तीमुथियुस 2:6; 4:10; तीतुस 2:11), और “संसार” के लिए (यूहन्ना 3:16; 2 कुरिन्थियों 5:19, 1 यूहन्ना 2:2)। ये स्थल प्रायः उन लोगों के द्वारा प्रयोग किया जाता है जो सार्वभौमिक प्रायश्चित का बचाव करना चाहते हैं। इसके विपरीत, नया नियम के कई स्थल हैं जो परमेश्वर के प्रेम, या ख्रीष्ट की मृत्यु को एक विशेष समूह के लोगों के लिए वर्णन करते हैं: “मेरे” के लिए (गलातियों 2:20), “कलीसिया” के लिए (प्रेरितों के काम 20:28; इफिसियों 5:25), “उसके लोगों” के लिए (तीतुस 2:14), और “हम” विश्वासियों के लिए (रोमियों 5:8; 8:32; 1 कुरिन्थियों 4:7; गलातियों 3:13; इफिसियों 5:2; 1 थिस्सलुनीकियों 5:10; तीतुस 2:14)। जब सार्वभौमिकवाद और विशिष्टवाद खण्डों को एक साथ पढ़ा जाता है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि दायित्व सार्वभौमिक प्रायश्चित के समर्थकों के साथ है यह समझाने के लिए कि क्यों नया नियम कभी भी परमेश्वर के प्रेम, या ख्रीष्ट की मृत्यु के विषय में सीमित शब्दों में बात कर सकता है, यदि वास्तव में ऐसी कोई सीमा नहीं है।
किन्तु, कुछ “प्रमाणिक स्थलों” को प्रदान करना निश्चित प्रायश्चित्त के सिद्धान्त को नहीं प्रमाणित करता है जैसे कि “प्रमाणिक स्थल” त्रिएकता या ख्रीष्ट के परमेश्वरत्व को प्रमाणित नहीं करते हैं। ऐसे सिद्धान्त केवल समर्थन करने वाले बाइबलीय स्थलों को जोड़ने के द्वारा नहीं बनाए जाते हैं; इनमें भीतरी रीति से सम्बन्धित सिद्धान्तों का संकलन सम्मिलित है जो विचार किए गए सिद्धान्त को प्रभावित करते हैं। ईश्वरविज्ञानीय संकलन किसी भी सैद्धान्तिक निर्माण का एक महत्वपूर्ण भाग है।
इसका ईश्वरविज्ञानीय संकलन
निश्चित प्रायश्चित का सिद्धान्त शून्य में उपस्थित नहीं है; इसके विपरीत, यह कई अन्य सिद्धान्तों से जुड़ा है जो इसे प्रभावित करते हैं। इसे इफिसियों 1:3-14 से प्रदर्शित किया जा सकता है। इस बड़े एक-वाक्य परिच्छेद में (यूनानी में), जिसमें पौलुस उन आशीषों का वर्णन करता है जो ख्रीष्ट में हमारे लिए हैं, प्रेरित तीन प्रकार से परमेश्वर द्वारा उद्धार के कार्य की बात करता है।
पहला, परमेश्वर द्वारा उद्धार का कार्य अविभाज्य है। पौलुस परमेश्वर द्वारा उद्धार के कार्य को एक समय के तस्वीर पर प्रस्तुत करता है जो अतीत के अनन्त काल से भविष्य के अनन्त काल तक चलता है। इसमें उद्धार के चार विशेष क्षण निहित हैं: पहले से ठहराया गया छुटकारा, जब परमेश्वर ने हमें संसार की उत्पत्ति से पहले चुना (पद 4-5); पूरा किया गया छुटकारा, जब ख्रीष्ट ने अपने लहू के द्वारा हमें छुड़ाया (पद 7); लागू किया गया छुटकारा, जब परमेश्वर ने अपने आत्मा के द्वारा हमारे हृदयों में अपने वचन की छाप लगाई (पद 13); और अन्तिम छुटकारा, जब हमारे पास भविष्य में आने वाला उत्तराधिकार होगा जो हमें आत्मा के द्वारा दिया गया है (पद 14)। परमेश्वर द्वारा उद्धार के कार्य के ये चार क्षण अविभाज्य हैं; अर्थात, वे परमेश्वर के उद्धार के एक कार्य के भिन्न परन्तु अविभाज्य क्षण हैं। इसका अर्थ यह है कि ख्रीष्ट की निश्चित प्रायश्चित (पूरा किया गया छुटकारा) कभी भी परमेश्वर के अनन्त आदेश (पहले से ठहराया गया छुटकारा) या उसके आत्मा के द्वारा परमेश्वर के पवित्रीकरण के कार्य (लागू किया गया छुटकारा) से पृथक नहीं किया जा सकता है, जो कि अन्तिम दिन पर हमारे महिमान्वीकरण (अन्तिम छुटकारा) से जुड़ा हुआ है।
दूसरा, परमेश्वर के द्वारा बचानेवाला अविभाज्य कार्य त्रिएक है। इस खण्ड में, पौलस त्रिएकता के प्रत्येक जन और उद्धार के कार्य में उनकी विशेष भूमिका का उल्लेख करता है। पिता चुनता है और पहले से ठहराता है और पूर्व निर्धारित करता है (पद 4-5); पुत्र अपने लहू के द्वारा छुड़ाता है, हमारे पापों के लिए क्षमा प्रदान करता है (पद 7); और आत्मा हमारे हृदय में परमेश्वर के वचन की छाप लगाता है (पद 13) हमारी भविष्य के उत्तराधिकार की निश्चयता के रूप में सेवा करते हुए (13-14)। त्रिएकता के तीनों व्यक्ति अतीत के अनन्तकाल से भविष्य के अनन्तकाल तक उद्धार के एक कार्य को पूरा करने के लिए एक साथ कार्य करते हैं। इस प्रकार, जब ख्रीष्ट के प्रायश्चित के अभिप्राय की बात आती है, तो त्रिएकता के व्यक्तियों में उदेश्य परस्पर विरोधी नहीं होते हैं परन्तु वे उद्धार के कार्य को पूरा करने के लिए एकता में एक साथ कार्य करते हैं।
तीसरा, परमेश्वर द्वारा उद्धार का अविभाज्य, त्रिएक कार्य ख्रीष्ट में पूर्ण हुआ है। इस परिच्छेद में पौलुस कई बार “ख्रीष्ट में” या “उसमें” पूर्वसर्गिक वाक्यांश का उपयोग करता है। शब्दों की रचना ख्रीष्ट के साथ विश्वासी के मिलन की बात करता है, जो उद्धार के चारों क्षणों को पार करता है: हमें संसार उत्पत्ति से पहले “उसमें” चुना गया था (पद 4; पहले से ठहराया गया छुटकारा); “उसमें” उसके लहू के द्वारा छुटकारा मिला है (पद 7; पूरा किया गया छुटकारा); “उसमें” पवित्र आत्मा की छाप लगी है (पद 13; लागू किया गया छुटकारा); “उसमें” हमने भविष्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया है (पद 11; अन्तिम छुटकारा)। इस प्रकार, हमारे उद्धार का कोई क्षण ऐसा नहीं है जो ख्रीष्ट के साथ एकता के क्षेत्र में नहीं आता है। यह निश्चयता प्रदान करता है, जबकि छुटकारा के क्षण अलग-अलग है, वे अविभाज्य हैं।
इसका पास्टरीय प्रोत्साहन
दो पास्टरीय प्रोत्साहन बाइबलीय और ईश्वरविज्ञान संश्लेषित निश्चित प्रायश्चित के सिद्धान्त से उत्पन्न होती हैं। पहला, विरोधी दृढ़ वचन के बाद भी, निश्चित प्रायश्चित विश्वासी के व्यक्तिगत आश्वासन को नहीं लूटता है; वरन्, यह इसे स्थिर करता है। जब यीशु क्रूस पर मरा, तो हम उसके मन में थे। जैसा कि मार्टिन लूथर ने टिप्पणी की, “सुसमाचार की मधुरता व्यक्तिगत सर्वनामों में पाई जाती है: ‘परमेश्वर का पुत्र जिसने मुझ से प्रेम किया और मेरे लिए अपने आप को दे दिया’ (गलातियों 2:20)।” दूसरा, कुछ लोगों के तर्क के विपरीत, निश्चित प्रायश्चित सुसमाचारीय सेवा और मिशन कार्य को बाधित नहीं करता है, परन्तु इसके स्थान पर यह इसको बढ़ाता है। यदि यह सत्य है कि ख्रीष्ट बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों के लिए मरा—कि उसने सभी प्रकार के लोगों के लिए प्रायश्चित किया: धनी, निर्धन, पुरुष, स्त्री, एशियाई, अफ्रिकी, यूरोपवासी, आदि—जैसा कि धर्मसुधारवादी विश्वास ने सर्वदा बनाए रखा है, तो मिशन कार्य एक रोचक और लाभप्रद प्रयास बन जाता है। क्योंकि ख्रीष्ट ने निर्णात्यामक रीति से प्रत्येक कुल, भाषा, लोग और जाति के लोगों को मूल्य देकर छुड़ाया है, इन में से प्रत्येक से कुछ निश्चय ही सुसमाचार पर विश्वास करेंगे (प्रकाशितवाक्य 5:9)। इसलिए, निश्चित प्रायश्चित, सुसमाचारीय कार्य और मिशन के लिए एक बाधा नहीं है; वास्ताव में, यह एक प्रेरणा का स्रोत है।