आने वाले संसार में जीवन जीना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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आने वाले संसार में जीवन जीना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का सातवा अध्याय है: दो जगत के मध्य

प्रकाशितवाक्य की पुस्तक का आरम्भिक दर्शन इसके अन्तिम दर्शन से मिलता है। आरम्भ में, यूहन्ना एक तेज़ स्वर को सुनता है जो उसे वह लिखने की आज्ञा देती है जो वह देखता है, और वो अपनी कलीसियओं के मध्य खड़े, महिमावान और जी उठे प्रभु यीशु को देखता है (1:10-20)। अन्तिम दर्शन पवित्र नगर, नए यरुशलेम का नीचे उतरना है, “परमेश्वर की ओर से स्वर्ग से उतरती हुई, जो ऐसी सजाई गयी थी जैसे दुल्हिन अपने पति के लिए सिंगार किए हो।” पुनः यूहन्ना एक तेज़ स्वर सुनता है: देखो, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है, वह उनके मध्य निवास करेगा, वे उसके लोग होंगे तथा परमेश्वर स्वयं उनके मध्य रहेगा” (21:1-3)। यहाँ भी, अपनी कलीसिया के साथ प्रभु की उपस्थिति ही केन्द्र है। यह केवल इस पुस्तक का नहीं, परन्तु सम्पूर्ण बाइबल की परिपूर्ति—इम्मानुएल है, “परमेश्वर हमारे साथ है।“

प्रकाशितवाक्य का प्रारम्भिक अध्याय केवल प्रभु का दर्शन ही नहीं है; यह प्रभु के दिन का भी दर्शन है (1:10)। सप्ताह के प्रथम दिन के सन्दर्भ में यह इस शब्द का पहला ज्ञात उपयोग है। यद्यपि यह शब्द केवल यहाँ नए नियम में आता है, आरम्भिक कलीसिया के पिताओं (church fathers) को कोई सन्देह नहीं था कि यह उस दिन के सन्दर्भ में है जिसे हम रविवार कहते हैं, जिसे वे प्रभु के पुनरुत्थान के स्मृति दिवस के रूप  में मनाते हैं। अन्यत्र नए नियम में, इस दिन को इसके यहूदी नाम से पुकारा जाता है, जिसका शाब्दिक अनुवाद “ सब्त का प्रथम दिन” है (मत्ती 28:1; मरकुस 16:2; लूका 24:1; यूहन्ना 20:1, 19; प्रेरितों के काम 20:7; 1 कुरिन्थियों 16:2)। हिन्दी अनुवाद वाक्यांश में सामान्यतः “सप्ताह” का उपयोग करते हैं, परन्तु इसके पीछे यूनानी शब्द सैब्बेटन  है, जो कि इब्रानी शब्द “सब्त” (शब्बत ) का अनुवाद करता है। इसके महत्व को हम नीचे देखेंगे।

कलीसिया के इतिहास में बहुत पहले, सप्ताह का प्रथम दिन वह दिन बन गया जब मसीही आराधना के लिए एकत्रित होते थे। सम्भवतः ऐसा करना यीशु के पुनरुत्थान के दिन से आरम्भ हुआ था, क्योंकि यह तब था जब हमारा पुनरुत्थित प्रभु सर्वप्रथम अपने चेलों से मिला और “उनके मध्य आकर खड़ा हो गया” (लूका 24:36)। उसी प्रकार यूहन्ना का सुसमाचार भी बताता है कि “वह आकर उनके मध्य खड़ा हो गया”, जहाँ उस दिन की पहचान पर विशेष बल दिया गया है—“उसी दिन, जो सप्ताह का पहिला दिन था, संध्या के समय” (20:19)। प्रभु की अपने चेलों के साथ अगली दिनांकित भेंट “आठ दिन के पश्चात्” थी, जब यीशु पुनः “आया और उनके मध्य खड़ा हो गया” (पद 26)। यह यहूदी समावेशी गिनती के अनुसार अगला रविवार था (देखें “तीसरा दिन”; लूका 24:7; 21; 46)। प्रेरितों के काम  20:7 में, लूका बताता है कि त्रोआस में कलीसिया “सप्ताह के पहिले दिन” रोटी तोड़ने के लिए एकत्रित हुई। उसके शब्दों से पता चलता है कि यह उनका नियमित कार्य था। पौलुस वहाँ सात दिन पहले आ गया था, और यद्यपि वह पिन्तेकुस्त के दिन (पद 16) तक यरुशलेम पहुँचने की जल्दी में था, वह त्रोआस में सात दिन रुका, स्पष्टतः “सप्ताह के पहिले दिन, जब [वे] रोटी तोड़ने के लिए एकत्रित हुए” (पद 7)।

इस सन्दर्भ के महत्व से हिन्दी पाठक सरलता से चूक सकते है। हम सप्ताहों के रूप में समय की व्यवस्था के इतने अधिक अभ्यस्त हैं कि हम ऐसा मान सकते हैं कि यह सदा से ऐसा ही था, और ऐसी व्यवस्था यहूदियों के बीच भी थी। परन्तु यह गैर-यहूदियों के बीच नहीं था। नए नियम में इसके लिए कोई यूनानी शब्द भी नहीं है, परन्तु “सब्त” के लिए यहूदी शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसके पश्चात् आने वाले दिन को “सब्त का प्रथम दिन” कहा जाता है। ग्रह आधारित सप्ताह (planetary week) जिसे हम जानते हैं वह बाद में पूरे रोमी साम्राज्य में एक मानक बन गया। इसलिए, प्रेरितों के काम 20:7 में, साथ ही गलातिया और 1 कुरिन्थियों 16:2 में उल्लेखित कुरिन्थ की कलीसियाओं को पौलुस के निर्देशों में, हमें स्मरण रखना चाहिए कि ये समस्त कलीसियाएँ गैर यहूदिया क्षेत्रों में थीं, जहाँ “सप्ताह” समय का मानक माप नहीं था। फिर भी गैर यहूदियों के प्रेरित ने स्पष्ट रूप से इन कलीसियाओं को सात-दिवसीय चक्र के अनुसार व्यवस्थित कर रखा था, जिसमें बल साँतवा दिन जो “सब्त” कहलाता है उसके स्थान पर “सब्त के प्रथम दिन” पर था। जबकि 1 कुरिन्थियों 16:2 में इस दिन पर कलीसिया के मिलने का कोई उल्लेख नहीं है, पर पौलुस के लिए इस दिन को यरुशलेम की कलीसिया के लिए दानों को अलग करने के लिए स्पष्ट रूप से बताना विचित्र होगा जब तक कि उनके जीवन में मसीहियों के रूप में एक साथ ऐसा कुछ न हो जो कि “संतों की संगति” के प्रदर्शन के लिए किसी और दिन के स्थान पर इसी दिन की ओर इन्गित करता हो।  ऐसा नहीं था कि उन्हें “सब्त के प्रथम दिन” में भुगतान किया जाता था, क्योंकि साप्ताहिक तिथिपत्र (calendar) तब तक इतना सामान्य नहीं हुआ था।

पौलुस निश्चित रूप से गैर यहूदी कलीसियाओं पर पूर्ण रूप से यहूदी रीतियों को थोपने वाला नहीं रहा होगा, इसलिए अवश्य ही सात-दिवसीय चक्र का सीनै पर संस्थापित (लैव्यव्यवस्था 23) अन्य पर्वों की अपेक्षा अधिक स्थायी अधिकार रहा होगा। पौलुस वास्तव में गलातियों को “दिनों और महिनों और ऋतुओं व वर्षों” (गलातियों 4:10) को मानने के लिए दोषी ठहराता है, जो कि, खतना समेत, यहूदी रीतियाँ थीं जो झूठे शिक्षकों द्वारा उन पर थोपी गयी थीं (5:2-6; साथ ही प्रेरितों के काम 15:1)। निस्सन्देहः पौलुस की कुलुस्सियों को चेतावनी के पीछे वही आरोपण है कि “खाने-पीने, पर्व, नए चाँद या सब्त के दिन के विषय में” कोई उनका न्यायी न बने (कुलुस्सियों 2:16)। फिर भी, यहूदी रीतियों के इन ठोस अस्वीकृति के साथ भी, पौलुस गलातियों और कुरिन्थियों को “सप्ताह के पहिले दिन” “अपने पास कुछ रख छोड़ने” का निर्देश देता है (1 कुरिन्थियों 16:2)। स्पष्ट रूप से, यहाँ मूसा से अधिक महान कुछ है। यहूदियों का साप्ताहिक सब्त पहले सीनै पर संस्थापित हुई रीति नहीं थी। यह सृष्टि का नियम था जो संसार के आरम्भ में सभी लोगों को दिया गया था (उत्पत्ति 2:1-3)। हमारे प्रभु ने इसका संकेत दिया जब उन्होंने कहा, “सब्त मनुष्यों के लिए बनाया गया है” (मरकुस 2:27) —ऐसा केवल यहूदियों के लिए नहीं था।

सब्त का दिन पतन के कुछ समय पश्चात् संसार के लिए खो गया था,  परन्तु निर्गमन के समय (निर्गमन 16) इस्राएल के लिए इसे पुनर्निर्मित किया गया और सीनै पर उनके साथ की गयी वाचा (निर्गमन 20:8-11) में सम्मिलित हो गया। वास्तव में, पीढ़ी से पीढ़ी सनातन वाचा के रूप में मानते रहने के लिए, यह उस वाचा का चिन्ह बन गया (31:12-17)। यह इस सभा के उत्सव के विशेष बलिदानों (गिनती 28:1-10) के साथ “पवित्र सभाओं” का दिन बन गया (लैव्यवस्था 23:1-3)। परमेश्वर की स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की स्मृति के समान (निर्गमन 20:8-11; 31:17; लैव्यवस्था 24:8), मूसा ने भी इसे मिस्र से इस्राएल के छुटकारे के स्मृति के लिए बनाया (व्यवस्थाविवरण 5:12-15)। इसके पालन से जुड़ा मुख्य विचार “विश्राम” था, परन्तु यह विश्राम केवल श्रम से रुकना नहीं था। यह यहोवा के भवन में एक पवित्र सभा का मिलना भी था, जो तम्बू (निर्गमन 25:8), और इसके पश्चात् मन्दिर (2 इतिहास 6:18), दोनों में उनके मध्य उसकी जीवित उपस्थिति का चिन्ह और केन्द्र था। सब्त उस अनन्त विश्राम की ओर भी इन्गित करता है जो समापन होने पर आएगा (इब्रानियों 3:7-4:10)।           

भजन 92 “विश्राम के दिन के लिए गीत” है, और यह इस महान अशीष का उत्सव मनाता है जो यह दिन परमेश्वर के लोगों को प्रदान करता है। इसके आरम्भिक पद उसकी उपस्थिति में आराधना करने की भलाई और आनन्द की बात करते हैं (पद 1-4), और इसके अन्तिम के पद उस फलने-फूलने की बात करते हैं जो उनके लिए होता है जो परमेश्वर के भवन और आँगनों में लगाए जाते हैं (पद 12-15)। इस सुव्यवस्थित रूप से सन्तुलित गीत का शिखर पद 8 है: “परन्तु हे यहोवा, तू सदा सर्वदा परमप्रधान है”। यह भजन की एकमात्र एकल पंक्ति है, और यह इस भजन के बिल्कुल केन्द्र में आती है। इस प्रधान पद के ऊपर और नीचे, दुष्टों की पराजय (पद 5-7) और धर्मी का उत्थान (पद 9-11) को दोहराया जा रहा है। इस प्रकार सब्त के दिन का विश्राम और आराधना बोझ से दबे और थके परमेश्वर के लोगों को एक सुखदायक स्थान प्रदान करता है, जो ऐसे संसार में रहते हैं जहाँ दुष्ट प्रायः फलते-फूलते हैं और धर्मी प्रायः दुख उठाते हैं। सब्त दिन की आराधना इस पतित संसार द्वारा बनाई गयी भ्रान्ति को स्पष्ट करती है और हमें दिखाती है कि परमेश्वर सदा सर्वदा परमप्रधान है, और इसलिए सब कुछ का सही परिणाम वैसा ही होगा जैसी उसने प्रतिज्ञा की है—अनन्त विश्राम परमेश्वर के लोगों को मिलेगा। इस प्रकार सब्त का दिन परिपूर्ण हुए राज्य की आशा करता है, अनन्त की आशीषों को समय पर लाना और स्वर्ग के आनन्द को पृथ्वी पर ले जाना।  

नया नियम अनुग्रह के इस नियत साधन को समाप्त नहीं करता है परन्तु एक नए दिन में स्थानान्तरित कर देता है। जहाँ पौलुस आधिकारिक रूप से सातवें दिन की आराधना के कार्य को समाप्त कर देता है (रोमियों 4:1-6; गलातियों 4:8-11; कुलुस्सियों 2:16-23), वहीं वह “सब्त के पहिले दिन” (प्रेरितों के काम 20:8; 1 कुरिन्थियों 16:2) कलीसियाओं को आयोजित करता है, जो यूहन्ना के प्रकाशितवाक्य के समय तक प्रभु के दिन के रूप में जाना जाने लगा था। सब्त के दिन के समान जो पुराने नियम से पूर्व से है, यह उन सब दिनों के ऊपर है जब नए नियम में परमेश्वर के लोग पवित्र सभाओं में जुड़ते थे, ऊँचे स्वर में पढ़ा और समझाए जाने वाले परमेश्वर के वचन को सुनते थे, और एक दूसरे के साथ रोटी तोड़ते थे (प्रेरितों के काम 20:7)। यह सभी दिनों से ऊपर है जब प्रभु अपने लोगों के साथ उपस्थित होता है, उनके मध्य में खड़ा होता है, उनकी स्तुति पर विराजमान होता है (भजन 22:3), जब वे भजन, स्तुति गान और आत्मिक गीत गाते हैं (इफिसियों 5:19; कुलुस्सियों 3:16) और अपनी प्रार्थनाएँ उसे अर्पण करते हैं (1 तीमुथियुस 2:1)।

जॉन एलियट (1604-90) एक आरम्भिक अमरीकी प्यूरिटन पास्टर थे और मूल अमरीकी लोगों के लिए मिशनरी थे। एलियट प्रभु के दिन को मसीही सब्त के रूप में अनवरत रखने वाले व्यक्ति थे। एक उपदेश जिसे कॉटन मैथर ने सुना और जिसे नोट्स में लिखा, उसमें एलियट ने प्रचार किया कि जो प्रभु के दिन के लिए और प्रभु के दिन में उत्साही होंगे वे अपने पृथ्वी के जीवन का साँतवा हिस्सा स्वर्ग में बिताएंगे। जब वे पृथ्वी पर रहते हैं, वे स्वर्ग के लिए अनजान नहीं होंगे, और जब वे मरेंगे उनके लिए स्वर्ग कोई अनजान स्थान नहीं होगा। वास्तव में, नहीं होगा, क्योंकि वे वहाँ पहले हज़ार बार जा चुके होंगे।

प्रेरित यूहन्ना प्रभु के दिन में आत्मा में था जब उसने प्रभु को अपनी कलीसियाओं के मध्य खड़ा, पुनः आशा और आश्वास के शब्दों को बोलते हुए देखा। प्रभु यीशु अभी भी स्वयं को अपनी कलीसियाओं के सामने प्रकट करते हैं जब वे आत्मा और सच्चाई में उसकी आरधना के लिए एकत्रित होती हैं। प्रभु का दिन विशेषकर इसी उद्देश्य से नियुक्त किया गया है और यह आशीषों से भरा हुआ है। जैसा कि प्यूरिटन डेविड क्लार्कसन कहते हैं, “इसलिए परमेश्वर की उपस्थिति, जिसका, आनन्द एकान्त में लिया जाता है, वह एक धारा है, वही सार्वजनिक रूप से आने पर एक नदी बन जाती है जो परमेश्वर के नगर को प्रसन्न करती है”।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

मार्क ई. रॉस
मार्क ई. रॉस
डॉ. मार्क ई. रॉस कोलम्बियो, साउथ कैरोलायना में एरस्काइन थियोलॉजिकल सेमिनेरी में विधिवत ईश्वरविज्ञान के प्राध्यापक हैं। वे लेट्स स्टडी मैथ्यू (Let’s Study Matthew, आइए हम मत्ती का अध्ययन करें) के लेखक हैं।