मनुष्य वाचा तोड़ने वाला और पुनःस्थापित स्वरूप-धारक है - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
परमेश्वर के साथ मनुष्य का वाचाई सम्बन्ध
31 अगस्त 2023
मसीही नृविज्ञान और नैतिक जीवन
7 सितम्बर 2023
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मनुष्य वाचा तोड़ने वाला और पुनःस्थापित स्वरूप-धारक है

पवित्रशास्त्र यह नहीं कहता है कि मनुष्य का कुछ भाग परमेश्वर के स्वरूप में सृजा गया है, वरन् यह कि पुरुष और स्त्री परमेश्वर के स्वरूप में सृजे गए हैं। अतः, स्वरूप उनके प्राणीत्व की पूर्णता में विद्यमान है। यदि हम स्वरूप के विषय में इस पर सबसे विस्तृत रीति से विचार करें, तो इसमें प्राण और शरीर, प्राप्त किए गए वरदान, दी गई गरिमा, और पृथ्वी पर प्रभुता के दान सम्मिलित हैं। निस्सन्देह अनन्त आत्मा होने के कारण परमेश्वर का कोई शरीर नहीं है, परन्तु हमें आदरभाव से कहना होगा कि मनुष्य का शरीर भी परमेश्वर के स्वरूप का भाग है। भले ही मानव शरीर निम्न प्राणियों के साथ जितना भी साझा करता है, मनुष्य का शरीर सृजे गए प्राणियों में तथा पृथ्वी के स्तर पर विशेष रीति से परमेश्वर की समानता को प्रतिबिम्बित करने के लिए बनाया गया है। भौतिक जगत दुष्ट नहीं है; इसलिए हम न केवल प्राण के बने रहने वाले अस्तित्व पर विश्वास करते हैं, परन्तु शरीर के पुनरुत्थान पर भी। अतः हमें अपने शरीरों के द्वारा परमेश्वर का आदर करने के लिए (1 कुरिन्थियों 6:20), तथा उन्हें धार्मिकता के हथियार के रूप में उपयोग करने के लिए (रोमियों 6:13) बुलाया जाता है।

अनाज्ञाकारिता
जीवन (या कार्यों) की वाचा, अर्थात् परमेश्वर और मानव जाति के मध्य प्रेम का वह सम्बन्ध जिसे प्रभु ने सृष्टि के समय स्थापित किया था, न केवल आदम और हव्वा को प्रभावित करता है परन्तु उन सब को भी, जिनका परमेश्वर के उद्देश्य के अनुसार आदम द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया है और जो सामान्य रीति से उससे उत्पन्न हुए हैं। इस बात पर हमारे मनों में बहुत विचार आ सकते हैं। आखिरकार, आदम का पाप परमेश्वर की सृष्टि का पहला पाप नहीं है; वह तो शैतान का पाप है। न ही आदम का पाप मनुष्यों का पहला पाप था; ऐसा प्रतीत होता है कि वह हव्वा का पाप था, जो पहले बहकावे में आयी (1 तीमुथियुस 2:14), जबकि आदम का पाप एक ऐसे जन द्वारा सुविचारित कार्य था जिसे उस जन की रक्षा करने का कार्य दिया गया था जो उसकी पसली से निकाली गई थी। वाचाई मुखिया (covenant head) के रूप में वह मूल रीति से उत्तरदायी था। प्रेम बलपूर्वक नहीं कराया जा सकता है, और परमेश्वर अपने वाचाई साथी से ऐसा व्यवहार करता है मानो वह तर्कयुक्त और नैतिक प्राणी है जो स्वेच्छा से उसकी सेवा करेगा, जो प्रेम के कारण प्रेम करने के लिए प्रेरित होगा। जब आदम ने अपनी स्वतन्त्रता का दुरुपयोग करके शैतान की सुनी, तो उस कार्य को उचित ठहराने के लिए कोई भी कारण नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि उसकी अनाज्ञाकारिता के लिए कोई बहाना नहीं है। फिर भी, प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त एक ऐसा सिद्धान्त है जिसे हम दैनिक जीवन में जानते हैं, और आदम हमारा प्रतिनिधि है जिसका पाप उन पर अभ्यारोपित किया जाता है जो सामान्य रीति से उससे उत्पन्न हुए हैं, जैसा कि पवित्रशास्त्र घोषणा करता है (रोमियों 5:12-21)।

इसके परिणाम क्या हैं? यदि किसी जीवनसाथी की अविश्वासयोग्यता दम्पत्ति के सम्बन्ध में दोष-बोध, लज्जा, और अलगाव ला सकती है, तो आदम का पाप पवित्र परमेश्वर के सम्मुख और कितना अधिक दोष-बोध, लज्जा, और अलगाव लाता है? परन्तु सबसे सम्भीर अलगाव यह है: यहोवा परमेश्वर के साथ प्रेम और भरोसे का सम्बन्ध टूट गया है। आदम एक अर्थ में याजक-राजा था। परमेश्वर के पक्ष में भी अलगाव है, और परमेश्वर पवित्र क्रोध में होकर पापी जोड़े को पवित्र वाटिका से निकालता है और उनकी वापसी का मार्ग बन्द करता है। वे दोषी हैं और मृत्यु-दण्ड के अधीन हैं।

भ्रष्टता कितनी सम्पूर्ण है?
फिर भी आदम और हव्वा के पास अभी भी परमेश्वर का स्वरूप है। वे ऐसे पशु नहीं बन जाते हैं जिनके पास नैतिक उत्तरदायित्व नहीं है, परन्तु वे ऐसे मनुष्य बने रहते हैं जिनके पास कोई बहाना नहीं है और जो पूर्ण रीति से उत्तरदायी हैं। परन्तु परमेश्वर के साथ उनकी समानता प्रत्येक भाग में दूषित है। आदम की सभी सन्तानें अभी भी पार्थिव मनुष्य के स्वरूप को धारण करती हैं (1 कुरिन्थियों 15:47)। परन्तु अब उनके शरीर और प्राण मृत्यु के वश में हैं। जिस दिन उन्होंने अनाज्ञाकारिता की, उसी दिन दण्डाज्ञा की घोषणा हुई, और इस दण्डाज्ञा की निश्चयता एक राजाज्ञा के रूप में व्यक्त की जाती है (उत्पत्ति 2:17; 20:7 देखें)। यहोवा परमेश्वर के तिरस्कृत किए जाने के कारण मानव सम्बन्धों में विघटन, पीड़ादायक परिश्रम, और दुःख सामान्य हैं। मनुष्य ने सृष्टि पर प्राप्त प्रभुता को भी नहीं खोया है, परन्तु अब वह सृष्टिकर्ता की गरिमा के लिए नहीं वरन् स्वयं की प्रशंसा के लिए कार्य करता है। उसको पहले से ही पृथ्वी को भरकर उसे अपने वश में करना चाहिए था, परन्तु अब वह प्रायः अपने लालच और स्वयं की महिमा की चाहत के कारण सृष्टि का दुरुपयोग करता है। वे बाधाएँ जिन्हें वह पार कर सकता था अब उसे निर्बल बनाती हैं। आखिरकार, उसका परिश्रम भले ही जो भी हो, वह पृथ्वी द्वारा पराजित किया जाता है और उस मिट्टी में लौट जाता है जिससे वह आया था, और उसकी गरिमा मरने वाले पशुओं के जैसी रह जाती है (भजन 49:12)।

जब हम मनुष्य की सम्पूर्ण भ्रष्टता की बात करते हैं, तो हम यह नहीं कह रहे हैं कि मनुष्य उस सीमा तक बुरा है जितना वह हो सकता है या फिर उसमें कुछ भी भलाई नहीं है। इसके स्थान पर हम यह कह रहे हैं कि मनुष्य का प्रत्येक पहलू पाप द्वारा प्रभावित और दूषित है, और हम कह रहे हैं कि उसमें कोई भी आत्मिक भलाई नहीं है (वेस्टमिन्स्टर विश्वास अंगीकार 16.7; वेस्टमिन्स्टर बड़ी प्रश्नोत्तरी 25 देखें)। मनुष्य अपने अपराधों और पापों में मृतक है (इफिसियों 2:1)। फिर भी, हम समझते हैं कि अविश्वासियों के पास अभी भी वे वरदान हैं जिन्हें प्रभु अपनी भलाई में होकर सब को देता है (भजन 145:9)। सोर के अन्यजाति राजा हीराम के पास निर्माण करने का ऐसे हुनर था जो इस्राएल में नहीं था (1 राजा 5:6)। अन्यजाति कवि के शब्द ऐसे हो सकते हैं जिन्हें उद्धित किया जा सके (प्रेरितों के काम 17:28)। अविश्वासी चिकित्सक मसीही चिकित्सक से उत्तम हो सकता है। जबकि हमें अन्य लोगों की मानवता को, और उनकी भलाई और करुणा को देखने में नहीं चूकना चाहिए, जो मानवीय स्तर पर असिद्ध रीति से पवित्र किए गए मसीहियों से अधिक हो सकती है, हम इस वास्तविकता को नहीं छोड़ सकते हैं कि परमेश्वर हृदय को देखता है और कि पवित्र परमेश्वर के समक्ष प्रत्येक जन निकृष्ट पापी है।

परमेश्वर की अनन्त योजना
जबकि मानवता की स्थिति इतनी गम्भीर है, इस बात पर ध्यान देना उपयुक्त है कि मनुष्य का विद्रोह, जिसके लिए हम उचित रीति से उत्तरदायी हैं, अभी भी परमेश्वर की योजना के अन्तर्गत है, और वह योजना पहले आदम को प्रमुख नहीं बनाती है। इसके विपरीत, आदम तो आने वाले व्यक्ति का प्रारूप या नमूना था (रोमियों 5:14), अर्थात् यीशु ख्रीष्ट का। क्योंकि परमेश्वर के स्वरूप में सृजे गए मनुष्य के लिए परमेश्वर का उद्देश्य यीशु ख्रीष्ट से भिन्न है, जो कि अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है। वह सृष्टि का पहिलौठा है—अर्थात्, वह जन जो सब कुछ पर प्रमुख है, क्योंकि “समस्त वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिए रची गई हैं” (कुलुस्सियों 1:15-16)। इसी प्रकार इब्रानियों 1:3 हमें स्मरण दिलाता है कि ख्रीष्ट “उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व का प्रतिरूप है, तथा अपने सामर्थ्य के वचन के द्वारा सब वस्तुओं को सम्भालता है।” क्योंकि परमेश्वर के पुत्र ने अपने ईश्वरीय जन में एक वास्तविक मानव स्वभाव जोड़ा है, यह उचित है कि हम पुष्टि करें कि “परमेश्वर को भाया कि समस्त परिपूर्णता उसी में वास करे” (कुलुस्सियों 1:19)। परमेश्वर के स्वरूप में सृजे गए लोगों के लिए परमेश्वर के पुत्र का देहधारी होना असंगत बात नहीं है।

मानवता केवल यीशु ही में अपने लक्ष्य तक पहुँच सकती है। पहले आदम को एक उच्च नियति के साथ सृजा गया जिसे प्रेमपूर्ण आज्ञाकारिता द्वारा प्राप्त किया जा सकता था। वह परीक्षा में विफल हुआ, और वह नियति उसके लिए एक ऐसा लक्ष्य बन गयी जो उसकी पहुँच से बाहर थी। परन्तु वे लोग जो परमेश्वर के अभिप्राय के अनुसार बुलाए गए हैं, वे उसके पुत्र के स्वरूप में हो जाने के लिए ठहराए गए हैं, जिससे कि वह बहुत-से भाइयों में पहिलौठा ठहरे (प्रमुख हो) (रोमियों 8:29), जिससे कि ख्रीष्ट पिता से कह सके, “देख, मैं और ये बच्चे भी जो परमेश्वर ने मुझे दिए हैं” (इब्रानियों 2:13)।

स्वरूप की पुनःस्थापना
यदि आदम ने अनाज्ञाकारिता के द्वारा मानवता के लिए मृत्यु के युग का उद्घाटन किया, यो यीशु जीवन के युग का उद्घाटन करता है: “इसलिए यदि कोई ख्रीष्ट में है तो वह नई सृष्टि है। पुरानी बातें बीत गईं। देखो, नई बातें आ गई हैं” (2 कुरिन्थियों 5:17)। पहले आदम की विफलता में वाचा की माँगों का पालन करने की विफलता सम्मिलित थी—इसलिए उसके कारण सर्वदा के लिए परमेश्वर के साथ संगति रखने वाले सिद्ध मानवता का लक्ष्य असम्भव हो गया। ख्रीष्ट हमें आदम के आरम्भिक स्तर तक नहीं ले जाता है, परन्तु वह अपनी आज्ञाकारिता के द्वारा उस “उत्तराधिकार की महिमा” को प्राप्त करता है (इफिसियों 1:18) जो आदम के सामने रखी थी पर उसने खो दिया। उन लोगों के लिए जो विश्वास के द्वारा ख्रीष्ट से जुड़े हुए हैं, यह एक वास्तविकता है। हमारे पाप ख्रीष्ट पर अभ्यारोपित किए जाते हैं जो “अधर्मियों के लिए धर्मी” (1 पतरस 3:18) के रूप में मरा, और उसकी धार्मिकता हमारे लिए गिनी जाती है। क्योंकि सुसमाचार पूर्णतः “परमेश्वर की धार्मिकता” (रोमियों 1:17) के विषय में है और इसके विषय में कि वह कैसे “धर्मी ठहरे और उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो जो यीशु पर विश्वास करता है” (रोमियों 3:26)। परमेश्वर का आत्मा उन लोगों के लिए मृत्यु से जीवन लाता है जिनके लिए ख्रीष्ट मरा और फिर जी उठा। केवल परमेश्वर के वचन को सुनकर यह निर्धारित करते हुए कि सही क्या है, ख्रीष्ट के साथ मिले हुए लोग ज्ञान में नए होते जाते हैं (कुलुस्सियों 3:10); इसके परिणामस्वरूप सच्ची धार्मिकता और पवित्रता दिखाई देती है (इफिसियों 4:24)। यह नया जीवन परमेश्वर के आत्मा के कार्य से और कलीसिया की संगति में वचन के द्वारा ख्रीष्ट की समानता में बढ़ता है। और कलीसिया वह आत्मिक देह है जहाँ एक दूसरे के निर्माण के लिए सब वरदानों का उपयोग होना चाहिए जब कि हम धन्य और महिमामय आशा की ओर देखते हैं (तीतुस 2:13) और परमेश्वर के नए आकाश और नई पृथ्वी में, जहाँ धार्मिकता वास करती है, ख्रीष्ट के साथ हमारे उत्तराधिकार की प्रतीक्षा करते हैं (2 पतरस 3:13)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रोलैण्ड एस. वॉर्ड
रोलैण्ड एस. वॉर्ड
डॉ. रोलैण्ड एस. वॉर्ड प्रेस्बिटेरियन चर्च ऑफ ईस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के सेवक तथा मेल्बर्न, ऑस्ट्रेलिया में प्रेस्बिटेरियन थियोलॉजिकल कॉलेज में कलीसियाई इतिहास और अनुसंधान के प्राध्यापक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें गॉड ऐण्ड ऐडम: रिफॉर्म्ड थियॉलजी ऐण्ड द क्रिएशन कवनेन्ट और द वेस्टमिन्स्टर कन्फेशन ऑफ फेथ: अ स्टडी गाइ़़ड फॉर द 21स्ट सेन्चुरी सम्मिलित हैं।