प्रचार में उदाहरणों के उपयोग की आवश्यकता - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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प्रचार में उदाहरणों के उपयोग की आवश्यकता

हमारा भरोसा तकनीकों पर नहीं है। फिर भी, मार्टिन लूथर ने संचार (communication) के कुछ सिद्धान्तों की शिक्षा को जिन्हें वह महत्वपूर्ण मानते थे तिरस्कृत नहीं किया। उपदेश कैसे निर्मित किया जाए और कैसे दिया जाए, और उपदेश-मंच (pulpit) से जानकारी को कैसे प्रभावी ढंग से सम्प्रेषित (communicate) किया जाए के बारे में ऐसी कुछ बाते हैं जो उपदेशक सीख सकते हैं। 

उन्होंने यह भी कहा कि मानव व्यक्ति की बनावट ही प्रचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। परमेश्वर ने हमें अपने स्वरुप में बनाया है और हमें मस्तिष्क दिए हैं। इसलिए उपदेश मस्तिष्क को सम्बोधित किया जाता है, लेकिन यह केवल जानकारी का संचार ही नहीं है – इसमें चेतावनी और प्रोत्साहन भी है (जैसा कि ऊपर बताया गया है)। एक अर्थ में हम लोगों की इच्छाओं को सम्बोधित कर रहे हैं और उन्हें परिवर्तित करने के लिए बुलाहट दे रहे हैं। हम उनसे उनकी समझ के अनुसार कार्य करने के लिए कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हम ह्रदय तक पहुँचना चाहते हैं, परन्तु हम जानते हैं कि ह्रदय तक का मार्ग मस्तिष्क से होकर जाता है। तो सबसे पहले, लोगों को यह समझ में आना चाहिए कि हम किस विषय में बात कर रहे हैं। इसीलिए लूथर ने कहा कि धर्मविद्यालय (seminary) में शिक्षा देना  एक बात है, जैसा कि उन्होंने विश्वविद्यालय में किया था, और उपदेश-मंच से शिक्षा देना दूसरी बात है। उन्होंने कहा कि रविवार की सुबह वह अपने उपदेशों को मंडली में उपस्थित बच्चों को ध्यान में रख कर के प्रस्तुत करते थे जिससे की वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति समझ सके। उपदेश कोई अमूर्त चिंतन (abstract thinking) में लीन होने का अभ्यास नहीं होना चाहिए।

जो बात लोगों पर सबसे गहरा और स्थायी प्रभाव डालती है वह है मूर्त उदाहरण  (concrete illustration)। लूथर के लिए, सार्वजनिक संचार के तीन सबसे महत्वपूर्ण सिद्धान्त थे: उदाहरण देना, उदाहरण देना, और उदाहरण देना। उन्होंने उपदेशकों को मूर्त चित्रों (concrete images) और वर्णनों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने परामर्श दिया कि अमूर्त सिद्धान्त (abstract doctrine)  पर उपदेश देते समय पास्टर पवित्रशास्त्र में से एक ऐसे वर्णन का चयन करे, जो उस सत्य को संप्रेषित करती है जिससे कि वे अमूर्त को मूर्त के माध्यम से सम्प्रेषित कर सके। 

वास्तव में, यीशु ने इसी प्रकार उपदेश दिया था। कोई उसके पास आया और वाद-विवाद करना चाहता था कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम  करने का क्या अर्थ है। “परन्तु उस ने अपने को धर्मी ठहराने की इच्छा से यीशु से पूछा, ‘मेरा पड़ोसी है कौन?” तब यीशु ने उत्तर दिया, ‘एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था कि वह डाकुओं से घिर गया…” (लूका 10:29-30)। उसने इस प्रश्न का केवल एक अमूर्त सैद्धान्तिक उत्तर नहीं दिया; उसने भले सामरी का दृष्टांत सुनाया। उसने वास्तविक जीवन के दृश्य का चित्रण करके मूर्त रूप में प्रश्न का उत्तर दिया, जिससे निश्चित रूप से सामने वाले को बात समझ में आ गई।

जोनाथन एडवर्ड्स ने एनफील्ड, कॉन में अपना प्रसिद्ध उपदेश “क्रोधित परमेश्वर के हाथ में पापी” दिया। उन्होंने एक पान्डुलिपि से एक सी आवाज में उपदेश पढ़ा। फिर भी, उन्होंने मूर्त और यहाँ तक कि जीवन्त छवियों का भी उपयोग किया। उदाहरण के लिए, एडवर्ड्स ने कहा, “परमेश्वर… तुम्हें नरक के गड्ढे के ऊपर ऐसे पकडे हुए है, जैसे कोई मकड़ी, या किसी घृणित कीड़े को आग के ऊपर पकड़ता है।” आगे उन्होंने कहा, “परमेश्वर  के क्रोध का धनुष झुका हुआ है, और तीर प्रत्यंचा पर तैयार है।” उन्होंने यह भी घोषित किया, “तुम एक पतले धागे से लटके हुए हो, जिसके चारों ओर ईश्वरीय क्रोध की लपटें उठ रही हैं।” एडवर्ड्स समझते थे कि छवि जितनी ही अधिक जीवन्त होगी, उतनी ही अधिक सम्भावना होगी की लोग इसे सुने और स्मरण  रखें।
लूथर ने भी यही बात कही। वह तत्त्व (substance) के स्थान पर तकनीक के उपयोग करने का विकल्प नहीं दे रहे थे, वरन् यह कह रहे थे कि परमेश्वर के वचन के तत्त्व को परमेश्वर के लोगों तक सरल, जीवन्त, सीधे, प्रकार से उदाहरणों के साथ संप्रेषित किया जाना चाहिए। लूथर के लिए पूरी बात यही थी – सेवक को परमेश्वर के वचन का वाहक बनना है – न इससे कम, न इससे अधिक। इस प्रकार से उपदेशक परमेश्वर के लोगों को शिक्षा देता है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।