परमेश्वर के प्रावधान पर भरोसा करते हुए भविष्य के लिए योजना बनाना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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परमेश्वर के प्रावधान पर भरोसा करते हुए भविष्य के लिए योजना बनाना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: सिद्धतावाद एवं नियंत्रण

परमेश्वर वास्तव में सम्प्रभु है। और मैं वास्तव में परमेश्वर की प्रकट इच्छा के अनुसार जीने के लिए उत्तरदायी हूँ। वह अपने धर्मी दाहिने हाथ से सब कुछ सम्भालता है (यशायाह 40:10; इब्रानियों 1:3)। और जो मैं अपने हाथों से करता हूँ वह महत्व रखता है (मत्ती 5:30)। बाइबल की शिक्षाओं के रूप में परमेश्वर की सम्प्रभुता और मानवीय उत्तरदायित्व दोनों की पुष्टि करना एक बात है, परन्तु हम कैसे इन सत्यों को प्रतिदिन के जीवन में एक संतुलित रीति से विश्वासयोग्यता से जीते हैं?

तथ्य यह है कि, हम परमेश्वर की सम्प्रभुता और हमारे उत्तरदायित्व के मध्य में, विश्वास की बुलाहट और कार्य करने की बुलाहट के मध्य, निरन्तर अनुभवात्मक तनाव में जीवन व्यतीत करते हैं। यहाँ एक सामान्य उदाहरण है: मैंने आज सुबह पलंग से उठने के लिए अपना अलार्म लगाया। आप सम्भवतः इसे परमेश्वर के प्रावधान के प्रति विश्वास के कार्य के रूप में न्याय नहीं करते हैं। मैंने योजनाएँ बनाईं। मैंने यह नहीं सोचा कि प्रातः काल 5:30 बजे परमेश्वर मुझे अलौकिक रूप से जगाएंगे। वह अविश्वास का कार्य नहीं था, परन्तु अन्य साधनों का एक बुद्धिमानी से उपयोग करना था। दूसरी ओर, मैं अच्छी नींद के लिए, सोते समय अपने जीवन को बनाए रखने के लिए, और अपनी अलार्म घड़ी की यांत्रिक सटीकता और इसे संचालित करने वाले विद्युत जाल के लिए परमेश्वर पर निर्भर था। मुझे ऐसे संसार में रहने के लिए बुलाया गया है जहाँ परमेश्वर सम्प्रभु हैं और मेरे कार्य महत्व रखते हैं।

सामर्थ्य, अनुमान या समझदारी?
परन्तु असंतुलित होना और “सामर्थ्य अवस्था” या “अनुमान अवस्था” में प्रवाहित होना सरल है। सामर्थ्य अवस्था में, हम अपने जीवन का उत्तरदायित्व लेते हैं, जैसे कि मानवीय उत्तरदायित्व समीकरण का एकमात्र टुकड़ा था। इस परिदृश्य में अत्याधिक योजना बनाना सामान्य हैं। यहाँ एक सम्प्रभु परमेश्वर की कार्यात्मक अनुपस्थिति है—निश्चित रूप से, हम परमेश्वर की सम्प्रभुता को स्वीकार करते हैं, परन्तु व्यावहारिक रूप से, यह हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित नहीं करता है। दूसरी ओर, द्वितीय कारणों पर अधिक बल दिया जाता है। इन असंतुलनों के परिणामस्वरूप, हम चिन्ता, भय, अति-नियंत्रण, अति-उत्तरदायित्व, सिद्धतावाद और क्रोध की ओर प्रलोभित हो सकते हैं। क्यों? क्योंकि हमें लगता है कि सब कुछ हम पर निर्भर है।

अनुमान अवस्था में, हम अपने जीवन को ऐसे छोड़ देते हैं जैसे कि परमेश्वर की सम्प्रभुता ही समीकरण का एकमात्र टुकड़ा था। बहुत कम या कोई योजना नहीं होना सामान्य बात है। यहाँ परमेश्वर की सम्प्रभुता पर अधिक बल दिया जाता है परन्तु द्वितीय कारणों की कार्यात्मक अनुपस्थिति है। इन असंतुलनों के परिणामस्वरूप, हम आलस्य, निष्क्रियता, वैराग्य, भाग्यवाद और अनिर्णय की ओर प्रलोभित हो सकते हैं। क्यों? क्योंकि हम सोचते हैं कि यह सब परमेश्वर पर निर्भर है।

पवित्रशास्त्र दोनों चरम स्थितियों से दूर रहता है। हम न तो सामर्थ्य से और न ही अनुमान से जीने के लिए बुलाए गए हैं। परमेश्वर का वचन एक विकल्प प्रदान करता है: समझदारी। समझदारी में बुद्धिमान और प्रार्थनापूर्ण योजना सम्मिलित है। यह परमेश्वर की सम्प्रभुता और प्रावधान के बारे में एक ठोस दृष्टिकोण द्वारा चिन्हित है—वह उत्तरदायी है। इसके अतिरिक्त, यह द्वितीय कारणों पर उचित बल देता है—मैं भी उत्तरदायी हूँ। हम इस दोहरे बल को सम्पूर्ण बाइबल में देखते हैं। बार-बार, पवित्रशास्त्र हमें परमेश्वर के प्रावधान युक्त देखभाल पर भरोसा करने और अच्छी रीति से योजना बनाने और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में परिश्रम करने के लिए बुलाटह देता है। मैं एक विशिष्ट क्षेत्र में गहराई से ध्यान देना चाहता हूँ: अपने परिश्रम को परमेश्वर की देखभाल पर सौंपते हुए भौतिक रूप से अपने और अपने परिवार के लिए उपलब्ध कराना।

भौतिक प्रावधान
परमेश्वर के स्वरूप धारक के रूप में हमारी भूमिका में अर्थपूर्ण कार्य में सम्मिलित होना निहित है। परमेश्वर ने अदन की वाटिका को लगाया परन्तु आदम को “उस में काम करना और उसकी रखवाली करना” था (उत्पत्ति 2:8, 15)। जबकि पतन ने काम को कठिन बना दिया (3:8,15), स्वयं, परिवार, और दूसरों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परिश्रम करना हमारे लिए नियामक बना हुआ है।

यहाँ तक ​​कि मरूस्थल में भी जब परमेश्वर ने इस्राएलियों के लिए चमत्कारी रीति से मन्ना उपलब्द किया, तो उन्हें उसकी प्रकट इच्छा और आज्ञाओं के अनुसार प्रतिदिन एकत्रित करने और तैयार करने के लिए बुलाया गया था (निर्गमन 16)। प्रत्येक प्रातः काल में उन्होंने पर्याप्त रूप से दिन भर के लिए एकत्रित किया, छठे दिन को छोड़कर, जब परमेश्वर ने दो गुना भाग उपलब्ध कराया क्योंकि उन्हें सातवें दिन विश्राम करना था। जिन लोगों ने परमेश्वर के प्रावधान पर अविश्वास किया (या तो सप्ताह के मध्य रात में कुछ मन्ना बचाने का प्रयत्न करके या सब्त के दिन एकत्रित करने के लिए बाहर जाकर), उन लोगों ने परमेश्वर की ताड़ना का अनुभव किया। परमेश्वर ने सम्प्रभुता में होकर प्रावधान किया, और लोगों ने आज्ञाकारिता के रूप में व्यावहारिक कार्य में प्रतिउत्तर दिया, उसके द्वारा प्रदान किए गए वस्तुओं का भण्डारिपन करने के द्वारा। हमारा कार्य महत्वपूर्ण है, परन्तु यह परमेश्वर के प्रावधान के कार्य के अधीन है।

भण्डारी के रूप में हमारी भूमिका में, परमेश्वर हमें आलस्य के विरुद्ध चेतावनी देता है जो निर्धनता की ओर ले जाता है (नीतिवचन 6:6-11), हमें शान्तिपूर्वक काम करने और अपना जीवन यापन करने के लिए कहता है (1 थिस्स. 4:11-12; 2 थिस्स. 3:6-12), और हमें अपने घर के सदस्यों (1तीमु.5:8) और आवश्यकता में पड़े हुए लोगों के लिए प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है (इफि.4:8)। यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस ने एक तम्बू बनाने वाले के रूप में कठिन परिश्रम किया ताकि वह अपनी नई कलीसियाओं पर बोझ न बने (प्रेरितों के काम 18:3; थिस्सलुनीकियों 2:9)। 

फिर भी, परमेश्वर अपने लोगों को यह स्मरण रखने के लिए बुलाता है कि वह उनका परम प्रदाता है। जब इस्राएली कनान पहुंचे, तो परमेश्वर का चमत्कारी प्रावधान बन्द हो गया और उन्हें भूमि पर जोतने का कार्य करना था (निर्गमन 16:35)। फिर भी, परमेश्वर ने चेतावनी दी, “तू अपने मन में यह न कहने लगे कि मैंने यह सारी सम्पत्ति अपने सामर्थ्य तथा बाहुबल से कमाई है। परन्तु तू अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखना, क्योंकि वही तुझको सम्पत्ति प्राप्त करने का सामर्थ्य देता है कि वह अपनी उस वाचा को पूरी करे जिसकी शपथ उसने तेरे पूर्वजों से खाई थी, जैसा आज प्रकट है” (व्यवस्थाविवरण 8:17-18)। हम केवल वही कर सकते हैं जिसके लिए वह हमें योग्य करता है (भजन संहिता 127:1-2)। इसके अतिरिक्त, यीशु हमें स्मरण दिलाते हैं कि भौतिक प्रावधानों के विषय में चिन्तित न हों क्योंकि पिता हमारी चिन्ता करता है, हमारी आवश्यकताओं को जानता है, उसने हमें पहले ही सबसे बड़ा उपहार दे दिया है—अपना राज्य (लूका 12:22-32)। परिणामस्वरूप, यीशु हमें अपनी भौतिक सम्पत्ति के साथ उदार होने के लिए प्रोत्साहित करता है जब हम अपने पिता के प्रावधान पर भरोसा करते हैं (33-34)।

इसलिए, हमारे परिवार की भौतिक आवश्यकताओं पर विचार करना, उसके अनुसार आय-व्यय का लेखा बनाना और परिश्रमपूर्वक कार्य करना सही है। यदि आप कर सकते हैं तो कॉलेज के लिए बचत योजना खोलें। रूपयों को सेवानिवृत्ति के समय के लिए अलग करें। नई छत या रसोई में सुधार के कार्य के लिए पैसे बचाएं। दूसरी ओर, अपनी सम्पत्ति को आत्म-सुरक्षात्मक रीतियों से एकत्रित न करें, जो घमण्ड, भय, या लोभ से प्रेरित हों, जैसा कि यीशु के धनी मूर्ख के दृष्टान्त में चित्रित किया गया है (पद 13-21)।

अच्छी रीति से योजना बनाएं और ढ़ीले रूप से पकड़ें
परमेश्वर हमें अपनी शक्ति से जीने के लिए नहीं बुलाता है, न ही उसके प्रावधान के विषय में मूर्खतापूर्ण अनुमानों के द्वारा, परन्तु एक बुद्धिमान और संतुलित समझदारी से। योजनाएं बनाएं, परन्तु उन्हें ढिलाई के साथ पकड़ें। परमेश्वर की प्रकट इच्छा के अनुसार जिएं, अपने आप को और अपने प्रियजनों को उसकी सम्प्रभु योजनाओं के लिए सौंप दें। याकूब 4:13-15 इस सम्बन्ध को अच्छी रीति से व्यक्त करता है:

अब आओ, तुम जो कहते हो, “आओ, हम आज या कल अमुक नगर में जाकर वहां एक वर्ष बिताएंगे और व्यापार करके लाभ उठाएंगे,” — फिर भी यह नहीं जानते कि कल तुम्हारे जीवन का क्या होगा। तुम तो भाप के समान हो जो थोड़ी देर दिखाई देती है और फिर अदृश्य हो जाती है। पर इसके विपरीत तुम्हें यह कहना चाहिए, यदि प्रभु की इच्छा हो तो हम जीवित रहेंगे और यह अथवा वह काम भी करेंगे। ”

अपेक्षा करें कि कभी-कभी, परमेश्वर हमारी योजनाओं को विफल कर देगा और हमें विनम्रतापूर्वक उसके प्रेमपूर्ण और अच्छे उद्देश्यों के प्रति समर्पित होने के लिए बुलाया जाएगा।

आपको कैसे पता चलेगा कि आप असंतुलित हो रहे हैं? पहला, अपने हृदय के अतिप्रवाह को देखें—वे विशेष प्रलोभन और जीने के तरीके जिनका मैंने पहले उल्लेख किया था, जो या तो मानवीय उत्तरदायित्व या परमेश्वर की सम्प्रभुता पर अत्यधिक बल देने के साथ जुड़े हुए थे। दूसरा, अपने प्रार्थना के जीवन पर ध्यान दें। यदि यह अल्परक्तक है, तो आप कह रहे हैं (कम से कम कार्यात्मक रूप से) कि आपकी स्वयं की योजना और कार्य वास्तव में महत्व रखते हैं (सामर्थ्य की अवस्था) या इससे कोई अन्तर नहीं होता कि आप क्या करते हैं (प्रार्थना में भी) क्योंकि परमेश्वर केवल वही करेंगे जो वह करेगा (अनुमान की अवस्था)।

हम क्या करते हैं महत्व रखता है। हम यह नहीं मानते हैं कि किसी दिए गए उदाहरण में परमेश्वर हमारे यन्त्रित्व से अलग काम करेगा। परन्तु अपनी योजनाओं के विषय में नम्रता के साथ, हम स्वीकार करते हैं, “मनुष्य के हृदय में तो अनेक योजनाएं रहती हैं, परन्तु यहोवा की युक्ति स्थिर रहती है” (नीतिवचन 19:21)। केवल वही कह सकता है, “निस्सन्देह जैसा मैंने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा और जैसी योजना मैंने बनाई है, वैसी ही वह पूरी हो जाएगी” (यशायाह 14:24)। और यह अच्छा समाचार है। परमेश्वर के सम्प्रभु, अचूक उद्देश्य हमें सपने देखने, योजना बनाने, परिश्रिम करने, साहसपूर्वक असफल होने, नम्रता से सफल होने, और फिर से उसके मुख की खोज करने की स्वतंत्रता और साहस देते हैं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
माइक एमलेट
माइक एमलेट
डॉ माइक एमलेट क्रिश्चियन काउंसलिंग एंड एजुकेशनल फाउंडेशन (CCEF) में एक सहायक शिक्षक हैं। वह क्रॉसटॉक और डिस्क्रिप्शन एंड प्रिस्क्रिप्शन नामक पुस्तक के लेखक हैं।