सचेत यर्थातवाद के साथ सिद्धता का पीछा करना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
परमेश्वर के प्रावधान पर भरोसा करते हुए भविष्य के लिए योजना बनाना
27 जून 2021
ईश्वरीय आकांक्षा का स्थान
29 जून 2021
परमेश्वर के प्रावधान पर भरोसा करते हुए भविष्य के लिए योजना बनाना
27 जून 2021
ईश्वरीय आकांक्षा का स्थान
29 जून 2021

सचेत यर्थातवाद के साथ सिद्धता का पीछा करना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: सिद्धतावाद एवं नियंत्रण

कुछ समय डैलस के लिए हवाई यात्रा के समय, मैंने अमेरिकन वे  नामक अमेरिकन एयरलाइंस की मासिक पत्रिका के वर्तमान प्रकाशन पढ़ने का आनन्द लिया। इस विशेष प्रकाशन की मुख्य कहानी प्रतिभाशाली गोल्फ खिलाड़ी लेक्सी थॉम्पसन के विषय में थी। गोल्फ के खेल के प्रति उसके प्रेम के कारण के विषय में उसकी टिप्पणी ध्यान आकर्षिक करने वाली थी: “प्रत्येक दिन जब मैं जागती हूँ और मेरे खेल में कुछ अलग होता है: मेरी गेन्द मारने की प्रक्रिया, मौसम। गोल्फ के विषय में यही बात है। हर बार जब आप जागते हैं तो यह सदैव एक चुनौती होती है। इसलिए मैं इसकी ओर आकर्षित हुआ। जो बात मुझे आगे बढ़ाती है, वह यह है कि आप इसमें कभी भी सिद्ध नहीं हो सकते।”

जिस बात को थॉम्पसन गोल्फ के विषय पहचानती है, उसे हम ख्रीष्टिय जीवन में लागू कर सकते हैं। वास्तव में, जो हमें बनाए रखता है— व्यावहारिक पवित्रता में बढ़ने के लिए—वह यह है कि हम स्वर्ग के इस ओर के ख्रीष्टिय जीवन में कभी भी सिद्ध नहीं हो पाएंगे। सुधार के लिए सदैव अवसर रहता है। 

सिद्धता के लिए परमेश्वर प्रदत्त इच्छा
मनुष्यों में सिद्ध होने के लिए स्वाभाविक इच्छा होती है। क्योंकि, परमेश्वर के स्वरूप में हमारी सृष्टि की गई है (उत्पत्ति 1:26-27) और हमें इसके सुधार के लिए पृथ्वी पर प्रभुता करने का अधिकार दिया गया है (पद 28)। हम कौन हैं और हमें क्या करने के लिए बुलाया गया है, दोनों ही सभी वस्तुओं में उत्कृष्टता की इच्छा उत्पन्न करते हैं। और ख्रीष्टीय इस प्रेरणा को तीव्रता से अनुभव करता है मत्ती 5:48 में हमारे प्रभु की आज्ञा को ध्यान में रखते हुए: “अतः तुम सिद्ध बनों, जैसा कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।” प्रेरित पौलुस 1 कुरिन्थियों 10:31 में लिखते हुए इसे प्रतिध्वनित करता है, “अतः चाहे तुम खाओ या पीओ या जो कुछ भी करो, सब परमेश्वर की महिमा के लिए करो।” इसलिए सिद्धता का पीछा करना स्वाभाविक रीति से कोई बुरी बात नहीं है। फिर भी, सिद्धता के लिए प्रबल प्रेरणा विकृत हो सकती है यदि वह पतन और उसके परिणामों के विषय में बाइबल के यथार्थवाद के साथ संतुलित न किया जाए।

महिमामय खण्डहर
पतन के दुःखद परिणामों में से एक यह है कि इस जीवन में सिद्धता असम्भव है। कई रीति से हम प्रतिदिन देखते हैं कि कैसे मनुष्य “परमेश्वर की महिमा से रहित” होता है (रोमियों 3:23)। यह ख्रीष्टीय के लिए भी सच है। हम प्रेरित पौलुस के साथ सहमत होते हैं जब वह विलाप करता है, “इसलिए जो मैं करता हूँ उसको समझ नहीं पाता; क्योंकि जो मैं चाहता हूं वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा है वही करता हूँ” (रोमियों 7:15)। पौलुस जानता है कि यह जीवन अन्दर वास करने वाले पाप के विरुद्ध निरन्तर युद्ध के द्वारा चिन्हित है।

प्रेरित यूहन्ना इसी प्रकार सोचता है जब वह ख्रीष्टीय लोगों को लिखता है:

यदि हम कहें कि हम में पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं, और हम में सत्य नहीं है। यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। यदि हम कहें कि हमने पाप नहीं किया तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं। (1 यूहन्ना 1:8-10)

यूहन्ना स्पष्ट है: जो लोग दावा करते हैं कि उनमें कोई पाप नहीं है, न केवल स्वयं को धोखा देते हैं, परन्तु वे परमेश्वर को झूठा ठहराते हैं, यह प्रमाणित करते हुए कि परमेश्वर का वचन उनमें नहीं। ख्रीष्टीय लोग अन्दर वास करने वाले पाप के विरुद्ध सतर्कता का जीवन जीते हैं  उस दिन तक जब पाप पूर्ण रीति से नहीं रहेगा।

प्यूरिटन जॉन ओवेन, अपने उत्कृष्ट कार्य पाप को नष्ट करना (The Morfification of Sin) में, वर्णन करता है कि ख्रीष्टिय जीवन की क्या मांग है: “श्रेष्ठतम विश्वासियों को, जो निश्चित रूप से दोषी ठहराए जाने वाले आन्तरिक पाप की सामर्थ्य से स्वतंत्र हो गए हैं, उन्हें अभी भी आन्तरिक पाप की सामर्थ्य को नष्ट करने को प्रतिदिन का कार्य बनाना चाहिए।” ओवेन पाप को नष्ट करने को हमारे जीवन के कार्य के रूप में देखता है—इसे “[हमारे] प्रत्येक दिन” किया जाना चाहिए क्योंकि स्वर्ग के इस पार के जीवन में सिद्धता का अनुभव नहीं होगा। 

ख्रीष्ट में नई सृष्टि
जिस प्रकार बाइबल स्पष्ट करती है कि इस जीवन में सिद्धता सम्भव नहीं है, परमेश्वर का वचन भी उतना ही स्पष्ट है कि ख्रीष्टियों को भक्ति में बढ़ना है। इसका ईश्वरवैज्ञानिक कारण नया जन्म के समय होने वाली घटना से सम्बन्धित है: हम ख्रीष्ट में नए प्राणी बनाए जाते हैं। इस आश्चर्य करने वाला सत्य की घोषणा पौलुस 2 कुरिन्थियों 5:17 में करता है: “इसलिए यदि कोई ख्रीष्ट में है तो वह नई सृष्टि है। पुरानी बातें बीत गईं। देखो, नई बातें आ गई हैं।”

नई सृष्टि होना प्रत्येक ख्रीष्टिय की जीवनी है। यह उन सभी लोगों के लिए एक प्रतिज्ञा है जो “ख्रीष्ट में” हैं— अर्थात, जिनका मिलन विश्वास के द्वारा जी उठे और महान प्रभु से हुआ है। “नई सृष्टि” शब्द स्वयं में परमेश्वर की सम्प्रभुता और रचनात्मक सामर्थ्य के विचार को रखती है। पौलुस ने इससे पहले इस विचार को प्रस्तुत किया जब उसने ज्योति की सृष्टि करने और ख्रीष्टीय को बनाने में  परमेश्वर के सामर्थ्य की ओर इंगित किया: “क्योंकि परमेश्वर जिसने कहा, ‘अन्धकार में से ज्योति चमके,’ वही है जो हमारे हृदयों में चमका है कि हमें मसीह के चेहरे में परमेश्वर की महिमा के ज्ञान की ज्योति चमके” (2 कुरिन्थियों 4:6)।

हम यह सीखते हैं कि ख्रीष्टीयता नैतिक छोटा परिवर्तन नहीं है। यह केवल हमारे पुराने जीवन को झाड़ना नहीं है, जैसे कि हम केवल गन्दे हैं। ख्रीष्टीयता अन्ततः नई आदतों या नए दृष्टिकोण के विषय में नहीं है, यद्यपि इस में यह बातें निहित हैं। ख्रीष्टीयता सम्पूर्ण और विस्तृत परिवर्तन के विषय में है। जो कि किसी नई सृष्टि से कम नहीं है।

एक ख्रीष्टीय वह है जिसने यहेजकेल 36:26 -27 में प्रतिज्ञा की हुई नई वाचा का अनुभव किया है, जहाँ परमेश्वर घोषणा करता है कि आत्मा के द्वारा ख्रीष्ट में क्या पूरा किया जाएगा:

और फिर मैं तुम्हें एक नया हृदय दूंगा और तुम्हारे भीतर एक नई आत्मा उत्पन्न करूंगा और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम्हें मांस का हृदय दूंगा। और मैं अपना आत्मा तुम में डालूंगा और तुम्हें अपनी विधियों पर चलाऊंगा और तुम मेरे नियमों का सावधानी से पालन करोगे। 

ख्रीष्टीय को एक नया हृदय और परमेश्वर का आत्मा दिया गया है ताकि हम “जीवन की नई चाल चले” (रोमियों 6:4)।

प्रेरित कहता है कि “पुरानी बातें बीत गईं।” ख्रीष्ट के क्रूस के साथ पुरानी वाचा समाप्त हो गई और साथ में उन लोगों के पुराने जीवन समाप्त होते हैं जो अब ख्रीष्ट में हैं। हमारा पुराना परमेश्वर रहित, आत्मकेन्द्रित, शरीर में जन्मा जीवन क्रूस पर चढ़ा दिया गया है।

और क्योंकि पुरानी बातें बीत गईं, इसलिए हम उस पुराने जीवन से सम्बन्धित प्रत्येक बात को “मृतक समझने” को अपना लक्ष्य बनाते हैं:

इसलिए अपनी पार्थिव देह के अंगों को मृतक समझो, अर्थात व्यभिचार, अशुद्धता, वासना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्तिपूजा है। इन्हीं के कारण परमेश्वर का प्रकोप आएगा। और जब तुम इन बुराइयों में जीवन व्यतीत करते थे तो तुम इन्हीं के अनुसार चलते थे तो तुम भी इन सब को अर्थात क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा और मुंह से गालियां बकना, छोड़ दो। एक दूसरे से झूठ मत बोलो, क्योंकि तुमने अपने पुराने मनुष्यत्व को उसके बुरे कार्यों सहित त्याग दिया है, और नए मनुष्यत्व को पहिन लिया है जो अपने सृष्टिकर्ता के स्वरूप के अनुसार सत्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए नया बनता जाता है। (कुलुस्सियों 3:5-10)

ख्रीष्टिय वह है जो अपने जीवन का एक निरन्तर अवलोकन करता है या करती है और यह पूछता है या पूछती है, “मेरे जीवन में कौन सी ऐसी बात है जिसे मुझे मारने की आवश्यकता है?” जब कोई बात पहचानी जाती है, हम उसे मारने का संकल्प लेते हैं। वास्तव में, हम अनुग्रह के प्रत्येक साधन को अपने पास एकत्रित करते हैं और अपने जीवन में पाप के विरुद्ध युद्ध छेड़ते हैं।

तथापि, ख्रीष्टिय जीवन केवल बीती हुईं बातों के विषय में नहीं है; परन्तु उसके विषय में भी है जो आ चुका है। 2 कुरिन्थियों 5:17 में, पौलुस कह रहा है कि कुछ विस्मय करने वाली बात आ गई है। हम अब, चाहे छोटे रूप में भी, अपने जीवन में ख्रीष्ट के समान उज्जवल रंगों को प्रदर्शित करना आरम्भ कर रहे हैं। पवित्र आत्मा की सामर्थ्य में हम ख्रीष्ट की समानता को “पहिनना” आरम्भ करते हैं:

अतः परमेश्वर के उन चुने हुओं के सदृश जो पवित्र और प्रिय हैं, अपने हृदय में सहानभूति, करुणा, दीनता, विनम्रता और सहनशीलता धारण करो। यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो। जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। इन सब के ऊपर प्रेम को, जो एकता का सिद्ध बन्ध है, धारण कर लो। (कुलुस्सियों 3:12-14)

यह सत्य है कि हम इस जीवन में सिद्ध नहीं हो पाएंगे। पतित संसार में जीवन का अर्थ है कि हम स्वर्ग के इस पार के जीवन में पाप से पूर्ण रीति से स्वतंत्र नहीं होंगे। परन्तु यह सच्चाई हमें निराशा की ओर नहीं ले जाती है। ख्रीष्टियों के रूप में, विश्वास के द्वारा हमारा मिलन ख्रीष्ट से हुआ है और हमें पवित्र आत्मा दिया गया है। इसलिए, हम “उसे प्रसन्न करना, अपना लक्ष्य बनाते हैं” (2 कुरिन्थियों 5:9)। और जब हम ठोकर खाते और लड़खड़ाते भी हैं, तो हम 2 कुरिन्थियों 2:14 में पौलुस के साथ आनन्दित होते हैं: “परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो जो ख्रीष्ट के द्वारा विजयोत्सव के जुलूस में हमारी अगुवाई करता है, और हमारे द्वारा अपने ज्ञान की मधुर सुगन्ध हर जगह फैलाता है।”

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
डॉ. मय्क पोह्लमैन
डॉ. मय्क पोह्लमैन
डॉ मय्क पोह्लमैन सदर्न बैपटिस्ट थियोलॉजिकल सेमिनरी में ख्रीष्टिय प्रचार के सहायक प्रोफेसर हैं और लुइविल, केंटकी में सीडर क्रीक बैपटिस्ट कलीसिया के प्रमुख पास्टर हैं।