एक प्रतिकूल जगत में यीशु को देखना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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एक प्रतिकूल जगत में यीशु को देखना

अपने हृदय-परिवर्तन से पूर्व पौलुस एक कट्टर मसीही-विरोधी के समान था; वह मसीहियत से घृणा करता था और उसको जड़ से उखाड़ने के लिए हर सम्भव प्रयास करता था। परमेश्वर न्याय में होकर उसको नष्ट कर सकता था — जैसा कि उसने अपने लोगों के सताने वाले अन्य लोगों के साथ किया। बहुत लोग (जिसमें स्वयं पौलुस भी सम्मिलित था) सोचते थे कि पौलुस का मसीही बनना लगभग असम्भव था। वह स्वयं का वर्णन करते हुए बताता है कि वह न बचाए जा सकने वाली स्थिति के छोर पर था। यदि वह सत्य को जानता फिर भी ख्रीष्ट के विरुद्ध रोष करता, तो सम्भवतः उसका उद्धार नहीं होता: “फिर भी मुझ पर दया की गई क्योंकि मैंने यह सब अविश्वास की दशा में नासमझी से किया था” (1 तीमुथियुस 1:13)। मसीहियों के प्रति रोष भरे सताव में पौलुस विश्वास करता था कि वह अच्छा कर रहा था, जैसा कि आज भी बहुत लोग सोचते हैं।

पौलुस के इतिहास को ध्यान में रखते हुए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि लूका दमिश्क की स्तब्ध प्रतिक्रिया का वर्णन करता है जब पौलुस लोगों को ख्रीष्ट के विषय में बताने लगा:

सब सुनने वाले आश्चर्यचकित होकर कहने लगे, “क्या यह वही नहीं जो यरूशलेम में इस नाम के लेने वालों को नाश करता था और यहाँ इसी अभिप्राय से आया था कि उन्हें बाँधकर मुख्य याजकों के पास ले जाए?” (प्रेरितों के काम 9:21)

यरूशलेम में भी यही प्रतिक्रिया रही। यीशु के शिष्य “उससे डरते थे, और उन्हें विश्वास नहीं होता था कि वह भी एक चेला है” (26 पद)।

पौलुस अपनी पत्री में अपने उद्धार का वर्णन क्यों करता है? वह चाहता है कि तीमुथियुस स्मरण करे कि किस प्रकार से “हमारे प्रभु का अनुग्रह बहुतायत से हुआ, और साथ ही वह विश्वास और प्रेम भी जो ख्रीष्ट यीशु में है” (1 तीमिथियुस 1:14)। जब पौलुस इस विषय में सोचता है कि यीशु कौन है और उसने क्या किया है, वह विस्मय और आराधना से भर जाता है। पौलुस, जो एक सताने वाला था, परिवर्तित और क्षमा किया गया, और उसे विश्वास और प्रेम से भरा गया। यदि ख्रीष्ट यह कर सकता है, तो तीमुथियुस को इफिसुस में उसके सामने प्रतिकूल परिस्थिति के विषय में भयभीत और चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है। यीशु ख्रीष्ट तीमुथियुस और कलीसिया की सभी आवश्यकताओं के लिए अत्यधिक पर्याप्त है।

यह स्पष्ट है कि हमारे प्रभु की इच्छा है कि हम में भी यह भरोसा भरा विश्वास हो: “यह एक विश्वसनीय और हर प्रकार से ग्रहणयोग्य बात है कि ख्रीष्ट यीशु संसार में पापियों का उद्धार करने आया — जिनमें सब से बड़ा मैं हूँ” (15 पद)। इसी कारण से हमारा प्रभु आया और वह अब भी यह कर रहा है: मरे हुओं को जीवित करता, बुरे को अच्छा बनाता, दोषी को निर्दोष बनाता है। वह बचाने, परिवर्तित करने और पवित्र करने के लिए राज्य करता है।

पौलुस हमें बताता है “फिर भी मुझ पर इस कारण दया हुई कि ख्रीष्ट यीशु मुझ सब से बड़े पापी में अपनी पूर्ण सहनशीलता प्रदर्शित करे कि मैं उनके लिए जो उस पर अनन्त जीवन के निमित्त विश्वास करेंगे, आदर्श बनूँ” (16 पद)। पौलुस ने धैर्य और दया प्राप्त की जिससे कि हम यीशु को देख सकें। जब पौलुस दुष्टता की खोज कर रहा था, यीशु अपनी सेवा, क्रूस, कब्र, पुनरुत्थान, और स्वर्गारोहण की खोज कर रहा था। जब पौलुस दुष्टता में जी रहा था, यीशु महिमा के सिंहासन पर विराजमान था, और वह पौलुस के उद्धार के समय के लिए कार्य कर रहा था और प्रतीक्षा कर रहा था। पौलुस को परिवर्तित करने के पश्चात् यीशु ने अपने सेवक को धैर्यपूर्वक निरन्तर प्रेम करता रहा और पवित्र करता रहा, जिससे कि हम हर्षित होकर जान सकें कि आज और सर्वदा हमारा प्रभु और उद्धारकर्ता यही है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

विलियम वैनडूडेवार्ड
विलियम वैनडूडेवार्ड
डॉ. विलियम वैनडूडेवार्ड दक्षिण कैरोलिना में ग्रीनविले प्रेस्बिटेरियन थियोलॉजिकल सेमिनरी में चर्च के इतिहास के प्रोफेसर हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक या संपादक हैं, जिनमें द क्वेस्ट फॉर द हिस्टोरिकल एडम और चार्ल्स हॉज के एक्सजेटिकल लेक्चर्स एंड सरमन्स ऑन इब्रानियों शामिल हैं।