अधोलोक - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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अधोलोक

पुराने नियम के संतों के लिए अधोलोक (शओल) का यह स्थान क्या है? अधिकाँश पुराने नियम के सन्दर्भों में “अधोलोक” को मानव नियति का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है। इस धारणा के ऊपर एक धुँधला प्रभामंडल मण्डराता है। प्रायः धर्मी जन द्वारा अधोलोक को एक ऐसे स्थान के रूप में वर्णित किया जाता है जहाँ व्यक्ति जाना नहीं चाहता है—वह तो एक “अप्रिय नियति” है जैसा कि भजन 30:3 में हम पाते हैं। प्रायः, जब भजनकार अधोलोक की बात करते हैं तो वे केवल मृत्यु से नहीं डर रहे थे, न ही यह कि वे स्वयं को मृत्यु में खो देंगे। इसके विपरीत उनको डर था कि परमेश्वर के साथ उनका सम्पर्क टूट जाएगा। उदाहरण के लिए भजन 6:5 कहता है, “मृत्यु के बाद तो कोई तुझे स्मरण नहीं करता—अधोलोक में कौन तुझे धन्यवाद देगा?” यह आश्चर्यजनक है कि पवित्रशास्त्र में मृतकों के स्थान के लिए कितने अधिक शब्द हैं: “अधोलोक,” “गड्ढा” “क़ब्र,” “तल या गहरा स्थान,” “विनाश का स्थान,” “विस्मृति का देश,” “अबाद्दोन।”

अधोलोक को प्रायः ईश्वरीय दण्ड के स्थान के रूप में समझा जाता था, अर्थात् एक ऐसी नियति जो भक्तिहीनों के लिए उचित थी। भजनकार प्रायः अधोलोक के विषय में अलंकारिक रीति से बात करता है। कभी-कभी किसी संकट की तीव्रता का वर्णन करने के लिए “अधोलोक” को किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा उपयोग किया जाता है जो वास्तव में अधोलोक में नहीं है। उदाहरण के लिए, भजन 88 में यह असम्भव है कि भजनकार वास्तव में अधोलोक में रह रहा है, क्योंकि यह स्पष्ट है कि वह अभी भी जीवित है; इसलिए वह अपने अस्तित्व का वर्णन करने के लिए अलंकारिक भाषा का उपयोग कर रहा है जैसे मानो कि वह उन लोगों के क्षेत्र में जा चुका है जो अधोलोक में रहते हैं। कभी-कभी “अधोलोक” को निर्वासन में होने की पीड़ा का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है। कभी-कभी अधोलोक जैसी स्थिति के लिए “अन्धेरे” का चित्रण उपयोग किया जाता है, जैसा कि भजन 143:3 में है: “क्योंकि शत्रु ने मेरे प्राण को सताया है; उसने मेरा जीवन चूर-चूर करके मिट्टी में मिला दिया है। उसने मुझे बहुत दिन के मरे हुओं के समान अन्धेरे स्थानों में डाल दिया है।”

जब पुराने नियम का कोई संत “अधोलोक” की या उसके पर्यायवाची शब्दों की बात करते थे, तो उसको सबसे अधिक परमेश्वर की आशिष से वंचित होने का डर था, क्योंकि कोई भी परमेश्वर से पूर्णतः वंचित नहीं हो सकता है। भजन 139:7-8 पुष्टि करता है कि परमेश्वर अपनी सर्वोपस्थिति में होकर अधोलोक में भी है।

भजन 16 को प्रायः भरोसे या विश्वास के गीत के रूप में वर्णित किया जाता है। निस्सन्देह भजन 16 को प्रेरितों के काम 2:25-28, 31 और 13:35 में उद्धरित किया जाता है। विशेषकर भजन 16:10 में—“क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, न अपने पवित्र जन को सड़ने देगा”— ऐसा प्रतीत होता है कि अमरता, पुनरुत्थान और जीवन के बाद के जीवन की बात हो रही है। यही विषय भजन 17, 49 और 73 में पाया जाता है। विद्वतापूर्ण साहित्य में यह दावा सामान्य रीति से मिलता है कि भजन संहिता में जीवन के बाद के जीवन के विषय में यहूदी धारणा की चर्चा नहीं की जाती है। अधिकाँश टीकाकार भजन 16 के अन्त की बातों को इस रीति से समझते हैं जैसे कि भजनकार प्रार्थना कर रहा है कि परमेश्वर उसको किसी प्रकार की असामयिक मृत्यु से सुरक्षित रखेगा। इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि पद 11 का “जीवन” “अनन्त जीवन” के विषय में है और कि इसलिए यह एक ऐसा कथन है जो अमरता के विषय में भजनकार के विश्वास की बात कर रहा है, और यही कारण है कि लूका ने इसे पुनरुत्थान पर लागू किया। जैसा कि गरहार्डस वॉस (Geerhardus Vos) ने स्पष्ट किया, इन शब्दों को लूका ने उचित रीति से यीशु के पुनरुत्थान पर लागू किया (प्रेरितों के काम 2:25-28 देखें)।

हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट की मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के साथ, मृत्यु और जीवन के बाद के जीवन के विषय में संतों की समझ मूल रूप से परिवर्तित हो गई है। यहाँ क्रूस पर से बोली गई हमारे प्रभु की सातवीं वाणी को समझना महत्वपूर्ण है: “हे पिता, मैं अपना आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ!” (लूका 23:46)। यह अन्तिम वाणी सान्त्वना और पुत्र के भरोसे का कथन था। इस कार्य में वह अपनी मानव आत्मा को अपने स्वर्ग में विराजमान पिता के हाथ में अर्पित कर रहा था (उस समय, उसका ईश्वरीय स्वभाव उसके मानव स्वभाव के साथ जुड़ा रहा, यहाँ तक कि जब वह कब्र में लेटा हुआ था; बेल्जिक अंगीकार 19 देखें)। क्रूस पर इस अन्तिम कथन को कहने के द्वारा, ख्रीष्ट हमें बाधारहित जीवन की पुष्टि देता है।

स्तिफनुस ने, जो कलीसिया का पहला शहीद था इस बात के महत्व को समझा था, क्योंकि जब उसका पथराव हो रहा था, तब उसने परमेश्वर से अपना रक्षक होने के लिए विनती करते हुए कहा, “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर” (प्रेरितों के काम 7:59)। प्रेरित पौलुस ने भी पुनरुत्थित प्रभु और जीवन के बाद के जीवन की वास्तविकता को समझा, क्योंकि वह यह समझते हुए कि होशे 13:14 सच्ची रीति से पूर्ण हो गया था, घोषणा कर सकता था, “हे मृत्यु तेरी विजय कहाँ है?” (1 कुरिन्थियों 15:55)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ब्रायन डी. एस्टेल
ब्रायन डी. एस्टेल
डॉ. ब्रायन डी. एस्टेल कैलिफॉर्निया के विस्टमिन्स्टर सेमिनरी में पुराने नियम के प्राध्यापक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें एकोस ऑफ एक्सोडस सम्मिलित है।