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विधिवत् ईश्वरविज्ञानी के लिए प्रमुख स्रोत बाइबल है। वास्तव मेें, ईश्वरविज्ञान के अध्ययन की तीनों विद्याशाखाओं (disciplines) के लिए बाइबल ही प्राथमिक स्रोत है: बाइबलीय (Biblical) ईश्वरविज्ञान, ऐतिहासिक (Historical) ईश्वरविज्ञान, और विधिवत् (Systematic) ईश्वरविज्ञान।
बाइबलीय ईश्वरविज्ञान
बाइबलीय ईश्वरविज्ञान का कार्य यह समझना है कि पवित्रशास्त्र की बातें समय के साथ कैसे प्रकट हुई है, और यह कार्य विधिवत् ईश्वरविज्ञानी के लिए एक स्रोत के रूप में कार्य करता है। बाइबलीय विद्वान पवित्रशास्त्र को पढ़ता है और पुराने और नए नियम दोनों में शब्दों, अवधारणाओं और मूल विचारों के प्रगतिशील विकास का अध्ययन यह देखने के लिए करता है कि कैसे प्रकाशन के इतिहास में उनका उपयोग किया गया है और उन्हें समझा गया है।
आज धर्मविद्यालयों (seminaries) में समस्या बाइबलीय ईश्वरविज्ञान के अध्ययन की “परमाणुवाद” (“atomism”) नामक पद्धति है, जिसमें पवित्रशास्त्र का प्रत्येक “परमाणु” (“atom”) अकेला खड़ा है। एक विद्वान स्वयं को केवल गलातियों की पत्री में उद्धार के विषय में पौलुस के सिद्धान्त का अध्ययन करने तक सीमित रखने का निर्णय कर लेता है, जबकि दूसरा विशेष रूप से इफिसियों की पत्री में उद्धार पर पौलुस की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर लेता है। इसका परिणाम यह होता है कि दोनों व्यक्ति उद्धार के विषय में अलगअलग दृष्टिकोण लेकर आते हैं – एक गलातियों की पत्री से और दूसरा इफिसियों की पत्री से – लेकिन ऐसा अभ्यास यह जाँचने में विफल रह जाता है कि दोनों दृष्टिकोण में सामंजस्य कैसे स्थापित होता हैं। परमाणुवादी विचारधारा की पूर्वधारणा यह है कि जब पौलुस ने गलातियों की पत्री और इफिसियों की पत्री को लिखा तो वह परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं लिख रहा था, इसलिए परमेश्वर के वचन में कोई व्यापक एकता, कोई सुसंगतता नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में ईश्वरविज्ञानियों को यह दावा करते हुए सुनना सामान्य बात हो गई है कि हम न केवल पौलुस के प्रारम्भिक ईश्वरविज्ञान और बाद के ईश्वरविज्ञान के बीच अन्तर पाते हैं, वरन् बाइबल में उतने ही ईश्वरविज्ञान भी हैं जितने लेखक हैं। पतरस का ईश्वरविज्ञान, यूहन्ना का ईश्वरविज्ञान, पौलुस का ईश्वरविज्ञान और लूका का ईश्वरविज्ञान है, और उनमें परस्पर सामंजस्य नहीं है। यह ईश्वरविज्ञान की सुसंगतता पर एक नकारात्मक दृष्टिकोण है और यही खतरे होता है जब कोई बाइबल के प्रकाशन के पूरे ढाँचे पर विचार किए बिना केवल इसके एक संकीर्ण भाग पर ध्यान केंद्रित करता है।
ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान
विधिवत् ईश्वरविज्ञान की दूसरी विद्याशाखा या अन्य स्रोत है, ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान। ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञानी यह देखते हैं कि ऐतिहासिक रूप से कलीसिया के जीवन में सिद्धान्त कैसे विकसित हुआ है, मुख्य रूप से संकट के समयों में – जब विधर्मताएँ (heresies) उभरीं और कलीसिया ने प्रतिउत्तर दिया। कलीसियाओं और धर्मविद्यालयों में तथाकथित नए-नए विवाद उठने पर आज ईश्वरविज्ञानी निराश हो जाते हैं, क्योंकि कलीसिया ने अतीत में बार-बार इन नए प्रतीत होने वाले ईश्वरविज्ञानीय विवादों का अनुभव किया है। इतिहास में कलीसिया ने विवादों को हल करने के लिए महासभाओं का आयोजन किया है, जैसे कि नीकिया की महासभा (325 ई.) और चाल्सीदोन की महासभा (451 ई.)। उन घटनाओं का अध्ययन करना ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञानियों का कार्य है।
विधिवत् ईश्वरविज्ञान
विधिवत् ईश्वरविज्ञान तीसरी विद्याशाखा है। विधिवत् ईश्वरविज्ञानी का कार्य है निम्न बातों पर ध्यान केंद्रित करना है: बाइबलीय आँकड़ों के स्रोत; ऐतिहासिक घटनाक्रम के स्रोतों को जो विवादों और कलीसियाई महासभाओं तथा तत्पश्चात् उनसे उत्पन्न विश्वास वचनों (creeds) और अंगीकार वचनों (confessions) से आए हैैं; और महान विद्वानों की अंतर्दृष््टटियाँ जिनके द्वारा अनेक शताब्दियों से कलीसिया आशिषित होती आई है। नया नियम हमें बताता है कि परमेश्वर ने अपने अनुग्रह से कलीसिया को शिक्षक दिए हैं (इफिसियों 4:11-12)। सभी शिक्षक ऑगस्टीन, मार्टिन लूथर, जॉन कैल्विन या जोनाथन एडवर्ड्स जैसे कुशाग्र-बुद्धि वाले तो नहीं हैं। और न ही इन लोगों के पास प्रेरितीय अधिकार है, किन्तु उनके शोध की विशालता और उनकी समझ की गहराई ने हर युग में कलीसिया को लाभ पहुँचाया है। रोमन कैथोलिक कलीसिया द्वारा थॉमस एक्विनस को ” द डॉक्टर एन्जेलिकस” या “एन्जेलिक डॉक्टर” (अर्थात् स्वर्गदूत के समान शिक्षक) कहा जाता था। रोमन कैथोलिक यह विश्वास नहीं करते हैं कि एक्विनस की शिक्षा त्रुटिहीन (infallible) थी, परन्तु कोई भी रोमन कैथोलिक इतिहासकार या ईश्वरविज्ञानी उनके योगदान की उपेक्षा भी नहीं करता है।
विधिवत् ईश्वरविज्ञानी न केवल बाइबल और कलीसिया के विश्वास-वचनों तथा अँगीकरों वचनों का अध्ययन करता है, वरन् उन महान शिक्षकों की अंतर्दृष्टियों का भी अध्ययन करता है, जिन्हें परमेश्वर ने पूरे इतिहास काल में दिए हैं। विधिवत् ईश्वरविज्ञानी सब आँकड़ों को देखता है – बाइबलीय, ऐतिहासिक और विधिवत – और उन सब में सामंजस्य बैठाता ।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।