एक, पवित्र, विश्वव्यापी, और प्रेरितीय कलीसिया - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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एक, पवित्र, विश्वव्यापी, और प्रेरितीय कलीसिया

हम कहते हैं “परमेश्वर के अधीन, अदृश्य, स्वतंत्रता के साथ, एक राष्ट्र . . .” हम इसके विषय में पूर्ण तर्क देते हैं (विशेषकर “परमेश्वर के अधीन” वाले भाग पर)। परन्तु क्या यह सत्य है? आखिरकार, ‘संयुक्त राज्य’ कितना संयुक्त है? लिंकन के द्वारा चाहा गया “अत्यधिक सिद्ध संयुक्त” राज्य, सामंजस्य की दृष्टि से कदाचित् ही सिद्ध हो। हम एक राष्ट्र हैं — नैतिक रूप से, दार्शनिक और धार्मिक रूप से —अत्यन्त विभक्त किया हुआ। इन सब के पश्चात् भी औपचारिक और संगठनात्मक एकता का बाहरी आवरण बना हुआ है। हमारे पास बिना किसी एकता के संयुक्ति है।

जैसे “संयुक्त राज्य” के साथ है, उसी प्रकार यह ख्रीष्टीय कलीसिया की एकता के साथ भी है। कलीसिया की “एकतात्मकता (oneness)” कलीसिया को परिभाषित करने हेतु चार प्राचीन वर्णनात्मक शब्दों में एक है। नीकिया की महासभा (सन् 325) के अनुसार, कलीसिया एक, पवित्र, विश्वव्यापी और प्रेरितीय है।

आज कुछ कलीसियाएँ अपने प्रेरितीय होने पर अत्यधिक महत्व देती हैं। अभी भी बहुत ही कम लोग पवित्र के पहलु के विषय में ध्यान देते हैं। जब ये गुण कलीसिया के लोगों के मनों में आप्रासंगिक हो जाते हैं, तो विश्वव्यापकता और एकता की बात करना केवल एक कल्पना है।

कलीसिया संगठनात्मक रूप से, निराशाजनक रीति से टुकड़ों में बँटी हुई है। “कलीसिया-एकतावर्धक आन्दोलन” (Ecumenical Movement) के उद्गम के पश्चात्, कलीसिया ने मेल की तुलना में अधिक विभाजन को देखा है। कलीसिया द्वारा बिशप की भूमिका के लिए एक व्यावसायिक, अशुद्ध समलैंगिक को धर्माध्यक्षीय पद पर नियुक्त करने के निर्णय के पश्चात् विभाजन का संकट पृथम पृष्ठों पर ही अंकित है।

क्या एकता एक झूठी आशा है? क्या यह अपने ऐतिहासिक अभिव्यक्ति में केवल एक भ्रम है?

इन प्रश्नों का उत्तर देने हेतु कलीसियाई एकता की प्रकृति पर ध्यान देना चाहिए।

सर्वप्रथम, कलीसिया की गहन और अत्यधिक महत्वपूर्ण एकता उसकी आत्मिक एकता है। यद्यपि हम कलीसिया की एकता के सम्बन्ध में कभी भी औपचारिक को भौतिक से पूर्णत: पृथक नहीं कर सकते हैं, परन्तु हम इन दोनों में भेद कर सकते हैं और हमें करना भी चाहिए।

यह ऑगस्टीन थे जिन्होंने दृश्य और अदृश्य कलीसिया में अन्तर के विषय में बड़े ही गहनता से सिखाया। इस परम्परागत अन्तर के साथ ऑगस्टीन ने दो भिन्न कलीसिया सम्बन्धी ढाँचों की कल्पना नहीं की, कि एक तो नग्न आँखों के लिए स्पष्ट है तो दूसरा दृश्य अनुभूति के पैमाने से परे है। तो, क्या उन्होंने एक ऐसी कलीसिया की कल्पना की जो “भूमिगत” हैं और दूसरी भूमि के ऊपर जो स्पष्ट रीति से दिखाई देती हैं?

नहीं, वह तो कलीसिया के भीतर एक कलीसिया का वर्णन कर रहे थे। ऑगस्टीन ने अपने चिह्नों को हमारे प्रभु की शिक्षा से लिया कि जब तक वह अपनी कलीसिया को महिमा में शुद्ध नहीं करता, तब तक यह संसार में एक देह के रूप में निरन्तर बनी रहेगी जिसमें “गेहूँ” के साथ “जंगली घास” भी पायी जाएगी। जंगली बीज घास फूस हैं जो ख्रीष्ट के उद्यान में फूलों के साथ बढ़ते हैं।

क्योंकि कलीसिया में गेहूँ और जंगली घास दोनों की उपस्थिति होने के कारण, हम जानते हैं कि विश्वासी लोग अविश्वासियों के साथ, पुनरुज्जीवित लोग अपुनरुज्जीवित लोगों के साथ में सह-अस्तित्व में हैं। यही वह स्थिति थी जिसने ऑगस्टीन को “मिश्रित देह” (“mixed body” (corpus permixtum) के रूप में वर्णित करने हेतु प्रेरित किया। अदृश्य कलीसिया सच्चे विश्वासियों से मिलकर बनी हुई कलीसिया है। यह पुनरुज्जीवित लोगों से, या जैसा ऑगस्टीन ने कहा था, यह “चुने हुओं” के द्वारा मिलकर बनी है।

यीशु ने यह स्पष्ट कर दिया था कि कुछ, वास्तव में बहुत से लोग हैं जो विश्वास का दावा तो करते हैं परन्तु उनके पास विश्वास नहीं है। उसकी भेदने वाली चेतावनी पहाड़ी उपदेश का चर्मोत्कर्ष हैः

प्रत्येक जो मुझ से, ‘हे प्रभु! ‘हे प्रभु!’ कहता है, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है, वही प्रवेश करेगा। उस दिन बहुत लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु क्या हमने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की और तेरे नाम से दुष्ट आत्माओं को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?’ तब मैं उनसे स्पष्ट कहूँगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना; हे कुकर्मियो, मुझ से दूर हटो।’ (मत्ती 7:21-23)

किसी दूसरे स्थान पर यीशु ने कहा कि लोग ने अपने होंठों से तो उसका आदर किया जबकि उनके हृदय उससे बहुत दूर थे। जंगली घास के होंठों पर यह दावा है कि उन्होंने ख्रीष्ट के लिए परिश्रम किया है। फिर भी यीशु उन्हें अस्वीकार कर देंगे। वह उन्हें जाने के लिए कहेगा (नहीं, उन्हें आज्ञा देगा)। वह घोषणा करेगा कि वे कभी भी उसकी सच्ची कलीसिया के भाग नहीं थे। “मैंने तुम को कभी नहीं जाना”। ये एक समय की भेड़े नहीं है जो बकरियाँ बन गई हैं। ये यहूदा के पुत्र और पुत्रियाँ हैं जो आरम्भ से ही अविश्वासी थे।
हम देखते भी हैं कि यीशु ने कहा कि ऐसे बहुत से स्व-घोषित विश्वासी लोग, जो वास्तव में पुनरुज्जीवित नहीं हैं, “अधिक” होने की बात कही गई है। सुसमाचार प्रचार के लिए हमारी तकनीकियों और विधियों की सफलता की हमारी धारणाओं के प्रति, इस विचार को सावधनी बरतने के लिए हमें प्रेरित करना चाहिए। हम अपने “सुसमाचार-प्रचार सम्बन्धित आँकड़ों” के प्रति अधिक आशावादी हो जाते हैं जब हम उन सभी का हृदय परिर्वतन समझ लेते हैं जो वेदी पुकार (altar call) के प्रति प्रत्युत्तर देते हैं, जो “ख्रीष्ट के प्रति निर्णय” लेते हैं, या “पापी की प्रार्थना” को बोलते हैं। ये यन्त्र बाहरी अंगीकारों को मापने में तो सहायता कर सकते हैं, परन्तु वे हमें हृदय की एक झलक भी नहीं देते हैं। किसी भी व्यक्ति के अंगीकार के विषय में हम केवल उसका फल ही देख सकते हैं। और यहाँ तक कि फल भी धोखा देने वाला हो सकता है। परमेश्वर, केवल परमेश्वर ही मनुष्य के हृदय को पढ़ सकता है। हमारी एकटक दृष्टि बाहरी दिखावे से आगे नहीं बढ़ सकती हैं।

ऑगस्टीन ने भी इस बात की पुष्टि की कि अदृश्य कलीसिया मूलतः दृश्य कलीसिया में पाई जाती है। विरले ही उदाहरण होंगे जब एक सच्चा विश्वासी कभी दृश्य कलीसिया से न जुडे़ जब तक कि ईश्वरीय-प्रावधान में होकर वह अलग न रखा गया हो। क्रूस पर लटके डाकू के पास कभी भी एक स्थानीय कलीसिया में नये सदस्य की कक्षाओं में भाग लेने का अवसर नहीं था।

किन्तु अधिकाँशत: ख्रीष्ट की अदृश्य कलीसिया के सच्चे सदस्य, दृश्य कलीसिया के भीतर पाए जाते हैं। यद्यपि वह दृश्यमान कलीसिया जिससे वास्तव में पुनरुज्जीवित व्यक्ति सम्बन्धित है उस कलीसिया से भिन्न हो सकता है जिससे कोई अन्य व्यक्ति सम्बन्धित है, वास्तव में दोनों विश्वासी पहले से ही एक सच्चे अदृश्य कलीसिया में जुड़े हुए हैं।

विश्वासियों की एकता ख्रीष्ट और उसकी कलीसिया के रहस्यमय मिलन पर आधारित है। बाइबल द्वि-मार्गी व्यवहार (two-way transaction) के विषय में बात करती है जो तब होता है जब कोई व्यक्ति पुनरुज्जीवित होता है। प्रत्येक हृदय परिवर्तित व्यक्ति “ख्रीष्ट में” हो जाता है ठीक उसी समय विश्वासी में ख्रीष्ट प्रवेश करता है। यदि मैं ख्रीष्ट में हूँ, और आप ख्रीष्ट हैं, और वह हम में है, तो हम ख्रीष्ट में गहरी एकता का अनुभव करते हैं।

यूहन्ना 17 में अपने अनुयायियों की एकता के लिए यीशु द्वारा की गई महायाजकीय प्रार्थना विफल या अधूरी प्रार्थना नहीं थी। परमेश्वर विश्वासियों के मध्य एकता को सुनिश्चित करने में प्रसन्न हुए, जो अदृश्य होते हुए भी वास्तविक है। यह एक ही प्रभु, एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मा पर आधारित सामान्य बन्धन है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।