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परमेश्वर के राज्य का स्थान
14 नवम्बर 2023परमेश्वर के राज्य का राजा

प्राचीन जगत में राजा ही बड़े निर्माण अभियान का निरीक्षण करता था, राष्ट्र की सेनाओं को युद्ध में ले जाता था, न्याय प्रणाली को संचालित करता था, और इन सब कार्यों में बुद्धि को बढ़ावा देता था। राजा देश की पहचान का मूर्त रूप समझा जाता था, वह अपने लोगों की सिद्ध अभिव्यक्ति था, और उसे प्रायः राष्ट्रपिता कहा जाता था, जो इस ओर संकेत करता है कि राजा और उसकी प्रजा के मध्य केवाल राजनीति और शासन से गहरा सम्बन्ध हुआ करता था। राजा और उसकी प्रजा का सम्बन्ध सबसे उत्तम रूप में मानव समृद्धि की सम्भावना थी, और सबसे विकृत रूप में मानव कष्ट के लिए भयानक अवसर था।
परमेश्वर की छुटकारे की योजना में राजा
सर्वदा से मानवजाति का एक राजा होना ही था क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के राज्य के एक भाग के रूप में सृजे गए। परमेश्वर की यही इच्छा थी जब उसने हमें इमागो डेय (imago Dei), अर्थात् “परमेश्वर के स्वरूप” के अनुसार बनाया, जब उसने मनुष्य को भूमि से बनाया कि वह परमेश्वर की पृथ्वी को परमेश्वर के स्वरूप से भर दे। उत्पत्ति 1 में पृथ्वी को एक ऐसे भौतिक राजभवन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिसे एक दिन ऐसे मानव राजा भरेंगे और अपने वश में करेंगे जो अपने ईश्वरीय सृष्टिकर्ता-राजा के स्वरूप में बनाए गए हैं (27-28 पद)। यह राजसी पहचान मनुष्य के रूप में हमारी पहचान को आधारभूत राति से प्रभावित करती है। पतन की पूर्ण विफलता और विनाश के प्रकाश में भी, मानवता को अभी भी परमेश्वर की महिमा से भरी हुई पृथ्वी के इस दर्शन की ओर देखने के लिए बुलाया गया है, और परमेश्वर के छुड़ाए हुए स्वरूप धारकों को बुलाया जाता है कि वे प्रार्थना करें कि परमेश्वर का राजसी शासन पृथ्वी पर भी वैसे ही लागू हो जैसे स्वर्ग में होती है (मत्ती 6:10; यशायाह 6:3 देखें)। यीशु ने हमें उस रीति से प्रार्थना करने के लिए कहा क्योंकि वह भी उस दिन की प्रतीक्षा करता है।
पतन के पश्चात् परमेश्वर ने पृथ्वी के सब परिवारों में से एक परिवार को चुना जहाँ से राजाओं की शृंखला आएगी, जो कि परमेश्वर के छुटकारे के कार्य का भाग होगा। अब्राहम से केवल यह नहीं प्रतिज्ञा की गई कि परमेश्वर उसे महान् देश में रहने वाला महान राष्ट्र बनाएगा, परन्तु यह भी कि “तुझ से राजा उत्पन्न होंगे” (उत्पत्ति 17:6), जो इस ओर संकेत करता है कि पुराने नियम के कुलपिताओं के युग में छुटकारे की आशा में यह आशा सम्मिलित थी कि अब्राहम के वंश से एक मानव राजा आएगा।
यह चित्र मूसाई वाचा में और स्पष्ट हो जाता है, जहाँ हम भविष्य के राजा के लिए नियम और प्रतिबन्ध पाते हैं जि राजा को प्रभु के प्रति विश्वासयोग्य बने रहने के लिए उत्साहित करने के लिए थे (व्यवस्थाविवरण 17:14-20)। हमें इस बात से चकित नहीं होना चाहिए कि इस प्रकार का खण्ड किसी भी वास्तविक राजा के राज्याभिषेक से पहले आता है। मूसा की अधिकतर शिक्षा इस बात को मानता है कि उन्हें वे आशीषें मिलेंगे जो उन्हें अभी नहीं मिले थे। जब वे प्रतिज्ञा के देश की सीमा पर थे, मोआब के मैदानों में, व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में इस्राएली आशा का पूर्ण परिमाण विस्तार से बताया गया, जिसमें भवन का प्रावधान, देश में रहने के लिए प्रतिबन्ध, ईश्वर के अधीन देश का ढाँचा, और इस्राएल के राजा के गुणों का विवरण भी सम्मिलित थे।
यहोशू से 2 शमूएल की ऐतिहासिक पुस्तकें उस कथा का विवरण देते हैं कि इस्राएल ने इस आशा को कैसे प्राप्त किया, और इसलिए हमें चकित नहीं होना चाहिए कि राजा का विषय एक और वाचा में आता है, और इस बार सिंहासन सर्वदा के लिए राजा दाऊद के वंश में स्थापित किया जाता है (2 शमूएल 7)। अब्राहम और मूसा के समान, दाऊद को ऐसी प्रतिज्ञा मिली जो भविष्य में वर्षों बाद पूरी होने वाली थी।
पुराने नयम का एकीकृत सन्देश स्पष्ट है: आदि से ईश्वरीय राजा का उद्देश्य सर्वदा यह था कि मानव जाति परमेश्वर द्वारा नियुक्त मानव राजा के अधीन एकीकृत हो, अर्थात् उस राजा के अदीन जो अपने धर्मी और भरपूर शासन शासन के अन्तर्गत पृथ्वी को अपने वश में करेगा। दुर्भाग्यवश, जब पुराना नियम समाप्त होता है, तो दाऊद के वंश से कोई उपयुक्त प्रत्याशी नहीं है, परन्तु जब नया नियम आरम्भ होता है, तो यीशु सच्चा राजा और परमेश्वर की सभी छुटकारा सम्बन्धित प्रतिज्ञाओं के उपयुक्त उत्तराधिकारी के रूप में सामने आता है। निश्चय ही परमेश्वर की सभी प्रतिज्ञाएँ उन लोगों के लिए ख्रीष्ट में “हाँ” और “आमीन” हैं जो उसके राज्य में उसके साथ मिलाए गए हैं (2 कुरिन्थियों 1:20)।
ख्रीष्ट का प्रतिज्ञा किया गया राज्य
ख्रीष्ट प्रकट करता है कि वही वह राजा है जिसके लिए मावव जाति प्रतीक्षा कर रही है क्योंकि वह ही एकमात्र वाचा भागीदार है जो परमेश्वर की माँगों को पूरी करता है। वह “अन्तिम आदम” (1 कुरिन्थियों 15:45; रोमियों 5:12–21; 1 कुरिन्थियों 15:22 देखें), सच्चा इस्राएल (मत्ती 2:15; यूहन्ना 15:1–17), और दाऊद का मसीहाई पुत्र (मत्ती 1:1; 9:27; 20:30) है, जो उन सभी वाचाओं की भूमिकाओं को पूरा करता है और उनके उत्तराधिकार को प्राप्त करता है।
उससे पहले आए वाचाई अगुवों से भिन्न, ख्रीष्ट अपने लोगों के लिए अपनी वाचा को परमेश्वर के साथ विशेष पहचान की स्थिति से संचालित करता है। प्रेरितीय लेखक के लिए कठिन था कि वे एक ही अभिव्यक्ति में ख्रीष्ट के अधिकार के स्थान का विवरण करते। वह “[परमेश्वर] के तत्व का प्रतिरूप” है (इब्रानियों 1:3), वह जन जिसमें “परमेश्वरत्व की समस्त परिपूर्णता सदेह वास करती है” (कुलुस्सियों 2:9), और वह जन है जो “सब प्रकार की प्रधानता, अधिकार, सामर्थ्य और प्रभुता के ऊपर” है (इफिसियों 1:21)। इस रीति से ख्रीष्ट की वाचा न केवल उससे पहले आई सभी वाचाओं से उत्तम है, वरन् वह तो वह वास्तविकता है जिसके लिए पिछली वाचाएँ छाया मात्र थीं (रोमियों 5:14; कुलुस्सियाों 2:7; इब्रानियों 8:5; 9:23, 24; 10:1)। पुराने नियम के वे सब संस्थाएँ और लोग जो ख्रीष्ट के राज्य की ओर संकेत करते थे, वे अब प्रत्याशा, परछाई, और प्रारूप माने जाते हैं। वे ख्रीष्ट की ओर संकेत करते थे और अब उसमें अपने अर्थ को प्राप्त करते हैं।
परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर यीशु की सेवकाई के लिए एक ढाँचा प्रदान करता है। वह अपने राज्य की साक्षी देते हुए आरम्भ करता है (मत्ती 4:17; मरकुस 1:15), और वह प्रेरितों को आदेश देता है कि उसके जाने के बाद वे उस राज्य के कार्य को करते रहें (मत्ती 28:16-20)। वेस्टमिन्स्टर लघु प्रश्नोत्तरी के अनुसार, ख्रीष्ट “हमें अपने लिए अधीन करने के द्वारा, हम पर शासन करने और हमारी रक्षा करने के द्वारा, और अपने तथा हमारे शत्रुओं को रोकने और हराने के द्वारा” (26 प्रश्न का उत्तर) राजा के कार्य को पूरा करता है। वे लोग जो परमेश्वर के लोगों में गिने जाते हैं उचित भय के साथ उस राजा का सम्मान करेंगे और उसकी आज्ञा मानेंगे जिसे परमेश्वर ने उनके ऊपर नियुक्त किया है। कोई भी व्यक्ति किसी और साधन द्वारा बचाए जाने का दावा नहीं कर सकता है, जैसा कि जन्म के द्वारा या नैतिक उपलब्धि के द्वारा। व्यक्ति को ख्रीष्ट को राजा के रूप में स्वीकार करना ही होगा। जबकि यीशु के समय में कई शास्त्रियों और फरीसियों ने कर्मकाण्डवाद (legalism) के कारण उसकी शिक्षाओं का विरोध किया, यह भी सम्भव है कि कई लोग तो यीशु जैसे व्यक्ति पर विश्वास करने के विचार के समर्थन में नहीं थे। पुराने नियम के विभिन्न विद्रोह के सम्मान, परमेश्वर द्वारा नियुक्त किए गए अधिकार को ठुकराने के द्वारा वे वास्तव में स्वयं परमेश्वर के प्रति विद्रोह कर रहे थे (गिनती 16; यूहन्ना 8:19)। यदि व्यक्ति ख्रीष्ट के राजा होने को नकारे, तो मूसा की व्यवस्था या दाऊद की प्रतिज्ञाओं को थामना पर्याप्त नहीं है। जैसे कि यीशु चिताता है, “यदि तुमने मुझे जाना होता तो मेरे पिता को भी जानते” (यूहन्ना 14:7)।
आज तक ख्रीष्ट सर्वशक्तिमान पिता परमेश्वर के दाहिने हाथ से राज्य करता है (प्रेरितों के काम 5:31; कुलुस्सियों 3:1)। इसके परिणामस्वरूप, ख्रीष्ट की कलीसिया अपने वाचाई अगुवे के रूप में किसी भूतकाल के सन्त की ओर नहीं देखती है; न ही हम किसी पिछली पीढ़ी के पार्थिव स्मृतिचिह्नों को देखते हैं, वरन् हम अपने प्राथमिक और सर्वश्रेष्ठ अधिकार के रूप में एक जीवित राजा की ओर देखते हैं।
ख्रीष्ट का अन्तरवास करने वाला राज्य
विश्वव्यापी कलीसिया के सदस्य ख्रष्ट में एक दूसरे के साथ गहराई से मिले हुए हैं जैसा कि वे पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा की संगति में सहभागी होते हैं। यह आत्मिक संगति विश्वासियों को सक्षम बनाता है, कि व्यक्तियों के रूप में और देह के रूप में पाप के उस दूषण से मुक्त हों जो उन पर राज्य करता था, और इसके साथ यह उनको एक देह के रूप में एक दूसरे से मिलाता है, अर्थात् पृथ्वी पर परमेश्वर के जीवित भवन के रूप में, और ख्रीष्ट के राज्य के प्राथमिक कर्ता के रूप में (मत्ती 16:19)। ख्रीष्ट ने अपने शासन के इस आयाम को पकड़वाए जाने से तुरन्त पहले अपनी प्रार्थना में आरम्भ किया:
“मैं केवल इन्हीं के लिए विनती नहीं करतै, परन्तु उनके लिए भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, कि वे सब एक हों। जैसे, हे पिता, तू मुझ में है और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, जिससे कि संसार विश्वास करे कि तू न ही मुझे भेजा है। और वह महिमा जो तू ने मुझे दी है मैंने उन्हें दी है, कि वे वैसे ही एक हों जैसे हम एक हैं: मैं उनमें और तू मुझ में, कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएँ, जिस से संसार जाने कि तू ने मुझे भेजा और जैसे तू वे मुझ से प्रेम किया वैसे ही उनसे भी प्रेम किया।” (यूहन्ना 17:20-23)
निश्चय ही ख्रीष्ट अपनी कलीसिया की अगुवाई करता है, और कलूसिया पवित्र आत्मा के द्वारा उससे मिला हुआ है, जिसे प्रेरित “ख्रीष्ट का आत्मा” कहते हैं (रोमियों 8:9; 1 पतरस 1:11)। आत्मा न केवल विश्वासी के पुनरुज्जीवन में प्रभावशाली है, परन्तु वह ही वह निरन्तर भोजन है जिसकी सहायता से मसीही ख्रीष्ट के राज्य के नागरिक के रूप में जीता है। ख्रीष्ट का राजा होने के दो लागूकरण हैं। यह परमेश्वर और उसके लोगों के मध्य उचित सम्बन्ध को स्थापित करता है क्योंकि ख्रीष्ट सच में मनुष्य है, परन्तु यह परमेश्वर के लोगों और परमेश्वर के मध्य भी उचित सम्बन्ध को स्थापित करता है क्योंकि ख्रीष्ट सच में ईश्वरीय है। ख्रीष्ट के कारण परमेश्वर के साथ हमारा मिलन हो सकता है और हम उस मिलन के अन्तर्गत सभी आशिषों का आनन्द उठा सकते हैं।
कलीसिया का स्वभाव और कार्य ख्रीष्ट पर आधारित हैं, आत्मा द्वारा जीवन पाता है, और परमेश्वर के राज्य के उद्देश्यों की दिशा में बढ़ते हैं। जिस प्रकार से हम उसमें हैं वह हम में है। हमारे परम्परा के अनुसार ख्रीष्ट किसी सन्त या परमेश्वर के किसी नबी से बढ़कर है; वह इब्रानी पवित्रशास्त्र की आशाओं की पूर्ति है। पवित्रीकरण में पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा हमारे हृदय उसके राजसी हृदय के अनुरूप बनते हैं, और उसके साथ हमारे आत्मिक मिलन के कारण हम उसके राज्य की परिपूर्णता की बाट जोहते हैं।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।