ख्रीष्ट का निवेदन - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
ख्रीष्ट के लोग
15 मार्च 2022
स्वयं को पवित्र करना क्योंकि ख्रीष्ट पवित्र है
22 मार्च 2022
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स्वयं को पवित्र करना क्योंकि ख्रीष्ट पवित्र है
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ख्रीष्ट का निवेदन

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवां अध्याय है: यीशु की महायाजकीय प्रार्थना

यूहन्ना 17 में, ख्रीष्ट अपने चेलों के लिए आग्रहपूर्वक और शक्तिशाली रूप से मध्यस्थता की प्रार्थना करता है। उसकी प्रार्थना को महायाजकीय प्रार्थना के रूप में जाना जाता है जब्कि इस प्रार्थना में कहीं भी हमको “महा याजक” शब्द नहीं मिलते हैं। फिर भी, ख्रीष्ट स्पष्ट रूप से इस प्रार्थना की संरचना और सार में अपनी याजकीय भूमिका को दिखाता है। महान महायाजक के रूप में ख्रीष्ट की भूमिका क्या थी? जैसा कि हीइडलबर्ग प्रश्नोत्तरी का प्रश्न और उत्तर 31 ख्रीष्ट के विषय में कहता है, वह “हमारा एकमात्र महायाजक है, जिसने अपनी देह के एक बलिदान से हमें छुड़ाया है, पिता के साथ हमारे लिए मध्यस्थता करने के लिए सदैव जीवित है।” यह याजकीय भूमिकाएँ (विशेषकर मध्यस्थता) प्रार्थना के इस पूरे भाग में प्रदर्शित होती हैं (यूहन्ना 17:19-26)। यीशु, महान महायाजक, अपने चेलों के लिए, और वास्तव में पूरी कलीसिया के लिए मध्यस्थता की प्रार्थना करता है। वह अपनों के लिए प्रार्थना करता है, जिन्हें पिता ने उसे दिया है।

महान, अन्तिम और सर्वश्रेष्ठ महायाजक ख्रीष्ट अपने पिता के सम्मुख अपने चेलों के लिए मध्यस्थता करने की शक्ति के साथ तीन विनतियों को पिता के सामने लाता है। हम उद्धारकर्ता के हृदय के विषय में उसकी मध्यस्थता की विनतियों से क्या सीख सकते हैं? वह तीन प्रार्थना विनतियाँ क्या हैं जिन्हें महायाजक अपने स्वर्गीय पिता को प्रस्तुत करता है। यूहन्ना 17:19-26 हमें बताता है कि ख्रीष्ट अपनों के लिए और उनके पवित्रीकरण, एकता, और महिमा के लिए प्रार्थना करता है।

उसके अपने (पद 24-26)

यीशु अपनों के लिए प्रार्थना करता है जिनसे वह अनन्त काल के प्रेम के साथ प्रेम करता है। अपनी प्रार्थना के अन्त में, ख्रीष्ट हमें चुनाव के सत्य की ओर इंगित करता है। उसके समापन शब्दों में चुनाव को कथित समयावधि और पहचाने गए समूहों, दोनो में ही देखा जाता है। पद 24 के अन्त की समयावधि पर ध्यान दें। ख्रीष्ट अपने पिता के प्रेम के विषय में बात कर रहा है जो उसे “जगत की उत्पत्ति से पहले” दिया गया था (17:24)। सृष्टि की रचना से पूर्व किस प्रकार का प्रेम किया जाता था? पिता ने पुत्र को किस प्रकार का प्रेम दिया जो उसके लोगों को भी दिया जा सकता है (पद 26)? यह प्रेम परमेश्वर के करूणामय चुनाव के सिद्धान्त का वर्णन करता है। जैसा कि बेल्जिक अंगीकार लेख 16 इसे वर्णित करता है, “परमेश्वर दयालु है. . . . . उन्हें बचाने में . . . . जो, अनन्त और अपरिवर्तनीय ईश्वरीय सम्मति में, बिना उनके कार्यों पर विचार किए गए, हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट में उसकी शुद्ध भलाई में चुने गए हैं।” पिता का प्रेम जो सृष्टि से पूर्व से है वह इस अनन्त और अपरिवर्तनीय सम्मति की ओर इंगित करता है।

इसके अतिरिक्त, ख्रीष्ट के समापन के शब्द चुनाव के दो समूहों की ओर इंगित करता है—वे जो उसे पिता के द्वारा दिए गए हैं और वे जो नहीं दिए गए। पद 24 और 25 में ख्रीष्ट उनके विषय में बात करता है “जिन्हें तूने मुझे दिया है” और वे “संसार में” जो “तुझे नहीं जानते।” इन शब्दों में, ख्रीष्ट चुने हुओं को और भ्रष्टों की पहचान करता है। बेल्जिक अंगीकार 16 इन दोनों समूहों की ओर इंगित करता है जब बात की जाती है “उनकी जो. . . . .चुने गए हैं” और “वह अन्य” जिन्हें वह “उनके विनाश और पतन में त्याग देगा जिसमें उन्होंने स्वयं को डुबा दिया है”। इन दोनों समूहों के मध्य के अन्तर को हमें भाग्यवादी निष्कर्ष पर नहीं ले जाना चाहिए कि “जो कुछ होगा,होगा”। वरन, जब हम इस प्रार्थना में महायाजक की अन्तिम प्रतिज्ञा को सुनते हैं, तो हमें उसके चुनने वाले प्रेम की सच्चाई की घोषणा करने के लिए साधन के रूप में उपयोग होने की इच्छा करनी चाहिए। हमारा पवित्र उद्धारकर्ता प्रार्थना करता है कि उसके चुने हुए उसके वचन की सच्चाई में पवित्र किए जाएँ और उसके द्वारा उसकी महिमा में साझा करने और महिमा को दिखाने के द्वारा पिता के साथ एक किए जाएँ।

पवित्रीकरण (पद 17-19)

पवित्रीकरण के इस अनुरोध के लिए, हमें यूहन्ना 17:17-19 पर विचार करना चाहिए। पद 17 में, ख्रीष्ट पिता से कहता है कि “सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर; तेरा वचन सत्य है।” पद 19 में वह कहता है कि “उनके लिए मैं अपने आप को पवित्र करता हूँ, कि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएँ।” इन पदों में हम एक ही यूनानी शब्द को तीन बार आते हुए देखते हैं, जिसका अनुवाद “पवित्र करना” (sanctify) और “पवित्र करना” (consecrate) दोनों ही रूप में किया गया है। इस शब्द का कोई भी अनुवाद हमारी यह देखने में सहायता करता है कि ख्रीष्ट याजकीय भाषा का उपयोग कर रहा है। वह मध्यस्थता कर रहा है ताकि उसके चेले पवित्र किए जाएँ या संसार से अलग किए जाएँ वैसे ही जैसे ख्रीष्ट स्वयं अलग और पवित्र किया गया है। यह इस मध्यस्थता से दो बिन्दुओं पर विचार करने के लिए हमें प्रोत्साहित करता है: पहला, कि कैसे पुत्र चेलों के पवित्रीकरण का अनुरोध करता है, और दूसरा, कैसे पुत्र हमें उसके पवित्रीकरण का स्मरण कराता है।

चेलों के पवित्रीकरण में ख्रीष्ट के अनुरोध में, वह पहले पिता से उन्हें वचन के सत्य की ओर संकेत करने को कहता है। पद 17 में, “सत्य” का दो बार उल्लेख किया गया है। “सत्य के द्वारा” पवित्रीकरण के सामान्य अनुरोध के पश्चात्, ख्रीष्ट इस बात की पुष्टि के साथ समाप्त करता है कि पिता का “वचन सत्य है”। यह अनुरोध निश्चित रूप से चेलों में एक अनोखे रूप में लागू होता है। वे  न केवल वे लोग होंगे जो देहधारी सत्य को जानते थे, परन्तु वे परमेश्वर के वचन का प्रचार करने और उसे लिखने के लिए उसके साधन के रूप में पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित होंगे। इस अनुरोध का चेलों के लिए विशेष अर्थ है, परन्तु अनुरोध उन सब पर भी लागू होता है जो परमेश्वर के लोग हैं। परमेश्वर के लिए पवित्र होने का एकमात्र मार्ग परमेश्वर के वचन की सामर्थ्य के माध्यम से है।

फिर ख्रीष्ट पवित्रीकरण के लिए इस अनुरोध को पद 19 के अन्त में दोहराता है। परन्तु अब वह उन्हें स्वयं के सत्य की ओर इंगित करना आरम्भ करता है। वह ऐसा अपने स्वयं के पवित्रीकरण पर विचार करते हुए करता है: “उनके लिए मैं अपने आपको पवित्र करता हूँ ” (पद 17, बल दिया गया)। ख्रीष्ट का कथन दर्शाता है कि कैसे वचन के सत्य की विषय वस्तु यीशु ख्रीष्ट है, वह महायाजक जिसने उन्हें बचाने के लिए स्वयं को पवित्र किया है। चेलों के पवित्र करने के लिए, अपने पिता की दृष्टि में पवित्र होने के लिए, उन्हें यीशु ख्रीष्ट के सत्य द्वारा स्वतन्त्र होने की आवश्यकता थी, जो कि मात्र उसके प्रेरित वचन के सत्य में प्रकट होता है।

ख्रीष्ट के अनुरोध का उत्तर तब मिलता है जब हम प्रेरितों के काम की पुस्तक और सम्पूर्ण पत्रियों में जो हुआ उस पर विचार करते हैं। पतरस का प्रथम उपदेश वचन की ओर आकर्षित करता और ख्रीष्ट की ओर संकेत करता है (प्रेरितों के काम 2:14-36)। पौलुस कुरिन्थियों के लिए “क्रूस की कथा” (1:18, 23) का प्रचार करके अपनी प्रथम पत्री का प्रारम्भ करता है। पूरे पवित्रशास्त्र में, हमें यीशु ख्रीष्ट के सत्य को प्राप्त करने के लिए बुलाया गया है। यद्यपि यह अनुरोध विशेषकर उन प्रथम शताब्दी के चेलों के लिए है, फलतः, पवित्रीकरण के लिए इस अनुरोध का विषय वस्तु उन सब पर भी लागू होता है जो ख्रीष्ट का अनुसरण करते हैं। हम सभी धन्यवाद के जीवित बलिदान के रूप में पवित्र होने के लिए बुलाए गये हैं। पौलुस रोमियों 12 के प्रारम्भ में इसी याजकीय भाषा का उपयोग करता है, जहाँ हम “जीवित बलिदान, पवित्र और परमेश्वर के ग्रहणयोग्य” (पद 1) होने के लिए बुलाए गए हैं। इस प्रकार, हम देखते हैं कि अपने चेलों के लिए ख्रीष्ट के अनुरोध का उत्तर दिया गया। यही पुरुष  जिनके लिए उसने प्रार्थना की आगे चलकर प्रेरित हुए। इसके अतिरिक्त, अपने सन्देशों और प्रार्थनाओं में, चेलों ने ख्रीष्ट के सभी अनुयायियों के पवित्रीकरण की भी माँग की। इसलिए, यद्यपि ख्रीष्ट की मध्यस्थता के इस भाग में उसके चेलों को ध्यान में रखा गया, हम देखते हैं कि उन लोगों के रूप में यह कैसे हम पर लागू होता है, जो ख्रीष्ट और उसके वचन का अनुसरण करते हैं।

ख्रीष्ट इस अनुरोध में हमें सान्त्वना भी देता है, जब वह पद 19 में हमें स्वयं के पवित्रीकरण के विषय में स्मरण कराता है। निश्चित ही ख्रीष्ट अपने चेलों से जुड़ने के लिए उसी शब्द का उपयोग करता है। फिर भी, वह उनके पवित्रीकरण और अपने पवित्रीकरण के मध्य भी अन्तर करता है। क्योंकि जहाँ चेलों को एक अनुरोध की आवश्यकता होती है कि वे पवित्र किए जाएँ, ख्रीष्ट हमें स्मरण कराता है कि वह पवित्र है। यीशु, जिसकी “मार्ग, और सत्य, और जीवन” (यूहन्ना 14:6) के रूप में पहचान होती है, उसे पवित्रीकरण के अनुरोध की आवश्यकता नहीं है। वरन्, वह इस पवित्रीकरण में घोषणा करता है कि वह महायाजक, बलिदान, और अपने पिता की दृष्टि में पवित्र जन है। इस याजकीय भाषा का उपयोग करते हुए, ख्रीष्ट पुष्टि करता है कि वह एक विशेष याजक है। इस याजकीय घोषणा से मिलने वाली सान्त्वना उन सब के लिए है जो ख्रीष्ट के हैं। इसलिए, वह पद 20 में उपयुक्त रूप से परिवर्तन करता है और दिखाता है कि वह केवल अपने चेलों के लिए प्रार्थना कर रहा है (17:20)। महायाजक अपनी मध्यस्थता उन सब के लिए करता है जो वर्तमान और भविष्य में उसके हैं। उसकी प्रार्थना हर घड़ी विश्वासियों के समुदाय के लिए एक उपयुक्त अनुरोध, एकीकरण के अनुरोध के साथ बनी हुई है।

एकता (पद 21-23)

हम 21-23 पदों में एकता के लिए ख्रीष्ट के अनुरोध को देखते हैं। पद 21 में वह कहता है “वे सब एक हों ” (बल दिया गया है)। पद 22 में, अनुरोध को दोहराया गया है, “वे वैसे ही एक हों जैसे हम एक हैं” (बल दिया गया है)। और पद 23 में, वह यह कह कर समापन करता है, “कि वे सिद्ध हो कर एक हो  जाएँ” (बल दिया गया है)। फिर भी, हमें यह पूछना चाहिए कि वह किस प्रकार की एकता की याचना कर रहा है। आज परमेश्वर के लोगों के जीवन में कई विभाजन हैं। हम पाते हैं कि अंगीकार करने वाले मसीही अभी भी ईश्वरविज्ञान, समाजशास्त्रीय, आर्थिक,   सांस्कृतिक, जातिगत, भौगोलिक, और ऐतिहासिक कारणों से विभाजित हैं (कुछ ही नाम लिए हैं)। तो, क्या ख्रीष्ट इनमें से एक या सभी विभाजन को समाप्त करने की माँग कर रहा है? एकता के इस अनुरोध के पीछे ख्रीष्ट के अभिप्राय को समझने के लिए, हमें यह विचार करना चाहिए कि कैसे अनुरोध एकता के एक उदाहरण और एक लागूकरण दोनो में कार्य करता है।

परमेश्वर का पुत्र पद 21 और 22 में एक चौंकाने वाला उदाहरण देता है। ख्रीष्ट विश्वासियों की एकता की तुलना पुत्र और पिता की एकता से करता है। वह कहता है, “जैसे, हे पिता, तू मुझ में है और मैं तुझ में हूँ,” और वह आगे अनुरोध करता है “कि वे वैसे ही एक हों जैसे हम एक हैं।” पिता और पुत्र के सम्बन्ध का उपयोग हमारे एक होने की बुलाहट को चित्रित करने के लिए किया गया है। इस उदाहरण में, पुत्र यह अनुरोध नहीं कर रहा है कि हम पिता और पुत्र के साथ सर्वेश्वरवादी एकता (pantheistic unity) पाकर, ईश्वरीय प्राणी बन जाएँ। वरन्, ख्रीष्ट पिता और पुत्र के मध्य एकता के महानतम चित्र का उपयोग हमें उस एकता का उदाहरण देने के लिए करता है जिसकी हमें इच्छा है। इसलिए, यह शक्तिशाली उदाहरण हमें एकता का व्यावहारिक लागूकरण भी देता है।

ख्रीष्ट एकता को, यह प्रार्थना करते हुए लागू करता है कि परमेश्वर के लोग उसमें एक होंगे। ध्यान दें कि कैसे एकता का विचार अकेले नहीं चल सकता। हम केवल एक नहीं हो सकते। हम मात्र उसमें  एक हो सकते हैं। यदि हम सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, जातिगत, भौगोलिक, या ऐतिहासिक विभाजन को तोड़ने के लिए एकता की लालसा रखते हैं, तो यह पुत्र की ओर फिरने से ही हो सकता है। एकता कोई जादुई प्रतिकार नहीं है जो अपने आप में विद्यमान हो। ख्रीष्ट से पृथक एकता एक मूर्ति है जिसे पतित मनुष्य की परिभाषा द्वारा परिभाषित और गढ़ा गया है।

प्रायः हम एकता के इस झूठे मार्ग का अनुसरण करने लगते हैं। हम ख्रीष्ट और उसकी कलीसिया के मध्य के लम्बवत सम्बन्ध (vertical relationship) के विषय में भूल जाते हैं, और हम एक दूसरे को यह पूछते हुए क्षैतिज स्थिति (horizontally) में देखते हैं कि हम  अपनी समस्याओं को कैसे अपनी  स्वयं की बुद्धि से हल कर सकते हैं। एकता की स्व-निर्मित और आत्मनिर्भर योजनाएँ सदा विफल होने के लिए अभिशप्त होती हैं। एकता के लिए ख्रीष्ट की प्रार्थना में, वह हमारा ध्यान उचित दिशा में लगाता है। हमें दिखाया गया है कि ख्रीष्ट में सच्ची एकता दो प्रकार से मिलती है: विश्वास में एकता (पद 21) और पिता के प्रेम में एकता (पद 23)।

एकीकरण के लिए पहला अनुरोध विश्वास द्वारा एकता के लिए है। पद 20 में, ख्रीष्ट उन सभी के लिए मध्यस्थता करता है जो “इनके [चेलों के] वचन के द्वारा [उस पर] विश्वास करेंगे।” पद 21 में वह इस विश्वास द्वारा एकता को विस्तारित करता है, यह माँग करते हुए कि “संसार विश्वास करे कि तूने ही मुझे भेजा है।” जहाँ पद 20 में अनुरोध कलीसिया के भीतर एकता की अवधारणा को दिखाती है, पद 21 में ख्रीष्ट यह समझाता है कि कैसे यह एकता का विचार पूरे संसार में घोषित किया जाना चाहिए। चाहे पद 20 की संगति पर ध्यान हो या पद 21 के सुसमाचार प्रचार पर, इस प्रकार की एकता केवल ख्रीष्ट में विश्वास के द्वारा ही पायी जा सकती है। यीशु का अनुरोध हमें स्मरण कराता है कि सुसमाचार की घोषणा इतनी महत्वपूर्ण क्यों है। एकता की कोई भी सच्ची आशा ख्रीष्ट में विश्वास के साथ प्रारम्भ होनी चाहिए।

ख्रीष्ट यह भी अनुरोध करता है कि हम पिता के प्रेम में एक हो जाएँ। हमारे पिता का प्रेम एक विशाल प्रोत्साहन के समान है। पाप और शैतान के साथ हमारा युद्ध होते हुए भी, पुत्र बताता है कि हम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तानों के रूप में एकजुट होंगे। भजन 103 का एक विवरण इसे अच्छे रूप से बताता है:

एक पिता का कोमल प्रेम

अपने सभी प्रिय सन्तानों के लिए होता है

ऐसा प्रेम प्रभु उन्हें प्रदान करता है

जो भय में उसकी आराधना करते हैं (“परमेश्वर का पैत्रिक प्रेम” भजन संख्या 278)।

ख्रीष्ट के लिए हमारे पिता का प्रेम हमें एकता की अत्यन्त प्रगाढ़ समझ देता है। भजन 103 का लेखक, दाऊद, पिता का प्रेम जानता था। यूहन्ना, जिसने हमारे महायाजक की प्रार्थना को अभिलिखित किया, पिता का प्रेम जानता था। और हम जो निरन्तर स्वर्ग में अपने पिता को पुकारते हैं, इन मनुष्यों उन सबके साथ एक हो गए हैं और जो ख्रीष्ट के लिए विश्वास में उसे पुकारते हैं।

एकता के लिए ख्रीष्ट का अनुरोध को हमें साम्प्रदायक बाधाओं या सांस्कृतिक रुकावटों को तोड़ने के लिए रणनीतियों का अनुसरण करने या वर्तमान के सामाजिक विभाजन पर चर्चा करने के लिए वचन के आधार के रूप में नहीं छोड़ देना चाहिए। इसके स्थान पर, महायाजक का अनुरोध हमें प्रोत्साहित करता है कि हम पिता और पुत्र के साथ एक हैं, उसके वचन के द्वारा उसमें विश्वास करने के लिए और ख्रीष्ट को संसार को दिखाने के लिए बुलाए गए हैं। ख्रीष्ट ने स्वयं एकता के लिए उस प्रार्थना को पूरा किया है और निरन्तर उसको पूरा कर रहा है क्योंकि पुरुष और स्त्रियाँ उस पर विश्वास करते हैं और संसार में उसकी घोषणा करते हैं।

महिमा (पद 22, 24)

फिर उद्धारकर्ता अन्तिम प्रार्थना अनुरोध की ओर बढ़ता है कि उसके चेले उसकी महिमा देखें। महिमा के लिए अनुरोध एक उपयुक्त निष्कर्ष है, क्योंकि यह एकता के विचार के साथ जोड़ता है। जबकि उसके चेले ख्रीष्ट के साथ एक हो गए वे भी उसकी महिमा में भाग लेंगे। इन अन्तिम पदों में, ख्रीष्ट महिमा के अभी स्वीकार किए जाने और भविष्य में उसकी महिमा को साझा करने की माँग करता है। ख्रीष्ट पद 22 में प्राथमिक रूप से महिमा को प्रस्तुत करने की ओर इंगित करता है, क्योंकि वह उस महिमा की बात कर रहा है जो उसने उन्हें यहाँ और अभी दी है (यूहन्ना 17:22)। निश्चय ही, हमारे उद्धारकर्ता की महिमा पहले ही प्रकट हो चुकी है। क्योंकि वह वही जन है जो महिमा में आया (लूका 2:14), जिसने अपने चेलों के लिए अपनी महिमा का अनावरण किया (मत्ती17:1-8), विजयी रूप से महिमा में प्रवेश किया (लूका 19:38), और महिमा में कब्र से जी उठा (24:19)। महान महायाजक यह पुष्टि करता है कि यरूशलेम में उसकी महिमा पहले ही दिखायी जा चुकी है और एक दिन उसकी सम्पूर्णता में प्रकट होगी। जबकि हम निस्सन्देदह उसकी महिमा को आमने-सामने देखने के लिए लालायित हैं, हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि कैसे उसने पहले ही अपनी महिमा प्रकट कर दी है। जब हम देखते हैं कि कैसे उसकी महिमा हमें स्पष्ट रूप से उसके वचन में दिखायी गयी है, हमें पवित्रशास्त्र को पढ़ने की और भी अधिक इच्छा होनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त, ख्रीष्ट माँगता है कि उसकी महिमा भविष्य में आए। पद 24 में, उसका अनुरोध आगे की ओर दिखता है जब वह कहता है कि “जिन्हें तू ने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ रहें, कि वे मेरी उस महिमा को देख सकें जिसे तू ने मुझे दी है” (यूहन्ना 17:24)। वास्तव में, महिमा की अवधारणा प्रायः हमें आगे की ओर देखने के लिए छोड़ देती है (मत्ती 16:27)। भविष्य की महिमा सभी मसीहियों को प्रार्थना में बने रहने की बुलाहट देती है। अन्तिम प्रार्थना जो हमें पवित्रशास्त्र में मिलती है, वह है, “हे प्रभु यीशु आ!” (प्रकाशितवाक्य 22:20)। कठिनाई के समय, पाप से संघर्ष के समय, या मृत्यु की पीड़ा में, आइए निरन्तर प्रार्थना करते रहें, ”हे प्रभु यीशु आ!”। भविष्य की महिमा हमें परमेश्वर के उद्धार की योजना के बड़े चित्र का स्मरण कराती है। उसके उद्धार की योजना वह है जो अनन्त काल तक बनी रहेगी, और यह वह योजना है जो कि जगत की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भ हो चुकी है। ख्रीष्ट की महायाजकीय प्रार्थना (यूहन्ना 17:24-26) के अन्तिम कथन हमें स्मरण कराते हैं कि वह अभी भी चुने हुओं के लिए प्रार्थना कर रहा है। हम इस प्रार्थना में कितना ही प्रोत्साहन पाते हैं कि हमारा महायाजक, यीशु, अब भी स्वर्ग से हमारे लिए मध्यस्थता कर रहा है। परमेश्वर करे कि हम उसे जान सकें और विश्वास के द्वारा उसमें एक हो सकें। जब तक वह महिमा में वापस नहीं आ जाता तब तक हम उसे संसार को ज्ञात कराते रहने के लिए बुलाए गए हैं।      

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
रॉबर्ट एम. गॉडफ्रे
रॉबर्ट एम. गॉडफ्रे
डॉ. रॉबर्ट एम. गॉडफ्रे न्यू हॉलेण्ड, पेन्सिल्वेनिया में ज़ेल्टेनरीक रिफॉर्म्ड चर्च के पास्टर हैं।