ख्रीष्ट का निवेदन
17 मार्च 2022याजकों का राज्य
24 मार्च 2022स्वयं को पवित्र करना क्योंकि ख्रीष्ट पवित्र है
सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का छठवां अध्याय है: यीशु की महायाजकीय प्रार्थना
यदि आपके छोटे बच्चे थे या हैं, तो आप निम्न परिदृश्य से सम्भवतः अत्यन्त परिचित होंगे। आपका बेटा अपने पिता की बेसबॉल टोपी पहना है और वह एक दीवार से टकराने वाला हैं जिसे वह देख नहीं सकता। आपकी बेटी अपने माँ के जूतों में लड़खड़ाते हुए चल रही है। आपके या आपके जीवनसाथी के अनुकरण करने के उनके प्रयत्नों को देखना प्यारा और हृदय को लुभाने वाला होता है, परन्तु उनके सब प्रयास एक ऐसे कारण से अधिक विचित्र हैं जिसे हम कम ध्यान देते हैं। हमारे बच्चे, प्रकृति और पालन-पोषण दोनों के आधार पर, हमारे समान दिखने और कार्य करने के लिए, बड़े होने के लिए बाध्य हैं। फिर भी, वे हमें देखते हैं और जैसे हम अभी हैं वैसा बनने के लिए वे सब कुछ करना चाहते हैं जो वे कर सकते हैं, सिर की टोपी और पैर के जूते पहनने सहित। वे बड़े होने के लिए उत्साही हैं।
1 यूहन्ना 3:3 में इसी प्रकार की गतिशीलता कार्य कर रही है, “प्रत्येक जो उस पर ऐसी आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है जैसा कि वह पवित्र है” (1 यूहन्ना 3:3)। यहाँ, यूहन्ना मसीहियों को परमेश्वर की सच्ची सन्तान होने और उसी प्रकार से किसी के नैतिक जीवन के मध्य के सम्बन्ध के विषय में लिखता है। यूहन्ना जो यहाँ कहता है उसे समझना हमारे लिए महत्वपूर्ण है जब हम इस प्रकाश में जीने की खोज करते हैं कि ख्रीष्ट कौन है और उसमें अभी हम कौन हैं (साथ ही साथ अभी जो हम नहीं हैं)। यह करने के लिए, हमें आशा की प्रकृति और विषय को निकटता से देखने की आवश्यकता है कि परमेश्वर की सच्ची सन्तानें ख्रीष्ट के अधिकार में हैं। इससे यह स्पष्ट करने में सहायता मिलेगी कि इस बात को कहने का क्या अर्थ है कि परमेश्वर की सभी सन्तानें स्वयं को पवित्र करती हैं और इसका इस तथ्य से क्या सम्बन्ध है कि ख्रीष्ट पवित्र है।
प्रारम्भ करने के लिए, यूहन्ना स्पष्ट रूप से परमेश्वर की सच्ची सन्तानों की पहचान “इस” आशा को रखने वालों के रूप में करता है। वह हमें उस विशिष्ट प्रतिज्ञा को स्मरण कराना चाहता जिसके विषय में उसने अभी पिछले सन्दर्भ में बात की। पत्री के आरम्भ से ही, उसने उसके मसीही पाठकों को “सन्तानों” के रूप में सम्बोधित किया है। स्नेह के एक शीर्षक से अधिक, यह शब्द 3:1 में महान अभिव्यक्ति की ओर ले जाता है: “देखो,पिता ने हमें कैसा महान् प्रेम प्रदान किया है कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएँ; और वही हम हैं।” यह ख्रीष्ट, उसके प्रिय और एकलौते पुत्र, के साथ हमारे मिलन के माध्यम से परमेश्वर द्वारा हमारे लेपालकपन की बात करता है। अपनी मानवता के सम्बन्ध में यीशु को परमेश्वर के पुत्र के रूप में प्राप्त सभी लाभ और आशीषें अब उन सभी के साथ साझा की और थामी जाती हैं जो विश्वास के द्वारा उसमें दिए गए हैं और उसके साथ एकता में हैं। जैसा कि पौलुस कहता है, “यदि हम सन्तान हैं तो उत्तराधिकारी भी—परमेश्वर के उत्तराधिकारी और ख्रीष्ट के सह-उत्तराधिकारी” (रोमियों 8:17)।
तो, यदि हम ख्रीष्ट के साथ सह उत्तराधिकारी हैं और इस रीति से जब वह पिता के पास उठा लिया गया हमने उसके साथ शासन करना प्रारम्भ कर दिया, फिर हम क्यों निरन्तर संसार के विरोध का सामना करते हैं? तो फिर क्यों कलीसिया में कुछ लोग इसे संसार की प्रतिज्ञाओं के लिए छोड़ देते हैं? हमारा अनुभव प्रायः छुटकारे के तथ्यों को प्रतिबिम्बित करता प्रतीत नहीं होता है। 1 यूहन्ना 3:1-2 में इसकी व्याख्या करना आरम्भ करता है। प्रथम, यदि संसार परमेश्वर और उसके राजपद को पहचानने से इन्कार करता है, तो हम उसकी सन्तानों के लिए भी समान व्यवहार की अपेक्षा कर सकते हैं, और 2:18-19 में यूहन्ना की टिप्पणी हमें स्मरण कराती है कि वे जिन्होंने विश्वास का त्याग किया है (apostatized) वे वास्तव में कभी भी उसके साथ नहीं जुड़े थे परन्तु सदा से ही संसार के साथ जुड़े थे।
द्वितीय, यूहन्ना ख्रीष्ट में हमारे लेपालकपन के “अभी किन्तु अभी नहीं” की प्रकृति पर बल देता है। जो उसने अभी पहले कहा उसे दोहराता है, कि अभी हम वास्तव में परमेश्वर की सन्तानें हैं, परन्तु फिर यह भी जोड़ता है कि जो हम होंगे वह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है। यह दो स्पष्ट प्रश्नों को उठाता है: तो, यह कब प्रकट होगा, और परमेश्वर की सन्तानों के रूप में तब हमारे विषय में क्या सत्य होगा जो अभी हमारे विषय में सत्य नहीं है? यूहन्ना दोनों प्रश्नों का उत्तर अत्यन्त प्रभावशाली रूप से देता है। वह यह दर्शाता है कि जब ख्रीष्ट प्रकट होगा, अर्थात् उसका द्वितीय आगमन, तो हम उसके सदृश होंगे, और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि हम उसको ठीक वैसा ही देखेंगे जैसा वह है (1 यूहन्ना 3:2)।
यद्यपि यीशु ने परमेश्वर के दाऊद वंश के पुत्र के रूप में अनन्त राज्य प्राप्त किया और कलीसिया के साथ आरम्भ हुई एक नयी सृष्टि पर शासन करना प्रारम्भ कर दिया, उसके पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण से हटकर, यह नया सृजा राज्य नियम बड़े स्तर पर आन्तरिक और अदृश्य रूप से कार्य करता है। केवल जब ख्रीष्ट अपने शासन को सम्पूर्ण करने के लिए पुनः आएगा और नए आकाश और नयी पृथ्वी को लाएगा, तब परमेश्वर का पूरे सृजे गए प्रबन्ध का छुटकारा समाप्त, पूर्ण रूप से सार्वजनिक, और दृश्यमान होगा। यह तब होगा जब हम ख्रीष्ट को अपरिवर्तनीय नयी सृष्टि के ऊपर अध्यक्षता करते हुए देखेंगे, कि हम भी, परमेश्वर के लेपालक पुत्र और पुत्रियों के रूप में, ख्रीष्ट में संयुक्त उत्तराधिकारी, पुनरुत्थित होंगे, पूर्ण रूप से पवित्र होंगे और पूर्णतः और अन्ततः प्रकट रूप से उसके साथ शासन करने के लिए अत्यन्त महिमा से सम्पन्न होंगे। यही ख्रीष्ट में “आशा” संसार के विरोध का सामना करते समय और झूठे भाई-बन्धुओं के विश्वास त्यागने पर परमेश्वर की सन्तानें रखती हैं।
तो फिर, इसका क्या अर्थ हुआ, कि वे सब जिन्हें यह विशेष युगान्त सम्बन्धित (अन्तिम, अन्त के दिन) अपेक्षा है अपने आपको पवित्र करें, जैसा कि ख्रीष्ट है? पवित्र करना क्रिया का उपयोग प्रायः नए नियम में और पुराने नियम के यूनानी अनुवादों में उस शुद्ध करने को समझाने के लिए किया जाता है जो किसी वस्तु या व्यक्ति को परमेश्वर की उपस्थिति और मन्दिर में उपयोग करने के लिए स्वीकार्य बनाती है (उदाहरण निर्गमन 19:10; गिनती 8:21; यूहन्ना 11:55; प्रेरितों के काम 21:24,26; 24:18)। यहाँ 1 यूहन्ना 3:3 में, अन्यत्र के समान (याकूब 4:8; 1पतरस 1:22), इसका उपयोग नैतिक पवित्रता का वर्णन करने वाले नीतिपरक लक्ष्यार्थ के साथ किया जाता है। जिनके पास पुत्र के अनन्त शासन में उसके साथ जुड़ने के लिए पुनरुत्थित और महिमावान होने की निश्चित आशा है, वे पिता के पवित्र उपयोग के लिए पवित्र बनाए जाने, यीशु के समान तैयार होने के लिए पवित्र आत्मा के साथ नैतिक सहयोग का जीवन जीते हैं।
हम अब परमेश्वर की सन्तानें हैं और इसलिए आन्तरिक रूप से नयी सृष्टि के रूप में जीते हैं। फिर भी, हम जानते हैं कि हमारी पूर्ण विरासत अपनी महिमावान पवित्रता में पुनरुत्थित यीशु के होने के समान है। तब हम इसकी तुलना अपने आरम्भिक परिदृश से कर सकते हैं। जैसे बच्चे उस प्रकार से कपड़े पहनते हैं जैसे उनके माता-पिता पहनते हैं, वैसे ही विश्वासी जिनके पास यह आशा है अपने आप को पवित्र करते हैं जैसा कि ख्रीष्ट पवित्र है। वे अभी भी पवित्रता का अनुसरण करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वे कौन हैं और वे किसके समान होंगे। वे बड़े होने के लिए उत्साही हैं। वे प्रतीक्षा नहीं कर सकते।