ख्रीष्ट के लोग - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ख्रीष्ट के लोग

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौवथा अध्याय है: यीशु की महायाजकीय प्रार्थना

जब यीशु क्रूस पर जाने की अन्तिम घड़ी के निकट आ गया, तो अपने चेलों से जो संसार में थे जैसा प्रेम करता आया था उन से, “अन्त तक वैसा ही प्रेम किया” (यूहन्ना 13:1)। यह यीशु की पृथ्वी के जीवन की अन्तिम संध्या के आस-पास की घटनाओं के विषय में यूहन्ना के वर्णन का प्रारम्भ है, जब यीशु ने अपने चेलों के पैर धोए और उन्हें अपने शुद्ध होने के विषय में सिखाता है (पद 1-20), शीघ्र ही अपने जाने के विषय में प्रोत्साहित करता है (13:31-16:33), और प्रार्थना करता है जिसे प्रायः महायाजकीय प्रार्थना के रूप में जाना जाता है (17:1-26)। यह उल्लेखनीय है कि यीशु अपने चेलों की चरवाही करने से रुक नहीं जाता यद्यपि वह अपनी मृत्यु और पाप के विरुद्ध परमेश्वर के क्रोध को सहन करने की भीषण सम्भावना का सामना कर रहा हो।

यीशु की प्रार्थना और मिशन

प्रार्थना के आरम्भिक पदों के पश्चात् (यूहन्ना 17:1-5), जो कुछ भी आगे आता है, वह यीशु के चेलों पर केन्द्रित है—निकटता से और दूर से। अपने जीवन की इस अन्तिम रात्रि के विषय को ध्यान में रखते हुए, यीशु अपना ध्यान अपने लोगों पर केन्द्रित करता है। यूहन्ना में यह प्रथम बार नहीं है जब यीशु ने अपने लोगों को बचाने के अपने मिशन के विषय में बात की है। इससे पूर्व, कफरनहूम में आराधनालय में अपने जीवन की रोटी के उपदेश में, यीशु यह प्रकट करता है कि वह स्वर्ग में अपने पिता की इच्छा को पूरा करने आया है, जिसमें जो कुछ पिता ने उसे दिया है उसमें से एक भी व्यक्ति का न खोना परन्तु अन्तिम दिन में हर एक को जिला उठाना सम्मिलित है (6:38-40)। क्योंकि वे सब जो विश्वास में यीशु के पास आते हैं अनन्त जीवन पाएँगे, और वे सब जिन्हें पिता ख्रीष्ट को देता है वे उसके पास आएँगे (पद 37)।

एक विशेष लोगों के लिए प्रार्थना

यूहन्ना 17 में यीशु की प्रार्थना यूहन्ना 6 में प्रकट किए गए मिशन के समान है। वह अपनी प्रार्थना विशेष रूप से अपने लोगों पर केन्द्रित करता है (17:9): यीशु व्यापक रूप से संसार के लिए नहीं परन्तु विशेषकर उन लोगों के लिए प्रार्थना करता है जिन्हें पिता ने उसे दिया है। यूहन्ना के पाठक पहले से ही इस बात को जानते हैं कि यह पिता की इच्छा है कि जो यीशु किसी को भी न खोए जो उसको दिए गए हैं; इसलिए उसकी प्रार्थना पिता की इच्छा के अनुरूप है। 1 यूहन्ना में, प्रेरित लिखता है कि यदि हम परमेश्वर की इच्छा अनुसार कुछ माँगें, तो हम जानते हैं कि वह हमारी सुनता है (5:14-15)। निश्चित रूप से यह स्वयं ख्रीष्ट के लिए यह श्रेष्ठ रूप से सत्य है, जिसकी प्रार्थनाएँ उसकी भक्ति के कारण सुनी गयीं थी (इब्रानियों 5:7)। जो कोई भी यीशु में विश्वास करता है उसे स्वतन्त्र रूप से अनन्त जीवन प्रदान किया जाता है (यूहन्ना 3:16-17), परन्तु यीशु को अस्वीकार करना दोषी ठहराया जाना है (पद 18)। यीशु उन लोगों के मध्य अन्तर करता है जो ख्रीष्ट पर विश्वास के द्वारा इब्राहीम की सच्ची सन्तान हैं (8:56) और जो संसार के हैं (पद 23-24)— वे जो इब्राहीम की मात्र शारीरिक सन्तान हैं (पद 37, 39) परन्तु वास्तव में जिनका पिता शैतान है (पद 38, 41, 44)। यीशु ने अपने स्वर्गीय पिता को प्रकट किया (5:19-30; 8:28; 38; 49), जो कि, ख्रीष्ट के माध्यम से, उन सब का भी पिता है जो यीशु पर विश्वास करते हैं (20:17)।

इसलिए यीशु विशेषकर अपने चेलों के लिए प्रार्थना करता है, क्योंकि वे उसके पिता के हैं (17:9)। इससे बढ़कर, क्योंकि पिता का जो कुछ भी है पुत्र को दिया गया है (5:26-27), वे सब जो पिता के हैं, वे पुत्र के भी हैं (17:10)। 17:9-10 का तर्क निकालने के लिए, यीशु विशेष रूप से अपने चेलों के लिए प्रार्थना करता है क्योंकि वे पिता और पुत्र के हैं। ये वे चेले हैं जिनकी यीशु ने अपनी सेवकाई के समय रक्षा की —मात्र यहूदा, पकड़वाने वाला, भटका गया था,और यह पवित्रशास्त्र को पूरा करने के लिए था (पद 12)। यीशु अच्छा चरवाहा है जो अपनी भेड़ों  से प्रेम करता है और जिसने अपना जीवन दे दिया ताकि उसकी भेड़ें जीवन पाएँ (10:10-11)। इस कथन में अन्तर्निहित एक भेद है:  अच्छा चरवाहा अविचारपूर्वक सबके लिए अपना जीवन नहीं दे देता परन्तु वह ऐसा केवल अपनी भेड़ों के लिए करता है। यीशु की प्रार्थना, जो कि एक विशेष लोगों पर केन्द्रित है, इस प्रकार से यह यूहन्ना के पूरे सुसमाचार में एक विशेष लोगों पर उसके ध्यान से यह संगत है।

प्रार्थना और शीघ्र प्रस्थान

यीशु इस लिए भी अपने लोगों के लिए प्रार्थना करता है क्योंकि उसकी महिमा की घड़ी—जिसका यूहन्ना में पुत्र का उसकी मृत्यु में “उठाया जाना”, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण पर बल दिया गया है—समीप है। उसका प्रस्थान शीघ्र होने वाला है। यीशु जगत का नहीं है और स्वर्ग जा रहा है (17:11)।  चेलों की रक्षा की जानी चाहिए क्योंकि संसार दुष्ट के वश में है (1 यूहन्ना 5:19)। इसलिए, यीशु प्रार्थना करता है कि उसके चेले दुष्ट से बचाए जाएँ (यूहन्ना 17:15)। 1 यूहन्ना 5:18-19 में, हम पढ़ते हैं कि यीशु स्वयं अपने चेलों को दुष्ट से बचा कर रखता है। यह प्रभु की प्रार्थना के दृष्टिकोण में भी हो सकता है, जिसमें यह विनती भी सम्मिलित है कि यीशु के चेलों को “बुराई से बचाया” जाए (मत्ती 6:13)। शैतान परमेश्वर की सन्तानों का विरोध करता है, इसलिए यह जानना उत्साहजनक है कि यीशु इस संसार के शासक को निकाल देता है (12:31) और शैतान के कार्यों को नष्ट करने आया है (1 यूहन्ना 3:8)। यीशु हमें दुष्ट से बचाता है, क्योंकि उसने हमारी ओर से शैतान पर विजय प्राप्त की है। यीशु की आज्ञाकारिता यीशु की प्रार्थना की पृष्ठभूमि में है, और यीशु ने पहले ही यह बताया था कि उसने वह कार्य पूरा कर लिया है जो उसे दिया गया था (यूहन्ना 17:4)।

प्रस्थान और आनन्द

यीशु के प्रस्थान का अर्थ उसके चेलों के लिए आनन्द भी है (यूहन्ना 17:13), क्योंकि यीशु की महिमा होने जा रही है और वह अपने चेलों के साथ रहने के लिए एक सहायक, पवित्र आत्मा भेजेगा (14:16, 26; 15:26; 16:7)। वे उन्हें अनाथ न छोड़ेगा (14:18)। पवित्र आत्मा का उण्डेला जाना यीशु की अनुपस्थिति का नहीं परन्तु विजय का चिन्ह है। यह उसके चेलों के लिए आनन्दित होने का कारण भी है (पद 28; 16:20-24)। पवित्र आत्मा चेलों को सभी सत्यों में मार्गदर्शन करेगा, और अन्यत्र हम जानते ही हैं कि एकता के लिए, आत्मा परमेश्वर के लोगों को सेवकाई के लिए तैयार करता है ( इफिसियों 4:1-16)। यद्यपि यीशु जा रहा है, वह अपने चेलों को निरन्तर उसमें बने रहने के लिए प्रोत्साहित करता है ताकि उनका आनन्द पूरा हो सके (यूहन्ना 15:11; 1 यूहन्ना 1:3-4)। वे यह करते हैं जिससे कि उसका वचन उनमें बना रहे (यूहन्ना 15:7; 17:14)। जब हम सब बातों को एक साथ लाते हैं, हम कह सकते हैं कि यद्यपि यीशु जा रहा है, हम पवित्र आत्मा के अविरत कार्य के माध्यम से—उसके साथ मिलन में—उसके साथ संगति निरन्तर रख सकते हैं।

परमेश्वर के नाम में रक्षा किए गए

यीशु विशेष रूप से प्रार्थना करता है कि उसके चेलों की परमेश्वर के नाम से रक्षा की जाए (यूहन्ना 17:11)। यह विनती कि “अपने उस नाम से जो तू ने मुझे दिया है, इनकी रक्षा कर”  (बल दिया गया है) सम्भवतः परमेश्वर के नाम की सामर्थ्य को प्रस्तुत करती है जिसके द्वारा चेलों की रक्षा की जाति है, या फिर सम्भवतः चेलों की उन लोगों के रूप में पहचान को जो कि परमेश्वर के नाम को धारण करते हैं और उसके चरित्र के प्रति विश्वासयोग्य रहते हैं। इस सुरक्षित रखने का लक्ष्य 17:11 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चेले कुछ सीमा तक पिता और पुत्र की एकता को प्रतिबिम्बित कर सकते हैं। संसार द्वारा उल्लेखनीय होने के स्थान पर, चेलों को परमेश्वर के नाम के द्वारा उल्लेखनीय और रक्षा किए जाना चाहिए। उसी समान, चेलों को परमेश्वर का वचन सौंपा गया है (पद 14), और जो उससे प्रेम करते हैं वह उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे (14:15)। वे जो यीशु का इन्कार करते हैं उसके वचन का भी इन्कार करते हैं (8:37)। इसमें भी, हम सच्चे चेलों और संसार के मध्य एक अन्तर को देखते हैं।

संसार में, न कि संसार के

चेलों की परमेश्वर के नाम में रक्षा की जानी चाहिए क्योंकि वे संसार के नहीं हैं, यद्यपि वे संसार में रहते हैं। इस सम्बन्ध में, चेले स्वयं यीशु को प्रतिबिम्बित करते हैं, जो कि संसार में था परन्तु संसार का नहीं था (17:14-16)। यीशु ऊपर से आया था; वह इस संसार से नहीं आया था (3:31; 8: 23)। जैसे कि, संसार ने यीशु से घृणा की। इस वास्तविकता को देखते हुए, यीशु के चेलों को यह जानते हुए अचम्भित नहीं होना चाहिए कि संसार उनसे भी घृणा करता है (15:18-19; 17:14)। संसार परमेश्वर के प्रेम का प्राप्तकर्ता भी है (3:16; 12:46) और परमेश्वर ने निरन्तर विरोध में खड़ा भी रहता है (7:7)। इस संसार में, चेले नमक और ज्योति हैं; उन्हें संसार से स्वयं को अलग नहीं करना चाहिए (वास्तव में, वे कर नहीं सकते), परन्तु उन्हें इस संसार में निरन्तर जीवन जीते रहना चाहिए। तब भी, उन्हें संसार में से चुन कर निकाल लिया है (15:19)। यीशु अपने चेलों को बताता है कि यह संसार उनके लिए क्लेश लाएगा; जैसा कि उसके लिए लाया; परन्तु वे साहस भी रख सकते हैं, क्योंकि ख्रीष्ट ने संसार को जीत लिया है (16:33)।

लागूकरण

अपने चेलों के लिए यीशु की प्रार्थना केवल पूर्व के चेलों के विषय में एक ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है; यह एक जीवित वचन है जो कि आज के लिए प्रोत्साहन प्रदान करता है। प्रत्यक्ष रूप से, यीशु की प्रार्थना (और साथ ही कई कथन जो कि उसने विदाई के प्रवचन में कहे)  प्रथम चेलों को ध्यान में रख कर है। फिर भी यीशु की प्रार्थना यह भी स्पष्ट कर देती है कि मूल चेलों के अतिरिक्त शिष्यों का वंश भी ध्यान में है। यीशु अपने वर्तमान के चेलों और जो प्रथम चेलों की साक्षी के माध्यम से विश्वास मे आएँगे उन दोनों के लिए प्रार्थना करता है: “मैं केवल इन्हीं के लिए विनती नहीं करता, परन्तु उनके लिए भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे” (यूहन्ना 17:20)। इस प्रकार इस प्रार्थना के घेरे में वे सारे चेले सम्मिलित हैं जो प्रेरितीय साक्षी और इसकी विरासत के द्वारा विश्वास में आते हैं, जिसमें पवित्रशास्त्र में अभिलिखित प्रेरितीय विरासत भी सन्निहित है। क्योंकि इन्हीं चेलों से यीशु ने पवित्र आत्मा भेजने की प्रतिज्ञा की थी, जो उन्हें वह स्मरण दिलाएगा जो यीशु ने उन्हें सिखाया है (14:26; 15:26-27)। चूँकि प्रेरित कलीसिया की नींव हैं (इफिसियों 2:20), अपने चेलों की सुरक्षा के लिए यीशु की प्रार्थना में चेलों की आने वाली पीढ़ी को भी ध्यान में रखा गया है।

आज के चेलों के लिए यह प्रार्थना, और इसकी प्रासंगिकता, लागूकरण से भरी हुई है।

पहला, यीशु अपने चेलों को जानता है। यीशु केवल प्रथम शताब्दी के चेलों को ही नहीं जानता था, परन्तु वह उन सबको जानता है जो उसके हैं। जब वह उनके लिए प्रार्थना करता है जो बाद में विश्वास करेंगे, तो उसमें आज के सभी विश्वासी सम्मिलित हैं। इस प्रार्थना में, यीशु के ध्यान में आज के चेले भी थे। एक अच्छे चरवाहे के रूप में, यीशु अन्य भेड़ों की बात करता है जो उसकी आवाज़ सुनेंगी (यूहन्ना 10:16)। बाइबल परमेश्वर के पूर्वज्ञान के विषय में व्यक्तिगत सम्बन्ध में बात करती है: ये वे लोग हैं जो उद्धार के विषय में पूर्व से जाने गए हैं (यिर्मयाह 1:5; रोमियों 8:9; गलातियों 1:15)। यूहन्ना का सुसमाचार स्पष्ट रूप से यीशु के ईश्वरत्व को बताता है, जो कि परमेश्वर के वचन के रूप में आदि में परमेश्वर के साथ था (यूहन्ना1:1)। परमेश्वर के ईश्वरीय पुत्र के रूप में, यीशु सब कुछ जानता है, जिसमें वे लोग भी सम्मिलित हैं जिन्हें पिता ने उसे दिया था (5:19-23; 6:39-40)।

दूसरा, यीशु न केवल अपने सभी चेलों को शताब्दियों से जानता है, परन्तु वह उनके लिए प्रार्थना भी करता है। यूहन्ना 17 में वह भावी चेलों के लिए प्रार्थना करता है। वह अपने प्रथम चेलों के लिए प्रार्थना करता है कि वे सुरक्षित रहें, ताकि वे कलीसिया की नींव के भाग के रूप में कार्य कर सकें (इफिसियों 2:20)। लूका में इसी प्रकार के सन्दर्भ में पतरस को यीशु के शब्दों में की देखभाल और कोमलता दिखायी देती है:

“शमौन, हे शमौन, देख ! शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ के समान फटकने के लिए आज्ञा मांग ली है, परन्तु मैंने तेरे लिए प्रार्थना की है कि तेरा विश्वास चला न जाए। अतः जब तू फिरे तो अपने भाइयों को स्थिर करना।” (लूका 22:31-32)      

यहाँ हम सुनिश्चित हो सकते हैं कि यीशु की प्रार्थना प्रभावशाली थी: शैतान पतरस को गेहूँ के समान फटकने में सफल नहीं हुआ (अर्थात्, कि उसका विश्वास विफल हो जाए)। और यह प्रार्थना पतरस से अधिक औरों को भी प्रभावित करती है, क्योंकि जब पतरस गिरने के बाद पुनःस्थापित होता है (यूहन्ना 21:15-17), तो वह फिर कर अपने भाइयों को दृढ़ करेगा। एक साथ वे, आत्मा के सामर्थ से, संसार में उथल-पुथल मचा देंगे (प्रेरितों के काम 17:6), ख्रीष्ट के सन्देश को फैलाते हुए, वह सुसमाचार जिसे रोका नहीं जा सकता परन्तु वह जो शताब्दियों से विश्व भर में पहुँचता है। यीशु की प्रार्थना का प्रभाव, और पतरस और उसके भाइयों का प्रभाव, पूरे विश्व में मसीहियों की उपस्थिति में देखा जाता है।

इसके अतिरिक्त, यीशु ने केवल उस समय ही हमारे लिए प्रार्थना नहीं की, परन्तु वह आज भी स्वर्ग में हमारे लिए महायाजकीय मध्यस्थ के रूप में सेवा कर रहा है। यीशु वास्तव में क्रूस पर चढ़ाया गया था पर वास्तव में वह मृतकों में से जी उठा और वास्तव में स्वर्ग में चढ़ गया। वह मृत नहीं है, परन्तु वह जीवित है और अपने महिमावान उन्नयन की अवस्था में राज्य कर रहा है। और उसका पुनरुत्थान प्रमाणित करता है कि उसका बलिदान प्रभावशाली था। पौलुस रोमियों 8:34 में लिखता है कि यीशु निरन्तर हमारे लिए मध्यस्थता करता रहता है। उसी प्रकार, इब्रानियों की पुस्तक हमें बताती है कि यीशु सदैव उनके लिए मध्यस्थता करने के लिए जीवित है जो परमेश्वर के समीप आते हैं (इब्रानियों 7:25)। यह स्वर्गीय पवित्र स्थान में एक सदा-उपस्थित, सतत, व्यक्तिगत मध्यस्थता है, और उसके सर्वदा के लिए और निरन्तर के महायाजकीय कार्य के द्वारा, हम साहस के साथ अनुग्रह के सिंहासन तक पहुँच सकते हैं —क्योंकि हमारे पास स्वर्ग में एक महान महायाजक है (इब्रानियों 4:14-16)।

तीसरा, यीशु के चेले सुरक्षित हैं। यीशु अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए आया, जिसमें उसके एक भी व्यक्ति को खोना सम्मिलित नहीं है। वह उन सबको अनन्त जीवन देने आया है जिन्हें पिता ने उसे दिया है (यूहन्ना 6:38-40), और उसने अपने कार्य को पूरा किया, और अपने सच्चे चेलों में से एक को भी नहीं खोया (17:4, 12)। यहाँ तक कि जब चरवाहा मारा गया और भेड़ें तितर बितर हो गयीं थीं (16:32; देखें जकर्याह 13:7), चरवाहा उठा और अपनी भेड़ों को अपने पास इकट्ठा किया, आत्मा को उण्डेला और पुनः एक हुए लोगों पर शासन किया। इसलिए, न केवल चेले सुरक्षित हैं, परन्तु स्वयं कलीसिया भी सुरक्षित है। यद्यपि कई शत्रु कलीसिया पर आक्रमण करते हैं, कलीसिया डटे रहेगी, क्योंकि वह चट्टान पर बनायी गयी है। और जिस प्रकार मृत्यु कलीसिया के निर्माता पर विजय न पा सकी, उसी प्रकार स्वयं कलीसिया भी मृत्यु द्वारा परिवर्तित न होगी (मत्ती 16:16-21)। क्योंकि जीवित प्रभु कलीसिया पर राजा के समान राज्य करता है। ख्रीष्ट पहले से ही सब कुछ पर विजयी है (इफिसियों 1:20-23), और अन्त में सब कुछ उसके पैरों के नीचे कर दिया जाएगा (1 कुरिन्थियों 15:20-28)।

निष्कर्ष

इसलिए वे लोग जो ख्रीष्ट का अनुसरण करते हैं, उन्हें आज संसार में साहस के साथ जीना चाहिए। क्योंकि हमारा उद्धारकर्ता अच्छा चरवाहा है जिसने भेड़ों और उनके उद्धार को सुरक्षित रखने के लिए अपना जीवन देता है। वह हमें नाम से जानता है। उसकी याजकीय चिन्ता अतीत तक सीमित नहीं हो जाती, परन्तु वह निरन्तर विश्वास के साथ अनुग्रह के सिंहासन तक पहुँचने के लिए मार्ग प्रदान करता है। वह हमारी दुर्बलताओं को समझता है और हमारी सहायता करने के योग्य है जब हम प्रलोभन में पड़ते हैं। इससे पहले कि हम उसे खोजें, उसने हमें खोजा। हमारा विश्वास प्रायः निर्बल हो सकता है, परन्तु हम एक शक्तिशाली उद्धारकर्ता के हैं। और उसने हमारे लिए प्रार्थना की है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
ब्रैन्डन डी. क्रो
ब्रैन्डन डी. क्रो
डॉ. ब्रैन्डन डी. क्रो फिलाडेल्फिया में वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी में नए नियम के सहायक प्रोफेसर हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द लास्ट ऐडम और द मेसज ऑफ द जेनेरल एपिस्टल्स इन द हिस्टरी ऑफ रिडेम्प्शन सम्मिलित हैं।