ख्रीष्ट का व्यक्ति - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ख्रीष्ट का व्यक्ति

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: यीशु की महायाजकीय प्रार्थना

ख्रीष्ट जन्मोत्सव के अवसर पर, हम ख्रीष्ट के मनुष्य बनने (देहधारण) और वह राजा है इस बात पर उचित रीति से बल देते हैं। परन्तु इन उपयुक्त महत्वों का इन्कार किए बिना, ख्रीष्ट जन्मोत्सव का ख्रीष्ट राजा होने के साथ ही साथ पूर्णरूप से याजक (और नबी) भी है।

पुराने नियम के याजक, विशेषकर महायाजक, बलिदान चढ़ाते और अपने लोगों के लिए प्रार्थना करते थे (लैव्यव्यवस्था 16:15, 21)। वे परमेश्वर और मनुष्यों के बीच मध्यस्थ थे (इब्रानियों 5:1)। पुराने नियम के महायाजकों के उत्तराधिकार ने एक महिमावान महायाजक, आर्थात् यीशु ख्रीष्ट को पूर्वाभासित किया। वह ऐसे ही एक मनुष्य नहीं था जो परमेश्वर और मनुष्यों के बीच मध्यस्थता करता था; ख्रीष्ट वास्तव में परमेश्वर-मनुष्य था जो परमेश्वर और मनुष्यों के बीच मध्यस्थता करता था (इब्रानियों 8:6; देखें 1 तीमुथियुस 2:5)। इसके अतिरिक्त, उसने ऐसे ही पशुओं और अनाज का बलिदान नहीं चढ़ाया; ख्रीष्ट ने अपने आप को अनन्त बलिदान के रूप में चढ़ा दिया (इब्रानियों 7:27; 9:12)। अन्त में, उसने अपने और औरों के लिए नीरस और कभी-कभी अप्रभावी प्रार्थनाओं को नहीं चढ़ाया; ख्रीष्ट ने महिमावान और प्रभावी प्रार्थनाओं को चढ़ाया, और वह निरन्तर ऐसा कर रहा है (5:7; 7:25)।

यूहन्ना 17 में ख्रीष्ट की पिता से मध्यस्थता की प्रार्थना में चेलों और आगामी सभी विश्वासियों के लिए उसकी विनतियाँ भी सम्मिलित हैं। परन्तु साथ ही, विशेषकर यूहन्ना 17:1-8 में, ख्रीष्ट अपनी मध्यस्थ की भूमिका के तत्वों को प्रकट करता है, जो कि परिणामस्वरूप उसके व्यक्ति को सच में परमेश्वर और सच में मनुष्य के रूप में प्रकाशमय करता है,और वह पिता के साथ उसके विशेष सम्बन्ध को प्रकाशमय करता है। इस लेख में, यूहन्ना 17:1-8 के अर्थनिरुपण के पश्चात्, मैं इस मध्यस्थ की भूमिका और ख्रीष्ट के “भेजे हुए” कहे जाने के सम्बन्ध में पिता और ख्रीष्ट के मध्य आपसी सहमति पर विस्तार करुँगा। अन्ततः, मैं अधिक गहराई से ख्रीष्ट को जानने और उस पर विश्वास करने के लिए हमें प्रोत्साहित करुँगा।

यूहन्ना 17:1-8 का अर्थनिरूपण

ख्रीष्ट प्रार्थना को “पिता” से आरम्भ करता है स्वयं को “पुत्र” के रूप में सम्बोधित करता है (17:1)। ये शब्द अद्भुत रूप से पिता और पुत्र के व्यक्तियों के मध्य घनिष्ठ और प्रेमपूर्ण त्रिएकता के भीतर (intra-Trinitarian) समबन्ध को प्रतिबिम्बित करते हैं, जो कि अनन्तकाल पूर्व से विस्तृत हुआ है और ख्रीष्ट के पृथ्वी के पूरे जीवन से निरन्तर चल रहा है। इस सकारात्मक बिन्दु को देखते हुए, फिर भी, पहली टिप्पणी एक अनिष्टसूचक बात को लाती है: “समय आ पहुँचा है।” यूहन्ना के सुसमाचार में, यह ख्रीष्ट के क्रूसीकरण को सन्दर्भित करता है (2:4; 12:23)।  फिर ख्रीष्ट अपने प्रथम निवेदन या विनती को प्रस्तुत करता है: “अपने पुत्र की महिमा कर कि पुत्र तेरी महिमा करे”(17:1)। पिता और पुत्र के मध्य यह पारस्परिक महिमा देखने में आश्कर्यजनक है क्योंकि यह आने वाले कुरूप क्रूसीकरण से सम्बन्धित है (इस पारस्परिक महिमा में पवित्र आत्मा भी सम्मिलित है; 16:14)।

इस प्रकार, पारस्परिक महिमा के लिए ख्रीष्ट की विनती को उस में आधारित किया जाता है जो उसे पहले दी गयी थी। पिता ने, पुत्र को “सारी मानव जाति पर अधिकार” और चुने हुओं दोनो को “दिया है” ताकि पुत्र “उन [चुने हुए] सब को अनन्त जीवन दे” (17:2)। इस प्रार्थना में, “देना” अत्याधिक प्रमुख है। पिता द्वारा पुत्र को देना ताकि पुत्र चुने हुओं को देगा, पिता और पुत्र के मध्य  एक पूर्व सहमति को प्रतिबिम्बित करता है। इसके अतिरिक्त, जबकि पुत्र के पास, परमेश्वर के रूप में, अनन्तकाल से सभी अधिकार हैं, इस दिए हुए अधिकार को उसकी मध्यस्थ की भूमिका में परमेश्वर-मनुष्य के रूप में समझा जाना चाहिए।

इसके पश्चात्, “अनन्त जीवन” को एक परिभाषा दी गयी है। चुने हुए “तुझे [पिता को] जो एकमात्र सच्चा परमेश्वर है और यीशु ख्रीष्ट को जानें जिसे तूने भेजा है” (17:3)। पिता को “एकमात्र सच्चे परमेश्वर” के रूप में सन्दर्भित करना यह संकेत नहीं देता कि ख्रीष्ट पूर्ण ईश्वर से कम है। क्यों नहीं? क्योंकि यूहन्ना कहीं और स्पष्ट रूप से दिखाता है कि ख्रीष्ट पूर्ण रूप से ईश्वरीय है (उदाहरणार्थ 1:1; 5:18; 10:30; 17:5; 20:28)। इसके स्थान पर, बात यह है कि सच्चे ईश्वरीय पिता को जानने के लिए, एक व्यक्ति को सच्चे ईश्वरीय ख्रीष्ट के साथ उसके सम्बन्ध को देखना होगा। ख्रीष्ट की उपाधि रुचिकर है; ख्रीष्ट वह जन है “जिसे तू [पिता] ने भेजा है।“

17:4 में, ख्रीष्ट वह बताता है जो उसने पूर्व सहमति के अनुसार किया है: ”जो काम तू ने मुझे करने को दिया था उसे पूरा कर के मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है।” यद्यपि ख्रीष्ट यह गुरुवार की रात्रि को कहा रहा है, वह इस कथन में (“पृथ्वी पर”) शुक्रवार के क्रूसीकरण को भी सम्मिलित कर रहा है। निस्सन्देहः, महायाजक के रूप में, वह स्वर्गारोहण के समय अपने बलिदानी कार्य को लागू भी करेगा।  

“पृथ्वी पर” रहते हुए अपने कार्य पर चर्चा करने के पश्चात्, ख्रीष्ट स्वर्गरोहण के समय अपने भविष्य की महिमा के विषय में बात करता है। “हे पिता, अब तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत की उत्पत्ति से पहिले, तेरे साथ मेरी थी” (17:5)।  पुनः यूहन्ना के सुसमाचार में, ख्रीष्ट का ईश्वरत्व दिखाया गया है। ख्रीष्ट “जगत की उत्पत्ति से पहिले” पिता के साथ था। इसके अतिरिक्त, महिमा के विभिन्न पहलुओं की ओर यहाँ संकेत किया गया है। अनन्तकाल पूर्व में महिमा थी क्योंकि ख्रीष्ट अनन्त ईश्वरीय पुत्र है। कुछ प्रकार से महिमा का एक विभिन्न पहलू भी है जिसे ख्रीष्ट ने पृथ्वी पर रहते हुए परमेश्वर-मनुष्य के रूप में अपनी निन्दा की स्थिति में प्राप्त किया था। अन्त में, स्वर्ग में ख्रीष्ट की महिमा अनन्त काल पूर्व की महिमा के समान है, परन्तु वह परमेश्वर-मनुष्य के रूप में ख्रीष्ट होगा, देहधारण से पूर्व, अनन्त ईश्वरीय पुत्र के रूप में नहीं।

यूहन्ना 17:9-19 में स्पष्ट रूप से ख्रीष्ट के चेलों से सम्बन्धित विनतियाँ सम्मिलित हैं। यूहन्ना 17: 6-8 में कुछ आधार या तर्क सम्मिलित हैं कि क्यों पिता को विनतियों को स्वीकार करना चाहिए। ख्रीष्ट ने “तेरा [पिता का] नाम उन पर प्रकट किया है जिन्हें तूने मुझे दिया है” (पद 6), और उन्होंने “विश्वास किया है कि तू ने ही मुझे भेजा है” (पद 8)। यहाँ एक प्रगति हैं: “वे [चेल] तेरे [पिता के] थे, और तू ने उन्हें मुझे दिया, और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है” (पद 6)। इस प्रकार से, चेलों का चुनाव पिता के द्वारा था; चेले पुत्र को दिए गए थे; और चेलों ने उचित रूप से प्रत्युत्तर दिया। इसलिए, सहमति का एक यह भाग था कि पिता पुत्र को लोगों का एक समूह देगा और पिता और पुत्र (और पवित्र आत्मा) यह सुनिश्चित करेंगे कि वे विश्वास करें।

सहमति

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यूहन्ना 17:1-8 में चुने हुओं के उद्धार से सम्बन्धित पिता और पुत्र के मध्य सहमति के पहलू निहीत हैं। हम यूहन्ना में अन्य स्थानों में देखते हैं कि सहमति में पवित्र आत्मा भी सम्मिलित है (उदाहरण के लिए, 3:34; 14:26; 15:26; 16:13-15)। यह सहमति विभिन्न नामों से जाना जाता है। धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानियों ने इस सहमति को सन्दर्भित करने के लिए छुटकारे की वाचा, मेल की सम्मति (ज़कर्याह 6:13) या उद्धार की सहमति (pactum salutis) का उपयोग किया है।

संक्षेप में, सम्पूर्ण बाइबल के निहितार्थों पर विचार करते हुए, छुटकारे की वाचा चुने हुए लोगों को अनन्तकाल पूर्व  में बचाने के लिए एक त्रिएकता के भीतर की सहमति है। इस सहमति में प्रतिज्ञाएँ, दी जाने वाली वस्तुएँ, पूरा किए जाने वाला कार्य, भेजने वाले (पिता और पुत्र), और भेजे जाने वाले (पुत्र और पवित्र आत्मा), देहधारी होने और चुने हुओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए ख्रीष्ट की सहमति, पारस्परिक महिमा, इत्यादि सम्मिलित हैं। यद्यपि अनन्तकाल पूर्व में बनायी गयी, यह सहमति ख्रीष्ट के उसके परमेश्वर-मनुष्य के रूप में मध्यस्थ की भूमिका से सम्बन्धित है। 

छुटकारे की यह वाचा अनुग्रह की वाचा से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। अनुग्रह की वाचा त्रिएक परमेश्वर और चुने हुओं के मध्य इतिहास के समय के भीतर की सहमति है। परन्तु, कुछ धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानियों ने धारणात्मक रूप से पृथक दो सहमतियों/वाचाओं के स्थान पर एक को देखने की वरीयता दी है। वे छुटकारे की वाचा के पहलू को अनुग्रह की वाचा में सम्मिलित करने पर विचार करते हैं। अधिकांश भाग के लिए, इन दोनों विचारों के मध्य के अन्तर केवल शब्दों का ही है।

हम यूहन्ना 17:1-8 से त्रिएकता के भीतर की सहमति के विषय में क्या सीखते हैं? पिता ने ख्रीष्ट को कई वस्तुएँ दी हैं। उसमें उत्कृष्ट रूप से चुने हुए सम्मिलित हैं (17:2, 6; 6:39; 10:39 भी देखें)। पिता ने उसे “समस्त मानव-जाति पर भी अधिकार”  (17:2) और चुने हुओं को देने के लिए “वचन” भी दिया है (पद 8; 3:34 देखें)। अन्त में, पिता ने ख्रीष्ट को “काम” दिया है, जो संक्षेप में उसे बताता है जो ख्रीष्ट को “पृथ्वी पर” करना था (17:4;  देखें 4:34; 5:36-37)।  इन बातों को ख्रीष्ट को देने के साथ ही, पिता ने ख्रीष्ट को “भेजा” (17:3, 8) और उसकी महिमा करने की प्रतिज्ञा की (पद 1; देखें 8:54)।

यूहन्ना 17:1-8 में, ख्रीष्ट चुने हुओं को प्राप्त करता है और उचित रीति से उनकी देख-रेख करता है। वह भी “देता” है। वे चुने हुओं को “अनन्त जीवन” देता है (17:2; 6:40; 10:28 भी देखें), और वह उन्हें पिता के “वचन” देता है (17:6; देखें1:1; 3:34)। पिता और पवित्र आत्मा के साथ, वह सुनिश्चित करता है, कि चुने हुए “तेरे [पिता के] वचन को मानें,” “सत्य को जानें,” और “विश्वास करें कि तू [पिता] ने मुझे [ख्रीष्ट को] भेजा है” (17:6, 8)। चुने हुओं के लिए उसके विशिष्ट याजकीय कार्य के अनुसार, ख्रीष्ट के कार्य में क्रूसीकरण का अपमान को सहना (“समय आ पहुँचा है”; 17:1) और उनके लिए उसकी प्रार्थना सम्मिलित है (पद 6-9‌)। यह देखते हुए कि ख्रीष्ट को एक मनुष्य के रूप में चुने हुओं का प्रतिनिधित्व करना चाहिए और उनके लिए मरना चाहिए, सहमति के भाग में उसका देहधारण भी सन्नहित है। अन्ततः और पिता से अधिक प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित, ख्रीष्ट ने पिता की “महिमा की” उस कार्य को “पूरा कर के” जिसे पिता ने दिया और ख्रीष्ट ने “तेरा [पिता का] नाम चुने हुओं पर प्रकट किया है (17:6; देखें 10:25)।

यीशु ख्रीष्ट, जिसे तूने भेजा

महायाजकीय प्रार्थना में, ख्रीष्ट स्वयं को “यीशु ख्रीष्ट जिसे तू [पिता] ने भेजा” बताता है (17:3‌)। यूहन्ना के सुसमाचार में, क्रिया “भेजना” का उपयोग सार्थक संख्या में अनेक बार हुआ है —यथावत् अट्ठावन बार। ( “भेजना” शब्द के पीछे वास्तव में दो यूनानी शब्द हैं, पेम्प (pemp) [ इकतीस] और अपॉस्टेल (apostell) [सत्ताईस बार]। वे यूहन्ना में वस्तुतः समानार्थी हैं।) “भेजना” बहुत बार त्रिएकता के व्यक्ति के बीच उपयोग किया गया है। पिता ने ख्रीष्ट को  (3:17; 5:36; 7:28; देखें 1 यूहन्ना 4:9) और पवित्र आत्मा (14:26; 15:26) को भेजा। ख्रीष्ट, जो भेजा गया, वह भी पवित्र आत्मा को भेजता है (15:26; 16:7; प्रकाशितवाक्य  5:6)। यदि इतना पर्याप्त नहीं है, तो विश्वासी भी इस भेजने की गतिविधि में सम्मिलित हैं। “जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ” (20:21; देखें 13:20; 17:18)।

इस बात पर बल देने के लिए, ख्रीष्ट प्रायः पिता को “भेजने वाले” की उपाधि देता है (उदाहरण के लिए, 5:23-24; 6:38, 44; 8:16; 12:45; 14:24; 16:5)। उसी प्रकार से, ख्रीष्ट ने चार बार स्वयं को उस व्यक्ति की उपाधि दी जिसे पिता ने भेजा है (3:34; 5:38; 6:29; 17:3)।

हम ख्रीष्ट के व्यक्ति के विषय में उसकी स्व-वर्णित उपाधि “जिसे तू [पिता] ने भेजा है” (17:3) से क्या सीखते हैं? पहला, हम सीखते हैं कि ख्रीष्ट को समझने के लिए उसे त्रिएकता  के एक व्यक्ति के रूप में समझना है। एक गैर-त्रिएकतावादी-सम्बन्धित ख्रीष्ट कदाचित ख्रीष्ट नहीं है। एक ख्रीष्ट जिसका पिता और पवित्र आत्मा के साथ केवल उथला सम्बन्ध है वह केवल एक उथला ख्रीष्ट है। बाइबल का ख्रीष्ट पिता और पवित्र आत्मा के साथ पूर्ण सहभागिता में है, और उसे पिता और पवित्र आत्मा के साथ उसके सम्बन्ध के द्वारा परिभाषित किया गया है।

दूसरा, हम सीखते हैं कि ख्रीष्ट का उद्धारकारी मिशन त्रिएकता के कार्य का हिस्सा था/है। ख्रीष्ट पिता द्वारा भेजा गया था, और खीष्ट पवित्र आत्मा को भेजता है। हमारे उद्धार की योजना और कार्यान्वयन होना त्रियकतावादी है। त्रियकता का हर एक व्यक्ति एक ही कार्य करता है, परन्तु हर एक इसे एक अपने विशिष्ट व्यक्तित्व  (personhood) और अन्य दो से पृथक हुए बिना यथोचित रीति से करता है, क्योंकि अन्ततः केवल एक ईश्वरीय अस्तित्व (one divine being) कार्य कर रहा है। विभिन्न “भेजा जाना” इस बात को दिखाते हैं। ख्रीष्ट कौन है? वह जिसे पिता ने भेजा और जो पवित्र आत्मा को भेजता है। पिता कौन है? वह जिसने ख्रीष्ट को भेजा और पवित्र आत्मा को भेजता है। इन भेजे जाने का उद्देश्य क्या है? चुने हुओं का उद्धार।

तीसरा, हम ख्रीष्ट के भेजे जाने को और अच्छे से समझते हैं क्योंकि हम इसके त्रिएकता के भीतर के सम्बन्धों के साथ इसके सम्बन्ध पर विचार करते हैं। यहाँ हम सब अधिक गूढ़ क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। पहला, ख्रीष्ट को भेजने के सम्बन्धित किसी निहितार्थ में आने से पूर्व कुछ पृष्ठभूमि सहायक है। जैसे कि कलीसिया ने दीर्घकाल में कहा था, त्रिएकता के व्यक्तियों का आन्तरिक सम्बन्ध उनके सृष्टि और छुटकारे में विशिष्ट बाहरी कार्यों के लिए आधार है। इसलिए, सृष्टि और छुटकारे में त्रिएकता के प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका उस सम्बन्ध के समरूप है जो कि हमेशा  त्रिएकता में, पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा के मध्य विद्यमान रहती है। अतः, जबकि बाइबल हमें दिखाती है कि यह सम्बन्ध विद्यमान है, इसलिए व्यक्ति को आन्तरिक सम्बन्धों से लेकर बाहरी कार्यों तक, और इसी के विलोमतः, सावधानी से निहितार्थ निकालना चाहिए। फिर भी, कुछ सावधानी आवश्यकता है, विशेषकर छुटकारे में ख्रीष्ट की भूमिका पर विचार करते हुए। यहाँ, आन्तरिक सम्बन्धों और बाहरी कार्यों के मध्य सम्बन्ध विद्यमान है, परन्तु इसे (1) छुटकारे की वाचा और (2) ख्रीष्ट के परमेश्वर-मनुष्य के रूप में मध्यस्थ की भूमिका में होने, दोनो के माध्यम से मसझा जाना चाहिए।

पृष्ठिभूमि की इस जानकारी के साथ, आन्तरिक सम्बन्धों और बाहरी कार्यों के मध्य सम्बन्ध “भेजे जाने” पर कैसे लागू होता है?  यूहन्ना में, आन्तरिक सम्बन्धों और बाहरी कार्यों के मध्य एक शक्तिशाली पारस्परिक सम्बन्ध दिखाई देता है। त्रिएकता के अन्दर, पवित्र आत्मा अनन्त काल से पिता और पुत्र से अग्रसर होता  है। यह पिता और पुत्र द्वारा बाहरी रूप से भेजे जाने  से मेल खाता है (15:26)। त्रिएकता के अन्दर, पुत्र अनन्त काल से पिता द्वारा उत्पन्न किया/एकमात्र  (generated/begotten) है (5:26)। यह पुत्र का पिता द्वारा बाहरी रूप से भेजे जाने  से मेल खाता है (7:29; 8:42)। इन पारस्परिक सम्बन्धों को देखते हुए, मैं केवल एक निहितार्थ को देखना चाहता हूँ, जो कि ख्रीष्ट के भेजे जाने के विषय में एक सम्भावित भ्रम को सुधारता है। सतही रीति से, कोई ऐसा सोच सकता है कि एक परमेश्वरीय व्यक्ति भेजा नहीं जा सकता है। फिर भी, यह जानना कि पिता द्वारा पुत्र की अनन्त उत्पत्ति (eternal generation) ख्रीष्ट के ईश्वरत्व पर प्रभाव नहीं डालती, इस सत्य की पुष्टि करता है कि ख्रीष्ट का पिता द्वारा भेजा जाना उसके ईश्वरत्व पर प्रभाव नहीं डालता है।

ख्रीष्ट को और गहराई से जानना

यूहन्ना 17:8 में, जानने और विश्वास करने में समानता है। ख्रीष्ट पिता से कहता है, “[उन्होंने] वास्तव में जान लिया  है कि मैं तुझ से निकला हूँ, और उन्होंने विश्वास किया  है कि तू ने ही मुझे भेजा है” (बल दिया गया है)। प्रायः बाइबल में, जैसा कि यहाँ है, ज्ञान मात्र बौद्धिक जानकारी नहीं है। यह एक ऐसा ज्ञान है जो सच्चे विश्वास और भरोसे से जुड़ा है। एक मसीही के लिए, सबसे अच्छा, ख्रीष्ट के पहलूओं को अधिक सीखना (या पुनः स्मरण करना या आगे की पुष्टि करना) उसे अधिक गहराई से जानना/ उस पर विश्वास करना है।

यूहन्ना 17:1-8 में दिए गए कथन और वास्तविकताएँ विस्मयकारी हैं। हम त्रिएकता के भीतर की वास्तविकता के विषय में महत्वपूर्ण सत्यों को सीखते हैं। यहाँ पारस्परिक महिमा, छुटकारे की एक वाचा, और भेजने से जुड़े हुए सम्बन्ध हैं। हम ख्रीष्ट के व्यक्ति के विषय में महत्वपूर्ण सत्यों को सीखते हैं। वह परमेश्वर-मनुष्य है, वह पिता द्वारा भेजा गया है (और पवित्र आत्मा को भेजता है), वह स्वेच्छा से हमारे लिए मरा, और वह हमारे लिए प्रार्थना करता है।

हम अपने उद्धार के विषय में महत्वपूर्ण सत्यों को सीखते हैं। इसे यहाँ “अनन्त जीवन” कहा गया है (पद 3)। यह अनन्त परमेश्वर के साथ एक जीवन है। यह हम अयोग्य लोगों को, ख्रीष्ट द्वारा दिया गया जीवन है (पद 2)। यह एक जीवन है जहाँ हम आनन्द से त्रिएकता के “वचन (वचनों)” को “मानते” और “ग्रहण करते” हैं (पद 6, 8; देखें16: 12-15)। यह एक ऐसा जीवन है जहाँ, अपने सर्वोत्तम रूप में, हम ख्रीष्ट को अधिकाधिक जानते/ उस पर विश्वास करते हैं और उसे महिमा में देखने के लिए तत्पर हैं।

ख्रीष्ट को जानने/उस पर विश्वास करने का एक पहलू उसका अनुकरण करना है (13:15)। यूहन्ना 17:1-8 में, उपयुक्त योग्यताओं के साथ, ख्रीष्ट की पिता (और पवित्र आत्मा) के साथ भागीदारी देखना, अन्य मसीहियों के साथ हमारी बात-चीत के लिए एक आदर्श है (11:41-42)। ख्रीष्ट ने संचार किया। वह दूसरे की महिमा करने के लिए इच्छुक था। वह भेजे जाने और भेजने के लिए इच्छुक था। वह औरों के लाभ के लिए कठिन कार्य को पूरा करने के लिए इच्छुक था। वह दूसरों के लिए प्रार्थना करने के लिए इच्छुक था। वह दूसरों से उपहार प्राप्त करने के लिए और उपहार देने के लिए इच्छुक था। अन्य कारणों के साथ-साथ, अपने पिता के लिए प्रेम के कारण उसने औरों से प्रेम किया।

परमेश्वर करे कि यूहन्ना 17:1-8 का उपयोग पवित्र आत्मा द्वारा हमारे उस याजकीय पुत्र को जानने/उस पर विश्वास करने के लिए हो, जिसे पिता ने भेजा है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
रॉबर्ट जे. कारा
रॉबर्ट जे. कारा
डॉ. रॉबर्ट जे. कारा शार्लट्ट, नॉर्थ कैरोलायना में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनेरी में महाविद्यालय के अध्यक्ष, मुख्य शैक्षिक अधिकारी, और नए नियम के प्राध्यापक हैं। वे पौलुस पर नया दृष्टिकोण की नींव तो तोड़ना (Cracking the Foundation of the New Perspective on Paul) और इब्रानियों की पुस्तक पर एक आगामी टीका के लेखक हैं।